व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा
अब बोलें साक्षी मलिक‚ विनेश फोगाट‚ बजरंग पूनिया वगैरह! असली पहलवान कौन हैॽ बल्कि कुश्ती गुरु कहिए। बड़े अपने मैडलों की शान दिखाते फिरते थे। हमने कुश्ती लड़ के फलां मैडल जीता है। हमने कुश्ती में चिलां मैडल जीता है। शाह साहब ने एक ही झटके में सारी हेकड़ी निकाल दी। हाथ मिलाते ही वो कटोरा दांव लगाया है‚ वो कटोरा दांव लगाया है कि बंदे‚ चारों खाने चित्त पड़े हैं। बृजभूषण शरण सिंह भी सुरक्षित और अवयस्क बेटी भी सुरक्षित। और मोदी जी की जय–जयकार करनेे के लिए तो खैर, पूरा देश चल ही रहा है !
बृजभूषण ने गलत थोड़े ही कहा था। मोदी जी ने खामखां में ही इन पहलवानों को सिर पर चढ़ा रखा था। पहलवान लड़कियों को तो बिल्कुल ही फालतू में सिर पर चढ़ा रखा था। देश का गौरव हैं। शान हैं। देश का नाम रौशन करना है। और भी न जाने क्या–क्याॽ राजपूती आन–बान–शान वाले इस देश के क्या इतने बुरे दिन आ गए हैं कि जनानियों के रौशन किए से ही रौशन होगा। ऐसे रौशन होने से तो देश अंधेरे में ही भला। महिला कुश्ती का ओलंपिक मेडल भी कोई मेडल है‚ लल्लू! और इनकी हिम्मत तो देखो‚ बृजभूषण को और बृजभूषण जिन मोदी जी की शरण‚ उन मोदी जी को भी धमकी देने चली थीं : हम अपने मेडल गंगा में बहा देंगे! एक सौ चालीस करोड़ के देश और उसके विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता को ब्लैकमेल करने की कोशिश! ऐसे मेडल तो पंद्रह–पंद्रह रुपए में कबाड़ी बाजार में मिल जाते हैं। पंद्रह रुपये के तो क्या पंद्रह करोड़ के मेडल के लिए भी मोदी जी अपने शरणागत बृजभूषण को कुर्बान न करें! अगले साल यूपी में चुनाव नहीं लड़ना है क्याॽ बस क्या था शाह साहब ने लगा दिया कटोरा दांव। वही दांव‚ जो सारे दांव सिखाने के बाद गुरु पहलवान छुपा के रख लेता है कि वक्त–जरूरत पर‚ चेले को चित करने के काम आए। पहलवान तो पहलवान‚ बृजभूषण तक को पता नहीं लगा कि क्या दांव लगा। पर एक ही झटके में पोस्को गायब। बेटी भी पुलिस–अदालत के झंझट से बच गई और बृजभूषण भी लंबी गिरफ्तारी से बच गए। अब चलता रहे वयस्क महिला पहलवानों को बचाने का मुकदमा। आखिर‚ बेटी बचाओ में भी ज्यादा जरूरी तो छोटी बेटियां बचाना ही है!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)