नवरात्रि जैसा आचरण यदि मनुष्य आजीवन करें तो समाज कितना सुन्दर होगा? परन्तु अफसोस कि दिखावे और हकीकत में बहुत अंतर है।
लेकिन हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है इसलिए महिलाओं की बराबरी की बात तो करता है परन्तु उसका अनुसरण या अनुपालन अपने जीवन मे कभी नहीं करता!
लड़की की पढ़ाई में फीस कम कहां लगती है?
लेकिन शादी के लिए फिर भी अच्छा खासा दहेज देना पडता है, हम सब लड़के वाले भी हैं और लड़की वाले भी!
लेकिन लड़के वाले होकर इस सच को भूल जाते हैं कि जिसने 25 साल कांच के बर्तन की तरह सहेजकर रखी अपनी लाड़ली बेटी आपको दे दी, उससे दहेज क्यों मांगा जाए?
क्या लडकी, लड़के वालों के लिए जिंदगी भर के लिए एक मुफ्त का नौकर जैसा नहीं होती है?
जो नौकरी करेगी तो भी अपने मायके वालों को नहीं बल्कि अपनी सुसराल वालों को ही सारा वेतन देती है!
उनके परिजनों का नाश्ता,खाना बनाने के अलावा उनके वंश को भी आगे बढ़ाने के लिए बच्चे पैदा करके लालन पालन और पोषण सभी कुछ करती है।
कपडे धुलने से लेकर प्रेस तक करती है घर की साफ सफाई के अलावा वृद्ध सास ससुर व ननद देवर सबकी सेवा सुश्रुषा भी करती है तथा मेहमान रिश्तेदारों की आवभगत करने में भी कोई कोताही नहीं बरतती है!
सच मानिए आपके भी घर में मांँ, पत्नी, बहन, बेटी सब होंगी।
कभी कल्पना करिए कि यदि कपडे धुलने, प्रेस करने, चौका बर्तन और साफ सफाई करने तथा खाना बनाने वाले नौकर की हैसियत से भी उसने वेतन दिये जाने की मांग कर बैठे तो क्या आम आदमी पत्नी रख पाने की हैसियत रखता है?
एक व्यक्ति का पति अर्थात स्वामी बनाने वाली पत्नी ही होती है, मकान को भी घर बनाने वाली पत्नी ही होती है। पति को अविस्मरणीय क्षणो का आनंद और सुख देने वाली तथा दुख सुख में साथ निभाने वाली भी पत्नी ही होती है।
जबकि न तो वह आपका खून होती है और न ही वंश की होती है किन्तु वफादारी और सेवा करने में उसका कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता है।
फिर भी दहेज के लिए प्रताड़ना??
लड़की सुन्दर, सुशील,शालीन, गृहकार्य में दक्ष,उच्च शिक्षित, खानदानी सभी को चाहिए,भले ही लड़का काला कलूटा और दिखने में कुरुप ही क्यों न हो!
क्या कन्या पक्ष वाले या वर पक्ष वाले कभी लड़की के दिल से पूछने की कोशिश करते हैं,कि लड़का भी उसको दिल से पसंद है?
कभी नहीं, वर्तमान में औपचारिकता जरूर निभाई जाती है। घर में लड़का देखने जाने के से समय ही उसकी खूबियों का बखान किया जाता है।
लड़का काला है तो क्या उसके पास सरकारी नौकरी तो है!
लड़का थोड़ा सा पीता जरूर है किन्तु उसका व्यापार और खानदान कितना बड़ा है?
बिल्कुल शोले फिल्म के समान मौसी के सामने सारे ऐब को तारीफ में बदलकर सुनाया जाता है।
चालाकी इतनी बरती जाती है कि लड़की को डायरेक्ट बताना भी नहीं है लेकिन उसे सुन सब कुछ जाए। ताकी लड़की चाहकर भी अपने मातापिता की इच्छा की अवहेलना न कर पाए!
कभी कभी सोचता है मन, प्रकृति ने नारी के अन्दर कितनी सहनशीलता, कितना विवेक, कितना धैर्य, अदम्य साहस, ममता, प्रेम, त्याग, समर्थन, परोपकार, साहस, हिम्मत और प्यार कूट कूट कर भरा है, इसको कोई भी पैमाना माप नहीं सकता है।
व्यक्ति खुद दुशासन जैसा हो लेकिन पत्नी सीता और सावित्री जैसी चाहिए।
काला कलूटा और भद्दा ही क्यों न हो, लेकिन पत्नी हिरोइन जैसी ही चाहिए।
सुन्दर और शिक्षित तथा नौकरी करने वाली भी हो लेकिन घूंघट आधा फूट का करने वाली तथा उसके माता पिता और उसके पैर दबाने वाली भी चाहिए।
खाना भी स्वादिष्ट बनाना आना चाहिए तथा भाई बहनो और रिश्तेदारों की सेवा करने वाली पत्नी ही चाहिए।
महिला शादीशुदा हैं इसका पता दूर से ही चल जाए इसके लिए तमाम चिन्ह जैसे सिंदूर, बिछुए, पायल, चूड़ियां, मंगलसूत्र जैसी खुबसूरत जंजीरें पहना दी जाती है, जबकि पुरुष शादीशुदा होकर भी कुंवारा जैसा ही नजर आएं, उसके लिए शादी होने का कोई एक भी प्रमाण नहीं दिखाई नहीं देगा!
यह है हमारा पुरुष प्रधान समाज।
जहां महिलाओ की बराबरी की बात करना सरासर झूठ और बेईमानी के सिवाय कुछ भी नहीं है।
समस्त नारी शक्ति और जगत जननी को सादर नमन और अभिनंदन है।
जिसकी कृपा और दया व प्रेम के कारण आज हमारा और आप सबका अस्तित्व है।
नारी के बिना सृष्टि अधूरी है इसीलिए आदिशक्ति के रूप में इसकी पूजा भी जाती है।
लेकिन अफसोस कि नौ दिनों तक खूब पूजा पाठ का ढोंग करने वाले पत्थर की मूर्तियो में तो देवी को पूजकर खुश हो जाते हैं व्रत और उपवास भी रखते हैं। लेकिन वास्तविक देवी यानि मातृशक्ति का सम्मान करने वालों की संख्या कितनी है यह नारी शक्ति से बेहतर कोई नहीं जानता।
क्योंकि हर पुरुष में उसे दुशासन का रुप नजर आता है बस मौके की तलाश होती है वरना बलात्कारी कहीं बाहर से नहीं आते हैं!
बामुश्किल दस प्रतिशत पुरुष ऐसे होंगे जो अपनी पत्नी के अलावा सभी को अपनी बहन बेटी या मां का दर्जा देकर सम्मान करते हैं।
प्रेमिका भी मानिए तो उससे बेहतर कोई दूसरा रिश्ता हो ही नहीं सकता। लेकिन प्रेम सभी से करने का गुण होना साधूता और त्याग का प्रतीक है न कि स्वार्थ सिद्धि और कामसुख का!
वर्तमान में तो साधू और संत भी अपने नाम और प्रकृति के विरुद्ध आचरण करने वाले ही अधिकांश पाये जाते हैं आम पुरुषो की कौन बात करे?
नारी हमें जगंल में विचरण करते उस शाकाहारी और दयालु हिरन के समान प्रतीत होती है जिसका शिकार हर कोई करना चाहता है। मगर फिर भी कभी हिरनो को इसका विरोध करते हुए नहीं देखा है।
नारी की तो वास्तविक दुश्मन ही नारी होती है, पुरुषो की कौन बात करे?
लड़की देखने जाओ तो एक लड़की में सबसे अधिक कमी केवल और केवल महिलाएं ही खोजती हैं, पुरुष नहीं!
शादी के बाद भी खाना बनाने से लेकर, गृहकार्य में दोष निकालने व गृहक्लेश करने एवं दहेज उत्पीड़न में सबसे अधिक भूमिका केवल महिलाएं ही निभाती है पुरुष को तो अधिकतर मजबूरी में ही सहयोगी बनना पड़ता है।
से जगत जननी,नारी तेरी यही कहानी!
आंचल में है दूध और आँखो में पानी!
( साभार )