रजनीश_भारती (जनवादी किसान सभा उ. प्र.)
दुनिया भर के बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मालिकों की गिद्ध दृष्टि किसानों की जमीन पर लगी हुई है और हमारे देश की खूंखार फासीवादी सरकार देशी विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ मिलकर देश के किसानों की जमीन लूटने के लिए तीन काले कानून बना चुकी है, जिसके खिलाफ आज पूरे देश का किसान सड़क पर उतर कर संघर्ष कर रहा है।
यह संघर्ष किसानों और विदेशी साम्राज्यवादियों के बीच जीवन-मरण का संघर्ष बन चुका है। दरअसल पूरी दुनिया में समाजवाद और पूंजीवाद के बीच जीवन-मरण का युद्ध चल रहा है। दुनिया भर के 80% बाजार पर चीन का समाजवादी उत्पादन बिक रहा है। पूंजीपतियों का माल नहीं बिक पा रहा है। माल नहीं बिक रहा है तो उनके कारखाने भी नहीं चल पा रहे हैं। इन पूजीपतियों ने कारखाने से अपनी पूंजी निकालकर उस पूंजी से चीन का सस्ता माल खरीद करके बेचने के लिए शॉपिंग मॉल, बिग बाजार, सुपर मार्केट खोला; परंतु ऑनलाइन शॉपिंग ने इसे भी पीट दिया है। कई पूजीपतियों ने बड़े डिग्री कॉलेज, यूनिवर्सिटी बड़े-बड़े अस्पताल खुलवाए; मगर नौकरियां ही नहीं मिल रही हैं तो पढ़ाई से मोहभंग होता जा रहा है। अत: इस क्षेत्र में भी पूंजी खप नहीं रही है। अन्य किसी क्षेत्र में भी जगह नहीं बन पा रही है।
बाजार में बुरी तरह से हारने के बाद पूंजीपतिवर्ग अपनी दैत्याकार पूंजी को लेकर कहां जाएं? उसे सिर्फ किसानों की जमीन दिखाई दे रही है, जहां वह अपनी पूंजी खपाकर मेहनतकशों का खून चूस सकें; इसलिए वह भूखे भेड़िए की तरह किसानों की जमीन देख रहा है। वह किसान की जमीन छीनना चाह रहा है। अब चीन के सस्ते मालों का मुकाबला करने के लिए पूंजीपतिवर्ग समाजवाद तो ला नहीं सकता, वह अपनी कब्र खुद नहीं खोलेगा, यह काम तो जनता ही कर सकती है। मगर जब तक जनता पूंजीपतिवर्ग का तख्ता पलट कर समाजवाद नहीं कायम करेगी, तब तक पूंजीपति वर्ग अपना अस्तित्व बचाने के लिए जनता के खिलाफ हमले करता रहेगा। जहां बड़े-बड़े खूंखार पूजीपतियों के पास किसानों की जमीन छीनने के अलावा कोई दूसरा उपाय दिख नहीं रहा है; वहीं किसानों के पास अपनी जिंदगी बचाने के लिए अपनी जमीन बचाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं दिख रहा है; इसलिए दोनों के बीच जीवन-मरण का युद्ध चल रहा है।
इस जीवन-मरण के युद्ध में “बच्चा-बच्चा झोंक दो ! जमीन का कब्जा रोक दो!” के नारों के साथ किसान अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ रहा है। इस संघर्ष में जिस तरह से किसान आपसी प्यार मोहब्बत के साथ मिलकर के एकजुट होकर शोषक वर्ग के खिलाफ लड़ रहे हैं, ऐसी मिसाल बहुत कम ही कहीं देखने को मिलती है।
हम लोग 16 किलोमीटर दूर गये, फिर वापस आए तो यहां पर हमने देखा- हर 200 मीटर पर भोजन का लंगर, हर 50 मीटर पर चाय का लंगर, कहीं-कहीं काजू किसमिस, बादाम मिले हुए दूध का लंगर, कहीं पर किताबों का भी लंगर, हर 200 मीटर या उससे कम पर बाथरूम और नहाने के लिए गर्म पानी, स्नानागार के पास तेल, साबुन, शैंपू यहां तक कि बनियान, जुराब, इनर, तोलिया, चप्पल, जूता आदि का लंगर लगा हुआ था। इन लंगरों में सब कुछ फ्री है, यह फ्री सर्विस तीस किलोमीटर तक फैले धरने में उपस्थित सबके लिए है तो है ही साथ ही साथ तीस किलोमीटर तक सड़क के किनारे रहने वाले सारे गरीबों के लिए उपलब्ध है। हम टिकरी बार्डर और गाजीपुर बार्डर गये, कमोवेश ऐसी ही सुविधा वहाँ पर भी देखा।
सिंघू बार्डर पर हमारे सभी साथियों को रोक कर के कुछ किसान कार्यकर्ताओं ने एक-एक कंबल और एक-एक साल हम सबको दिया। हमने जब पूछा कि इन कम्बलों को कहां जमा करना होगा। तो उन्होंने बताया कि इसे जमा नहीं करना है, यह सब आपका हो गया। जब तक यहां रहियेगा, इसका इस्तेमाल करिएगा, बाद में इसे अपने घर लेकर चले जाइएगा।
यह सब देख कर कोई भी सोच सकता है, इतनी सुविधा फ्री में कैसे मिलती हैं? कहीं विदेशी फंडिंग तो नहीं? कहीं गोदी मीडिया का प्रचार सही तो नहीं? मगर सच्चाई तब पता चली, जब हमने देखा क्रांतिकारी किसान नेताओं को सहयोग देने के लिए मंच के पास लोगों का तांता लगा रहता है। 100 से 10,000 तक लोग अपनी इच्छा से दे रहे थे। लंगरों के बारे में हमने पता किया तो जाना कि ये अधिकांश लंगर तो गांव की किसान कमेटियों ने लगा रखे थे।
संगरूर जिले के एक गांव के जांबाज कार्यकर्ता करनदीप सिंह ने बताया कि उनके गांव में जिसकी आबादी 7,000 के आसपास होगी, उन्होंने आधे गांव में ही चंदा इकट्ठा किया था, जो 5 लाख रुपए के लगभग था। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उ.प्र. के तमाम गांव से किसानों ने लगभग इसी तरह सहयोग करके इतने बड़े आंदोलन को खड़ा किया है; जिससे भारत सरकार ही नहीं पूरे दुनिया का पूंजीपति वर्ग कांप रहा है।
आज जरूरत है, सभी मजदूर पूरी शक्ति के साथ किसानों के आंदोलन में अपना सहयोग करें। सारे छात्रों को अपने हक और अधिकार के लिए किसानों के आंदोलन में अपनी पूरी ताकत झोंक देना चाहिए। संविदा कर्मियों को अपनी मांगों को लेकर किसान आंदोलन के साथ सुर में सुर मिलाना चाहिए। समाज के जितने भी उत्पीड़ित तबके के लोग हैं, सभी लोगों को किसानों के आन्दोलन में शामिल होकर मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ एक आर-पार की जंग छेड़ देनी चाहिए।
आज देश का किसान लड़ रहा है तो मौजूदा शोषक वर्ग की सरकार इस आन्दोलन को खालिस्तानियों, नक्सलवादियों, आतंकवादियों, उग्रवादियों का आंदोलन कहकर बदनाम कर रही है। बदनाम करके बर्बरतापूर्वक दमन करना चाहती है। इसलिए पूरे देश के किसानों को चाहिए कि शोषक वर्ग की सरकार का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए हर गांव मुख्यालयों, हर जिला मुख्यालयों, तहसील मुख्यालयों, ब्लॉक मुख्यालयों को घेरकर इस जंग को और धारदार बनाएं; जिससे यह जाहिर हो कि यह आन्दोलन पूरे देश के किसानों का है। ऐसा करने के लिए कम से कम अपने आसपास की सड़कों को, दस-बीस मिनट के लिए ही सही, जाम करके उसे सोशल मीडिया में साझा करें।
आइए अपनी जमीन बचाने के लिए शोषकवर्ग के खिलाफ एक ऐसे जंग का आगाज कर यह दिखा दें कि किसान आन्दोलन की जड़ें बहुत गहरी हैं, इसे कोई भी फासीवादी सरकार उखाड़ नहीं सकती।
विशेष :
- इसको प्रकाशित करने का हमारा उद्देश्य किसान आन्दोलन की बात सरकार के साथ-साथ जनता तक पहुँचाने की है।
- इस विषय में लेखक के अपने विचार हैं। इससे सम्पादक (वेबसाइट आनर) का सहमत होना अनिवार्य नहीं है।