लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतनलाल निशाने पर क्यों? अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमलावर दक्षिणपंथ!

दैनिक समाचार

इस समय हिन्दुत्ववादियों के निशाने पर देश के कुछ विख्यात दलित बुद्धिजीवी हैं. ऐसा क्यों? आखिर वे कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं. किसी सत्ताधारी, किसी हिन्दुत्ववादी या किसी मनुवादी संगठन को चुनाव में चुनौती नहीं दे रहे हैं फिर उन्हें क्यों निशाने पर लिया जा रहा है? सिर्फ उनके लिखने-पढ़ने और विचार प्रकट करने पर ऐसे हमले क्यों हो रहे हैं?
ताजा प्रसंग है: प्रोफेसर रतनलाल का. दिल्ली विश्वविद्यालय के सुप्रसिद्ध हिन्दू कालेज में इतिहास के योग्य शिक्षक हैं. कई किताबें लिखी हैं, अम्बेडकरनामा नामक एक चर्चित यूट्यूब चैनल के जरिये अपने विचारों को प्रकट करते रहते हैं.
अगर किसी व्यक्ति या संस्था को उनके विचारों से असहमति है, नाराजगी है या मतभेद है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं. ऐसे लोगों या संस्थाओं को अपनी असहमति या मतभेद प्रकट करने का पूरा अधिकार है. पर किसी इतिहासकार के विचारों से असहमत होने के चलते उसके खिलाफ FIR किया या कराया जाय; यह हमारे समाज(वर्चस्व की शक्तियों) और सत्ता के लगातार असहिष्णु होते जाने का उदाहरण है. यह बताता है कि हमारा कथित लोकतंत्र वाकई ‘कथित’ ही है. इन्हीं कारणों से डेमोक्रेसी और मीडिया-फ्रीडम के वैश्विक सूचकांक(Global Index ) में भारत का स्थान लगातार नीचे नहीं जा रहा है!
दलित समाज से आये प्रो रतनलाल या प्रो रविकांत जैसे विद्वान शिक्षकों से आज जिन लोगों, समूहों या संगठनों की ‘धार्मिक भावना’ आहत हो रही है, उनकी यह भावना मनुस्मृति और उस जैसे प्राचीन और मध्यकालीन ग्रंथों के उन श्लोकों और सूत्रों से कभी क्यों आहत नहीं हुई, जो समाज के बडे हिस्से के विरूद्ध बेहद अमानवीय, आपत्तिजनक और अपमानजनक मंतव्य प्रकट करते हैं?
असंख्य मनुवादी तत्व आये दिन आज भी दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के विरूद्ध हर दिन निहायत अमानवीय और अपमानजनक बातें खुलेआम करते रहते हैं. रविकांत और रतनलाल पर हमला कर रहे लोगों में कितनों की भावना तब आहत होती है?
दलित समाज से आए दोनो प्रोफेसरों ने तो ‘ढोल, गंवार शूद्र पशु नारी को ताड़ना का अधिकारी’ बताने जैसी कोई बात भी नहीं कही है! फिर कुछ लोगों की ‘धार्मिक भावना’ क्यों आहत हो गई?
इन दोनो प्रोफेसरों को वर्चस्ववादी शक्तियों, समूहों और लोगों द्वारा उत्पीड़ित किये जाने के लोकतंत्र-विरोधी आचरण का हमें विरोध करना चाहिए।

(साभार)

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