ख़ालिद सैफी भाई से जेल में उनकी बीवी के मिलने का सफर, उन्हीं की लेखनी :

दैनिक समाचार

चलिए आज मैं आप सबको जेल के सफर पर लेकर कर चलती हूं:

कल 21.4.22 को मेरी मुलाकात की तारीख थी।

सेहरी के बाद से ही बैचेनी थी कि मुलाकात पर जाना है, खालिद को मेरा इंतजार होगा।

मैं सेहरी के बाद सो नहीं पाई। जैसे 7.30 बजे मैं उठकर तैयार होकर बच्चों को सोता हुआ छोड़कर चली गई।

मैं सुबह 8 बजे के करीब मंडोली जेल (DEHLI) पहुंच गई।

मुलाकात के लिए लंबी लाइन लगी हुई थी। उस लाइन में लगे लोगों को देखकर लग रहा था कि आधा मुसलमान दवातों में मशरूफ है और आधा जेल के अंदर और उनके बचे हुए घर वाले कोर्ट और जेल की लाइनों में लगे हैं।

जेलें मुसलमानों से भरी पड़ी है और में देखती हूं किसी की बूढ़ी मां लाइन में लगी है, किसी का बूढ़ा बाप वहां खड़ा पुलिस की गाली खा रहा है।

खैर मैं खालिद के लिए 2 जोड़ी कपड़े ले कर गई थी।

अंदर पहुंचते ही पता चला कि मैं एक जोड़ी ही ले जा सकती हूं।

वहां बाहर जो ऑफिसर बैठी थी, बेइंतहाई बत तमीज थी, मैंने उससे रिक्वेस्ट की कि मैं ये कपड़े कहां रखूंगी तो बोली बाहर कहीं भी फेंक दे, पर जायेंगे एक ही।

मैंने उससे ज्यादा बहस नहीं करी। अकेले होने की वजह से कपड़ों को बाहर आकर एक साइड में किसी पेड़ के नीचे रख दिया और अल्लाह से कहा कि तेरे सुपुर्द।

मैं दुबारा लाइन में लगी और वह स्टेप पार किया, फिर नेक्स्ट लेवल पर पर पहुंची, उसके बाद वहां चेकिंग हुई। वहां मेरा बुरखा उतारा गया, उसके बाद मुझे मेरे बाल खोलने के लिए कहा गया।

ये प्रोसेस दो जगह दो बार हुआ।

उन लेडिस पुलिस के हाथ लगाने और चेकिंग करने से घिन आ रही थी और उनका रवैया ऐसा था, मानो जैसे उन सब के दिमाग में यह हो कि जेल में बन्द सारे मुसलमान गुनहगार हैं और इनकी फेमिली की कोई इज्जत नहीं है ।

जेल मिलने जाना भी अपने आपमें एक टॉर्चर है। तीन बार खालिद के एक जोड़ी कपड़े की चेकिंग हुई।
खालिद की जेल तक पहुंचते पहुंचते थक गई थी, क्योंकि मुझे 2 घंटे बस इन सबको पार करने में लगे।

खालिद की जेल के बाहर एक ऑफिसर को एक स्लिप दी, जिससे वह खालिद को बुलाते मिलने के लिए। वहा मैं 1/2 घंटा बैठी रही, गर्मी अपने पूरे शबाब पर थी और गरम हवाओं के थपेड़ों से हलक सूख चुका था। इंतज़ार करते हुए एक अजीब सी घबराहट थी कि काफी दिन बाद मैं खालिद से मिलने जेल आई थी, अक्सर खालिद मुझे मना करते हैं जेल आने के लिए, पर इस बार मेरा दिल नहीं माना और मैं चली गई।

तकरीबन 1/2 घंटे बाद खालिद की आवाज लगी और जल्दी से उठकर उनसे मिलने गई। वह मुझे देखकर बहुत खुश हुए।

उनकी आंखों में चमक थी। हमने फोन उठाया और बातें करनी शुरू की।

बातों से ज्यादा हम बस एक-दूसरे को देख रहे थे। हमारे बीच में शीशा और सलाखे थीं, फिर भी मैं खालिद के हाथों को छूने की कोशिश कर रही थी। उनकी आंखों में मेरे लिए आंसू थे।

वे मेरे लिए परेशान थे कि मैं गर्मी में रोज़े की हालत में बच्चों को सोता हुआ छोड़कर आई हूं।

वे मुझेसे सॉरी बोल रहे थे कि मेरी वजह से तुझे इतना परेशान होना पड़ रहा है।

मैं वहां बस, उनको सुनने गई थी, वे अपने दिल की बातें सुना रहे थे। जिस तकलीफ से खालिद और हमारे सभी साथी गुजर रहे हैं, वह शायद आप और हम महसूस भी नहीं कर सकते।

छत गरम, दिवारें गरम, फर्श गरम, खिड़की से आती हुई हवा गर्म, कूलर नहीं। पंखे मानो बोल रहे हैं कि अब हम साथ नहीं दे सकते। चादर गीली करके लेटना पड़ता है।

इस हालत में जब खालिद की तबियत बिल्कुल भी ठीक नहीं, उनको सही खाना नहीं मिल रहा, सही इलाज नहीं मिल रहा। उस हालत में भी एक रोजा नहीं छोड़ रहे। अपनी इबादत में और तरावीह और तहाजुद में कोई कमी नहीं आने दे रहे, जिस मौसम में आप सारी सहूलियतें होने के बावजूद मस्जिद तक नहीं जा रहे, उस हालत में भी खालिद का ईमान मजबूती के साथ खड़ा है। खालिद को और मुझे यह पता है कि हमें इस हालत में कुछ नहीं मिल रहा, पर हमें अल्लाह मिल रहा है और जब वह मिल जाए तो किसी की जरूरत नहीं होती।

शायद अल्लाह को भी मंजूर था कि हम और बातें करें, पता ही नहीं चला कि कब 1/2 घंटा गुजर गया और मेरे पीछे से आवाज आई कि आपका टाइम खतम हो गया है, मैंने उस ऑफिसर से कहा 2 मिनट रुकिए, तो उसने कहा मैडम 15 मिनट का टाइम होता है और आपको तो फिर काफी देर हो गई है। मैं समझ गई और मुस्कुरा कर उसको thankyou बोली।

उसकी 2 दूसरी आवाज सुनते ही दिल को धक्का लगा, क्योंकि मुझे खालिद को फिर से उस जहन्नुम में छोड़कर आना था। जहां इंसान को इंसान नहीं समझा जाता।

फोन रखते हुए उनकी-मेरी आंखों में आसूं थे। मानो वे कह रहे हैं, मुझे साथ ले चल और मैं भी बोल रही हूं कि मैं थक गई हूं अकेली भागते-भागते! अब बहुत हो चुका मेरे साथ चलो!!

ये सब अभी मुमकिन नहीं था। हमने अल्लाह हाफिज करके फोन काटा और एक-दूसरे को देख कर चले गए।

बाहर आते हुए और उनसे बिछड़ते हुए आंसू रुक ही नहीं रहे थे।

बाहर आते-आते एक जगह ऐसा लगा कि अंधेरा छा गया है। पैर कांपने लगे। वहां एक पुलिस वाला बोला, क्या हुआ चक्कर आ गया था शायद आपको। फिर उसने मुझे बैठने को बोला पानी ऑफर किया, पर रोजा था तो मना कर दिया।

कुछ मिनट आराम मिलने के बाद उस भाई को शुक्रिया बोला और मैं बाहर आ गई।

7.30am से शुरू हुआ सफर, बाहर आने तक 11.30am तक चला।

फिर ऑटो करके अपने घर 12 बजे तक पहुंची। घर आते ही बच्चों ने गले लगाया और अब्बू के बारे में पूछने लगे, अपने बच्चों के लिए खालिद गिफ्ट के तौर पर लेटर्स लिखे थे तो मैंने वह बच्चों को दे दिए। तीनों लेटर्स लेकर बहुत खुश हुए।

आप सभी को खालिद ने सलाम भेजा है, अपनी दुआओं में खालिद और सभी को याद रखें।

अल्लाह हमें और आपको हिम्मत के साथ एकजूट होकर तानाशाही, फासीवाद से लड़ने की ताकत दे।

मोमिनो के लिए तो दुनिया वैसे भी कैद खाना है, तुम हमें कैद करो, हम यूसुफ बनकर जेल को नूर की रोशनी से मुन्नवर करेंगे।

न डरे थे, न डरेंगे! इंशाअल्लाह
नाइंसाफी की इस लड़ाई को हिम्मत के साथ जारी रखेंगे।

? मैं तुम्हे पाने की हर आखिरी कोशिश करूंगी। ?

? मैं तुम्हें किस्मत के हवाले नहीं छोड़ सकती। ?

Nargis Khalid Saifi

मैं आप की कमजोरी नहीं हूं। मैं आपकी हिम्मत बनकर आपके साथ हर हाल में खड़ी हूं।

(व्हाट्स ऐप से साभार। इसमें मैंने मात्रिक करेक्शन किया है, एडिटिंग नहीं। हमें यह सफर बहुत ही मार्मिक लगा, इसलिए प्रकाशित कर रहा हूं।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *