हमें चिंतन करना चाहिए कि क्या धार्मिक सन्देश देने से हमें समास्याओं का निराकरण संभव है?

दैनिक समाचार

द्वारा : इं. एस. के. वर्मा

क्या धार्मिक संदेश प्रसारित करने मात्र से ही देश या समाज की वास्तविक समस्याओं जैसे बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती मंहगाई आदि का निराकरण किया जा सकता है?
यदि नहीं तो देश को आडंबरों और पाखंडों तथा अन्धविश्वासों व कुरीतियों तथा कुप्रथाओं से मुक्त कराने का प्रयास करना भी शिक्षित होने को सार्थक करता है, न कि धर्म के आधार पर इंसान- इंसान के बीच खाई को और भी गहरा करना!
हम सभी बखूबी जानते हैं कि कोई भी पूजा, इबादत और प्रार्थना दिखावे के लिए नहीं, बल्कि खुद के मन की शांति या फिर बुरे कर्मों से बचाव के लिए या ऊपरवाले के भय से ही की जाती हैं। कौन किसको मानता है या नहीं मानता है, यह उसका बिल्कुल निजी अधिकार है। जैसे हम सब अपने घर में क्या खाते हैं, क्या नहीं, हर किसी को यह दिखाने या बताने की जरूरत महसूस नहीं करते हैं।
परन्तु जिस खास इबादत, पूजा और प्रार्थना जैसी विशेष निजी अभिव्यक्ति को घर की चारदीवारियों तक ही सीमित रखना चाहिए, उसका दिखावा करने का उद्देश्य केवल इतना मात्र हो सकता है कि मेरी नाक कटी है, आपको भी काटने के लिए उत्साहित कर रहे हैं।
समस्या तभी होती है, जब लोग इन सबका दिखावा करके दूसरों पर अपनी मान्यताओं को थोपना चाहते हैं। वहीं विरोधाभास उभर कर सामने आता है। देश धर्मनिरपेक्ष और पंथनिरपेक्ष होने का तात्पर्य यह भी नहीं है कि आप अपनी सोच दूसरों पर थोपने का प्रयास करें! बल्कि व्यक्ति अपने-२ दायरे में रहकर जिस भी देवी देवता, ईश्वर, अल्लाह और भगवान की इबादत, प्रार्थना और पूजा करते रहें, परन्तु इसे दिखावा करने की जरूरत नहीं है।
क्योंकि दिखावा करने पर, तेरी शर्ट मेरी शर्ट से सफेद क्यों? रिन की सफेदी वाले विज्ञापन जैसा असर करती है और आपस में वैमनस्यता तथा साम्प्रदायिकता जैसे शब्दों को बढ़ावा मिलता है।
इसलिए अपनी पूजा और इबादत केवल घर और पूजाघरों तक ही सीमित रखें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *