भारत ने किगाली संशोधन को दी मंजूरी

पर्यावरण

द्वारा : रवीन्द्र यादव

चर्चा में क्यों?

      हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी कीअध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs)  के प्रयोग को चरणबद्ध तरीके समाप्त करने के लिए ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों से संबंधित मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किए गए किगाली संशोधन के अनुसमर्थन को मंजूरी दे दी है। HFCs को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय रणनीति को 2023 तक तैयार किया जाएगा तथा ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) नियमों को 2024 के मध्य तक लाया जाएगा।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल क्या हैं?

      मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संधि है; जिसे ओजोन परत को बचाने के लिए की गई है। इस संधि के तहत ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों  के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है। जिन्हें ओजोन डिप्लीटिंग सबस्टेन्स (ओडीएस) भी कहा जाता है। दरअसल ओजोन परत पृथ्वी के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है; क्योंकि यह सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों को रोक कर पृथ्वी पर मौजूद सभी जीव-जंतु एवं पर्यावरण की रक्षा करती है। 19 जून, 1992 को भारत ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’का एक पक्षकार बना है। किगाली संशोधन से पहले मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के सभी संशोधनों और समायोजनों को सार्वभौमिक समर्थन प्राप्त है।

किगाली संशोधन क्या है?

      अक्टूबर 2016 में रवांडा के किगाली में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकारों की 28 वीं बैठक में विशेष रूप से प्रशीतन और एयर कंडीशनिंग क्षेत्र में HFCs के उपयोग में वृद्धि को स्वीकार करते हुए HFCs को नियंत्रित पदार्थों सूची में जोड़ने पर सहमति जताई थी। इस बैठक में ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले इन पदार्थों में क्रमबद्ध तरीके से 2040 के अंत तक 80 से 85 फीसदी तक की कमी करने पर सहमति जताई गई थी। भारत 2032 से 4 चरणों में एचएफसी के अपने चरण को 2032 में 10%, 2037 में 20%, 2042 में 30% और 2047 में 80% की संचयी कमी के साथ पूरा करेगा; जबकि चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका को क्रमशः वर्ष 2045 एवं वर्ष 2034 तक समान लक्ष्य प्राप्त करना है।

हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को इतना खतरनाक क्यों ?

      हाइड्रोफ्लोरोकार्बन गैसें विशेष रूप से एयर कंडीशनिंग और रेफ्रिजरेशन उद्योगों में बड़े पैमाने पर उपयोग की जाने वाली 19 गैसों का एक ऐसा समूह है, जो ग्लोबलवार्मिंग के मामले में कार्बन डाइऑक्साइड से हजारों गुना ज्यादा शक्तिशाली है। यदि वैश्विक स्तर पर HFCs  को चरणबद्ध तरीके से कम करने में सफल होते हैं, तो इससे करीब 10.5 करोड़ टन कार्बनडाइऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैसों को रोकने में मदद मिलेगी। एक अनुमान के मुताबिक, यदि वैश्विक स्तर पर 2050 तक इन गैसों के उत्सर्जन को पूरी तरह बंद कर दिया जाए तो सदी के अंत तक तापमान में होने वाली वृद्धि को 0.5 डिग्री सेल्सियस तक कम किया जा सकेगा। इससे न केवल जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद मिलेगी; बल्कि ओजोन परत की सुरक्षा को भी सुनिश्चित किया जा सकेगा।

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