एक नौ साल का बच्चा मस्जिद के कोने में छोटी बहन के साथ बैठा हाथ उठाकर अल्लाह पाक से न जाने क्या माँग रहा था ।
कपड़ों में पेवन्द लगा था मगर निहायत साफ़ थे।
उसके नन्हे- नन्हे से गाल आँसुओं से भीग चुके थे
कई लोग उसकी तरफ़ मुतवज्जेह थे।
और
वह बिलकुल बेख़बर अल्लाह पाक से बातों में लगा हुआ था।
जैसे ही वह उठा
एक अजनबी ने बढ़कर उसका नन्हा सा हाथ पकड़ा
और पूछा
अल्लाह पाक से क्या मांग रहे थे ?
उसने कहा कि मेरे अब्बू मर गए हैं।
उनके लिए जन्नत
मेरी अम्मी हर वक्त रोती रहती हैं
उनके लिए सब्र
मेरी बहन माँ से कपड़े माँगती है उसके लिए रक़म
अजनबी ने सवाल किया
क्या स्कूल जाते हो?
हाँ जाता हूँ
किस क्लास में पढ़ते हो?
नहीं अंकल पढ़ने नहीं जाता,
माँ चने बना देती हैं
वो स्कूल के बच्चों को फ़रोख़्त करता हूँ ।बहुत सारे बच्चे मुझसे चने ख़रीदते हैं
हमारा यही काम धन्दा है
बच्चे का एक एक लफ़्ज़ मेरी रूह में उतर रहा था।
तुम्हारा कोई रिश्तेदार ?
अजनबी न चाहते हुए भी बच्चे से पूछ बैठा।
अम्मी कहती हैं ग़रीब का कोई रिश्तेदार नहीं होता।
अम्मी कभी झूठ नहीं बोलतीं लेकिन अंकल
जब हम
खाना खा रहे होते हैं
और मैं कहता हूँ
अम्मी आप भी खाना खाओ तो
वोह कहती हैं मैंने खालिया है
उस वक्त लगता है वोह झूठ बोल रही हैं।
बेटा अगर घर का खर्च मिलजाए तो तुम पढ़ोगे ?
बच्चा: बिलकुल नहीं
क्योंकि अकसर तालीम हासिल करने वाले ग़रीबों से नफ़रत करते हैं
हमें किसी पढ़े हुए ने कभी नहीं पूछा
पास से गुज़र जाते हैं
अजनबी हैरान भी था और परेशान भी
फिर बच्चे ने कहा कि
हर रोज़ इसी मस्जिद में आता हूँ कभी किसी ने नहीं पूछा यहाँ तमाम आने वाले मेरे वालिद को जानते थे
मगर
हमें कोई नहीं जानता
बच्चा जो़र ज़ोर से रोने लगा
अंकल जब बाप मर जाता है तो सब अजनबी बन जाते हैं
मेरे पास बच्चे के सवालों का कोई जवाब नहीं था।
ऐसे कितने मासूम होंगे
जो हसरतों से ज़ख़्मी हैं —–
बस एक कोशिश कीजिए
और
अपने आसपास ऐसे ज़रूरतमन्द, यतीमों और बे सहारा को ढूंढिये
और
उनकी मदद कीजिए
मद्रसों और मस्जिदों में सीमेंट या अनाज की बोरी
देने से पहले अपने आसपास किसी ग़रीब को देखलें
शायद उसको आटे की बोरी की ज़ियआदह ज़रूरत हो?
क्योंकि
बन्दों पर बन्दों का ये वोह ह़क़ है जिसको ख़ुदा भी मुआ़फ़ नहीं करेगा ।
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ख़ुद में और मुआ़शरे में तबदीली लाने की कोशिश जारी रखें
जज़ाक’अल्लाह ।
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यह भी एक सदक़ा-ए-जारिया है ।