अगर सच में मां का दर्जा भगवान से ऊपर माना होता हमारे समाज ने बच्चे को मां का सरनेम दे सकने की गुंजाइश जरूर छोड़ देता समाज…
किसका बच्चा है…? ये जो सवाल होता है न… ये कोख नही वीर्य का आइडेंटिफिकेशन होता है.. उसी से सम्मान और सामाजिक स्वीकार्यता मिलती है.. उसी से मान सम्मान मिलता है… हमारे यहां मां बनने का अधिकार प्राकृतिक नही सामाजिक है… जिससे विवाह करो उसी के बच्चे को जन्म दो तब तो ठीक वरना मां बनना कितना बड़ा अभिशाप हो सकता है ये आप सोच भी नही सकते…
एक बिन ब्याही लड़की,जो सेटल है.. अपने पैरों पर खड़ी है.. सब कुछ है.. क्या वो बिना शादी किए आईवीएफ तकनीक से मां बनकर एक सम्मानजनक जीवन बिता सकती है… नही.. ऐसी मां को कुलटा और ऐसे बच्चे को किसी का पाप कहा जायेगा…
मां बनना एक बहुत खुशनुमा एहसास है…
मां का दर्जा ईश्वर से बड़ा है…
आदि आदि जितने जुमले हैं वो सिर्फ तभी तक लागू होते हैं जब तक आप एक ऐसी मशीन होते हैं जिसमे किसका प्रोडक्ट मेन्यूफ्रैक्चर होगा ये समाज तय करे… इसके बाहर आपका मां होना आपके लिए सबसे बड़ा पाप और दुर्भाग्य होगा… कर्ण का उदाहरण आप देख सकते हैं… नीना गुप्ता की बेटी का उदाहरण भी आप देख सकते हैं…
सीधी बात ये है कि औरत का मां बनने का अधिकार विवाह संस्था से होकर गुजरता है… एक संस्था में आस्था रखे बगैर औरत मां बने तो वो पाप होता है… और ऐसी किसी औरत को मातृ दिवस की शुभकामनाएं नही दी जातीं… ऐसी औरत को बस गालियां दी जाती हैं… वीर्य का आइडेंटिफिकेशन तो करवाना ही होगा वरना मां होने से बड़ा अभिशाप धरती पर कोई नही होगा….
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आभा शुक्ला