द्वारा : देवेन्द्र आर्य
जयकारा ! जय-जय कारा ! जय अंधियारा !
यहीं से निकली पतित पावनी वोट की गंगा
दंगा दंगे पर दंगा दंगा चंगा
नफ़रत के फोड़े पर बांधा तूतमलंगा
शब्दों के कचनार झर गए मतपेटी में
सपने तड़प-तड़प कर मर गए मतपेटी में
सुमति निवार कुमति के संगी
जय बजरंगी!
जय बजरंगी !
अमन चैन के गूंगों बहरों का डीजे पर डांस देख कर
टीस रही ख़ामोशी
जैसे कोई जबरन अपनी खांसी दबा रहा हो
सबसे बड़ी क्रिया हो गई ढहाया जाना
सबसे बड़ा पुण्य भीड़ में पाया जाना
दिलों में जलती आग
पसर गयी बस्ती-बस्ती
बोलो बाबा
बाबा साहेब!
हवा के आगे संविधान की क्या है हस्ती
पत्थर हो गए हाथ
हाथ जब पत्थर हो गया।