व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा
एंटीनेशनल कहे जाने से अमान पाऊं तो एक बात पूछूं। जब से ये अमृतकाल लगा है‚ रोज–रोज किसी–न–किसी चीज का टोटा क्यों हो जा रहा है। नहीं‚ नहीं हम रोजगार‚ कमाई‚ सामाजिक सुरक्षा वगैरह के टोटे की बात नहीं कर रहे हैं। हम डेमोक्रेसी, बराबरी, सौहार्द्र वगैरह के टोटे की भी बात नहीं कर रहे हैं। अमृतकाल ऐसी मामूली चीजों के लिए थोड़े ही है। हम तो बड़ी–बड़ी चीजों के टोटे की बात कर रहे हैं।
भागवत जी ने दिखाया‚ तो देश की समझ में आया कि नकारात्मक बहुत हो गई है‚ पॉजिटिविटी का टोटा हो गया है। हिंदुओं की सुरक्षा का टोटा तो खैर‚ अमृतकाल से भी पहले से पड़ा हुआ था। अब उड़नपरी कहलाने वाली पीटी उषा जी ने चेताया है कि देश में अनुशासन का बहुत टोटा पड़ गया है। मजूरों–वजूरों की तरह‚ अब तो महिला ओलंपिक पहलवान भी जंतर–मंतर पर अड्ड़ा जमा रहे हैं; अखाड़े से लेकर आदर्श भारतीय परिवार तक‚ हरेक अनुशासन की धज्जियां उड़ा रहे हैं। फिर ये पहलवान हैं किस मुगालते मेंॽ क्या समझा है कि जैसे अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में अपने प्रतिद्वंद्वी पहलवानों को पछाड़ लेते हैं‚ वैसे ही ब्रज भूषणशरण सिंह को पछाड़ लेंगेॽ हलुआ समझा है क्याॽ ब्रज भूषण सिंह भी बहुबली का अनुशासन अपनाने से पहले‚ खुद पहलवान रहे हैं। अच्छे–अच्छे दांव की काट अब भी कर सकते हैं। और पहलवान भूतपूर्व हो भी गए तो क्या‚ बाहुबली अभूतपूर्व हैं और सांसदी के जिस दंगल में टिक गए हैं‚ वहां तक आते–आते विरोधियों के सारे दांव खुद ही कट जाते हैं। सो अखाड़े से भूतपूर्व हुए तो क्या‚ कुश्ती संघ के अध्यक्ष की कुर्सी पर परमानेंट हैं। और मोदी जी इन मामूली पहलवानों को‚ अपने पट्ठे को यूं ही कैसे पछाड़ लेने देंगे । ऐसे ही अपने पट्ठों को हटाने लगे‚ तब देश विपक्ष मुक्त तो नहीं होगा‚ पर मोदी जी पट्ठा–मुक्त हो जाएंगे। पहलवानों के कहने से तो कुश्ती संघ के अध्यक्ष को हर्गिज नहीं हटाएंगे। फिर यह तो महिला पहलवानों का मामला है। यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर अपने पट्ठे को हटाएंगे‚ तो किस मुंह से विश्व गुरु के आसन पर दावा जताएंगे। महिला पहलवानों की इज्जत के लिए देश की इज्जत थोड़े दांव पर लगा देंगे। पहलवानों, अनुशासन में आओ; इज्जत भूलकर अखाड़े में दंड लगाओ!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और सप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)