?1 मई, 2001 को अख़बार “TIMES OF INDIA” में भारत के लोगों के DNA से सम्बंधित शोध रिपोर्ट छपी, लेकिन मातृभाषा या हिंदी अखबारों में यह बात क्यों नहीं छापी गयी? क्योंकि इंग्लिश अखबार ज्यादातर विदेशी लोग यानी ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य लोग ही पढ़ते हैं। मूलनिवासी लोग नहीं।
? विदेशी यूरेशियन जानकारी के बारे में अतिसंवेदनशील लोग हैं और अपने लोगों को बाख़बर करना चाहते थे, ये इसके पीछे मकसद था। मूलनिवासी लोगों को यूरेशियन सच से अनजान बनाये रखना चाहते हैं।
?THE HIDE AND THE HIGHLIGHT TWO POINT PROGRAM. सूचना शक्ति का स्रोत होता है।
?यूरोपियन लोगों को हजारों सालों से भारत के लोगों, परम्पराओं और प्रथाओं में बहुत ज्यादा दिलचस्पी है। क्योंकि यहाँ जिस प्रकार की धर्मव्यवस्था, वर्णव्यवस्था, जातिव्यवस्था, अस्पृश्यता, रीति-रिवाज, पाखंड और आडम्बर पर आधारित धर्म परम्पराएं हैं, उनका मिलन दुनिया के किसी भी दूसरे देश से नहीं होता। इसी कारण यूरोपियन लोग भारत के लोगों के बारे ज्यादा से ज्यादा जानने के लिए भारत के लोगों और धर्म आदि पर शोध करते रहते हैं।
?यही कुछ कारण है, जिसके कारण विदेशियों के मन में भारत को लेकर बहुत जिज्ञासा है। इन सभी “व्यवस्थाओं के पीछे मूल कारण क्या है?” इसी बात पर विदेशों में बड़े पैमाने पर शोध हो रहे हैं। मुश्किल से मुश्किल हालातों में भी विदेशी भारत में स्थापित ब्राह्मणवाद को उजागर करने में लगे हुए हैं।
?आज कल बहुत से भारतीय छात्र भी इन सभी व्यवस्थाओं पर बहुत सी विदेशी संस्थाओं और विद्यालयों में शोध कर रहे हैं।
?अमेरिका के उताह विश्वविद्यालय वाशिंगटन में माईकल बामशाद नाम के आदमी ने जो BIOTECHNOLOGY DEPARTMENT का HOD ने भारत के लोगों के DNA परीक्षण का प्रोजेक्ट तैयार किया था। बामशाद ने प्रोजेक्ट तो शुरू कर दिया, लेकिन उसे लगा भारत के लोग इस प्रोजेक्ट के निष्कर्ष (RESULT REPORT) को स्वीकार नहीं करेंगे या उसके शोध को मान्यता नहीं देंगे। इसलिए माईकल ने एक रास्ता निकला।
?माईकल ने भारत के वैज्ञानिकों को भी अपने शोध में शामिल कर लिया, ताकि DNA परीक्षण पर जो शोध हो रहा है, वह पूर्णतः पारदर्शी और प्रमाणित हो और भारत के लोग इस शोध के परिणाम को स्वीकार भी कर लें।
?इसलिए मद्रास (तमिलनाडु) विशाखापटनम में स्थित BIOLOGUCAL DEPARTMENT, भारत सरकार मानववंश शास्त्र – ENTHROPOLOGY के लोगों को भी माईकल ने इस शोध परीक्षण में शामिल कर लिया। यह एक साझा शोध परीक्षण था, जो यूरोपियन और भारत के वैज्ञानिकों को मिलकर करना था। उन भारतीय और यूरोपियन वैज्ञानिकों ने मिलकर शोध किया। ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों के डीएनए का नमूना लेकर सारी दुनिया के आदमियों के डीएनए के सिद्धांत के आधार पर, सभी जाति और धर्म के लोगों के डीएनए के साथ परीक्षण किया गया।
?यूरेशिया प्रांत में मोरूवा समूह है, रूस के पास काला सागर नमक क्षेत्र के पास, अस्किमोझी भागौलिक क्षेत्र में, मोरू नाम की जाति के लोगों का DNA भारत में रहने वाले ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों से मिला। इस शोध से ये प्रमाणित हो गया कि ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य भारत के मूलनिवासी नहीं हैं।
? महिलाओं में पाए जाने वाले MITICONDRIYAL DNA (जो हजारों सालों में सिर्फ महिलाओं से महिलाओं में ट्रान्सफर होता है) पर हुए परीक्षण के आधार पर यह भी साबित हुआ कि भारतीय महिलाओं का DNA किसी भी विदेशी महिलाओं की जाति से मेल नहीं खाता। भारत के सभी महिलाओं एस सी, एस टी, ओबीसी, ब्राह्मणों की औरतों, राजपूतों की महिलाओं और वैश्यों की औरतों का DNA एक है और 100% आपस में मिलता है। वैदिक धर्मशास्त्रों में भी कहा गया है कि औरतों की कोई जाति या धर्म नहीं होता। यह बात भी इस शोध से सामने आ गई कि जब सभी महिलाओं का DNA एक है तो इसी आधार पर यह बात वैदिक धर्मशास्त्रों में कही गई होगी। अब इस शोध के द्वारा इस बात का वैज्ञानिक प्रमाण भी मिल गया है। सारी दुनिया के साथ-साथ भारतीय उच्चतम न्यायालय ने भी इस शोध को मान्यता दी। क्योंकि यह प्रमाणित हो चूका है कि किसका कितना DNA यूरेशियनों के साथ मिला है:
?ब्राह्मणों का DNA 99.99% यूरेशियनों के साथ मिलता है।
राजपूतों (क्षत्रीयों) का DNA 99.88% यूरेशियनों के साथ मिलता है।
? वैश्य जाति के लोगों का DNA 99.86% यूरेशियनों के साथ मिलता है।
?राजीव दीक्षित नाम का ब्राह्मण (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर) ने एक किताब लिखी। उसका पूना में एक चाचा, जो जोशी (ब्राह्मण) हैं, ने वह किताब भारत में प्रकाशित की, में भी लिखा है “ब्राह्मण, राजपूत और वैश्यों का DNA रूस में, काला सागर के पास यूरेशिया नामक स्थान पर पाई जाने वाली मोरू जाति और यहूदी जाति (ज्यूज – हिटलर ने जिसको मारा था) के लोगों से मिलता है।
?राजीव दीक्षित ने ऐसा क्यों किया? ताकि अमेरिकन लोग भारत के ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य जाति के लोगों को अमेरिका में एशियन न कहें। राजीव दीक्षित ने बामशाद के शोध को आधार बनाकर यूरेशिया कहाँ है, ये भी बता दिया था। राजीव दीक्षित एक महान संशोधक था और वास्तव में भारत रत्न का हक़दार था।
?DNA परीक्षण की जरूरत क्यों पड़ी?
?संस्कृत और रूस की भाषा में हजारों ऐसे शब्द हैं, जो एक जैसे हैं। यह बात पुरातत्व विभाग, मानववंश शास्त्र विभाग, भाषाशास्त्र विभाग आदि ने भी सिद्ध की, लेकिन फिर भी ब्राह्मणों ने इस बात को नहीं माना जो कि सच थी।
?ब्राहमण भ्रांतियां पैदा करने में बहुत माहिर हैं, पूरी दुनिया में ब्राह्मणों का इस मामले में कोई मुकाबला नहीं है। इसीलिए DNA के आधार पर शोध हुआ। ब्राह्मणों का DNA प्रमाणित होने के बाद उन्होंने सोचा कि अगर हम इस बात का विरोध करेंगे तो दुनिया में हम लोग बेबकूफ़ साबित हो जायेंगे।
?तथ्यों पर दोनों तरफ से चर्चा होने वाली थी। इसीलिए ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य लोगों ने चुप रहने का निर्णय लिया। “ब्राह्मण जब ज्यादा बोलता है तो खतरा है, ब्राह्मण जब मीठा बोलता है तो खतरा बहुत नजदीक पहुँच गया है और जब ब्राह्मण बिलकुल नहीं बोलता। एक दम चुप हो जाता है तो भी खतरा है।“
?ITS CONSPIRACY OF SILENCE- Dr. B.R. AMBEDKAR अगर ब्राह्मण चुप हैं और कुछ छुपा रहा है तो हमें जोर से बोलना चाहिए।
?इस शोध का परिणाम यह हुआ कि अब हमें अपना इतिहास नए सिरे से लिखना होगा। जो भी आज तक लिखा गया है, वह सब ब्राह्मणों ने झूठ और अनुमानों पर आधारित लिखा है। अब अगर DNA को आधार पर विश्लेषण किया जाये और इतिहास फिर से न लिखा जाये तो दुनिया ब्राह्मणों को BACKWARD HISTORIAN कहेंगे।
?DNA पीढ़ी दर पीढ़ी बिना किसी बदलाव के स्थानांतरित होता रहता है। आक्रमणकारी लोग हमेशा अल्पसंख्यक होते हैं और वहां की प्रजा बहुसंख्यक होती है।
?जब भी अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की बात आती है तो आक्रमणकारी लोगों के मन में बहुसंख्यकों के प्रति हीन भावना का विकास होता है। इसीलिए ब्राह्मणों के मन में मूलनिवासियों के प्रति हीन भावना का विकास हुआ।
?युद्ध में हारे हुए लोगों को गुलाम बनाना एक बात है, लेकिन गुलामों को हमेशा के लिए गुलाम बनाये रखना दूसरी बात है। यह समस्या ब्राह्मणों के सामने थी।
?ऋग्वेद में ब्राह्मणों को देव और मूलनिवासियों को असुर, राक्षस, शूद्र, दैत्य या दानव कहा गया है। यह बात प्रमाणित है और इस बात के बहुत से सबूत भी हैं। भारत के बहुत से लेखकों ने इस बात को कई बार प्रमाणित किया है।
?यहाँ तक डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने भी अपनी किताबों में इस बात को प्रमाणित किया है। एक सबूत यह भी है कि देव अब ब्राह्मण कैसे हो गये? दीर्घकाल तक मूलनिवासियों को गुलाम बनाने के लिए ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था स्थापित की।
?मूलनिवासियों को शूद्र घोषित किया गया। क्रमिक असमानता में ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों को अधिकार प्राप्त है, मूलनिवासी शूद्रों को कोई अधिकार नहीं दिया गया। मूलनिवासियों को भी अधिकार होना चाहिए था, मगर उनको शूद्र बनाकर सभी अधिकारों से वंचित कर दिया गया।
?ऐसा क्यों किया गया? खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए, ताकि मूलनिवासी हमेशा शूद्र बने रहें और बिना किसी युद्ध के ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों के गुलाम बने रहें।
?ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य अगर एक हैं तो उन्होंने अपनों को तीन हिस्सों में क्यों बांटा? मूलनिवासियों को हमेशा के लिए गुलाम बनाने के लिए व्यवस्था बनाना जरूरी था। संस्कृत में वर्ण का अर्थ होता है रंग।
? तो वर्णव्यवस्था का अर्थ है रंगव्यवस्था। संस्कृत के शब्दकोष में आपको आज भी वर्ण का अर्थ रंग ही मिलेगा। ये रंगव्यवस्था/वर्णव्यवस्था क्यों? क्योंकि ब्राह्मण, क्षत्रीय और वैश्यों का रंग तो एक ही है।
?इसीलिए रंगव्यवस्था में ये तीनों वर्ण अधिकार सम्पन्न है। चौथे रंग का आदमी उनके रंग का नहीं है। इसीलिए अधिकार वंचित है। DNA की वजह से विश्लेषण करना संभव है। नस्लीय भेदभाव की विचारधारा का नाम ही ब्राह्मणवाद है। वर्णव्यवस्था के द्वारा ही गुलाम बनाना और दीर्घ काल तक गुलाम बनाये रखना ब्राह्मणों के लिए संभव हो पाया।
?ब्राह्मणों ने सभी धर्मशास्त्रों में महिलाओं को शूद्र क्यों घोषित किया? ये आज तक का सबसे मुश्किल सवाल था। ब्राह्मणों ने अपनी माँ, बहन, बेटी और पत्नी तक को शूद्र घोषित कर रखा है।
?DNA में MITOCONDRIVAL DNA के आधार पर ये सच सामने आया कि भारत की सभी महिलाओं का DNA 100% एक है और भारत की महिलाओं का DNA किसी भी विदेशी महिला के DNA से नहीं मिलाता।
?इससे साबित हो जाता है कि भारत की सभी महिलायें मूलनिवासी हैं, इसीलिए ब्राह्मणों ने अपनी माँ, बहन, बेटी और पत्नी तक को शूद्र घोषित कर रखा है। ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य जानते हैं कि उन्होंने केवल प्रजनन के लिए महिलाओं का उपयोग किया है।
?इसीलिए भी अपनी माँ, बेटी और बहन को शूद्र घोषित कर रखा है। ब्राह्मण हमेशा शुद्धता की बात करता है। ब्राह्मण जानता है कि आदमी का DNA सिर्फ आदमी में स्थानांतरित होता है, इसीलिए ब्रहामण स्त्री को पाप योनी मानता है।
? क्योंकि वह उनकी कभी थी ही नहीं। DNA और धर्मशास्त्र दोनों के आधार पर ये बात सिद्ध की जा सकती है। इससे ये भी साबित हुआ कि आर्य ब्राह्मण स्थानांतरित नहीं हुए। आर्य आक्रमण करने के उद्देश्य से भारत में आये थे।
? क्योंकि जो आक्रमण करने आते हैं, वे अपनी महिलाओं को कभी अपने साथ नहीं लाते। ऐसी उस समय की मान्यता थी। इसीलिए आर्यों का स्वभाव आज तक वैसा ही बना हुआ है।
?बुद्ध ने वर्णव्यवस्था को समाप्त किया। हमारे गुलामी के विरोघ में लड़ाने वाला सबसे पुराना और बड़ा पूर्वज था। इसका मतलब ये है कि वर्णव्यवस्था बुद्ध के काल में भी थी। यह बात प्रामाणिक है कि इस जन आंदोलन में बुद्ध को मूलनिवासियों ने ही सबसे ज़्यादा जन समर्थन दिया।
?जैसे ही वर्णव्यवस्था ध्वस्त हुई तो चतुसूत्री पर आधारित नई समाज रचना का निर्माण हुआ। उसमें समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय पर आधारित समाज की व्यवस्था की गई।
?इस क्रांति के बाद प्रतिक्रांति हुई, जो पुष्यमित्र शुंग (राम) ने बृहदत की हत्या करके की। वाल्मीकि शुंग दरबार का राजकवि था और उसने पुष्यमित्र शुंग और बृहदत को सामने रख कर ही रामायण लिखी। इसका सबूत “वाल्मीकि रामायण” में है।
?बृहदत की हत्या पाटलिपुत्र में हुई थी, पुष्यमित्र शुंग की राजधानी अयोध्या में थी। रामायण के अनुसार राम की राजधानी भी अयोध्या में थी। पुरातात्विक प्रमाण है, कोई भी राजा अपनी राजधानी का निर्माण करता है तो उस जगह को युद्ध में जीतता है, फिर अपनी राजधानी बनाता है।
? मगर अयोध्या युद्ध में जीत गई राजधानी नहीं थी। इसीलिए उसका नाम रखा गया अयोध्या। अर्थात अ+योद्ध्य; युद्ध में ना जीती गई राजधानी। पुष्यमित्र शुंग ने अश्वमेध यज्ञ किया, रामायण में राम ने भी अश्वमेध यज्ञ किया।
?पुष्यमित्र ने जो प्रतिक्रांति की, इसके बाद भारत में जाति व्यवस्था को स्थापित किया गया। पहले गुलाम बनाने के लिए वर्णव्यवस्था और प्रतिक्रांति के बाद मूलनिवासी हमेशा गुलाम बने रहे, उसके लिए जाति व्यवस्था का निर्माण किया गया।
?मूलनिवासियों का प्रतिकार हमेशा के लिए खत्म करने के लिए विदेशी आर्यों ने योजना बना कर सभी मूलनिवासियों को अलग अलग 6743 जातियों में बाँट दिया। जिससे मूलनिवासियों में एक मानसिक स्थिति पैदा हो गई कि हम प्रतिकार करने योग्य नहीं रह गये। गुलामों में ही ऐसी मानसिक स्थिति होती है।
?ब्राह्मणों ने जातिव्यवस्था को क्रमिक असमानता पर खड़ा किया गया। असमान लोग एक होने चाहिए थे, लेकिन ब्राह्मणों ने असमान लोगों को भी क्रमिक असमानता में विभाजित किया। प्रतिकार अंदर ही अंदर होता है। लेकिन जिसने गुलामी लादी उसका प्रतिकार करने का ख्याल भी मन में नहीं आता, क्योंकि ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों में जाति पर आधारित लड़ाईयां करवाना शुरू कर दिया।
? जिससे मूलनिवासी आपस में ही लड़ने लगे और उन्होंने असली गुलामी लादने वाले का प्रतिकार करना बंद कर दिया। DNA शोध सिद्ध करता है कि जाति/वर्ण व्यवस्था का निर्माणकर्ता ब्राह्मण है। उसने सभी को विभाजित किया, लेकिन खुद को कभी विभाजित नहीं होने दिया।
?जाति के साथ ब्राह्मणों की सर्वोच्चता जुड़ी हुई है। इसलिए ब्राह्मणों के सामने हमेशा संकट खड़ा रहा कि इस व्यवस्था को कैसे कायम रखा जाये। जाति प्रथा को बनाये रखने के लिए ब्राह्मणों ने निम्न परम्पराओं और प्रथाओं का विकास किया :
?कन्यादान परम्परा – कन्या कोई वस्तु नहीं है, जिसका दान किया जाये। लेकिन ब्राह्मणों ने बड़ी चालाकी के साथ धर्म का प्रयोग करते हुए, ऐसी व्यवस्था बनाई कि जब कन्या शादी योग्य हो जाये तो उसकी शादी की जिमेवारी माँ-बाप की होगी। माँ-बाप कन्या की शादी ब्राह्मणों द्वारा स्थापित “ब्राह्मण सामाजिक व्यवस्था” के अनुसार ही करेंगे।
?अगर लड़की जाति से बाहर अपनी पसंद से शादी करेगी तो जाति व्यवस्था समाप्त हो जायेगी और ब्राह्मणों की सर्वोच्चता समाप्त हो जायेगी। ऐसे तो मूलनिवासियों की गुलामी समाप्त हो जायेगी, ये नहीं होना चाहिए। इसीलिए “ब्राह्मण सामाजिक व्यवस्था” स्थापित करके कन्यादान की प्रणाली विकसित की गई।
?बाल विवाह प्रथा – लड़की विवाह योग्य होने पर अपनी पसंद से शादी कर सकती है और उस से जाति व्यवस्था समाप्त हो सकती है तो उसके लिए बालविवाह व्यवस्था को स्थापित किया गया। ताकि बचपन में ही लड़की की शादी कर दी जाये।
? क्योंकि माँ-बाप तो अपनी ही जाति में लड़की की शादी करवाएंगे और मूलनिवासी गुलाम के गुलाम ही बने रहेंगे। ज्यादा जानकारी के लिए CAST IN INDIA और ANHILATION OF CASTE किताबें पढ़ें, जो डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने लिखी है।
?विधवा विवाह प्रथा – विधवा विवाह निषेध कर दिया गया। अगर कोई विधवा किसी विवाह योग्य लडके से शादी कर लेती है तो समाज में एक लड़का कम हो जायेगा और जिस लड़की के लिए लड़का कम होगा वह लड़की जाति से बाहर जाकर शादी कर सकती है। इससे भी जाति प्रथा को खतरा था तो विधवा विवाह भी निषेध कर दिया गया था।
?जाति अंतर्गत विवाह जाति बनाये रखने का सूत्र है और जाति व्यवस्था बनाये रखने के लिए महिलाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए विधवाओं पर मनमाने अत्याचार होते थे। ब्राह्मणों ने देखा कि विधवा को टिकाये रखना संभव नहीं है तो विधवाओं के लिए नए क़ानून बनाये गये। विधवा सुन्दर नहीं दिखनी चाहिए, इसलिए उनके बाल काट दिए जाते थे।
?कोई उनकी ओर आकर्षित न हो जाये, इसलिए उनको साफ़ सफाई से रहने का अधिकार नहीं था। ताकि कोई उनके साथ शादी करने को तैयार न हो जाये। यानी किसी भी स्थिति में जातिव्यवस्था बनी रहनी चाहिए।
?सतीप्रथा – ब्राह्मणों ने विधवा औरतों से निपटने और जाति व्यवस्था को बनाये रखने के लिए दूसरा रास्ता सती प्रथा निकला। धर्म के नाम पर औरतों में गौरव भाव का निर्माण किया। जैसे कि मरने वाली स्त्री सच्चे चरित्र, पतिव्रता और पवित्र है, इसीलिए सती है।
?जो स्त्री सती है, उसे अपने पति की चिता में जिन्दा जल जाना चाहिए। स्त्रियों में गौरव की भावना का निर्माण करने के लिए बडसावित्री नाम की प्रथा को जन्म दिया गया। ब्राह्मणों ने जितने भी घटिया काम किये, उन पर गर्व किया और महिलायें बिना सच को जाने अपनी जान देती रहीं।
?बडसावित्री संस्कार भी बहुत योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया है। इसमें औरत हाथ में धागा लेकर चक्कर काटती है और कहती है “यही पति मुझे अगले सात जन्मों तक मिलाना चाहिए, यह शराबी है, मुझे मारता पिटता है, मेरे पर अत्याचार करता है, फिर भी मुझे यही पति मिलना चाहिए।“ यह ब्राह्मणों का एक बहुत गहरा षड्यंत्र है, यह त्यौहार हर साल आता है।
? हर साल स्त्रियों के मन में यह संस्कार डाला जाता है। यही पति तुमको मिलाने वाला है और कोई नहीं मिलेगा और अगर तुम जिन्दा रहती हो तो जब तक जिन्दा रहोगी, तब तक तुम्हारे पुनर्मिलन में बहुत देरी हो जायेगी। अगर तुम अपने पति के साथ चिता पर मर जाओगी तो एक ही तारीख में, एक ही समय में, एक साथ पैदा हो जाओगी, पुनर्जन्म हो जायेगा। फिर दोनों का मिलन भी हो जायेगा।
?ब्राह्मणों ने यह योजना जाति व्यवस्था को बनाये रखने के लिए बनाई। जैसे कोई चोर यह नहीं कहता कि में चोर हूँ; यही हाल ब्राह्मणों का है। जन्म जन्म का काल्पनिक सिद्धांत बनाकर स्त्रियों पर मन चाहे अत्याचार किये गये, ताकि जातिव्यवस्था बनी रहे।
?क्रमिक असमानता – जाति बंधन डालने के बाद उसे बनाये रखना संभव नहीं था। गुलाम को गुलाम बनाये रखने के लिए हर किसी के ऊपर किसी को रखना ही इस समस्या का समाधान था। सारे मूलनिवासी आपस में लड़ते रहे। मूलनिवासी कभी ब्राह्मणों के खिलाफ खड़े न हो जायें, इसीलिए ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों को ऊँची और नीची जातियों में बाँट दिया। ऊंच नीच की भावना मानवता की भावना को खत्म कर देती है।
?इसीलिए ब्राह्मणों ने क्रमिक असमानता के साथ जाति व्यवस्था का निर्माण किया है और आज भी हर मूलनिवासी जाति और धर्म के नाम पर लड़ता रहता है और ब्राह्मण मज़े से तमाशा देख कर हँसता है।
?अस्पृश्यता – जातिव्यवस्था बुद्ध पूर्व काल में नहीं थी।इसीलिए उस समय के साहित्य में जाति या वर्ण व्यवस्था का वर्णन नहीं आता। इसीलिए यह भ्रान्ति फैली हुई है जिन बौद्धों ने ब्राह्मण धर्म का अनुसरण किया और ब्राह्मणों ने जिन बौद्धों को अपना लिया वह आज के समय में ओबीसी में आते हैं।
?उन पर आज भी ब्राह्मणों का प्रभाव है, जिसके कारण ओबीसी में आने वाले लोग दूसरे मूलनिवासियों से अपने आपको उच्च समझते हैं। ओबीसी भी पुष्यमित्र शुंग की प्रतिक्रांति के बाद बनाया गया मूलनिवासी लोगों का समूह है।
?सिंधु घाटी की सभ्यता पैदा करने वाले भारतीय लोगों से इतनी बड़ी महान सभ्यता कैसे नष्ट हुई? जो 4500-5000 ईसा पूर्व से स्थापित थी? ये अंग्रेज़ों ने पूछा था। एक अंग्रेज अफसर को इसका शोध करने के लिए भी बोला गया था।
?बाद में इसके शोध को राघवन और एक संशोधक ने शुरू किया। पत्थर और ईंटों के परिक्षण में पता चला कि ये संस्कृति अपने आप नहीं मिटी थी। बल्कि सिंधु घाटी की सभ्यता को मिटाया गया था। दक्षिण राज्य केरल में हडप्पा और मोहनजोदड़ों 429 अवशेष मिले हैं। ब्राम्हण भारत में ईसा पूर्व 1600-1500 शताब्दी पूर्व आया।
?ऋग्वेद में इंद्र के संदर्भ में 250 श्लोक आतें हैं। ब्राह्मणों के नायक इन्द्र पर लिखे सभी श्लोकों में यह बार बार आता है कि “हे इंद्र उन असुरों के दुर्ग को गिराओ” “उन असुरों (बहुजनों) की सभ्यता को नष्ट करो”। ये धर्मशास्त्र नहीं, बल्कि ब्रहामणों के अपराधों से भरे दस्तावेज हैं।
?भाषाशास्त्र के आधार पर ग्रिअरसन ने भी ये सिद्ध किया कि अलग-अलग राज्यों में जो भाषा बोली जाती हैं, वह सारी भाषाओँ का स्रोत पाली है।
?DNA के परीक्षण से प्राप्त हुआ सबूत निर्विवाद और निर्णायक है। क्योंकि वह किसी तर्क या दलील पर खड़ा नहीं किया गया है। इस शोध को विज्ञान के द्वारा कभी भी प्रमाणित किया जा सकता है। विज्ञान कोई जाति या धर्म नहीं है। इस शोध को करने वाले पूरी दुनिया से 265 लोग थे। बामशाद का यह शोध 21 मई, 2001 के TIMES OF INDIA में NATURE नामक पेज पर छपा, जो दुनिया का सबसे ज्यादा वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त अंक है।
?बाबा साहब अम्बेडकर की उम्र सिर्फ 22 साल थी, जब उन्होंने “विश्व का जाति का मूलक क्या है?” इसकी खोज की थी और 2001 में जो DNA परीक्षणहुआ था, बाबा साहब का और माईकल बामशाद का मत एक ही निकला था।
?ब्राह्मण सारी दुनिया के सामने पूरा बेनकाब हो चुके थे। फिर भी ब्राह्मणों ने अपनी असलियत को छुपाने के लिए अपनी ब्राह्मणी सिद्धांत को अपनाया और ऐसा प्रचारित किया कि भारत में दक्षिणी ब्राह्मण दो नस्लों के होते हैं।
?ब्राह्मणों ने DNA के परीक्षण को पूरी तरह ख़ारिज नहीं किया और एक और झूठ मीडिया द्वारा प्रचारित करना शुरू कर दिया कि अब कोई मूलनिवासी नहीं हैं, सभी लोग संमिश्र हो चुके हैं। उन्होंने कहा मापदंड ढूंढा।
?ब्राह्मणों ने दलील देकर कहा कि अन्डोमान और निकोबार द्वीप समूह की जो आदिवासी जनजाति हैं, वह अफ्रीकन के वंशज हैं, वह उधर से आये थे, और यूरेशियन देशों में चले गये हैं, इस पर भी शोध होना चाहिए।
?बामशाद के द्वारा किये गये शोध को नकारने के लिए ब्राह्मणों ने सिर्फ विज्ञान शब्द का प्रयोग किया और उसे झूठा प्रचारित किया।
?ब्राह्मण अगर यह झूठी कहानी सुनाये तो उससे पूछो कि दोनों ब्राह्मण नस्लों में से विदेश से कौन आया है? विदेशी का DNA बताओ? DNA के आधार पर ब्राह्मण अपनी बातों को सिद्ध नहीं कर सकता।
?ब्राह्मण मुसलमान विरोधी घृणा आंदोलन क्यों चलता है?
? क्योंकि ब्राह्मणवाद और बुद्धिज्म के टकराव के समय बहुत से बौद्धिष्ट मुसलमान बन गये थे। उन्होंने ब्राह्मण धर्म को नहीं अपनाया था। ब्राह्मण जानता है कि आज भारत में जितने भी मुसलमान हैं, वे सब मूलनिवासी हैं। इसीलिए ब्राह्मण मुसलमानों के खिलाफ घृणा का आंदोलन चलाता रहता है, ताकि ब्राह्मण किसी भी तरह मूलनिवासियों की एक शाखा को पूरी तरह खत्म कर सके।
?अंग्रेजों के गुलाम ब्राह्मण था और उनके गुलाम मूलनिवासी थे। आज़ादी की जंग में आज़ादी के लिए आंदोलन करने वाले लोगों के सामने यह सबसे बड़ी समस्या थी।
?इसीलिए डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने अंग्रेजों को कहा कि ब्राह्मणों को आज़ाद करने से पहले मूलनिवासी बहुजनों को जरूर आज़ाद कर देना चाहिए। अगर ब्राह्मण मूलनिवासियों से पहले आज़ाद हो गया तो ब्राह्मण मूलनिवासियों को कभी आज़ाद नहीं करेगा। ये आशंका सिर्फ डॉ. भीम राव अम्बेडकर के मन में ही नहीं थी, बल्कि मुसलमान नेताओं के मन में भी थी। इसीलिए 14 अगस्त को पाकिस्तान बना।
? मुसलमानों ने अंग्रेजों को कहा कि गांधी से एक दिन पहले हमें आज़ादी देना और हमारे बाद गाँधी को देना। अगर तुमने पहले गाँधी को आज़ादी दे दी तो गाँधी बनिया है, हमको कुछ नहीं देगा। ब्राह्मणों ने अपनी आज़ादी की लड़ाई मूलनिवासियों को सीढ़ी बनाकर लड़ी और वह अंग्रेजों को भगाकर आज़ाद हो गये।
?DNA संशोधन से सामने आया कि ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य भारत के मूलनिवासी नहीं हैं। व्यवहारिक रूप से भी देखा जाये तो ब्राह्मणों ने कभी भारत को अपना देश माना भी नहीं है। ब्राह्मण हमेशा राष्ट्रवाद का सिद्धांत बताता आया है, लेकिन खुद कितना देशभक्त है, ये बात किसी को नहीं बताता। इसका मतलब एक विदेशी गया और दूसरा विदेशी मालिक हो गया, DNA ने सिद्ध कर दिया।
? दूसरे विदेशी ब्राह्मणों ने ये प्रचार किया कि भारत आज़ाद हो गया, लेकिन भारत पर आज भी ब्राह्मणों का राज है। इससे यह साबित होता है कि मूलनिवासियों को भविष्य में आज़ादी हासिल करने का कार्यक्रम चलाना ही पड़ेगा। DNA परिक्षण के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि आज भी देश के 130 करोड़ में से 32 करोड लोग, बाकी 98 करोड़ लोगों पर राज कर रहा है। कल्पना करो, कितना मूलभूत और महत्वपूर्ण संशोधन है।
डॉ. अम्बेडकर स्कूल ऑफ़ थॉट राजस्थान