जापान की इम्पीरियल आर्मी का सिपाही, जिसने जिंदगी के 30 साल दूसरा विश्वयुद्ध लड़ते हुए गुजार दिए।
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दूसरे विश्वयुद्ध के पूर्व जापान में राजशाही, वस्तुतः एक फासिस्ट सिस्टम था। एलीट का शासन था, जनता की सोच समझ नियंत्रित थी, उसे देश के लिए मरने, और मारने की घुट्टी मिली होती है। संस्कृति का योगदान भी काफी था।
कामिकाजे एक प्रथा है, जिसमे बचने का कोई मार्ग न मिलने पर समुराई, या कहिये फौजी अपनी मौत को उद्देश्य बनाकर लड़ता है। तो सुदूर समुद्र में जापानी बमवर्षक बम गिराने के बाद, अपना प्लेन भी अमेरिकी नेवल शिप से भेड़ देते, क्योकि प्लेन में वापस एयरस्ट्रिप तक जाने का फ्यूल न होता था।
इन तरीकों से जापान, जर्मनी के सरेंडर के बाद भी युद्ध कुछ महीने खींच सका, और अंत मे एटम बम से दो शहरों के एल्हिनेशन के बाद ही सरेन्डर को तैयार हुआ।
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तो ऐसे माहौल में 20 साल के देशभक्त हीरू ओनोडा ने आर्मी जॉइन की। दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था। इन्हें फिलीपींस के एक द्वीप पर उतारा गया। वहाँ अमरीकी हवाई अड्डे पर कब्जा करना था।
दल असफल रहा, बेतहाशा मारा गया। हीरू और उनके तीन साथी पहाड़ों में जा छुपे। यह 1944 की बात है।
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कुछ दिनों बाद हवाई जहाज से पर्चे गिरे, लिखा था छुपे हुए सैनिक न समर्पण कर दें, उनके देश जापान ने हार मान ली।
लेकिन जापान तो हार नही सकता। जाहिर है ये प्रोपगंडा था। हीरू एंड कम्पनी का सँघर्ष जारी रहा। छह साल बाद उनका एक साथी भाग गया।
एक बार फिर पर्चे गिरे,जिसमे साथी के सरेंडर् की जानकारी थी। इन सबके गुस्से का पारावार न रहा। सबने मौत तक देश के लिए सँघर्ष की कसम खायी। कोई भागे, तो दुसरो को उसे गोली मारने का हक था।
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जंगल मे छिपकर, कन्दमूल खाकर, आदिम जीवन जीते हुए हीरू ने लड़ाई जारी रखी। कुछ बरस बाद पर्वत की तलहटी पर किसानी शुरू हो गयी थी।
दल ने चर्चा की, तय हुआ कि ये किसान नही, अमरीकी जासूस थे, जो भेस बदलकर उनकी टोह लेने आये थे। इसलिए वे अब किसानों को मारते, फसलें जला देते, खाने भर लूट लेते। ऐसी ही एक रेड में उनका एक साथी मारा गया।
अब 2 बचे। दस बारह साल बाद एक साथी मर गया। हीरू अकेला रह गया। लड़ता रहा।
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अकेले हीरू को एक दिन एक जापानी युवक मिला। हीरू ने उसे बंधक बना लिया। बंधक ने बताया कि युद्ध तो 30 साल पहले ख़त्म हो चुका। सरेंडर, एटम बम और आज की सोसायटी की जानकारी दी।
हीरू अब भी यकीन न कर पाया। उसे तो बस अपने कमांडिंग अफसर का भरोसा था। उसे आदेश था, सरेंडर नही करना है।
लेकिन युवक जापानी था, सो उसे छोड़ दिया। युवक ने जापान जाकर हीरू के कमांडिंग अफसर को खोज निकाला। फिलीपींस लेकर लाया।
हीरू के पहाड़ पर कमांडिंग अफसर अकेले गया। उसे शाबासी दी। कहा- युद्ध 30 साल पहले खत्म हो गया था। अब तुम भी सरेंडर कर दो।
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हीरू ने हथियार रख दिये। बैठ गया जमीन पर, ताकता रहा। फिर जार जार रोने लगा। देर तक ..
उम्र गुजर चुकी थी। अब तक जो वो देखता, सोचता, लड़ता रहा, सब बेकार था, झूठ था। तीस साल से जिस सच्चाई के लिए वह तिल तिल मरता रहा, भ्रम निकली। दुनिया की निगाह में वो सैनिक नही, देशभक्त नही, भगोड़ा अपराधी था।
मासूमो और किसानों की बेवजह हत्या करने वाला साइको
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ये 1974 था। फटी हुई वर्दी पहने हीरू ने, अपनी एसाल्ट गन, कुछ कारतूस और समुराई तलवार के साथ फिलीपींस के राष्ट्रपति के समक्ष समर्पण किया।
उस पर 30 से ज्यादा हत्या के केस थे। मगर पार्डन (माफी) दी गईं। हीरू अपने देश लौटा।
जापान औद्योगिक ताकत था। दुनिया से जुड़ा था। जिस अमेरिका से हीरू लड़ रहा था, उसके देश के करोड़पति उसी अमेरिका में पैसे लगा रहे थे। अमेरिका जापान का सबसे बड़ा दोस्त था।
वक्त आगे बढ़ चुका था, हीरू 1944 में कैद रह गया।अब लेकिन अपना देश उसे पहचान नही आ रहा था, पसंद नही आ रहा था। कुछ बरस बाद वो ब्राजील जाकर बस गया।
हीरू का किस्सा आपको अजब लगेगा। एक जीवन ख्याली युद्ध मे बर्बाद हो गया। 30 किसानों की जो हत्याएँ उसने की, वे जीवन भी नष्ट हुए।
लेकिन हीरू को पागल, या इतिहास का अकेला इवेंट मत समझिये।आसपास देखिए। लाखों हीरू ओनोडा मिलेंगे। वे लड़ रहे हैं, समय काल से परे, एक ख्याली युद्ध।
लउम्र 20-30-50 साल है। मगर कोई 80 साल पीछे जाकर जिन्ना से, कोई 400 साल पीछे औरंगजेब से, कोई 600 साल पीछे बाबर से, कोई 1000 साल पीछे गजनवी से, कोई 1400 पीछे कासिम से.. लोहा ले रहा है।
वो खंदक खोद रहा है, हमले कर रहा है।
दिमाग मे “मां भारती की गोलियों से आरती” की तस्वीरें बना रहा है।
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ये युद्ध भी ख्याली हैं। लेकिन मौतें असली, जिंदगियों की बर्बादी असली, देश का गर्त में जाना असली।
एक पूरी पीढ़ी हीरू ओनेडा है। धर्म, जाति और इतिहास के इन्फिरियरटी कम्प्लेक्स, और नफरत से लैस होकर आम हिंदुस्तानी हीरू बने फिर रहे हैं।
तिरंगे से भगवा फाड़कर अलग कर रहे हैं।
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जिस किसी दिन (और वो दिन आएगा) हम अपने हथियार फेंककर अपनी आंखें खोलेंगे, अपने देश को पहचान नही पाएंगे।
सनद रहे, तब वह देश हमे पसन्द नही आएगा।
पूर्वजन्मकीपोस्ट
मनीष सिंह✍?