देश के निर्माण और विकास में धर्मांध और सांप्रदायिक ताकतों का कोई रोल नहीं रहा

दैनिक समाचार

देश के निर्माण और विकास में धर्मांध और सांप्रदायिक ताकतों का कोई रोल नहीं रहा


    ,,,,,,,,मुनेश त्यागी 

  हमें बचपन में बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानियों गांधी, नेहरू, सुभाष, भगत सिंह, बिस्मिल, और भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के सारे नायक और नायिकाओं वीर और वीरांगनाओं आदि की बहुत सारी कहानियां सुनाई गई थीं और हम इन कहानियों को सुनकर और उनके विचारों और कुर्बानियों को जानकर, बहुत अच्छा महसूस करते थे। हमने गौतम बुद्ध की कहानियां और विचार भी जानें उनसे हमें बड़ी खुशी हुई और गौतम बुध का आष्टम मार्ग जानकर तो आज भी दिलो-दिमाग खुशी से भर जाते हैं। महाभारत रामायण की अच्छी अच्छी कहानियां भी पढी।
 मगर जब हम बड़े हुए तो हमें हमारे देश की सांप्रदायिक, धर्मांध और अंधविश्वासी लोगों और संगठनों के बारे में भी सुनने को मिला। इन सांप्रदायिक ताकतों ने सबसे पहले महात्मा बुद्ध के विचारों को खंडित किया, बौद्ध स्तूप तोड़े और हमारे समाज में मनुस्मृति के द्वारा मनुवाद कायम किया। इस मनुवाद में केवल ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों के वर्ण को ही पढ़ने लिखने का, धनधान्य रखने और सुखी रहने का अधिकार था। मगर इसमें चौथे  वर्ण शूद्रों को, एससी एसटी ओबीसी को, पढ़ने लिखने, धन रखने, शस्त्र रखने और रोजगार करने का कोई अधिकार नहीं था। बस इनका काम था उपरोक्त तीनों वर्णों की सेवा करना, उनकी गुलामी करना, उनकी दासता करना। इन्हें हमेशा शिक्षा रोजगार और धनधान्य से बिल्कुल महरूम रखा गया। इन मनुवादी ताकतों ने शुद्र वर्णों के साथ मानव इतिहास में सबसे ज्यादा अन्याय शोषण और जुल्म ज्यादतियां की हैं।
 ये लोग करोड़ों की संख्या में होते हुए भी तमाम बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखे गए थे। इनके साथ हजारों सालों तक यही जुल्म ज्यादती, अनाचार, अत्याचार और अन्याय होता रहा। इसके लिए भी यही पुजारी वर्ग, धर्मांध और अंधविश्वासी ताकतें और समुदाय शामिल था और यह सब इन करोड़ों करोड़ों लोगों के खिलाफ हजारों सालों तक अबाध गति से बिना किसी रोक टोक के जारी रहा।
उसके बाद भारत की आजादी के संघर्ष में इन धर्मांध और सांप्रदायिक तत्वों का कभी कोई रोल नहीं रहा। 1857 के भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी विरासत थी,,, हिंदू मुस्लिम एकता, जिसे देखकर लुटेरे अंग्रेज हिंदुस्तानियों से डर गए थे, भयभीत हो गए थे और इसी हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने 1906 और 1907 में हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की स्थापना की। 1911 के बाद सावरकर जेल की शर्तों से डर गया और उसने 1923 में हिंदुत्व नाम का एक निबंध लिखा जिसमें उसने प्रतिपादित किया कि "यहां दो राष्ट्र हैं, एक हिंदू और एक मुसलमान, यह दोनों एक साथ नहीं रह सकते।"
  फिर अचंभे की बात है कि वह लगातार अपनी सारी जिंदगी इसी हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने में लगा रहा और हिंदू राष्ट्र के निर्माण में लगा रहा और अंग्रेजों से इस कारनामे के लिए पेंशन पाता रहा। इसके अलावा उसने अपनी जिंदगी में कोई काम नहीं किया, बस सिर्फ हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने के काम में लगा रहा। हालांकि बाद में उसने महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रची, उस उस पर मुकदमा भी चला जिसमें वह एक साजिश के तहत छुड़वा लिया गया। मगर यह एक सवाल बना रहा, जिस पर जीवन लाल कपूर कमीशन ने 1969 में स्थापित किया कि महात्मा गांधी की रचना की हत्या की साजिश वी डी सावरकर ने ही रची थी। इस बारे में सरदार पटेल की भी यही मान्यता थी।
उसके बाद 1925 में, सावरकर के सहयोग से हेडगेवार ने आर एस एस की स्थापना की और आरएसएस तभी से हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ने की अभियान में लगी रही और आज भी यह वही काम कर रही है। 1940 में जिन्ना के नेतृत्व में, मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की जिसके परिणाम स्वरूप अंग्रेजों ने भारत को तोड़कर उसके तीन अंग कर दिए और इस प्रकार हम देखते हैं कि हिंदू महासभा, आर एस एस और मुस्लिम लीग, तीनों सांप्रदायिक और धर्मांधता ताकतें, भारत की आजादी के आंदोलन से अलग और बाहर रहीं।
 उनका हमारी आजादी के आंदोलन में कोई रोल नहीं है। पहले यह लुटेरे अंग्रेजों के साथ रहे, उनके साम्राज्यवाद का साथ देते रहे और  अब शासन में आने के बाद से लेकर आज तक सामंतवादी, लुटेरों और साम्राज्यवादियों की, पैसे वालों की, धन्ना सेठों की जेबें भर रहे हैं, उनकी तिजोरियां भर रहे हैं, उनके मुनाफे में रोजाना वृद्धि कर रहे हैं। कल ये लोग अंग्रेजों का साथ दे रहे थे और आज दुनिया को लूटने वाले अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीपति वर्ग का साथ दे रहे हैं और भारत में सारी नीतियां सारी आर्थिक नीतियां उन्हीं के फूल निकलने के लिए बना रही है और उन्हीं को लागू कर रही हैं।
मानवता के इतिहास में दया, धर्म, सहयोग भाईचारे में इनका कोई विश्वास नहीं था। आजादी मिलने के बाद और आधुनिकतम वैचारिक मूल्यों जैसे समता, समानता, भाईचारा, गणतंत्र, जनतंत्र  धर्मनिरपेक्षता, आजादी, क्रांति और समाजवाद में इनका कोई यकीन नहीं है। हां जनतंत्र के नाम पर चुनकर आती इन जनविरोधी ताकतों ने जनता पर राज करना शुरु कर दिया है। जनता को, किसानों को, मजदूरों को, छात्रों  नौजवानों को रोजी रोटी शिक्षा और रोजगार देने में इनका कोई रोल नहीं रहा है। उन्होंने मजदूरों की हिफाजत के लिए कोई कानून नहीं बनाया, उनके लिए कोई आंदोलन नहीं किया, कोई संघर्ष नहीं किया। इन्होंने किसानों की कोई रक्षा नहीं की, उनको कभी भी उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं दिया। 
 आजादी के बाद ये ताकतें लगातार हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ने में लगी रही, जनता की एकता को खंडित करने में लगी रहीं। इन्होंने कभी भी जनहित में  कोई काम नहीं किया। इनका काम सिर्फ और सिर्फ समाज में घृणा पैदा करना और नफरत की राजनीति करना, हिंदू मुसलमान के नाम पर जनता की एकता तोड़ना और उसके संगठित आंदोलनों को में तोड़फोड़ करना, विभाजन पैदा करना, इनका मुख्य काम रहा है।
हां  इन ताकतों ने अपने जन्म काल से ही हमारे देश में अंधविश्वास, धर्मांधता और पाखंडो को जन्म दिया है, इनको पाला पोसा है, जनता को मूर्ख बनाया है, गुमराह किया है, आपस में लड़ने के लिए उकसाया है और आज भी ये वही काम कर रही हैं। कल ये ताकतें रोना रोती थी कि हम कभी सत्ता में नहीं नहीं रहे, हम क्या कर सकते थे? मगर अब तो ये पिछले 5+8=13 सालों से भारत में राज कर रही हैं और आज भी सत्तारूढ़ हैं।
 अब इनके कारनामे देखिए। इन्होंने भारत के निर्माण और विकास के लिए क्या किया है? जब हम इनके कार्यकाल पर नजर दौड़ते हैं तो इन्होंने भारत के किसानों, मजदूरों, छात्रों, नौजवानों, महिलाओं के दुख दर्द दूर करने के लिए, उनकी समस्याएं दुख दूर करने के लिए कुछ नहीं किया है बल्कि उनकी समस्याओं को बढ़ाया है, बेरोजगारी को बढाया है, सस्ते और आधुनिक स्वास्थ्य को जनता की पहुंच से बाहर कर दिया है, शिक्षा के अवसर कम किए हैं, अमीरी और गरीबी का अंतर बढ़ाया है। उनकी एकता और अखंडता को तोड़ा है और जनता में हिंदू मुस्लिम के नाम पर नफरत का जहर फैलाया है। आज हमारे देश में दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब हैं और सबसे बड़े बड़े अमीर हैं, महंगाई के मारे जनता की कमर टूट रही है और देश में हिंदू मुस्लिम नफरत की आंधी बह रही है।
 इन्होंने जो आर्थिक नीतियां लागू की हैं, उनका किसानों मजदूरों की बेहतरी से कोई संबंध नहीं है। उनका केवल और केवल संबंध है देसी विदेशी अमीरों, पूंजीपतियों, पैसे वालों और लुटेरे साम्राज्यवादी ताकतों की संपत्तियां बढ़ाना, उनकी जेबें भरना और उनकी तिजोरियां को भरना। हां इसी के साथ उन्होंने एक काम और किया है और वह है इन्होंने कभी भी ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए काम नहीं किया। भारत में संवैधानिक आदर्शों और निर्देशों के बाद भी, उन्होंने वैज्ञानिक संस्कृति को प्रचारित प्रसारित नहीं किया और आज भी यह लगातार जनता को कुंठित कर रही है, उसको मानसिक रूप से गुलाम बनाए रखना चाहती हैं और समाज में धर्मांधता, अंधविश्वास और पाखंडों का साम्राज्य बनाए रखना चाहती हैं और पूरे देश की अधिकांश जनता को इसी में लगा रखा है।
 आज जनता अपनी रोजी-रोटी शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार के लिए इन नीतियों को नहीं देख रही है, पाप और पुण्य की बात कर रही है, नदी पर स्नान करने की बात कर रही है, धर्म कुंडों के चक्कर काट रही है और इसी में अपनी सदियों पुरानी समस्याओं का समाधान और अपनी मुक्ति ढूंढ रही है।
  इस प्रकार संक्षेप में हम देखते हैं कि भारत की हिंदू या मुस्लिम सांप्रदायिक ताकतों का इस देश के विकास में, देश के निर्माण में, जनता की बेहतरी में, कोई रोल नहीं रहा है और आगे भी कोई उम्मीद नहीं है क्योंकि इन्होंने संविधानिक मूल्यों और सिद्धांतों को ताक पर रख दिया है, वैज्ञानिक संस्कृति को बढ़ाने में उसका प्रचार प्रसार करने में लगभग रोक लगा दी है और अब ये पूरे देश में मनुवादी संविधान यानी मनुस्मृति को लागू करना चाहते हैं और इसी फिराक में लगे हुए हैं। 
इन समाज विरोधी, देश विरोधी और इंसान विरोधी ताकतों का, भारत के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विकास में कोई योगदान नहीं रहा है। ये ताकतें पूर्ण रूप से अमानवीय, बर्बर, असभ्य, निर्मम, क्रूर और मानव विरोधी हैं। समाज में भेदभाव फैलाना, नफरत फैलाना, अज्ञानता और अंधविश्वास फैलाना, समाज में विभाजन करना और देशी-विदेशी पूंजीपतियों, धन्ना सेठों, पैसे वालों और सरमायेदारों की सत्ता, शासन और पैसे में इजाफा करना ही इनका मुख्य काम है और ये इसी काम में लगी हुई हैं। मानव जन्म से लेकर आज तक देश और समाज के निर्माण और विकास से इनका दूर-दूर का नाता भी नहीं रहा है। सच में ये ताकतें कितनी अमानवीय और इंसानियत से परे हैं, इसका वर्णन करना भी संभव नहीं है।
    ,,,,,,,,मुनेश त्यागी 

  हमें बचपन में बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानियों गांधी, नेहरू, सुभाष, भगत सिंह, बिस्मिल, और भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के सारे नायक और नायिकाओं वीर और वीरांगनाओं आदि की बहुत सारी कहानियां सुनाई गई थीं और हम इन कहानियों को सुनकर और उनके विचारों और कुर्बानियों को जानकर, बहुत अच्छा महसूस करते थे। हमने गौतम बुद्ध की कहानियां और विचार भी जानें उनसे हमें बड़ी खुशी हुई और गौतम बुध का आष्टम मार्ग जानकर तो आज भी दिलो-दिमाग खुशी से भर जाते हैं। महाभारत रामायण की अच्छी अच्छी कहानियां भी पढी।
 मगर जब हम बड़े हुए तो हमें हमारे देश की सांप्रदायिक, धर्मांध और अंधविश्वासी लोगों और संगठनों के बारे में भी सुनने को मिला। इन सांप्रदायिक ताकतों ने सबसे पहले महात्मा बुद्ध के विचारों को खंडित किया, बौद्ध स्तूप तोड़े और हमारे समाज में मनुस्मृति के द्वारा मनुवाद कायम किया। इस मनुवाद में केवल ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों के वर्ण को ही पढ़ने लिखने का, धनधान्य रखने और सुखी रहने का अधिकार था। मगर इसमें चौथे  वर्ण शूद्रों को, एससी एसटी ओबीसी को, पढ़ने लिखने, धन रखने, शस्त्र रखने और रोजगार करने का कोई अधिकार नहीं था। बस इनका काम था उपरोक्त तीनों वर्णों की सेवा करना, उनकी गुलामी करना, उनकी दासता करना। इन्हें हमेशा शिक्षा रोजगार और धनधान्य से बिल्कुल महरूम रखा गया। इन मनुवादी ताकतों ने शुद्र वर्णों के साथ मानव इतिहास में सबसे ज्यादा अन्याय शोषण और जुल्म ज्यादतियां की हैं।
 ये लोग करोड़ों की संख्या में होते हुए भी तमाम बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखे गए थे। इनके साथ हजारों सालों तक यही जुल्म ज्यादती, अनाचार, अत्याचार और अन्याय होता रहा। इसके लिए भी यही पुजारी वर्ग, धर्मांध और अंधविश्वासी ताकतें और समुदाय शामिल था और यह सब इन करोड़ों करोड़ों लोगों के खिलाफ हजारों सालों तक अबाध गति से बिना किसी रोक टोक के जारी रहा।
उसके बाद भारत की आजादी के संघर्ष में इन धर्मांध और सांप्रदायिक तत्वों का कभी कोई रोल नहीं रहा। 1857 के भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी विरासत थी,,, हिंदू मुस्लिम एकता, जिसे देखकर लुटेरे अंग्रेज हिंदुस्तानियों से डर गए थे, भयभीत हो गए थे और इसी हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने 1906 और 1907 में हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की स्थापना की। 1911 के बाद सावरकर जेल की शर्तों से डर गया और उसने 1923 में हिंदुत्व नाम का एक निबंध लिखा जिसमें उसने प्रतिपादित किया कि "यहां दो राष्ट्र हैं, एक हिंदू और एक मुसलमान, यह दोनों एक साथ नहीं रह सकते।"
  फिर अचंभे की बात है कि वह लगातार अपनी सारी जिंदगी इसी हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने में लगा रहा और हिंदू राष्ट्र के निर्माण में लगा रहा और अंग्रेजों से इस कारनामे के लिए पेंशन पाता रहा। इसके अलावा उसने अपनी जिंदगी में कोई काम नहीं किया, बस सिर्फ हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने के काम में लगा रहा। हालांकि बाद में उसने महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रची, उस उस पर मुकदमा भी चला जिसमें वह एक साजिश के तहत छुड़वा लिया गया। मगर यह एक सवाल बना रहा, जिस पर जीवन लाल कपूर कमीशन ने 1969 में स्थापित किया कि महात्मा गांधी की रचना की हत्या की साजिश वी डी सावरकर ने ही रची थी। इस बारे में सरदार पटेल की भी यही मान्यता थी।
उसके बाद 1925 में, सावरकर के सहयोग से हेडगेवार ने आर एस एस की स्थापना की और आरएसएस तभी से हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ने की अभियान में लगी रही और आज भी यह वही काम कर रही है। 1940 में जिन्ना के नेतृत्व में, मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की जिसके परिणाम स्वरूप अंग्रेजों ने भारत को तोड़कर उसके तीन अंग कर दिए और इस प्रकार हम देखते हैं कि हिंदू महासभा, आर एस एस और मुस्लिम लीग, तीनों सांप्रदायिक और धर्मांधता ताकतें, भारत की आजादी के आंदोलन से अलग और बाहर रहीं।
 उनका हमारी आजादी के आंदोलन में कोई रोल नहीं है। पहले यह लुटेरे अंग्रेजों के साथ रहे, उनके साम्राज्यवाद का साथ देते रहे और  अब शासन में आने के बाद से लेकर आज तक सामंतवादी, लुटेरों और साम्राज्यवादियों की, पैसे वालों की, धन्ना सेठों की जेबें भर रहे हैं, उनकी तिजोरियां भर रहे हैं, उनके मुनाफे में रोजाना वृद्धि कर रहे हैं। कल ये लोग अंग्रेजों का साथ दे रहे थे और आज दुनिया को लूटने वाले अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीपति वर्ग का साथ दे रहे हैं और भारत में सारी नीतियां सारी आर्थिक नीतियां उन्हीं के फूल निकलने के लिए बना रही है और उन्हीं को लागू कर रही हैं।
मानवता के इतिहास में दया, धर्म, सहयोग भाईचारे में इनका कोई विश्वास नहीं था। आजादी मिलने के बाद और आधुनिकतम वैचारिक मूल्यों जैसे समता, समानता, भाईचारा, गणतंत्र, जनतंत्र  धर्मनिरपेक्षता, आजादी, क्रांति और समाजवाद में इनका कोई यकीन नहीं है। हां जनतंत्र के नाम पर चुनकर आती इन जनविरोधी ताकतों ने जनता पर राज करना शुरु कर दिया है। जनता को, किसानों को, मजदूरों को, छात्रों  नौजवानों को रोजी रोटी शिक्षा और रोजगार देने में इनका कोई रोल नहीं रहा है। उन्होंने मजदूरों की हिफाजत के लिए कोई कानून नहीं बनाया, उनके लिए कोई आंदोलन नहीं किया, कोई संघर्ष नहीं किया। इन्होंने किसानों की कोई रक्षा नहीं की, उनको कभी भी उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं दिया। 
 आजादी के बाद ये ताकतें लगातार हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ने में लगी रही, जनता की एकता को खंडित करने में लगी रहीं। इन्होंने कभी भी जनहित में  कोई काम नहीं किया। इनका काम सिर्फ और सिर्फ समाज में घृणा पैदा करना और नफरत की राजनीति करना, हिंदू मुसलमान के नाम पर जनता की एकता तोड़ना और उसके संगठित आंदोलनों को में तोड़फोड़ करना, विभाजन पैदा करना, इनका मुख्य काम रहा है।
हां  इन ताकतों ने अपने जन्म काल से ही हमारे देश में अंधविश्वास, धर्मांधता और पाखंडो को जन्म दिया है, इनको पाला पोसा है, जनता को मूर्ख बनाया है, गुमराह किया है, आपस में लड़ने के लिए उकसाया है और आज भी ये वही काम कर रही हैं। कल ये ताकतें रोना रोती थी कि हम कभी सत्ता में नहीं नहीं रहे, हम क्या कर सकते थे? मगर अब तो ये पिछले 5+8=13 सालों से भारत में राज कर रही हैं और आज भी सत्तारूढ़ हैं।
 अब इनके कारनामे देखिए। इन्होंने भारत के निर्माण और विकास के लिए क्या किया है? जब हम इनके कार्यकाल पर नजर दौड़ते हैं तो इन्होंने भारत के किसानों, मजदूरों, छात्रों, नौजवानों, महिलाओं के दुख दर्द दूर करने के लिए, उनकी समस्याएं दुख दूर करने के लिए कुछ नहीं किया है बल्कि उनकी समस्याओं को बढ़ाया है, बेरोजगारी को बढाया है, सस्ते और आधुनिक स्वास्थ्य को जनता की पहुंच से बाहर कर दिया है, शिक्षा के अवसर कम किए हैं, अमीरी और गरीबी का अंतर बढ़ाया है। उनकी एकता और अखंडता को तोड़ा है और जनता में हिंदू मुस्लिम के नाम पर नफरत का जहर फैलाया है। आज हमारे देश में दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब हैं और सबसे बड़े बड़े अमीर हैं, महंगाई के मारे जनता की कमर टूट रही है और देश में हिंदू मुस्लिम नफरत की आंधी बह रही है।
 इन्होंने जो आर्थिक नीतियां लागू की हैं, उनका किसानों मजदूरों की बेहतरी से कोई संबंध नहीं है। उनका केवल और केवल संबंध है देसी विदेशी अमीरों, पूंजीपतियों, पैसे वालों और लुटेरे साम्राज्यवादी ताकतों की संपत्तियां बढ़ाना, उनकी जेबें भरना और उनकी तिजोरियां को भरना। हां इसी के साथ उन्होंने एक काम और किया है और वह है इन्होंने कभी भी ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए काम नहीं किया। भारत में संवैधानिक आदर्शों और निर्देशों के बाद भी, उन्होंने वैज्ञानिक संस्कृति को प्रचारित प्रसारित नहीं किया और आज भी यह लगातार जनता को कुंठित कर रही है, उसको मानसिक रूप से गुलाम बनाए रखना चाहती हैं और समाज में धर्मांधता, अंधविश्वास और पाखंडों का साम्राज्य बनाए रखना चाहती हैं और पूरे देश की अधिकांश जनता को इसी में लगा रखा है।
 आज जनता अपनी रोजी-रोटी शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार के लिए इन नीतियों को नहीं देख रही है, पाप और पुण्य की बात कर रही है, नदी पर स्नान करने की बात कर रही है, धर्म कुंडों के चक्कर काट रही है और इसी में अपनी सदियों पुरानी समस्याओं का समाधान और अपनी मुक्ति ढूंढ रही है।
  इस प्रकार संक्षेप में हम देखते हैं कि भारत की हिंदू या मुस्लिम सांप्रदायिक ताकतों का इस देश के विकास में, देश के निर्माण में, जनता की बेहतरी में, कोई रोल नहीं रहा है और आगे भी कोई उम्मीद नहीं है क्योंकि इन्होंने संविधानिक मूल्यों और सिद्धांतों को ताक पर रख दिया है, वैज्ञानिक संस्कृति को बढ़ाने में उसका प्रचार प्रसार करने में लगभग रोक लगा दी है और अब ये पूरे देश में मनुवादी संविधान यानी मनुस्मृति को लागू करना चाहते हैं और इसी फिराक में लगे हुए हैं। 
इन समाज विरोधी, देश विरोधी और इंसान विरोधी ताकतों का, भारत के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विकास में कोई योगदान नहीं रहा है। ये ताकतें पूर्ण रूप से अमानवीय, बर्बर, असभ्य, निर्मम, क्रूर और मानव विरोधी हैं। समाज में भेदभाव फैलाना, नफरत फैलाना, अज्ञानता और अंधविश्वास फैलाना, समाज में विभाजन करना और देशी-विदेशी पूंजीपतियों, धन्ना सेठों, पैसे वालों और सरमायेदारों की सत्ता, शासन और पैसे में इजाफा करना ही इनका मुख्य काम है और ये इसी काम में लगी हुई हैं। मानव जन्म से लेकर आज तक देश और समाज के निर्माण और विकास से इनका दूर-दूर का नाता भी नहीं रहा है। सच में ये ताकतें कितनी अमानवीय और इंसानियत से परे हैं, इसका वर्णन करना भी संभव नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *