ट्रेनों का संचालन कम करने का असल मंशा

दैनिक समाचार

द्वारा : इं. एस के वर्मा

नाच ना जाने आंगन टेढ़ा!
और
देनी पड़े बुनाई तो घटा बताएं सूत!
जैसी कहावतों को चरितार्थ करता लेख!

आपको जानकर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि बात यूपी की करें तो यूपी के अधिकांश पावर हाउस को एनसीएल ककरी, बीना, सिंगरौली और शक्तिनगर जैसे कोल माईन से कोयला आपूर्ति किया जाता है।
कोरोना से पूर्व जब सारी ट्रेनें अपनी निर्बाध गति से गतिमान रहती थी, तब भी कभी कोयले की आपूर्ति करने के लिए ट्रेनों को बंद नहीं किया गया!
परन्तु पहले कोरोना के नाम पर सारी ट्रेन बंद करके मात्र दस प्रतिशत ट्रेन वर्तमान में संचालित है और वर्तमान में अधिकतर ट्रेन रुट विद्युत संचालित है।
कोरोना तो कब का खत्म हो गया, लेकिन कोरोना के नाम पर बंद हुई ट्रेन भी खत्म ही समझो!
कौन इस बात की पुष्टि करेगा कि कम ट्रेनें चलाने और उसमें बढ़ती भीड़ से कोरोना संक्रमण का खतरा नहीं बढ़ेगा? या फिर ट्रेनों की भीड़ बसों में भरकर उसी दूरी का ट्रेन किराये से दो से तीन गुना किराया देकर कोरोना से सुरक्षित बचा जा सकता है?
दरअसल न तो कोरोना का खतरा बचा है और न ही बिजली और कोयले का संकट, बल्कि इस प्रकार का प्रचार करके एक तीर से तीन निशाने साधने की कोशिश की जा रही है।
रेलवे बेचने में कोई दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि लगभग तीन सालों से ट्रेन में सफर न करने वाली जनता ट्रेन को लगभग भूल ही चुकी है और मजबूरी में तीन गुना किराया चुकाकर रोडवेज या प्राइवेट बसों अथवा निजी साधनों से चलने को मजबूर हैं।
जबकि सरकार को रेलवे से मिलने वाला घाटा रोजवेज से पूरा हो जा रहा है तथा जब रेलवे बिकेगा तो एक ही झटके में करोड़ों का मुनाफा देश के नेताओं की जेब को भर देगा!
साथ ही बिजली घरों को भी बेचने का रास्ता साफ हो जाएगा।
क्योंकि मौजूदा सरकार का एकमात्र लक्ष्य सभी सरकारी विभागों का निजीकरण करना है। इसलिए जनता ऐसे बहानों और फर्जी प्रचारों पर ध्यान मत दे।
क्योंकि बिना कमी बताएं बेचेगी तो जनता इनकी बेईमानी पर शक भी करेगी।
लेकिन पक्का बेईमान आदमी, ईमानदार आदमी से अधिक चालाक और धूर्त होता है। इसलिए वह हर काम बड़ी ही सफाई और चालाकी से करता है, ताकि काम भी हो जाए और किसी को उस पर शक भी न हो!

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