केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह आज पुद्दुचेरी में श्री अरविंद के 150वें जयंती समारोह में शामिल हुए

दैनिक समाचार

श्री अमित शाह ने अरविंद आश्रम में महान बुद्धिजीवी और आध्यात्मिक पुरोधा श्री अरविंद को श्रद्धा सुमन अर्पित किये

श्री अरविंद ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में चिरस्थायी योगदान दिया,उनके कार्य और विचार सभी के लिए प्रासंगिक हैं और वे हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे

अगर भारत की आत्मा को समझना है तो श्री अरविंद को सुनना और पढ़ना होगा

कश्मीर से कन्याकुमारी और द्वारका से बंगाल तक कहीं ना कहीं एक ही संस्कृति हम सबको बांधे हुए है

श्री अरविंद ने भारतीय संस्कृति की चिरपुरातन चेतना की नदी के प्रवाह को नई ऊर्जागति और दिशा प्रदान करने का काम किया

जब तक श्री अरविंद के विचारों को हम नई पीढ़ी में संस्कारित नहीं करते, उनके मन में इन्हें जानने की उत्सुकता पैदा नहीं करतेतब तक श्री अरविंद की 150वीं जयंती को मनाने के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकती

मोदी जी के नेतृत्व में हम आज़ादी के 75वें साल में श्री अरविंद जी के स्वपन्न का भारत बनाने के लिए प्रयासरत हैं

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने का जो निर्णय किया हैइसके पीछे तीन मुख्य बिंदु हैं

आज़ादी की लड़ाई से जुड़ी चीज़ों को नई पीढ़ी के मानस पटल पर पुनर्जीवित करना75 साल की उपलब्धियों को देश की 130 करोड़ जनता तक पहुंचानाऔर आने वाले 25 सालों को अमृत काल मानकर हर क्षेत्र में भारत को सर्वोच्च स्थान पर बैठाने का संकल्प लेना

श्री अरविन्द ने स्वराज के कांसेप्ट को बिना किसी कन्फ्यूजन के देश के सामने रखावो मानते थे कि भारत में वो शक्ति है जो विश्व की सभी समस्याओं को दूर कर सकती है

स्वराज का मतलब सिर्फ पॉलीटिकल पावर से नहीं हैबल्कि स्वराज का मतलब देश भारत की मिट्टी की सुगंध से निकले सिद्धांतोंसंस्कृति की बनाई हुई अवधारणाओं और अपनी महान परंपराओं को आगे लेकर चलना है

श्री अरविन्द के विचार देश के लिए अमूल्य धरोहर हैंउन्होंने अपने एक जीवन में 100 जीवन जितना काम करके बिना किसी यश की अपेक्षा के युगों युगों तक देश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाने वाला विचार हमें दिया

श्री अरविंद ने पॉलीटिकल एक्शन का एक सुसंगत और महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित करने का प्रयास किया था जिसे एक प्रकार से आध्यात्मिक राष्ट्रवाद भी कह सकते हैं और उन्होंने पहली बार राष्ट्र की अवधारणा रखी

अगर मोदी जी ने नई शिक्षा नीति को ध्यान से समझेंगे तो इसमें हर स्थान पर श्री अरविंद के शिक्षा के विचार दिखाई पड़ेंगे

भारत कभी छोटा नहीं सोच सकता और ना कभी भारत को छोटा सोचना चाहिएएक समय था जब हम गुलाम हो गए थे परंतु हमारी सोच और चिरपुरातन संस्कृति कभी हमें छोटा सोचने की आज्ञा नहीं देती

श्री अरविंद के विचारों के आंदोलन के प्रचार के साथ जुड़े लोगों को देश के युवाओंकिशोरों और देश की शिक्षा व्यवस्था पर फोकस करना चाहिए

अगर यह तीन चीजें श्री अरविंद के विचारों से युक्त हो जाती हैं तो श्री अरविंद की कल्पना का भारत बनना मुश्किल नहीं है

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह आज पुद्दुचेरी में श्री अरविंद के 150वें जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में शामिल हुए। श्री अमित शाह ने अरविंद आश्रम में महान बुद्धिजीवी और आध्यात्मिक पुरोधा श्री अरविंद को श्रद्धा सुमन अर्पित किये। श्री शाह ने कहा कि श्री अरविंद ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में चिरस्थायी योगदान दिया। उनके कार्य और विचार सभी के लिए प्रासंगिक हैं और वे हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।

श्री अरविंद के 150वें जयंती समारोह को संबोधित करते हुए केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि अगर भारत की आत्मा को समझना है तो श्री अरविंद को सुनना और पढ़ना होगा। इसी प्रकार का जीवन श्री अरविंद ने जिया और अगर उनके साहित्य को ध्यान से पढ़ें और उनके संदेश को समझें, तो उन्होंने एक अलग प्रकार के भारत की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि दुनिया के सारे देश जियो-पॉलिटिकल हैं लेकिन भारत एकमात्र ऐसा देश है जो जियो-कल्चर है। अगर भारत को जियो-कल्चर देश के नाते समझने की शुरूआत करेंगे तो आज की सभी समस्याओं का समाधान अपने आप हो जाएगा। कश्मीर से कन्याकुमारी और द्वारका से बंगाल तक कहीं ना कहीं एक ही संस्कृति हम सबको बांधे हुए है। संविधान हम सबके लिए सम्मानयोग्य है लेकिन बॉंडिंग अगर है तो वो ये संस्कृति है जो भारत की आत्मा है।

श्री अमित शाह ने कहा कि श्री अरविंद ने भारतीय संस्कृति की चिरपुरातन चेतना की नदी के प्रवाह को नई चेतना, ऊर्जा, गति और दिशा प्रदान करने का काम किया और ऐसे समय पर किया जब सब ओर अंधकार था और देश अंग्रेज़ों का ग़ुलाम था। उन्होंने कहा कि जब तक श्री अरविंद के विचारों को हम नई पीढ़ी को नहीं सौंपते, उनके मन में इन्हें जानने की उत्सुकता पैदा नहीं करते, तब तक श्री अरविंद की 150वीं जयंती को मनाने के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकती। श्री अरविंद का गुजरात से गहरा रिश्ता रहा है, काफ़ी समय तक गायकवाड़ सरकार ने उन्होंने शिक्षा पर काम किया और कई गुजरातियों ने उनसे प्रभावित होकर उनके जीवन संदेश को ही अपना जीवन बना लिया। बहुत कम लोग जानते होंगे कि के एम मुंशी श्री अरविंद के शिष्य रहे और आगे के जीवन में श्री कन्हैया लाल मुंशी ने भारत के संविधान की रचना में बहुत बड़ा योगदान दिया और संविधान में भारतीय विचार प्रमुख हों, इसके पुरोधाओं में श्री के एम मुंशी थे। कई लोगों ने श्री अरविंद के साथ जुड़कर पूरा जीवन उनके संदेश को दुनियाभर में पहुंचाने के लिए काम किया।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि श्री अरविंद के जीवन को अगर देखते हैं तो भारत के साथ उनका जुड़ाव भी एक प्रकार से संयोग से भी हो गया है क्योंकि भारत की आज़ादी और श्री अरविंद के जन्म का दिन एक ही है। श्री अरविंद जब 75 वर्ष के हुए तब देश आज़ाद हुआ और जब उनकी 150वीं जयंती है तब देश की 75वीं सालगिरह होने जा रही है। उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने का जो निर्णय किया है, इसके पीछे तीन मुख्य बिंदु हैं। जाने-अनजाने सभी स्वतंत्रता सेनानियों को नई पीढ़ी के मानस पटल पर फिर से एक बार स्थिर करके देशभक्ति के संस्कार पुनर्जागृत करना। 75 साल में जो भी सिद्धियां हमने प्राप्त की हैं उन्हें देश की 130 करोड़ जनता तक पहुंचाना। 75 से 100वें साल तक तक के 25 साल को अमृत काल मानकर हर क्षेत्र में भारत सर्वोच्च हो, हमारे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बचाए रखते हुए, इसका संकल्प लेकर पूरी पीढ़ी 25 साल तक काम करे। इन तीनों उद्देश्यों के आधार पर ही आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है।

श्री अमित शाह ने कहा कि ये श्री अरविंद घोष की 150वीं जयंती का वर्ष है और प्रधानमंत्री जी की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति बनाई गई है। 15 अगस्त को लाल क़िले की प्राचीर से प्रधानमंत्री जी ने श्री अरविंद जी को उल्लिखित करके एक बात कही थी कि आज़ादी के 75वें साल में श्री अरविंद जी की कल्पना का भारत बनाने के लिए हम सब प्रयासरत हों। श्री अरविंद जीवनपर्यंत मेधावी छात्र रहे और उनके अंदर का विद्यार्थी उनकी मृत्यु तक जीवित था। भले ही उनकी औपचारिक शिक्षा इंग्लैंड में हुई परंतु भारतीयता में रचे-बसे इस व्यक्ति ने पूरे देश को भारतीयता की अर्वाचीन व्याख्या से परिचित कराने का एक बहुत भागीरथ काम किया। श्री अरविंद और श्री विवेकानंद दोनों ने भारतीयता की व्याख्या 20वीं शताब्दी की भाषा में की है। श्री अरविंद जी ने वडोदरा में ना केवल शिक्षा बल्कि गुड गवर्नेंस पर भी बहुत काम किया। वे गुप्त रूप से बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में भी रहे औरएक प्रकार से वे वहां दोहरा जीवन व्यतीत करते थे। उनके मन और आत्मा क्रांति के साथ जुड़े हुए थे और नौकरी सयाजीराव गायकवाड़ की शिक्षाके लिए करते थे। लेकिन उन्होंने दोनों भूमिकाओं का निर्वहन बहुत अच्छे तरीके से किया। 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ने बंग भंग किया और इसके साथ ही देशभर में एकबहुत बड़ी चेतना आ गई और देशभर के युवा बंग बंग के विरोध में एकत्रित हुए। विशेषकरबंगाल बहुत जागरूक था और श्री अरविंद अपनी नौकरी छोड़कर बंगाल गए और 1905 से1910 तक वह भारत के राजनीतिक स्वतंत्रता आंदोलन की उल्का बन कर रहे। उन्होंने जोभी किया वह प्रखर रूप से,बिना भ्रमित हुए और परिणामलक्षी किया और इसी के कारण ही 1905 से 1910 के छोटेसे कालखंड में भी वह क्रांतिकारी आंदोलन के मुखर नेता बने, उन्हें जेल भी जाना पड़ा।अलीपुर बम षड्यंत्र मामले में उनको गिरफ्तार किया गया और 1 साल के लिए जेल भेजागया। उनको पहला आध्यात्मिक अनुभववहीं जेल में हुआ और वहीं से 1910 सेउनके जीवन में एक परिवर्तन आया।

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि श्री अरविंद ने पॉलीटिकल एक्शन का एक सुसंगत और महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित करने का प्रयास किया था। उसे एक प्रकार से आप आध्यात्मिक राष्ट्रवाद भी कहसकते हैं और पहली बार राष्ट्र की अवधारणा उन्होंने रखी। वंदे मातरम और श्रीअरविंद की राष्ट्र की अवधारणा को देखेंगे तो इनके बीच में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उनकीराष्ट्र की अवधारणा जियो कल्चर देश की अवधारणा के अनुरूप बनी, सिर्फपॉलीटिकल एक्टिविटी के लिए राष्ट्र की अवधारणा नहीं थी। स्वराज एक शब्द है मगर इसकाइंटरप्रिटेशन आजादी के आंदोलन के वक्त भी और बाद में भी राजनीतिक सत्ता के रूप में हो गया। स्वराज में सबसे महत्वपूर्ण शब्द स्व है-स्वभाषा, स्वसंस्कृति, स्वधर्म, इनसब चीजों में स्व है और तभी जाकर स्वराज संपूर्ण होता है। स्वराज का मतलब सिर्फ पॉलीटिकल पावर से नहीं है,बल्कि यह देश भारत की मिट्टी कीसुगंध में से निकले सिद्धांतों के आधार पर चले, भारत की संस्कृति की बनाई हुई अवधारणाओं के आधार पर चले, यहां की महान परंपराओं को आगे लेकर चले, वहस्वराज का मतलब है। श्री अरविंद ने स्वराज का कांसेप्ट रखने में कोई कोताही नहीं की, बड़ास्पष्ट था और इसीलिए वह मानते थे कि भारत में वह शक्ति है जो पूरे विश्व को दैदीप्यमान करसकती है, सारे विश्व का कंफ्यूजन दूर कर सकती है।

श्री शाह ने कहा कि श्री अरविंद बंगाल छोड़ कर वाया चंद्र नगर पांडिचेरी आए औरपांडिचेरी उस जमाने में भी आजादी के आंदोलनका बहुत महत्वपूर्ण केंद्र रहा और इसका एकमात्र कारण श्री अरविंद ही थे। उन्होंने यहां काफ़ी साहित्य और कई प्रवचन कहे हैं और युगों युगों तकरास्ता बदले बगैर पूरा राष्ट्र कैसे चल सकता है इतना पाठ्य उन्होंने हमें दिया। आध्यात्मिकअनुभव उनको शंकराचार्य मंदिर में भी हुआ और उसके बाद एक प्रकारसे उन्होंने आध्यात्मिक राष्ट्रवाद की भी व्याख्या की क्योंकि हमारी संस्कृति में सीमा कीकल्पना ही नहीं है। हमारे वेदों, उपनिषदों, साहित्य में कहीं देश के नाम का शब्द हीनहीं है। हम अंतरिक्ष और समग्र विश्व के भले के लिए काम करनेवाले लोग हैं। अगर राष्ट्रवाद को पश्चिम की व्याख्या से देखेंगे तो संकुचित लगेगा मगर राष्ट्रवाद कोसांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आधार पर देखेंगे तो समग्र विश्व का कल्याण करने का एक यज्ञ दिखेगा।आज पश्चिम के विद्वान राष्ट्रवाद का पश्चिम की व्याख्या से मूल्यांकन करते हैं। लेकिन राष्ट्रवाद की व्याख्या इतनी छोटी नहीं है, जिस देश की संस्कृति समग्र विश्व, अंतरिक्ष, पशु पक्षी, जल और वनस्पति तक का सोचती हो, इसकाराष्ट्रवाद समग्र देश के लिए है और वह वसुधैव कुटुंबकम से उपजा हुआ राष्ट्रवाद होता है। इसकी व्याख्या सबसे पहले श्री अरविंद ने की।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि अगर देश की नई शिक्षा नीति को ध्यान से पढ़ेंगे तो हर स्थान पर श्री अरविंद के शिक्षा के विचार अपने आप दिखाई पड़ेंगे क्योंकि इस देश को जो लोग जानते हैं, वह सभी जानते हैं कि यही हमारा राजमार्ग और आगे बढ़ने का रास्ता है। भारत कभी छोटा नहीं सोच सकता और ना कभी भारत को छोटा सोचनाचाहिए। एक समय आ गया था जब हम गुलाम हो गए थे परंतु हमारी सोच और चिरपुरातनसंस्कृति कभी हमें छोटा सोचने की आज्ञा नहीं देती है। उन्होंने कहा कि मैं श्री अरविंद के विचारों के आंदोलन के प्रचार के साथ जुड़े हुए लोगों को इतना हीकहना चाहता हूं कि आप इस देश के युवाओं, किशोरों औरदेश की शिक्षा व्यवस्था पर फोकस करिए। अगर यह तीन चीजें श्री अरविंद के विचारों से युक्त होजाती हैं तो श्री अरविंद की कल्पना का भारत बनना मुश्किल नहीं है।इसे कोई एक व्यक्ति नहीं बना सकता, कई लोगों को पहलेउनकी कल्पना को समझना पड़ेगा, तभी उनके स्वप्न के साथ वो जुड़ सकते हैं। उन्होंने कहा था कि शिक्षकों के लिए मनोविज्ञान और संस्कृति की जानकारी बहुत जरूरीहै। एक व्यक्ति अपने जीवन में कितना कुछ कर सकता है, अगर इसका दुनिया भर मेंउदाहरण ढूंढेंगे तो इसमें श्री अरविंद ही आएंगे। एक जीवन में 100 जीवनजितना काम करने वाले, यश की कोई अपेक्षा रखे बिना, युगों युगों तक देश उस रास्ते परआगे चल सके, ऐसी राह हमारे लिए वे छोड़ कर गए हैं और उनके विचार देश के लिए बहुत बड़ा धन और संपत्ति हैं।

*****

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *