देश की सबसे बड़ी अदालत भी यदि पक्षपाती बनकर या सरकार के दबाव में ग़लत फैसले देने लगे तो आम नागरिक न्याय पाने के कहाँ जाएं? क्योंकि यहाँ तक पहुंचने के लिए ही उसे घर और जमीन तक भी गिरवी रखनी पड जाती है, थका और हताश तथा पैसे से तंगहाल व्यक्ति आखिर कितना जोश और कब तक रखेगा?
सच तो यह भी है कि कोलेजियम सिस्टम के द्वारा पक्षपात करके बनाये गये न्यायाधीशो से न्याय की उम्मीद करना चाहिए या सत्तासीन आलाकमानों की चापलूसी करने की!
क्योंकि जरुरी तो नहीं, सर्वोच्च न्यायालय के जज ही सर्वश्रेष्ठ और निष्पक्ष न्याय करें?
परन्तु सुप्रीम कोर्ट और उसके द्वारा दिये गये निर्णयो पर ऊंगली उठाना देशद्रोही होने जैसा ही अभिशाप बन चुका है! लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज भी तो इंसान ही है ना? भौतिक सुख सुविधाओ के लिए धन कमाने की लालसा उनकी भी जरूर होगी?
(ध्यान रहे यहाँ भ्रष्ट अथवा भ्रष्टाचार शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है!)
आपको याद होगा कि एक महान सिनेस्टार ने एक काले हिरण के का शिकार करके पकाकर खा लिया था, सबूत भी मिले और बवाल भी काफि हुआ! कुछ वर्षों बाद उसी सिनेस्टार की कार ने रात को फुटपाथ पर सोए हुए दस बारह बेकरी मजदूरो पर चढ़ाकर उन सबको इस जद्दोजहद भरी जिंदगी से मुक्ति दिलाकर मोक्ष की प्राप्ति करा दी। इस पर भी बहुत बवाल हुआ।
टीवी चैनलों और अखबारों ने जनता की नींद खराब करके रख दी, इसलिए केस भी दर्ज हुआ और सुनवाई भी लगभग पंद्रह सालों तक चली! इतने समय में जनता पुरानी घटनाओं को भूल ही जाती है क्योंकि उसके बाद भी तो ऐसी बहुत सी घटनाएं घट जाती है! वैसे भी मंहगाई और बेरोजगारी से दबे आम आदमी का दिमाग़ कितना कुछ याद रख सकेगा?
हो भी गया फैसला, ना ही कोई हिरन मारा गया और ना ही रात के अंधेरे में दिनभर की थकान मिटाने को सोते मजदूर मरे!
केवल उदाहरण हेतु इस घटना का वर्णन किया गया है क्योंकि यह कोई पहली और आखिरी न्याय नहीं है,ऐसे न्याय अक्सर हुआ करते हैं जिन्हें गरीब और बेबस लाचार व्यक्ति न्याय समझकर सजा काटते रहते हैं और धनपति व रसूखदार लोग कानून को अंगूठा दिखाकर उसका मजाक उड़ाते रहते हैं!
कोर्ट और कचहरी तथा वकील और न्याय केवल तभी तक अच्छे लगते हैं जब तक कि आम आदमी इनके चक्रव्यूह में न फंसा हो। क्योंकि देश का कानून और सजा केवल आम आदमियों के लिए तक ही सीमित है जबकि अमीर और रसूखदार लोगो के लिए कोई मायने नहीं रखते हैं! वो कानून और कानून का अनुपालन करने वालो को अपनी ऊंगलियो पर नचाने का हुनर जानते हैं। क्योंकि पैसे में बहुत ताकत है, बिकने को हर आदमी तैयार है बस कीमत उसकी औकात से लगायी जाए तभी!
(साभार)