ख़लील जिब्रान: संसार के एक श्रेष्ठ चिंतक

दैनिक समाचार

जीवन परिचय

मूल नाम : जिब्रान खलील जिब्रान
जन्म : 6 जनवरी 1883, लेबनान
भाषा : अरबी, अंग्रेजी
विधाएँ : उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, सूक्तियाँ, पेंटिंग
उन्होंने 16 पुस्तकों की रचना की जिनका अनुवाद संसार की 30 से अधिक अनेक भाषाओं में हो चुका है.

निधन : क़रीब 48 वर्ष की अल्पायु में 10 अप्रैल 1931, संयुक्त राज्य अमेरिका

संसार के श्रेष्ठ चिंतकों में शुमार मशहूर लेबनानी-अमेरिकी कवि, लेखक, कलाकार खलील जिब्रान का सारा जीवन साहित्य और कला की सेवा के प्रति समर्पित रहा। उन्हें अपने बेबाक़ लेखन और चिंतन के कारण पादरियों और अफसरशाही का कोपभाजन होना पड़ा। उन्हें समुदाय से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था।

ख़लील जिब्रान ने अपनी कहानियां समाज, व्यक्ति, धार्मिक पाखण्ड, वर्ग संघर्ष, प्रेम, न्याय, कला आदि विषयों पर लिखीं। उनकी कहानियों में पाखण्ड के प्रति गहरा विद्रोह स्पष्ट परिलक्षित होता है। इसके अतिरिक्त उनके साहित्य में जीवन के प्रति गहरी अनुभूति, संवेदनशीलता, भावात्मकता व व्यंग्य भी प्रखर रूप में परिलक्षित होता है।

ख़लील जिब्रान ने जो कुछ भी लिखा, वह देश- काल की सीमा में बंधा हुआ न होकर सबके लिए व हर काल के लिए है। उनकी रचनायें सामाजिक अन्याय के प्रति अपनी आवाज़ बुलंद करती प्रतीत होती हैं। उनकी कहानियों को पढ़कर अनुभव होता है कि संसार में व्याप्त पीड़ा और विषमता के लिए स्वयं मनुष्य जिम्मेदार है और इन बुराइयों को दूर करने के लिए मनुष्य को स्वयं ही प्रयत्न करना होगा।

उनके लेखन- शैली में कवि की कल्पना शक्ति, कलाकार की शालीनता और हृदय की संवेदनशीलता की झलक मिलती है।

पढ़िए ख़लील जिब्रान की चुनिंदा कहानियां जो न केवल पाठक को एक नयी दृष्टि प्रदान करती हैं बल्कि उसकी सोच को परिष्कृति करती हैं एवं साथ में उसका भरपूर मनोरंजन भी करती हैं।

खलील जिब्रान की चुनिंदा तीन लघु कथाएं पढ़िए। इनमें से दो तो कुत्तों की फ़ितरत पर लिखी हुई हैं। ये कथाएं गद्य कोष से साभार ली गई हैं।


कथाएं बड़ी मज़ेदार हैं। समझने को इनमें बहुत कुछ है। समझने वाले समझ जाएँगे।

  1. ताकि शांति बनी रहे

पूनम का चांद शान के साथ शहर के आकाश में प्रकट हुआ. शहर भर के कुत्तों ने उस पर भौंकना शुरू कर दिया।
केवल एक कुत्ता नहीं भौंका। उसने गंभीर आवाज में अपने साथियों से कहा, ‘शांति भंग मत करो, भौंक-भौंक कर चांद को धरती पर मत लाओ।’

सभी कुत्तों ने भौंकना बंद कर दिया। नीरव सन्नाटा पसर गया। लेकिन उन्हें चुप कराने वाला कुत्ता रात भर भौंकता रहा, ताकि शांति बनी रहे।

क्या समझे?

आदमी की फ़ितरत कुत्ते से कम तो नहीं।

खलील जिब्रान की इस कहानी का ओशो के शब्दों में रोचक विवेचन भी पढ़ लीजिए। यह और भी मज़ेदार है।

एक कुत्ता बाकी कुत्तों को समझाता था कि देखो भौंको मत, बेकार मत भौंको। बेकार भौंकने के कारण ही कुत्तों की जाति बरबाद हुई। और जब तक हम बेकार ही भौंकते रहेंगे, शक्ति व्यय होगी। और जब शक्ति भौंकने में ही व्यय हो जाएगी तो और क्या खाक करोगे?अरे, पिछड़े जा रहे हो! आदमियों तक से पिछड़े जा रहे हो!
कुत्तों को बात तो जंचती, कि बात तो सच है; मगर बेचारे कुत्ते आखिर कुत्ते हैं, बिना भौंके कैसे रहें। एकदम चांद निकल आए और कुत्ते बिना भौंके रह जाएं! सिपाही निकले और कुत्ते बिना भौंके रह जाएं! पोस्टमैन निकले, एकदम खरखरी उठती है। संन्यासी को देख लें…। कुत्ते वर्दी के खिलाफ, बड़े दुश्मन! वर्दीधारी देखा कि फिर उनसे नहीं रहा जाता। फिर सब संयम का बांध टूट जाता है। यम-नियम-प्राणायाम इत्यादि सब भ्रष्ट हो जाते हैं। फिर तो वे कहते, अब देखेंगे कल, अभी तो भौंक लें। अभी तो ऐसा मजा आता है भौंकने में!
मगर यह कुत्ता भी ठीक कहता था। इसको लोग पूजते थे कि यह अवतारी पुरुष है। ऐसा कुत्ता ही नहीं देखा जो खुद तो भौंकता ही नहीं, दूसरों को भी नहीं भौंकने देता। अद्भुत है!
ऐसे वर्षों आए और गए और उपदेशक समझाता रहा और सुनने वाले सुनते रहे सिर झुका कर कि अब क्या करें, मजबूरी है, पापी हैं हम! मगर यह आदमी तो बड़ा पहुंचा हुआ है! यह कुत्ता कोई साधारण कुत्ता नहीं। यह तो सीधा आकाश से ही आया है, ईश्वर का ही अवतार होना चाहिए। न भौंके। कभी नहीं किसी ने उसको भौंकते देखा। उसका आचरण बिलकुल शुद्ध था, विचार के बिलकुल अनुकूल था। जैसा बाहर वैसा भीतर। संतों में उसकी गिनती थी।
लेकिन एक रात कुत्तों ने तय किया कि अपना गुरु कितना समझाता है और अब उसका बुढ़ापा भी आ गया है, एक दफा तो अपन ऐसा करें कि एक रात तय कर लें। अमावस की रात आ रही है कल। कल रात चाहे कुछ भी हो जाए,कितनी ही उत्तेजनाएं आएं और शैतान कितना ही हमारे गले को गुदगुदाए, कि कितने ही निकलें पुलिस वाले और सिपाही और संन्यासी , मगर हम आंख बंद किए, अंधेरी गलियों में छिपे हुए, नालियों में दबे हुए पड़े रहेंगे। एक दफा तो अपने गुरु को यह भरोसा आ जाए कि हमने भी तेरी बात सुनी और मानी।
गुरु निकला शाम से, जो उसका काम था कि कोई मिल जाए कुत्ता भौंकते हुए और वह पकड़े, दे उपदेश, पिलाए वही घोंटी। मगर कोई न मिला,बारह बज गए, रात हो गई आधी, सन्नाटा छाया हुआ है! सदगुरु बड़ा परेशान हुआ। उसने कहा, हरामजादे गए कहां! कमबख्त! कोई मिलता ही नहीं।
वह तो बेचारा समझा-समझा कर अपनी खुजलाहट निकाल लेता था। आज समझाने को भी कोई न मिला। एकदम गले में खुजलाहट उठने लगी। जब कोई कुत्ता न दिखा और सब कुत्ते नदारद, तो पहली दफा उसकी नजर सिपाहियों पर गई, पोस्टमैनों पर गई, संन्यासी चले जा रहे! बड़े जोर से जीवन भर का दबा हुआ एकदम उभर कर आने लगा। बहुत रोका,बहुत संयम साधा, बहुत राम-राम जपा, मगर कुछ काम न आए। नहीं रोक सका, एक गली में जाकर भौंक दिया।
उसका भौंकना था कि सारे गांव में क्या भुकभाहट मची, क्योंकि बाकी कुत्तों ने सोचा कोई गद्दार दगा दे गया। जब एक ने दगा दे दिया, हम क्यों पीछे रहें? अरे, हम नाहक दबे-दबाए पड़े हैं! सारे कुत्ते भौंकने लगे। ऐसी भौंक कभी नहीं मची थी। और सदगुरु वापस लौट आया! तीर्थंकर वापस आ गया! उसने कहा, अरे कमबख्तो! कितना समझाया,मगर नहीं, तुम न मानोगे। तुम अपनी जात न बदलोगे। तुम्हारा रोग न जाएगा। फिर भौंक रहे हो। इसी भौंकने में कुत्ते की जातियों का ह्रास हुआ। इसी में हम बरबाद हुए। नहीं तो आज आदमी के गले में पट्टे बांध कर घूमते होते। आ गया कलियुग! क्यों भौंक रहे हो?
फिर बेचारे कुत्ते पूंछ दबा कर चले कि क्या करें! परमहंस देव, क्या करें! छूटता ही नहीं। आज तो बहुत पक्का कर लिया था छोड़ने का, लेकिन कोई गद्दार दगा दे गया। पता नहीं कौन गद्दार है, किस धोखेबाज ने, किस बेईमान ने भौंक दिया!
?


अगली कहानी पढ़ने से पहले एक दृश्य पर गौर कर लीजिए।

हाल के कुछ वर्षों में इंडिया को न्यू इंडिया में तब्दील कर ‘रामराज’ स्थापित होने की रागिनी जोरशोर से गाई ही नहीं जा रही है, बल्कि दुमदार मीडिया द्वारा भौंकी जा रही है। विज्ञापनों की तर्ज़ पर यह आमजन के कानों में झौंकी जा रही है। गलतफहमियों की गिरफ्त में फंसे लोग हक़ीक़त से जी चुराकर ख़्वाबों की दुनिया में विचरण करने लगे हैं। पर हक़ीक़त से आमना -सामना होते ही और संदर्भ बदलने के साथ बोल बदल जाते हैं। यह जानने के लिए ‘बदलते संदर्भ’ शीर्षक से लिखी ख़लील जिब्रान की कहानी पढ़िए।
हाँ, कहानी के अंतिम वाक्य के पहले शब्द ‘सभ्यता’ की जगह ‘ झाँसेबाजी/ जुमलेबाजी’ कर लें तो मौजूदा हालात की असलियत को समझने में सहूलियत होगी।

  1. बदलते संदर्भ /युद्ध और शांति

तीन कुत्ते धूप सेंकते हुए आपस में बातचीत कर रहे थे।

पहला कुत्ता अधमुंदी आँखों से देखते हुए बोला, “इस कुत्ताराज में जन्म लेना सचमुच सुखमय है। अब हम मोटरकारों, जहाजों में बैठकर कितने आराम से धरती, आकाश और समुद्र की यात्राएँ करते हैं। ज़रा उन आविष्कारों के बारे में तो सोचो, जो कुत्तों के ऐशोआराम के लिए हुए हैं।”

दूसरे कुत्ते ने कहा, “अब हम लोगों की चालों से चौकस रहना जान गए हैं। चाँद को देखकर हम अपने पूर्वजों की तुलना में कहीं अधिक लयबद्ध तरीके से भौंकते हैं। जब हम पानी में ताकते हैं तो अपने नैन-नक्श को पहले से ही अधिक निखरा हुआ पाते हैं। पानी में अपनी परछाई हमें पहले के मुकाबले ज्यादा साफ दीखती है।”

तीसरा कुत्ता बोला, “इस कुत्ताराज की जो बात मुझे सबसे अधिक भाती है, वह यह कि कुत्तों के बीच बिना लड़ाई-झगड़ा किए, शान्तिपूर्वक अपनी बात कहने और दूसरे की बात सुनने की समझ बनी है। मैं तो कुत्ताराज में आपसी तालमेल देखकर दंग हूँ।”

ठीक उसी समय उन्होंने कुत्ता पकड़ने वालों को अपनी ओर लपकते देखा।

तीनों कुत्ते उछले और गली में दौड़ पड़े। भागता हुआ तीसरा कुत्ता बोला, ” जान बचाओ…. भागो यहां से! सभ्यता हमारे पीछे पड़ी है।”

  1. इसी दुनिया में

हरी-भरी पहाड़ी पर एक साधु रहता था। उसकी आत्मा पवित्र और दिल साफ था। उस क्षेत्र के सभी पशु-पक्षी जोड़ों में उसके पास आते थे और वह उन्हें उपदेश देता था। वे सब खुशी-खुशी उसे सुनते, उसे घेर कर बैठे रहते और देर रात तक उसके पास से जाने का नाम नहीं लेते थे। तब वह ख़ुद ही उन्हें आशीर्वाद देकर जाने की आज्ञा देता था।

एक शाम वह दाम्पत्य जीवन में प्यार के बारे में उपदेश दे रहा था, एक तेंदुए ने उससे पूछा, “आप हमें प्यार के विषय में बता रहे हैं, हम जानना चाहते हैं कि आपकी पत्नी कहाँ है?”

साधु ने कहा, “मैंने विवाह ही नहीं किया। मेरी कोई प्रेयसी भी नहीं हैं”

इस पर पशु पक्षियों के झुण्ड में आश्चर्य भरा शोर गूँज उठा। वे आपस में कह रहे थे, “भला वह हमें प्रेम और दाम्पत्य के बारे में क्या बात सकता है जब कि वह स्वयं इस विषय में कुछ नहीं जानता है?” वे सब अवज्ञा भरे अंदाज़ में वहाँ से उठकर चले गए।

ख़लील जिब्रान की लघु कथाएं एवं सूक्तियाँ अनेक हैं जिन पर भारतीय दर्शन की छाप भी मिलती है।

बेशक, जिब्रान बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। दुनिया उन्हें एक स्तरीय कवि, कथाकार, चित्रकार, मूर्ति-शिल्पकार, लेखक, दार्शनिक, विज़ुअल आर्टिस्ट और धर्म के अध्येता के रूप में जानती है।

प्रोफेसर एच आर इसरान
रिटायर्ड प्रिंसिपल, कालेज एजुकेशन राजस्थान
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