मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के दार्जिलिंग ब्रांच में चारू मजूमदार नेता थे, उन्होंने कुछ दस्तावेज़ तैयार किए. उन्हें तराई के दस्तावेजों के तौर पर जाना जाता है. उन्होंने लोगों से अपील की वे नकली स्वतंत्रता को त्याग करके चीन की नीतियों को अपनाएं.
इसी समय में सिलीगुड़ी के नज़दीक के एक गांव नक्सलबाड़ी में अशांति उत्पन्न हो गई जब स्थानीय जमींदार के लठैतों ने बिमाल किसान नाम के किसान पर हमला कर दिया. आदिवासी किसानों ने जमींदारों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किए और जमींदारों की ज़मीन पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया.
चारू मजूमदार के निर्देशन और जंगल संथाल और कानू सान्याल के नेतृत्व में देश में कम्युनिस्ट आंदोलन एक नए दौर में पहुंचा. चाइना डेली मार्निग स्टार अखबार ने इसे भारत के ‘स्प्रिंग थंडर’ (वसंत का वज्रनाद) के तौर पर चित्रित किया और अनुमान जताया कि यह जल्दी ही देश भर में फैल जाएगा.
मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सभी असंतुष्ट एक साथ एकत्रित हुए और मिलकर अखिल भारतीय कम्युनिस्ट रिवोल्यूशनरी कॉर्डिनेशन कमेटी (एआईसीसीसीआर) का गठन 1968 में किया गया.
इनका मुख्य सिद्धांत चुनावी रास्ते का विरोध और सशस्त्र संघर्ष करके क्रांति हासिल करने पर था. कानू सान्याल और चारू मजूमदार को मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी से निष्कासित कर दिया गया.
इन दोनों ने अन्य असंतुष्टों के साथ पश्चिम बंगाल के बर्धवान में एक बैठक आयोजित की. इस बैठक में शामिल हुए अन्य असंतुष्टों को भी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. एआईसीसीसीआर की आंध्रा कमेटी सशस्त्र क्रांति की तैयारी कर रही थी तबी श्रीकाकुलम समिति ने दो प्रस्ताव पास करके कहा कि सशस्त्र संघर्ष में देरी नहीं की जा सकती.
इन लोगों ने सावरा और जातापु आदिवासियों को श्रीकाकुलम में जमींदारों के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए तैयार किया. इसने देश भर के शिक्षित मध्य वर्ग युवाओं को जोड़ा. इसी दौरान बिहार में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के रैडिकल तत्वों ने बिहार के मुसहहरी में सशस्त्र आंदोलन शुरू कर दिया.
इसके बाद उत्तर प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल में फसल और जमीन पर कब्जे के लिए आंदोलन भड़क उठे. केरल में अजिता जैसे लोगों ने पुलिस स्टेशन पर छापे मारकर सभी को चौंका दिया.
इन सब ताक़तों ने मिलकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का गठन 1969 में किया. इसके बाद जिस भी पार्टी ने सशस्त्र संघर्ष की बात की, वो अपने पार्टी के नाम के पीछे सीपीआई (एम-एल) जोड़ने लगा.
मूल मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी कई धड़े में टूटी. इनमें महत्वपूर्ण रहे दलों में सीपीआई (एम-एल) पीपल्स वार मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और दंडकारण्य क्षेत्र में सक्रिय है. जबकि माओस्टि कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) पहले बिहार और बाद में पश्चिम बंगाल में स्वतंत्र रूप से काम कर रही है. इसके अलावा विनोद मिश्र के नेतृत्व में सीपीआई (एम-एल) (लिबरेशन), सत्यानारायण सिंह और चंद्र पुला रेड्डी के नेतृत्व में एक अन्य एम-एल पार्टी भी सक्रिय थी.
इनमें पीपल्स वार और एमसीसी को छोड़कर सभी दल चुनाव में हिस्सा लेते हैं. 2004 में एमसीसी और पीपल्स वार एकसाथ आए और इनका विलय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मओवादी) में हो गया. यह आज देश का सबसे बड़ा गुरिल्ला नक्सली दल है. लेकिन आज के समय में सभी नक्सली दल संकट के दौर से गुजर रहे हैं.
1980 के दशक के बाद से मिडिल क्लास का समर्थन इन दलों के लिए कम हुआ है. इसके बाद 90 के दशक के सामाजिक और संबंध और समीकरणों ने इसे और भी कमजोर किया है. नक्सली रास्ते के भविष्य को लेकर कई बहसें उन लोगों के बीच भी हो रही हैं.