उत्तर प्रदेश सरकार ने 14 मई 2022 को वकीलों को अराजक, उपद्रवी, कानून विरोधी बताकर उनके सरकार द्वारा खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का आदेश पारित कर दिया। अचानक और एकदम निकाले गए इस आदेश का क्या औचित्य है? यह अभी तक समझ में नहीं आया है। क्या सरकार न्यायपालिका को अपने कब्जे में लेना चाहती है? वकीलों को डराना धमकाना चाहती है, वकील अपने कानूनी काम को तवज्जो ना दें, यह चाहती है? या वकील सरकार के मातहत, मुखोटे और मोहरे बन जाएं, यह चाहती है?
आखिर सरकार ने अधिवक्ता अधिनियम 1961 को बाईपास करके वकीलों पर यह हमला क्यों किया? कोर्ट अवमानना की कार्यवाही को बाईपास करके, यह हमला क्यों किया गया? सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के अनुसार वकील ऑफिसर ऑफ द कोर्ट हैं, कोर्ट के अधिकारी हैं। उनके बिना जनता को सस्ता, सुलभ, सच्चा और वास्तविक न्याय देने की, संविधान की अवधारणा पूरी नहीं हो सकती। सरकार कोर्ट के ऑफिसर को कानून विरोधी, अराजक और कानूनतोडक बता रही है। यह जुडिशरी के एक स्तंभ का खुलेआम अपमान हैं, अवमानना है, और वकीलों के प्रति असभ्य, असंवैधानिक और बर्बर भाषा का प्रयोग है। सरकार अपने इस वकील विरोधी आदेश से कचहरी प्रांगण को मैदान-ए-जंग बना देना चाहती है।
सरकार वकीलों की स्वतंत्र कार्यप्रणाली से खौफजदा हो गई है, डर गई है, क्योंकि वकील सरकार के बंधवा नहीं हैं, उसके मातहत नहीं हैं। उनका स्वतंत्र अस्तित्व हैं। अधिवक्तागण सरकार की मनमानी इच्छाओं के अनुसार काम करने को बाध्य नहीं हैं। वकील सरकार की जन विरोधी, देश विरोधी और समाज विरोधी नीतियों का विरोध करते रहे हैं, उसके जनविरोधी और गैरकानूनी कामों को न्यायालयों में चुनौती दे रहे हैं, जिनमें सरकार को मुंह की खानी पड़ रही है और सरकारी अपनी जन विरोधी नीतियों को आगे बढ़ाने में कठिनाई महसूस कर रही है। वह वकीलों को अपनी राह का रोड़ा मान कर उनके खिलाफ मनमाने, अपमानजनक खौफ पैदा करने वाले तानाशाहीपूर्ण शब्दों और व्यवहार पर उतर आई है।
पिछले दिनों वकीलों ने सर्वोच्च न्यायालय में किसानों का जनपक्षीय रुप पेश कर तीनों किसान विरोधी कानूनों पर स्थगन कराया, जो बाद में सरकार को वापस लेने पड़े। इसी वजह से भी वकील बहुत समय से सरकार की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। अभी फिलहाल वकीलों की पहल पर और उनकी समय पर क्रियाशीलता से योगी सरकार के बुलडोजर प्रकरण में, सरकार को मुंह की खानी पड़ी है और सरकार को अपने कानून विरोधी, संविधान विरोधी, जन विरोधी और कानून के शासन विरोधी कदम वापस खींचने को मजबूर होना पड़ा है। इसलिए सरकार वकीलों को सबक सिखाने के लिए, उन्हें अपशब्द कहकर उनके खिलाफ मनमानी कार्रवाई करने पर उतर आई है।
सरकार की इस वकील विरोधी हरकत का सारे यूपी के वकील विरोध कर रहे हैं अदालतों में कार्य का बहिष्कार कर, हड़ताल कर रहे हैं और इसी को बल प्रदान करने को, उत्तर प्रदेश बार काउंसिल प्रदेश ने बंद का आह्वान किया है। अधिकांश वकील सरकार द्वारा लाई गई चार श्रम संहिताओं का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि ये चारों कानून एकदम मजदूर विरोधी हैं और उन्हें आधुनिक भारत के गुलाम बना देना चाहते हैं। क्योंकि ये श्रम संहिताऐं देशी विदेशी मालिकान और सेवायोजकों को फायदा पहुंचाने के लिए लाए गए हैं उनका खजाना और तिजोरिया भरने के लिए और मजदूरों का अनाप-शनाप शोषण और उनके साथ अन्याय करने के लिए लाए गए हैं, इसलिए वकील मजदूरों के साथ मिलकर इनका विरोध कर रहे हैं।
वकील समुदाय इस सबको भलिभांति समझ रहा है और इन श्रम कानूनों का अपने तरीके से पुरजोर विरोध कर रहा है और इनसे होने वाले नुकसान से जनता को, किसानों को और मजदूरों को उनके बेटे बेटियों को, अवगत करा रहा है। सरकार वकीलों की इस मुहिम को भी पसंद नहीं कर रही है और वकीलों से रंजिश रख रही है। इन सब कारणों से सरकार वकीलों पर मनमाना, गैरजिम्मेदाराना और तानाशाहीपूर्ण हमला कर रही है।
वकीलों द्वारा किए गए गलत व्यवहार से निपटने के लिए, पहले से ही अधिवक्ता कानून और उत्तर प्रदेश बार काउंसिल मौजूद हैं केवल और केवल वे दोनों ही वकीलों के द्वारा किए गए मिसकंडक्ट के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं, सरकार इसमें सीधे-सीधे कोई कार्यवाही नहीं कर सकती। सरकार को वकीलों के खिलाफ कार्यवाही करने का सीधे-सीधे कोई अधिकार नहीं है।
कई वकीलों की पहल, स्वतंत्र सोच और पेशे के प्रति ईमानदारी ने, सरकार को अपने जनविरोधी, किसान विरोधी और मजदूर विरोधी कानूनों, नीतियों और कारनामों में कामयाब नहीं होने दिया है और उसकी पोल खोल कर सरकार को, जनता और दुनिया के सामने नंगा कर दिया है। ज्ञानवापी मामले में वकील कोर्ट कमीशन ने सरकार के सांप्रदायिक मंसूबों पर पानी फेर दिया है, इसलिए सरकार वकीलों को डराने की हरकत पर उतर आई है।
सरकार का यह कदम एकदम वकील विरोधी, कानून विरोधी, रंजिशपूर्ण, मनमाना, तानाशाही पूर्ण और स्थापित कानून विरोधी है, जिसे किसी भी दशा में स्वीकार नहीं किया जा सकता और वकील अपनी गरिमा, सम्मान, इज्जत और पेशे को बचाने के लिए संघर्ष के मैदान में कूद पड़े हैं और अब सरकार के इस आदेश को वापस करा कर ही वापस होंगे और पीछे हटेंगे, क्योंकि यह उनकी गरिमा, सम्मान, स्वतंत्रता और पेशे की रक्षा का सवाल है। वकील सरकार के बंधवा, मोहरे, गुलाम, कठपुतली या मातहत नहीं हैं।