द्वारा : रवीन्द्र यादव
चर्चा में क्यों?
“The Climate Crisis Is a Child Rights Crisis: Introducing the Children’s Climate Risk Index” शीर्षक नामक यूनीसेफ़ की ताजा रिपोर्ट में समुद्री तूफानों, बाढ़, भूकंप, प्रदूषित हवा और तापमान बढ़ने का बाल जीवन पर पड़ने वाले असर का आकलन किया गया है। ऐसा पहली बार हुआ है कि जब किसी रिपोर्ट में बच्चों के परिपेक्ष्य से जलवायु जोखिम का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत उन चार दक्षिण एशियाई देशों में, यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और भारत शामिल है, जहां के बच्चों पर पर्यावरण के बदलाव का सबसे ज्यादा नकारात्मक असर पड़ने की आशंका है। यह असर उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा से जुड़ा हुआ होगा।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
- संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और बाल अधिकारों पर कार्य करने वाली संस्था ‘यूनीसेफ’ की इस नई रिपोर्ट में जलवायु व पर्यावरणीय जोखिमों जैसे कि चक्रवाती तूफ़ान व ताप लहरें से बच्चों पर होने वाले असर और उनके लिये अतिआवश्यक सेवाओं की उपलब्धता के आधार पर देशों की सूची बनाई गई है।
- इस रिपोर्ट को ‘Fridays for Future’ नामक आन्दोलन के साथ मिलकर, वैश्विक जलवायु हड़ताल मुहिम की तीसरी वर्षगाँठ पर पेश किया गया है, जिसे युवाओं के नेतृत्व में शुरू किया गया था।
- इस रिपोर्ट के मुताबिक क़रीब एक अरब बच्चे, अत्यधिक उच्च जोखिम वाले 33 देशों में रहते हैं। यह विश्व में बच्चों की कुल आबादी यानी दो अरब 20 करोड़ की लगभग आधी संख्या है।
- यूनीसेफ ने खतरे की जो रैंकिंग तैयार की है, उसके अनुसार पाकिस्तान 14वें, बांग्लादेश 15वें, अफगानिस्तान 25वें और भारत 26वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट में एक से 33वें स्थान तक के देशों को अत्यंत उच्च खतरे वाली श्रेणी में रखा गया है। इन 33 देशों में करीब एक अरब बच्चे रहते हैं। इन बच्चों का बड़ा हिस्सा इन चार दक्षिण एशियाई देशों में रहता है।
भारत के संदर्भ में
- साल 2020 में दुनिया के 30 सबसे ज्यादा वायु प्रदूषित वाले शहरों में 21 केवल भारत के थे।
- एक अनुमान के मुताबिक वैश्विक स्तर पर दो डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान बढ़ने पर 60 करोड़ से ज्यादा भारतीय आने वाले दशकों में पानी की भारी किल्लत का सामना करेंगे। इसी दौरान भारत के शहरी इलाके बाढ़ का सामना भी करेंगे।
- भारत के पड़ोसी देश, यानी नेपाल, श्रीलंका और भूटान भले ही विकास में भारत से पिछड़े दिखाई देते हों, लेकिन उनके बच्चों की दशा भारत से बेहतर है; क्योंकि ये देश यूनीसेफ की इस नई सूची में क्रमश: 51वें, 61वें और 111वें नंबर पर हैं। अर्थात भूटान में बच्चों की स्थिति आस-पास के देशों से ज्यादा अच्छी स्थिति में है।
‘जलवायु जोखिम इण्डेक्स’ के अन्य प्रमुख बिंदु
इस इंडेक्स के अनुसार 24 करोड़ बच्चों पर तटीय बाढ़ का शिकार होने का जोखिम बना हुआ है। 40 करोड़ बच्चों पर चक्रवाती तूफ़ानों की चपेट में आने का जोखिम है। वहीं 81 करोड़ से अधिक बच्चों पर सीसा प्रदूषण का शिकार होने का जोखिम है। जबकि 92 करोड़ बच्चों पर जल की क़िल्लत से प्रभावित होने का ख़तरा बना हुआ है तथा 82 करोड़ बच्चे ऐसे हैं, जिन पर ताप लहरों की चपेट में आने का जोखिम बना हुआ है।
यह रिपोर्ट बताती है कि 85 करोड़ बच्चे, यानी हर तीन में से एक ऐसे इलाक़ों में रहते हैं, जहाँ कम से कम चार जलवायु व पर्यावरणीय ख़तरे मौजूद हैं। वहीं यह रिपोर्ट यह भी स्पष्ट करती है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार देशों और उसके प्रभावों का सामना करने वाले देशों में रहने वाले बच्चों में कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। जलवायु दुष्प्रभावों के उच्च जोखिम का सामना कर रहे 33 देश, महज़ 9 फ़ीसदी वैश्विक CO2 उत्सर्जन के लिये ही ज़िम्मेदार हैं; जबकि सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार 10 देशों में से महज़ एक ही देश उच्च जोखिम वाले देशों की सूची में शामिल है।
UNICEF (United Nations Children’s Fund)
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, यानी यूनिसेफ का गठन वर्ष संयुक्त राष्ट्र के एक अंग के रूप में 1946 में किया गया था। इसका मुख्यालय जिनेवा में है। ज्ञात हो कि वर्तमान में इसके 190 सदस्य देश हैं। इसका गठन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान प्रभावित हुए बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा करने तथा उन तक खाना और दवाएँ जैसी अतिआवश्यक वस्तुओं के पहुँचाने के उद्देश्य से किया गया था।