द्वारा : रीता भुईहार, एडवोकेट
जिन्दगी हर पल में एक सफर होती है, कभी घर पर तो कभी घर के बाहर होती है*
जिन्दगी को देखना भी बिलकुल दुनिया को देखना जैसा है, दूर से देखो तो बहुत सुंदर लगती है, पास जाकर देखो तो सुंदर लगती है, कुछ समय एक जगह रुक कर देखो तो, बेचनी सी लगती है, चलते चलते देखो तो फिल्म की तरह लगती है
ये दुनिया भी बड़ी अजीब है, जब तक सांस चलती है, तो कोई सांस को देखता भी नहीं चाहता है, और जब सांस रुक जाती है, तो हर कोई रुकी हुई सांस को चलते हुए देखना चाहता है
अजीब शौक हो गया है आज की दुनिया का, पहले आत्मनिर्भर स्वतंत्र रहने का पाठ पढ़ाया जाता है, लेकिन वास्तव में जमीनी हकीक़त ये है कि जनता को अपंग और गुलाम बनाने पर जोर दिया जाता है
*जिस देश की पहचान दुनिया में भिन्न भिन्न रंगों के साथ भिन्न भिन्न धर्म भाषाओं के आधार पर होती थी, आज उस पहचान को एक धर्म रंग के साथ उजागर करने पर जोर दिया जा रहा है, नफरत का बीज बोकर अमन का सन्देश दिया जा रहा है।