द्वारा : इं. एस. के. वर्मा
शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के मामले में देश भर में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल का कोई मुकाबला नहीं कर सकता है।
यह सच है कि यदि नेता ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ काम करें तो जनता के द्वारा दिये गये टैक्स के पैसे से भी बहुत सा विकास किया जा सकता है, लेकिन अफसोस कि टैक्स के पैसे के साथ ही विश्व बैंक से अरबों डालर का कर्ज लेकर विकास के नाम पर नेता, उनके सहयोगी ब्यूरोक्रेट्स तथा ठेकेदार व अधिकारी अपनी संपत्ति बढ़ाने में लगे हैं।
जनता सब कुछ जानकर भी अनजान और शांत क्यों रहती है समझ नहीं आता है?
जागरुक जनता को अपने क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों से सवाल करना चाहिए कि विधायक, सांसद और मंत्री के पास सत्ता में आने के कुछ वर्षों बाद करोड़ों/अरबों रुपए की चल अचल की संपत्ति कहां से आ जाती है?
नेता और मंत्री सरकारी वेतनभोगी हैं, पेंशन भी पाते हैं। फिर इनके लिए शैक्षिक योग्यता अनिवार्य क्यों नहीं है?
पर्चा भरने से पहले इनकी भी लिखित परीक्षा (इंट्रेंस एग्जाम) और इंटरव्यू जरूर होना चाहिए।
ताकि जनता को पता चल सके कि जिसको अपने क्षेत्र के विकास की बागडोर सौंपने वाले हैं, उसके पास खुद का कितना दिमाग है और वह मंत्री बनकर आपके क्षेत्र का कितना और कैसा विकास कर सकेगा?
दूसरी और सबसे अहम बात जो सरकारी वेतन भोगी है, वह टैक्स क्यों नहीं देता है? जबकि आम जनता भी तमाम तरह के टैक्स का बोझ उठाती है, फिर देश के मंत्री सरकारी वेतन और पेंशन लेकर भी इनकम टैक्स क्यों नहीं भरते हैं? ताकि इन मक्कारों की नंबर दो की संपत्ति सार्वजनिक न हो सकें, क्योंकि देश की संपत्ति के सबसे बड़े लूटेरे, रिश्वतखोर, घोटालेबाज, घपलेबाज और भ्रष्टाचारी केवल और केवल देश के नेता हैं।
यदि नेता ही ईमानदार हों जाए तो दूसरे किसकी मजाल है, जो भ्रष्टाचार करने जैसा दुस्साहस कर सके।
हमें गर्व(?) है कि दुनिया के सबसे बड़े भ्रष्टाचारी और घोटालेबाज हमारे देश के नेता हैं। राजा ही यदि चोर होगा तो जनता से ईमानदारी की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
हम यह भी जानते और मानते हैं कि मोदी जी जैसा ईमानदार नेता(?) सदियों में कोई एक मिलता है, क्योंकि ईमानदारी किसे कहते हैं? यह शायद मोदी जी को खुद भी मालूम नहीं है। क्योंकि जिसके सत्ता में रहते कुछ बैंकों के कर्जदार अरबों खरबों रुपए लेकर विदेशों में भाग गये, वह भी एअरपोर्ट जैसी चाकचौबंद सुरक्षा वाली जगहों से??
इसका मतलब साफ है कि चौकीदार ही………..
(वो नहीं जो आप समझ रहे हैं।) बल्कि चौकीदार ही है। मगर अपने उन मालिकों का, जिन्होंने चुनाव में पैसा पानी की तरह बहाकर जिताने में कोई भी कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी। फिर ऐसे मालिकों के सामने चौकीदार की क्या हिम्मत जो नजरें उठाकर बात भी कर सके।
चौकीदार कभी भी अपने मालिक की कार की तलाशी नहीं ले सकता है, क्योंकि ऐसे चौकीदार की अगले दिन ही छुट्टी कर दी जाती है।
खैर! जो भगौड़े गये तो गये, ईमानदारी साबित करने का एक बहुत अच्छा मौका और भी है।
नोटबंदी की तरह ही किसी दिन रात को आठ बजे मोदी जी घोषणा कर दें कि पंद्रह दिनों के अंदर सभी पार्टियों के नेताओं की संपत्ति का बायोडाटा आयकर विभाग के पास आ जाना चाहिए।
जो भी लापरवाही करेगा, उसको मंत्रिमंडल अथवा संसद से निष्कासित करके निलंबित कर दिया जाएगा।
शुरुआत अपने मंत्रियों से करें और छोड़ें किसी भी पार्टी के नेताओं को नहीं!
बस मोदी जी को एक बार सख्ती से ईमानदारी दिखाने की जरूरत है। सच मानिए, विश्व बैंक का सारा कर्ज चुकता करके भी देश की आर्थिक स्थिति बहुत बेहतर हो सकती है।
मगर यहां तो कहानी ही उल्टी है, यानि अलीबाबा और चालीसा चोर वाली कहानी चरितार्थ होती है।
जनता को भ्रष्टाचारी, चोर और रिश्वतखोर बताकर नोटबंदी के नाम पर काला धन तलाशते रहे, जबकि 50 दिनों तक देश में आपातकालीन जैसी स्थिति रही। अरबों रुपए के राजस्व का नुक़सान भी हुआ, भूखे प्यासे लोग नोटबंदी की लाइनों में मर भी गए।
मगर मिला क्या ?
बाबा जी का टूल्लू पम्प!
क्योंकि जनता को चोर बताकर तलाशी लेते रहे, जबकि पूंजीपतियों और उद्योगपतियों ने अपना काला धन सफेद में बड़ी ही आसानी से बदल लिया!