अब गाली की बात

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व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

अब गाली की बात

व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

अब क्या कहेंगे मोदी जी की सरकार को "नो डॉटा सरकार" कहकर चिढ़ाने वाले? मोदी जी की सरकार के पास कम से कम एक डॉटा तो है। खुद पीएम जी के मुंह से निकला अकाट्य डॉटा है। पीएम के तख्त पर चढ़े मोदी जी को मिली गालियों का। न एक कम न एक ज्यादा, पूरी 91 गालियां मोदी जी को प्राप्त हुई हैं, खड्गे जी द्वारा हाल में भेजी गयी, सांप वाली गाली समेत। रोजगार-बेरोजगारी का डॉटा न सही, गरीबी का डॉटा न सही, जनसंख्या का भी डॉटा न सही, जातिवार संख्या का डॉटा न सही, नोटबंदी से हुई मौतों का या बैंकों के पास लौटे काले धन का या टें बोल गए छोटे उद्योगों का डॉटा न सही, विदेशी बैंकों में जमा काले धन का डॉटा न सही, विदेशी खोखा कंपनियों का डॉटा न सही, अडानीजी के 20 हजार करोड़ के आखिरकार कैंसल हुए टॉप अप शेयर में पैसा लगाने वालों का डॉटा न सही, कोविड से मरने वालों का व पुरानी बीमारियों से मरने वालों का भी डॉटा न सही, सरकारी बैंकों का पैसा मारकर विदेश भागने वालों का डॉटा न सही, पीएम केअर के जमा-खर्च का डॉटा न सही, मोदी जी की पार्टी की कमाई और खर्चों समेत मार-तमाम दूसरी चीजों का डॉटा न सही; तब भी मोदी जी की सरकार को "नो डॉटा सरकार" नहीं कह सकते हैं।

लिटिल डॉटा सरकार चाहे तो कोई कह भी सकता है, पर नो डॉटा सरकार अब कोई नहीं कह सकता। आखिर, एक डॉटा तो सरकार के पास है -- मोदी जी को दी गयी गालियों का डॉटा। अब विरोधी इसे फालतू डॉटा कहते हैं तो कहते रहें, पर है तो यह भी डॉटा ही। और रही फालतू होने की बात, तो सचमुच फालतू होता तो क्या मोदी जी अपना कर्नाटक का एकदम फाइनल चुनाव प्रचार, मतदाताओं को अपने हिस्से में आयी गालियों का डॉटा सुनाने से क्यों शुरू करते?

आखिर, सैकड़ा मन की बात का हुआ है, देश भर में बल्कि दुनिया भर में उसका उत्सव भी हो रहा है। फिर भी सेंचुरी के उत्सव की सारी चमक-दमक के बाद भी, चुनाव में गालियों की बात ही काम में आ रही है। सोचो तो क्यूं? क्योंकि मोदी जी को भी पता है कि घेर-बटोर के पब्लिक को अपने मन की बात तो सुना सकते हैं। मन की बात सुना-सुनाकर, सेंचुरी ही क्यों, किसी न किसी तरह का वर्ल्ड रिकार्ड भी बना सकते हैं। पर मोदी जी भी अपने मन की बात सुनाकर, पब्लिक से वोट नहीं डलवा सकते हैं। वोट तो पब्लिक अपने मन की बात सुन-सुनाकर ही डालती है। सो मन की बात की सेंचुरी अपनी जगह, वोट तो मोदी जी गालियों की बात सुनाकर ही मांग रहे हैं। मोदी जी अपने मन की बात किसी और दिन सुना लेंगे। बल्कि एक-एक गाली का हिसाब रखे जाने से यह भी तो साबित होता है कि मोदी जी अगर अपने मन की बात सुनाते हैं, तो पब्लिक के मन की भी बड़े ध्यान से सुनते हैं और एक-एक बात का पूरा हिसाब रखते हैं।
रही सेंचुरी के उत्सव की बात, तो आज मन की बात की सेंचुरी हो रही है, तो अगले बड़े चुनाव तक तो गालियों की बात की भी सेंचुरी हो ही लेगी। सिर्फ नौ गालियों की ही तो कसर बची है। आने दो  बड़े चुनाव को, मोदी जी गालियों की बात की सेंचुरी का और भी धूम-धड़ाके का उत्सव करवाएंगे।  

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं।)
अब गाली की बात व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

अब क्या कहेंगे मोदी जी की सरकार को “नो डॉटा सरकार” कहकर चिढ़ाने वाले? मोदी जी की सरकार के पास कम से कम एक डॉटा तो है। खुद पीएम जी के मुंह से निकला अकाट्य डॉटा है। पीएम के तख्त पर चढ़े मोदी जी को मिली गालियों का। न एक कम न एक ज्यादा, पूरी 91 गालियां मोदी जी को प्राप्त हुई हैं, खड्गे जी द्वारा हाल में भेजी गयी, सांप वाली गाली समेत। रोजगार-बेरोजगारी का डॉटा न सही, गरीबी का डॉटा न सही, जनसंख्या का भी डॉटा न सही, जातिवार संख्या का डॉटा न सही, नोटबंदी से हुई मौतों का या बैंकों के पास लौटे काले धन का या टें बोल गए छोटे उद्योगों का डॉटा न सही, विदेशी बैंकों में जमा काले धन का डॉटा न सही, विदेशी खोखा कंपनियों का डॉटा न सही, अडानीजी के 20 हजार करोड़ के आखिरकार कैंसल हुए टॉप अप शेयर में पैसा लगाने वालों का डॉटा न सही, कोविड से मरने वालों का व पुरानी बीमारियों से मरने वालों का भी डॉटा न सही, सरकारी बैंकों का पैसा मारकर विदेश भागने वालों का डॉटा न सही, पीएम केअर के जमा-खर्च का डॉटा न सही, मोदी जी की पार्टी की कमाई और खर्चों समेत मार-तमाम दूसरी चीजों का डॉटा न सही; तब भी मोदी जी की सरकार को “नो डॉटा सरकार” नहीं कह सकते हैं।

लिटिल डॉटा सरकार चाहे तो कोई कह भी सकता है, पर नो डॉटा सरकार अब कोई नहीं कह सकता। आखिर, एक डॉटा तो सरकार के पास है — मोदी जी को दी गयी गालियों का डॉटा। अब विरोधी इसे फालतू डॉटा कहते हैं तो कहते रहें, पर है तो यह भी डॉटा ही। और रही फालतू होने की बात, तो सचमुच फालतू होता तो क्या मोदी जी अपना कर्नाटक का एकदम फाइनल चुनाव प्रचार, मतदाताओं को अपने हिस्से में आयी गालियों का डॉटा सुनाने से क्यों शुरू करते?

आखिर, सैकड़ा मन की बात का हुआ है, देश भर में बल्कि दुनिया भर में उसका उत्सव भी हो रहा है। फिर भी सेंचुरी के उत्सव की सारी चमक-दमक के बाद भी, चुनाव में गालियों की बात ही काम में आ रही है। सोचो तो क्यूं? क्योंकि मोदी जी को भी पता है कि घेर-बटोर के पब्लिक को अपने मन की बात तो सुना सकते हैं। मन की बात सुना-सुनाकर, सेंचुरी ही क्यों, किसी न किसी तरह का वर्ल्ड रिकार्ड भी बना सकते हैं। पर मोदी जी भी अपने मन की बात सुनाकर, पब्लिक से वोट नहीं डलवा सकते हैं। वोट तो पब्लिक अपने मन की बात सुन-सुनाकर ही डालती है। सो मन की बात की सेंचुरी अपनी जगह, वोट तो मोदी जी गालियों की बात सुनाकर ही मांग रहे हैं। मोदी जी अपने मन की बात किसी और दिन सुना लेंगे। बल्कि एक-एक गाली का हिसाब रखे जाने से यह भी तो साबित होता है कि मोदी जी अगर अपने मन की बात सुनाते हैं, तो पब्लिक के मन की भी बड़े ध्यान से सुनते हैं और एक-एक बात का पूरा हिसाब रखते हैं।
रही सेंचुरी के उत्सव की बात, तो आज मन की बात की सेंचुरी हो रही है, तो अगले बड़े चुनाव तक तो गालियों की बात की भी सेंचुरी हो ही लेगी। सिर्फ नौ गालियों की ही तो कसर बची है। आने दो बड़े चुनाव को, मोदी जी गालियों की बात की सेंचुरी का और भी धूम-धड़ाके का उत्सव करवाएंगे।

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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