हाईकोर्ट फैसले के आईने में : लखीमपुर नरसंहार पर सियासत को समझिए

दैनिक समाचार

लखीमपुर खीरी में पिछले साल 3अक्टूबर को हुई हिंसक घटना में कुल 8 लोगों की जान गई थी। षड्यंत्रकारियों की कोशिश यह थी कि उ.प्र. में सिख किसानों को गाड़ियों से रौंदा जाएगा तो पंजाब के सिख हिन्दुओं पर आक्रामक हमला करेंगे। इससे किसान आन्दोलन हिन्दू बनाम सिख आन्दोलन में बदल जाएगा। पूरा आन्दोलन ध्वस्त हो जाएगा। नरसंहार तो हो गया परन्तु सिख किसानों की समझदारी से षडयंत्रकारी लोग दंगा भड़काने में कामयाब नहीं हुए।

उक्त नरसंहार मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा को जेल हुई थी। पांच राज्यों के चुनाव को देखते हुए सरकार ने ब्राह्मण वोटों को प्रभावित करने के लिए कानून को ताक पर रखकर आशीष मिश्रा को जमानत दिलाकर यह दिखा दिया कि भाजपा सरकार ब्राह्मण हितों के लिए किसी भी हद तक जा सकती है, यहां तक कि कानून की धज्जियां भी उड़ा सकती है। जब काम निकाल लिया तो चुनाव बाद उस जमानत को सुप्रीमकोर्ट से खारिज करवा दिया। ताकि यह जमानत देने का गैरकानूनी फैसला अन्य मामलों के लिए नजीर न बन जाए। सांप भी मर गया लाठी भी नहीं टूटी।

इसके पहले सरकार ने भर्तियों को रोककर, खाली पड़ी लाखों सरकारी सीटों या पदों को रद्द करके, कई बार भर्ती परीक्षाओं को रद्द करके सभी जातियों के बेरोजगारों को जो नाराज कर दिया था। उनको भी अलग-अलग कपटपूर्ण तरीके से गुमराह करके खुश किया सवर्णों को खुश करने के लिये 69 हजार शिक्षकों की भर्ती मामले में सरकार ने आरक्षण का नियम ही नहीं लागू किया। ऐसा करके दिखा दिया कि सरकार सवर्णों को नौकरी दिलाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। और अधिकांश सवर्णों ने खुश होकर झूमकर भाजपा को वोट दिया। जाति के नशे में धुत होकर उन्होंने हिसाब नहीं लगाया कि 20 करोड़ से अधिक रोजगार खत्म करने वाली सरकार ने उनका कितना बड़ा अहित किया है। उसके मुकाबले शिक्षक भर्ती की मुट्ठीभर नौकरियां दाल में नमक के बराबर भी नहीं हैं। इन लोगों ने हिसाब लगाएं बगैर मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, निजीकरण… आदि मुद्दों को दफ्न करने में सरकार का साथ दिया। रही बात दलितों पिछड़ों की तो उनमें जो निहायत गरीब हैं उनको 5 किलो राशन दिया और साथ ही साथ उनमें हिन्दुत्व का नशा चढ़ा दिया। इस तरह चुनाव में उनका विश्वास जीत ही लिया तो अब फिर मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देकर बड़े-बड़े पूंजीपतियों का मुनाफा बढ़ा रहे हैं। वास्तव में वे उन्हीं बड़े पूंजीपतियों के लिए ही काम करते हैं। बाकी अगड़ा हितैषी, पिछड़ा हितैषी या दलित हितैषी बनना तो महज ढोंग है। मगर इस रहस्य को जानने के लिए हम सबको सवर्ण, दलित, पिछड़ा जैसी घिनौनी चेतना से ऊपर उठना होगा। वरना कुएं के मेंढक बने रह जायेंगे। वरना लखीमपुर जैसे नरसंहार होते रहेंगे।

उपरोक्त नरसंहार मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि- केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने अगर किसानों को खदेड़ने की धमकी देने वाला बयान नहीं दिया होता तो लखीमपुर में हिंसक घटना नहीं होती।

हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि, ”ऊंचे पदों पर बैठे राजनीतिक व्यक्तियों को समाज में इसके नतीजों को देखते हुए एक सभ्य भाषा अपनाते हुए सार्वजनिक बयान देना चाहिए। उन्हें गैर जिम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए क्योंकि उन्हें अपनी स्थिति और उच्च पद की गरिमा के अनुरूप आचरण करना आवश्यक है।” और यह भी कहा कि जब क्षेत्र में धारा 144 लागू थी तो कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन क्यों किया गया?केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कार्यक्रम में क्यों शामिल हुए?

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि यह विश्वास नहीं होता कि केंद्रीय मंत्री और राज्य के उप मुख्यमंत्री को क्षेत्र में धारा 144 लागू होने की कोई जानकारी नहीं थी। अदालत की टिप्पणी से अब तो यह बात और भी साफ हो गयी, कि लखीमपुर नरसंहार का मुख्य साजिशकर्ता कौन है? अब आप बताइए, क्या ऐसे साजिशकर्ताओं को मंत्री बनने का हक है?

मगर यह आवाज कौन उठाएगा? जाहिर है मजदूर और किसान उठाएगा, मगर जो जातियों की चेतना पर खड़ा है उसके वश का नही है। जिन किसानों की हत्या की गयी वे सिर्फ अपने लिए नहीं लड़ रहे थे, वे तो पूरे देश के किसानों की जमीन बचाने के लिए, सबके बच्चों का भविष्य बनाने के लिए लड़ रहे थे। मगर जाति या धर्म की चेतना पर खड़ा मजदूर, किसान, बुनकर, दस्तकार, तो अपने बच्चों की गर्दन पर पैर रखकर शोषक वर्गों के साथ खड़ा है। ऐसी गिरी हुई मानसिकता के लोगों से उम्मीद नहीं की जा सकती। सिर्फ जनता ही इस फासीवादी महाजाल से खुद को निकाल सकती है।

रजनीश भारती
जनवादी किसान सभा

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