कहावत है कि नया मुल्ला जोर से बांग देता है, यह बात 17वीं सदी के अंतिम और 18वीं शताब्दी की शुरुआत में इस्राइल से आकर कोंकण में बस गए यहूदियों से हिंदू बने चितपावन ब्राह्मणों के एक वर्ग पर शत प्रतिशत सटीक बैठती है।
यरूशलेम को लेकर ईसाइयों तथा मुसलमानों के विरुद्ध लड़ते रहने से कमजोर पड़ गये कुछ यहूदियों ने वहां से भागकर भारत के पश्चिमी समुद्री तट पर स्थित कोंकण क्षेत्र में शरण ली। कुछ ही वर्ष बाद ये हिंदुओं में निम्नकोटि के समझे जाने वाले चितपावन ब्राह्मण बन गये। फिर इन्हीं में से कुछ लोग महाराष्ट्र के भीतरी इलाकों सतारा, पूना आदि में आ बसे। यह कहानी बड़ी लंबी है।
अब जुम्मा-जुम्मा चार रोज़ पहले हिंदू बने इन चितपावनों ने मुसलमानों से अपने पुश्तैनी वैर का हिसाब चुकाने के लिए सर्वसमावेशी वैदिक सनातन धर्म को अतिवादी ‘हिंदुत्व’ के नये कलेवर में गढ़ना शुरू कर दिया।
चूंकि सभी अल्पसंख्यक आपस में जल्दी ही संगठित हो जाते हैं तो भारत में हिंदू चितपावन ब्राह्मण बने यहूदियों का एक समूह कांग्रेस में गांधी जी के बढ़ते प्रभाव और उनके द्वारा आजादी के आंदोलन में देश के अल्पसंख्यक, आदिवासी, दलित, मजदूर, किसान, छात्र, व्यापारी, महिला आदि सभी वर्गों तथा लोगों को बढ़चढ़कर हिस्सा लेने के लिए कांग्रेस में शामिल होने का आह्वान करने से खुद को उपेक्षित महसूस करने लगा। तो उसने हिटलर और मुसोलिनी से प्रेरणा लेते हुए उनकी ही कार्यप्रणाली पर मुसलमानों के विरुद्ध बहुसंख्यक हिंदुओं को संगठित करने के लिए सन 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन कर लिया।
रासस के ये कर्ताधर्ता इतनी घटिया सोच वाले थे कि इन्होंने आंदोलनरत देश की मुख्यधारा के विरुद्ध जाकर अंग्रेजों का साथ दिया और आजादी का विरोध करने लगे। आंदोलनकारियों के विरुद्ध गवाही दीं। युवाओं को भड़का कर आंदोलन छोड़कर रासस में शामिल होने का आह्वान करने लगे। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज की भर्ती में रुकावट पैदा कर नौजवानों को ब्रिटिश सेना में भर्ती करने के लिए शिविर लगाये।
यहूदी डीएनए के प्रभाव से इन चितपावनों का वर्चस्ववादी रवैया ऐसा कि पिछले 97 सालों में एकमात्र रज्जू भैया (कार्यकाल 7 वर्ष) को छोड़कर शेष 90 वर्ष तक रासस का सरसंघचालक चितपावन ब्राह्मण ही बनाया जाता रहा। इनमें से एक कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन (के. सुदर्शन) रायपुर (छत्तीसगढ़) में जन्मे एक कन्नड़ ब्राह्मण थे। यानी इनमें यहूदी डीएनए के अनुसार वर्चस्ववाद चितपावन ब्राह्मण बनने के बाद मोहनराव भागवत तक प्रभावी है। जो इनके दूसरों के प्रति अविश्वास, असहिष्णुता और संकीर्णता से भरे चिरकालीन स्वभाव को प्रमाणित करता है।
यही नहीं हिंदुओं के एक पुराने संगठन—हिंदू महासभा पर भी विनायक दामोदर सावरकर, लक्ष्मण बलवन्त भोपतकर, बालाराव सावरकर जैसे चितपावनों का ही वर्चस्व बना रहा।
भारतीय वैदिक परंपरा और संस्कृति के विरुद्ध इनकी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की संकीर्ण अवधारणा इस्राइल तथा हिटलर के जर्मनी से आयातित विचारधारा पर आधारित है। सनातन धर्म का मूलाधार आध्यात्मिक ज्ञान है जो बिना किसी भेदभाव के हर मनुष्य की अन्तश्चेतना को वैश्विक विराट परमचैतन्य से सम्पृक्त करने पर जोर देता है। मनुष्य ही नहीं बल्कि समस्त जीवों को अपने ही समान समझने की जरूरत बताता है।
जबकि यह संगठन समस्त मानवीय मूल्यों को ठोकर मारकर सिर्फ और सिर्फ हिंदुत्व की बात करता है। मुसलमान, ईसाई, बौद्ध जैन, आदिवासी, दलित, महिला आदि सबके प्रति भेदभाव, घृणा और वैमनस्य फैलाता है। सब पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता है।
रासस का लक्ष्य अपने चितपावनिया सरसंघचालक को 1979 के ईरानी शिया नेता आयतुल्ला खोमेनी मुसावी जैसा हिंदुओं की धार्मिक आस्था और देश की राजसत्ता का एकछत्र अधिष्ठाता देवता बनाना है। अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसने ‘असत्यमेव जयते’ को अपना जीवनदर्शन बना लिया है।
वसुधैव कुटुम्बकम् और आत्मवत् सर्व भूतेषु का उदार मानवतावादी दृष्टिकोण देने वाले भारत को वर्चस्ववादियों का यह संगठन आसुरी प्रवृत्ति वाले जैविक रोबोट्स की बस्ती में तब्दील करने में जुटा हुआ है। जिसका रिमोट कंट्रोल इनके अपने हाथों में हो।
चिंता की बात यह है कि रासस द्वारा फैलाए गए झूठ-कपट और छल-प्रपंच के मायाजाल की चपेट में आकर हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग अपनी बुद्धि व विवेक पर से भरोसा खो बैठा है। सत्य और ज्ञान के प्रति उसकी सहज जिज्ञासा को आइटी सेल के प्रोपेगेंडा से आच्छादित करके सैचुरेट कर दिया गया है। जिसके फलस्वरूप देश आज अभूतपूर्व संकट में फंस गया है।
इसलिए यदि अब भी हिंदू समाज जागकर रासस के चंगुल से मुक्त हो जाये तो आने वाली भयानक स्थिति से बचा जा सकता है। ■