हिंसक भीड़ ही अब हिन्दुत्व का गौरव बन गयी है!
-मंजुल भारद्वाज

दैनिक समाचार

मोदी राज में हिंसक भीड़ हिन्दुत्व का गौरव हो गई है. “असत्य और मोदी” एक तरह से पर्यायवाची हो गये हैं, क्योंकि विकारी संघ की शाखा में झूठ, छद्म, नफरत उनके सहित सभी को सिखाया जाता है.

बार बार बोला गया झूठ एक दिन लोगों को सच लगने लगता है- यह संघ का आजमाया हुआ फार्मूला है जिस पर वह विश्वास करता है.

इसी धारणा के सहारे संघ सत्ता पर काबिज़ हुआ है.

आज़ादी, भारत विभाजन, कश्मीर, चीनी आक्रमण, आरक्षण, हिन्दू खतरे में हैं, मुसलमानों की संख्या हिन्दुओं से दुगनी हो जायेगी, आदि सब संघ के बने बनाये षड्यंत्र हैं.

आज़ादी के बाद गांधी हत्या से लेकर आज तक संघ, इन्हीं मुद्दों पर लोगों के दिलों में जहर भरता आया है.

विभाजन विभीषिका के बाद भी संघ को उम्मीद थी की देश मनुस्मृति से चलेगा, पर जब स्वतंत्र भारत के लिए नया संविधान बनाने की घोषणा हुई और संविधान में सबको बराबरी का संवैधानिक अधिकार प्राप्त होगा- की जानकारी संघ को मिली, तब उन्होंने गांधी की हत्या करवाई और हत्या को जायज ठहराने के लिए गांधी को विभाजन का जिम्मेदार ठहराने की साज़िश रची जो आज तक चल रही है!

गांधी जी की हत्या के बाद, सरदार पटेल ने संघ पर बैन लगा दिया और संघ मेंढक की तरह ज़मीन में छुप गया, जिसे जेपी आन्दोलन ने राजनीति में मान्यता दी और संघ फिर से नफ़रत फ़ैलाने के काम में जुट गया!

संघ के सौ से ज्यादा मुख हैं.
वे अलग-अलग तरीके से एक षड्यंत्र को अंजाम देते हैं.

कई वर्षों तक वह (संघ) एक ही विषय को समाज के सामने रखता है. जब समाज में विरोध होता है तो अपने बयानों से साफ़ मुकर जाते हैं.

इसका उदाहरण भागवत, मोदी और अमित शाह आपके सामने हैं. भागवत का बयान “भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू है”, मोदी का टीवी इंटरव्यू “हिन्दू इस्लाम का विरोध नहीं कर सकता” और अमित शाह का “अरे, चुनावी भाषण जुमले होते हैं” और भाजपा का सबसे बड़ा झूठ ‘सबका साथ-सबका विकास’ इसके उदाहरण हैं!

संघ और भाजपा की क्रोनोलाॅजी है- झूठ बोलो, भावनाओं से खेलो, धर्म की आड़ में दंगे करो, दंगों से समाज में ध्रुवीकरण करो, उसे आस्था की चाशनी में डुबो कर लोगों के दिल में दूसरे धर्म और जाति के लिए नफ़रत पैदा कर दो.
धर्म के नाम पर नफ़रत में अंधे लोगों को हिंसा में झोंक दो.

संघ की धूर्तता यह है कि वह एक व्यक्ति या समय का कुछ समय तक उपयोग करता है फिर उसको नकार देता है.

गांधी के हत्यारे को नकारा, सत्ता मिलने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को नकारा, राम जन्मभूमि की रथ यात्रा के सूत्रधार आडवाणी की दुर्गति, आपके सामने है और सत्ता जाते ही मोदी की भी वही दुर्गति अटल है.

इसके और भी उदाहरण हैं. सभी को याद होगा विश्व हिन्दू परिषद के प्रवीण तोगड़िया का नाम. संघ की गुजरात प्रयोगशाला के सबसे मुखर व्यक्ति थे. जब भी मुंह खोलते थे तो नफ़रत उगलते थे. समाज में आग लगाते थे.

आज वह व्यक्ति कहां है? आज दिन-रात टीवी चैनलों पर व्यस्त रहने वाले विश्व हिन्दू परिषद के प्रवक्ताओं को याद रखना चाहिए कि विश्व हिन्दू परिषद के कर्णधारों का क्या हुआ?

पर संघ के अवसरवादी ज़हर से पली भीड़ को इतनी बुद्धि कहां कि वह यह आकलन कर सके कि वह किसके लिए और क्यों समाज में नफ़रत फैला रहे हैं?

विकास के जुमले से सत्ता हथियाने वाले मोदी ने दूसरा चुनाव राष्ट्रवाद के उन्माद में जीता!

पुलवामा के शहीदों की अस्थियों को देश के घर-घर तक संघ लेकर गया. मोदी को सत्ता मिली पर पुलवामा के शहीदों के परिजनों को क्या मिला?

हिन्दू प्रधानमन्त्री की बहुमत वाली सरकार ने क्या कोई जांच कमीशन बिठाया?

हमारे जवान शहीद क्यों हुए?
इस हादसे का ज़िम्मेदार कौन? कोई सवाल पूछने वाला नहीं है!

चीन हर रोज़ हमारी सीमा में अतिक्रमण कर रहा है पर हिन्दू प्रधानमंत्री चीन का नाम लेने से डरते हैं. आखिर क्यों?

यही है संघ और उसकी पार्टी का छद्म राष्ट्रवाद!

मोदी के नजदीक रहने वाले खत्म होते जायेंगे चाहे वह व्यक्ति हो या राजनैतिक पार्टी.

जब चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ़ विपिन रावत ने चीन को अपना सबसे बड़ा शत्रु बताया तो उसके चंद दिनों बाद ही हेलीकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गई. क्यों?

मोदी ने पिछली सरकारों की नीति और परियोजनाओं को अलग-अलग ढंग से बड़ी धूर्तता से अपना बता दिया. जैसे, बुजुर्गों के लिए पेंशन योजना, मनरेगा, किसान सम्मान निधि, उज्ज्वला, जनधन योजना, आधार कार्ड आदि…फ़र्क सिर्फ इतना है कि मोदी बिना किसी लिहाज के विज्ञापन करते हैं और झूठे विज्ञापन करते हैं और सिर्फ़ विज्ञापन से सरकार चलाकर झूठ के बल पर चुनाव जीतते हैं.

संघ ने बड़ा सा झूठ तंत्र खड़ा किया और मोदी ने सरकार में रहते हुए उसे शासन की नीति बनाया है.
मोदी का झूठ समाज क्यों मानता है?

संघ ने समाज को “हिन्दू होने के गर्व” में अंधा कर दिया है जो एक समुदाय विशेष की नफ़रत में पागल भी हो गया है.

ऐसे अंधों को संघ हिन्दुत्व का रक्षक बता रहा है. नफ़रत की आग में जलते ऐसे झुंडों को संघ और भाजपा ने हिंसा के लिए खुला छोड़ दिया है. यह हिंसक झुण्ड हर धार्मिक उत्सव पर दंगा करते हैं, लोगों की हत्याएं करते हैं, माॅब लिंचिंग को एक निर्णायक हथियार के रूप में संघ और भाजपा उपयोग कर रही है.

अब सवाल उठता है कि कानून कहां है? अदालत कहां है?

तो जवाब साफ़ है कि पुलिस आज से नहीं हमेशा से सरकार के साथ होती रही है. यह प्रथा अंग्रेजों के समय से चली आ रही है. सारा ज्ञान,पढ़ाई-लिखाई धरी की धरी रह जाती है. देश के आई पी एस और आई ए एस संविधान की नहीं राजनेताओं की नौकरी करते हैं. उनको संविधान नहीं अपना पेट दिखता है; और कोई पुलिस अधिकारी अगर हिंसक भीड़ के ख़िलाफ़ खड़ा भी होता है तो उसे वही अनियंत्रित जनसमूह मार डालती है.

अदालतें रीढ़विहीन हो गई हैं. रफाल या सीबीआई निदेशक का मामला हो अथवा राममंदिर या राजनैतिक विरोधियों पर देशद्रोह का मामला हो- अदालतें खामोश हैं, तमाशबीन हैं, असहाय हैं और न्याय के नाम पर कलंक हैं. मोदी सरकार खुले आम तार्किक, न्यायसंगत, संविधान के पैरोकार नागरिकों पर देशद्रोह के झूठे केस दर्ज कर जेल भेजती है. बुजुर्ग हो या युवा अथवा महिला- किसी को नहीं छोड़ती और अदालत मौन रहती है.

निर्भय और प्रखर आवाज़ों को हिंसक भीड़ से मरवा डालती है.

राजनैतिक विरोधियों के ऊपर ईडी और सीबीआई से झूठे केस दर्ज करती है.

गज़ब बात यह है कि अदालत राजनैतिक विरोधियों को या तो जमानत देती नहीं या बहुत देर में देती है, जबकि सत्ताधारी पार्टी के गुंडों, राजनेताओं या इनके प्रचार तन्त्र में लिप्त नफ़रत फ़ैलाने वाले पत्रकारों को तुरंत जमानत मिल जाती है. यह खेल सरे आम चल रहा है.

सवाल उठाने वाला मीडिया सिर्फ़ विपक्ष से सवाल करता है और मोदी की स्तुति में लीन है पर अब यह हिंसक भीड़ मोदी भक्ति में लीन पत्रकारों को भी जमकर कुटना शुरू कर रही है.

इस हिंसक भीड़ से कोई नहीं बच पायेगा. गली-गली में यह हिंसक भीड़ राम के नाम पर, हिन्दू के नाम पर, हिन्दुत्व के नाम पर तांडव मचा रही है.

इस भीड़ के साथ पुलिस रक्षक बनकर चल रही है. डीएम और पुलिस कप्तान बुलडोज़र लेकर किसी भी विरोध को कुचल रहे हैं.

संघ और मोदी हिंसक भीड़ से देश पर राज कर रहे हैं.

चाहे शिक्षा संस्थान हों, अदालतें हों, पुलिस थाने हों, मीडिया हो, पत्रकार हों- सब इस हिंसक भीड़ का हिस्सा हैं या इसके हाथों मारे जा रहे हैं. वह भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम पर!

(लेखक टिप्पणीकार एवं रंगकर्मी हैं)

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