आज जब हम पाबंदियों और षडयंत्रों की बात करते हैं तो हमें इंदिरा गांधी के आपातकाल की याद आती है. लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान कम्युनिस्टों पर लगा प्रतिबंध इसकी तुलना में बेहद भयावह था.
कम्युनिस्टों पर षड्यंत्र करने के मामले अंग्रेजों के जमाने में लगे थे.
पेशावर, कानपुर और मेरठ षड्यंत्र मामले इनमें प्रमुख थे. पूरे शीर्ष नेतृत्व को कानपुर षड्यमंत्र मामले में फँसाया गया था. हर कोई यह समझ गया था कि ब्रिटिश सरकार एमएन रॉय और हर भारतीय कम्युनिस्ट के बीच होने वाले पत्राचार पर नजर रख रही थी.
इन पत्राचारों पर नज़र रखने के साथ ही षड्यंत्र के मामलों की शुरुआत हुई थी. एक तरह से हम कह सकते हैं कि ब्रिटिश शासन के बाद भारतीय सरकारों को ना केवल ब्रिटिश क़ानून बल्कि उनके नज़र रखने के तरीके विरासत में मिले थे.