बेरोजगारी का दंश

दैनिक समाचार
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चित्र में दिख रहे सज्जन हैं – 88 वर्षीय अफ़ग़ानिस्तान मिलिटरी से रिटायर्ड –
“ जनरल शाह मोहम्मद नियाज़ी !!”

1958 में इन्होंने रॉयल मिलिटरी एकेडमी, यूनाइटेड किंगडम (UK) से ग्रेजुएशन किया और सन् 1990 में अफ़ग़ानिस्तान की फ़ौज से जनरल के पद से रिटायर हुए।”

सन् 1992-96 के दौरान चले “अफ़ग़ान सिविल वार” में इन्होंने अपने दो पुत्र खो दिये। तीसरा पुत्र पिछले साल सन् 2021 में एक आत्मघाती हमलावर की भेंट चढ़ गया।

वर्तमान में ये अफ़ग़ानिस्तान के कंधार में अपनी पत्नी और विधवा बहु (पुत्र वधु) के साथ रहते हैं और अपना व अपने परिवार का पेट भरने के लिए 88 वर्ष की उम्र में दिन भर ठेला लगाते हुए कड़ी मेहनत करते हैं।”

यह हाल है आज अफ़ग़ानिस्तान के उच्चतम् श्रेणी के रिटायर्ड सरकारी अफ़सरों व कर्मचारियों का।”

Vinod Kumar ji की यह पोस्ट इसलिए सांझा कर रहा हूं कि समझा जा सके कि किसी भी देश की जनता जब #बेरोजगार या #जातिवादी हो जाये और धर्म व जाति की अफ़ीम के नशे में – “ अयोग्य धूर्तों व मक्कारों को सत्ता सौंपने को आतुर हो तथा उस देश का बुद्धिमान तबका देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ कर चुप्पी साध ले तब उस देश की आम जनता की बर्बादी की हालत को तो छोड़िये, उसके “प्रथम श्रेणी व उच्च वर्ग” के नागरिकों तक का ऐसा हाल?होता है।”

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साभार: – Rao Bijender Singh

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