कोई मरे
इस्लाम के नाम पर,
कोई मरे
राम के नाम पर
मैं क्यों मरुँ ?
मेरा डीएनए ,
किसी धर्म से
नहीं मिलता !
मेरे खून में
किसी मजहब का
संक्रमण नहीं !
मैं स्वस्थ हूँ
मैं पवित्र हूँ
क्योंकि मैं
हिन्दू नहीं
मुसलमान नहीं
सिर्फ इंसान हूँ !
तुम्हारी पवित्र किताबों को ,
मैं पवित्र नहीं मानता !
तुम्हारे महान खुदाओं को ,
मैं झूठा और फरेबी
कहता हूँ !
तुम्हारी रिवायतों को
मैं बंदिश समझता हूँ ,
तुम्हारी परंपराओं को
मैं बेड़ियां कहता हूँ !
जिस महान संस्कृति पर
तुम इतराते हो ,
उसे मैं कूड़ा समझता हूँ !
जिसे तुम अपना
आदर्श बताते हो ,
मैं उन सब को
मक्कार कहता हूँ !
नर्क की यातनाओं से
डरता नहीं मैं ,
स्वर्ग की सुन्दर
अपसराओं की
कोई अभिलाषा नहीं मुझे !
जन्नत की हूरें
तुम्हें ही मुबारक हों !
जन्नत के खूबसूरत झरनों में
तुम ही डूब मरना !
मुझे नहीं चाहिए
तुम्हारे खोखले आदर्श !
शम्बूक के हत्यारे को
मर्यादा पुरुषोत्तम मैं क्यों कहूँ ?
किसी हवस के पुजारी को
पैगम्बर मैं क्यों मानूँ ?
तुम्हारी पूजा और नमाजों पर
मैं थूकता हूँ !
तुम्हारे तीज और त्योहारों को
मैं खूब समझता हूँ !
रोजा और व्रत भी
तुम्हें ही मुबारक हों !
मैं क्यों करूँ ?
मेरा डीएनए
किसी धर्म से नहीं मिलता
मेरे खून में
मजहब का कोई
संक्रमण नहीं !
मैं स्वस्थ हूँ
मैं पवित्र हूँ
क्योंकि
मैं हिन्दू नहीं
मुसलमान नहीं
सिर्फ इंसान हूँ !!
-शकील प्रेम