अभी पिछले हफ्ते की बात है. नवरात्रे के समय की. पडोस में रतजगा चल रहा था. औरत और मर्द दोनो माँ के भजनों का मजा ले रहे थे. एक लड़की को एक ठरकी बड़ी देर से छेड रहा था। हाथ जोड़कर झूमने का नाटक करता और लड़की के बदन को छूता। लड़की शर्म के मारे कुछ नहीं बोल रही थी. ठरकी माना नहीं तो लड़की को कुछ और तो सुझा नहीं। वो भी माँ के भजन पर जोर जोर से झूमने लगी। सभी लोग माता आई, माता आई, समझ कर आरती की थाली उसके पास ले आये। माँ के जयकारे करने लगे. लड़की को माँ की चौकी के पास बैठा दिया। लड़की ने चैन की सांस ली और पूरा रतजगा आराम से काटा, पर ठरकी रात भर लड़की को घूरता रहा।
इस घटना को देखकर मुझे अपने गाँव की एक बात याद आ गई।
पश्चिमी उत्तरप्रदेश के गाँवों में बचपन के दिनों से पढ़ाई करने के बाद तक सरकारी नौकरी में उम्र भर के लिए दिल्ली में आयकर विभाग में शामिल हुआ, तब तक हमारे गाँवों में राजस्थान की। घुमक्कड़ जाति के गाड़िया लोहार (जिसे हमारे गाँवों में बागडिये पुकारा जाता था) गाँव के बाहर डेरा डालते थे. उनकी औरतें और लडकियां गाँव-मोहल्लों में घूम घूमकर उनके स्वयं बनाए हुए लोहे के औज़ार और घर गृहस्थी के काम की वस्तुएं बेचने आया करती थीं- “चिमटा ले, पलटा ले, तवा ले, दरांती ले, गंडासा ले, दरांत ले“।
वे निशंक निडर लडकियां तगड़े जिस्म की, तांबई रंगत की, एकदम स्वस्थ, मर्दों से भी बीस ताकतवर में और हिम्मती,मुंहफट भी। अगर कोई छेडता तो ज़रूरत पड़ने पर तुरंत प्रहार करने वाली हुआ करती थीं. गाँव के उठती उम्र के कुछ बेगैरत लौंडे-लपाड़े उन्हें देखकर जैसे ही इशारेबाज़ी, द्विअर्थी भाषा में कुछ करने की कोशिश करते वे लडकियां तुरंत अपने कमर में खोंसे हुए छुरा-दरांत इत्यादि निकाल कर हमला कर देती थीं. अगले ही क्षण वे लौंडे लपाड़े जान बचाकर भागते नज़र आते थे. उनके जान बचाकर भागने की खबर तुरंत गाँव भर में फ़ैल जाती. सारा गाँव उन पर लानत तो भेजता ही था, स्वयं उनके परिवार वाले लाठी लेकर अपने अपने लौंडों की धुनाई कर डालते थे.
एक बार यूं भी हुआ कि गाँव का एक लौंडा उस दिन सामान बेचने आई बागडिया लड़की के प्रतिकार प्रहार को अनदेखा करते हुए उससे चिपट गया. लड़की ने एक दरांती उसके पेट में घुसेड़ दी. लौंडे का पेट फट गया, लेकिन शुक्र रहा कि उसकी आंत-ओझड़ी बाहर नहीं आयीं. इसके बाद उस बागडिया लडकी ने सारे गाँव को सुनाते हुए हांक लगाईं कि इसे उठा ले जाओ. इस बार बख्श दिया… अगली बार इसकी अर्थी उठाने आओगे.
वो तो चली गयी, अगले दिन आने के लिए. लेकिन मोहल्ले के चौधरियों ने पंचायत करके फैसला लिया कि इसकी कोई रिपोर्ट पुलिस में नहीं कराई जाएगी. साथ ही उस लौंडे के पिता पर सौ रुपये का जुर्माना लगाया गया (कृपया ध्यान दें कि उन दिनों सौ रुपये एक बहुत बड़ी रकम होती थी)।
इस घटना के बाद भी वे बागडिया लोहार लडकियां पहले समान ही गाँव में अपना सामान बेचने आती रहीं निशंक बेधड़क।
इसी से फूलन देवी की याद आई।
सच मानिए, जिस दिन महिलाओं पर दुर्गा देवी के बदले फूलन देवी आने लगेगी, सारे बलात्कारी बलात्कार के बारे में सोचना भी बंद कर देंगे ..।
आर रवि विद्रोही
24.04.2022