सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडीयन इकॉनमी (सीएमआईई) की ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि भारत के कुल 90 करोड़ काम करने योग्य आबादी में से महज़ 40% लोगों को ही काम मिला हुआ है, 45 करोड़ लोगों ने हताश होकर अब काम ढूँढना ही बंद कर दिया है।
मोदी सरकार ने प्रतिवर्ष 2 करोड़ नये रोज़गार देने के नाम पर वोट बटोरे थे, लेकिन असलियत में नयी नौकरियाँ मिलने के बजाय पहले के रोज़गार भी मोदी सरकार के कार्यकाल में छिन गये हैं। 2017 की तुलना में 2022 में कामगारों की संख्या कुल आबादी के 46% से घटकर 40% रह गयी है, कुल 2.1 करोड़ कामगारों के काम छीन लिये गये हैं।
इस बेरोज़गारी व बढ़ती महंगाई जैसे संकटों से जूझ रही जनता का ध्यान भटकाने के लिये ही संघ व उसके आनुषंगिक संगठनों द्वारा सांप्रदायिक माहौल बनाने, एक दूसरे से लड़ाने का काम ज़ोरों से किया जा रहा है।
जैसे-जैसे समाज में आर्थिक संकट बढ़ेगा ये लोग समाज में नफ़रत फैलाने का काम तेज कर देंगे, ताकि जनता का ग़ुस्सा इन सरमायेदारों व इन समस्याओं को पैदा करने वाली इस पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ खड़ा न होकर एक दूसरे समुदाय के ख़िलाफ़ खड़ा हो। हमारे आपस में लड़ते रहने में ही उनकी जीत है, हमारी एकता से वे भयाक्रांत होते हैं, तब उनको अपनी असलियत जनता के सामने आने का डर लगा रहता है।
( साभार )