‘कारोबारी सुगमता बढाने के लिए माप-तौल में गडबड़ी से संबंधित गतिविधियों को आपराधिक कृत्य की श्रेणी से बाहर लाने की जरूरत है।’ खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल का बयान है। वजह भी बताई है: ‘उपभोक्ताओं एवं उद्योगों के बीच संतुलन बनाने के लिए’
अर्थात अभी ऐसा संतुलन नहीं है और आम लोग पूंजीपतियों को लूट रहे हैं। अतः अब पूंजीपतियों को हेराफेरी, फ्रॉड, मिलावट, घटतौली, वगैरह वगैरह करने की छूट देना बेहद जरूरी एवं न्यायसंगत है।
वैसे तो मार्क्स बहुत विस्तार से दिखा चुके हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था की मूल बुनावट ही ऐसी है कि पूंजीपति इसके नियम कायदों पर पूरी ईमानदारी से अमल करे तब भी वह निरंतर मजदूर वर्ग को लूट कर अपनी पूंजी का अंबार दिन रात बढा रहा होता है, जबकि श्रम करने वाले कंगाल बेरोजगार ही रहते हैं। फिर भी हय पूंजीपति की दूसरे पूंजीपतियों से आगे निकलने की होड व निजी संपत्ति को लगातार बढाते जाने की अदम्य लालसा उसे निरंतर हर प्रकार की हेराफेरी व चोरी के लिए प्रेरित करती रहती है, बल्कि कहना चाहिए कि पूंजीपतियों की नैतिकता, दीन-धर्म कुछ है तो बस यही है। तिस पर भारत जैसे देशों का पूंजीवाद, जिसका (अडानी अंबानी रामदेव ही नहीं, टाटा बिडला किसी का भी इतिहास पता कर लें) ‘विकास’ ही हरमुमकिन हेराफेरी, दलाली, तस्करी, चोरी, चापलूसी, तिकडमबाजी वगैरह के जरिए हुआ, उसके ‘सच्चे’ प्रतिनिधि ये पीयूष गोयल जैसे बेशर्म ही हो सकते हैं।
खैर, फिर भी कुछ लोग इसी व्यवस्था में सुधार कर अच्छे पूंजीवाद की कपोल कल्पना में जुटे रहते हैं, यहां तक कि हमारे कुछ क्रांतिकारी भी अभी तक किसी प्रगतिशील राष्ट्रीय बुर्जुआ को ढूंढने के अपने अथक प्रयास जारी रखे हुए हैं।