द्वारा : बी एम प्रसाद
10 मई 1857 के पहले ऐतिहासिक विद्रोह को सलाम.अंग्रेजी साम्राज्यवाद से मुक्त होने के लिए हुआ यह गदर .इसमें हिन्दू-मुसलमान कंधे-से कन्धा मिलाकर लड़े अंग्रेजों की गुलामी खिलाफ .इस पहली जंग-ए-आजादी से ही अंग्रेजों ने सबक सीखा कि इस देश पर हुकूमत करनी है तो हिन्दू-मुसलमान को एकजुट नहीं रहने देना है.आज के इस दौर में भी 1857 को याद करने के ख़ास मायने हैं.साझी शहादत-साझी विरासत वाले मुल्क को में गंगा-जमुनी तहजीब के पक्षधरों के लिए 1857 का वह विद्रोह हमेशा प्रेरणा बना रहेगा .
1857 की लड़ाई में अजीमुल्ला खां द्वारा लिखे उस विद्रोह के प्रयाण गीत को गुनगुनाते हुए आइये उस ऐतिहासिक विद्रोह को याद करें –
हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा
पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा
ये है हमारी मिल्कियत, हिंदुस्तान हमारा
इसकी रूहानियत से, रोशन है जग सारा
कितनी कदीम, कितनी नईम, सब दुनिया से न्यारा
करती है जरखेज जिसे, गंगो-जमुन की धारा
ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा
नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्कारा
इसकी खाने उगल रहीं, सोना, हीरा, पारा
इसकी शान शौकत का दुनिया में जयकारा
आया फिरंगी दूर से,
ऐसा मंतर मारा
लूटा दोनों हाथों से, प्यारा वतन हमारा
आज शहीदों ने है तुमको, अहले वतन ललकारा
तोड़ो, गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा
हिन्दू मुसलमाँ सिख हमारा, भाई भाई प्यारा
यह है आज़ादी का झंडा, इसे सलाम हमारा ॥
1857 के संग्रामी अमर रहें