भले ही हम निरंतर नए अवसरों की तलाश में बढ़ते रहें, भले ही ऊंची उड़ान भरें और आसमान की बुलंदियों को छू लें, हमें अपनी जड़ों को हमेशा याद रखना चाहिए, हमें अपनी असलियत को कभी नहीं भूलना चाहिए। “बेहतर भविष्य” की तलाश में गोवा को छोड़कर जॉय के मुम्बई रवाना होने से पहले गोवा के शांतिपूर्ण माहौल में हुई मानवी और जॉय की आखिरी मुलाकात की यह कहानी फिल्म प्रेमियों के दिलों को कोमलता से लेकिन मजबूती से छूने का प्रयास है।
जी हां, ज्यादा, बेहतर और तेजी से पाने की जद्दोजहद में जुटी दुनिया में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह (इफ्फी) के 52वें संस्करण में भाग ले रहे प्रतिनिधियों के समक्ष प्रस्तुत की गई 18 मिनट की कोंकणी फिल्म कुम्पाचो दारेयो कुछ कालातीत प्रश्नों को उठाती है और दर्शकों को उनके अपने घर और मूल स्थान की स्थायी और कम करके आंकी गई अहमियत याद दिलाने का प्रयास करती है।
हिमांशु सिंह द्वारा निर्देशित दो किरदारों पर आधारित यह फिल्म दर्शकों को बिल्कुल सामान्य घटनाओं, आपस में खूबसूरती से गुंथे हुए सरल लेकिन मुश्किल सवालों की श्रृंखला तक ले जाती है, जिनके उत्तर तलाशने की जरूरत है। जहां एक ओर, मानवी उस जगह के प्रति प्रेम अभिव्यक्त करने और जॉय के भीतर प्रेम जगाने की भरसक कोशिश करती है, जिसे उन्होंने साझा किया है और जहां वे पलकर बड़े हुए हैं, वहीं उनकी आखिरी मुलाकात, स्वयं के भीतर एक यात्रा को समेटे हुए है, जिसमें जॉय के लिए सबक और मानवी के लिए आश्चर्य मौजूद है।
समारोह के दौरान आज, 27 नवंबर, 2021 को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए सिंह ने फिल्म प्रेमियों को फिल्म में अंतर्निहित दर्शन और कहानी के बारे में बताया। “हमारी फिल्म एक व्यक्ति की एक जगह से दूसरी जगह की यात्रा को बयान करने कोशिश करती है और उससे जुड़ी दुविधाओं और पीड़ा को सामने लाने का प्रयास करती है। जब लोग नए अवसरों की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं, तो उन्हें इस दुविधा का सामना करना पड़ता है कि वे पीछे क्या छोड़ जाएं और क्या अपने साथ ले जाएं। हमारी फिल्म उस जगह के लिए प्रेम अभिव्यक्त करने के बारे में हैं, जहां आप बड़े हुए हैं। जहां एक ओर आप बहुत सी चीजें छोड़ जाते हैं, वहीं आप कई चीजें ले भी जाते भी हैं।”
मीडिया से बातचीत के दौरान निर्माता किशोर अर्जुन शिंदे, जॉय और मानवी का किरदार निभाने वाले रवि किशोर और उगम जाम्बोलकर, सिनेमेटोग्राफर अश्विन चिडे, कला निर्देशक पंकज कटवारे और पोस्ट-प्रोडक्शन सुपरवाइज़र कार्तिक भी मौजूद रहे।
इफ्फी के अंतर्गत गोवा खंड में कल इस फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ।
निर्देशक ने हमारी मंजिल और हमारी जड़ों के बीच के संबंधों के बारे में एक महत्वपूर्ण संदेश साझा किया, जिसे वह फिल्म के माध्यम से व्यक्त करना चाहता है। “कम्पाचो दारेयो – ए सी ऑफ क्लाउड्स हमें बताती है कि ऊंची उड़ान भरने और आसमान की बुलंदियां छूने के बावजूद अपनी असलियत को कभी न भूलें; आपकी जड़ें आपके सफर की मंजिल निर्धारित करती हैं”
ऐसे अनोखे विषय पर फिल्म बनाने का ख्याल उनको कैसे आया? पता चला कि इस फिल्म की जड़ें गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय रक्षा मंत्री स्वर्गीय श्री मनोहर पर्रिकर द्वारा साझा किए गए एक दिलचस्प किस्से में हैं। सिंह ने बताया कि कैसे श्री पर्रिकर ने ए सी ऑफ क्लाउड्स के लिए प्रेरणा के बीज बोए। “अपने एक भाषण के दौरान श्री पर्रिकर ने अपने बचपन को याद करते हुए एक कहानी सुनाई। जब वह छोटे थे, तो उन्हें तरबूज मुफ्त में मिलते थे और वे बहुत मीठे होते थे। लेकिन वे एक शर्त के साथ मुफ्त में दिए जाते थे कि बच्चों को बीज वहीं छोड़ने होंगे। लेकिन जब वे बड़े हुए तो धीरे-धीरे उनकी मिठास खोने लगी। क्योंकि तरबूज रखने वाले ज्यादातर लोग अलग-अलग जगहों पर चले गए और इसलिए बीज पीछे छोड़ना भी बंद हो दिया।”
सिंह ने बताया कि यही सुनकर उन्हें प्रेरणा मिली ; इस प्रकार कम्पाचो दारेयो की कल्पना की गई।
निर्देशक ने कहा, “आप अवसरों की तलाश में दुनिया के किसी भी हिस्से में जा सकते हैं, लेकिन मिठास तभी आएगी, जब आप अपनी जड़ों से जुड़े होंगे।” यही वह विचार है जिसने फिल्म लिए प्रेरणा का काम किया।
क्षेत्रीय गैर-फीचर फिल्मों के लिए मंच प्रदान करने में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की भूमिका के बारे में एक सवाल के जवाब में इस उभरते निर्देशक ने कहा: “फिल्में क्षेत्रीय भाषाओं में बनाई जा सकती हैं, लेकिन फिल्मों का निर्माण और ज्यादा पैसा कमाने के लिए नहीं, बल्कि और ज्यादा फिल्में बनाने के लिए करना चाहिए। हम सभी को एक ऐसे मॉडल की जरूरत है जो राजस्व उत्पन्न करने में मदद कर सके ताकि हम और फिल्में बना सकें। अगर ओटीटी प्लेटफॉर्म्स मेरे जैसे युवा गैर-फीचर-फिल्म निर्माताओं के लिए कोई राजस्व मॉडल सुझा सकते हैं, तो यह सभी उभरते फिल्म निर्माताओं को मदद और प्रोत्साहन देगा।”
यह फिल्म पूरी तरह से गोवा में शूट की गई है और इसके क्रू के सत्तर प्रतिशत से अधिक सदस्य गोवा से हैं। फिल्म के शानदार स्वागत पर अपनी अपार प्रसन्नता व्यक्त करते हुए सिंह ने कहा कि गोवा के साथ ही साथ अन्य स्थानों के भी अनेक के दर्शकों ने उन्हें और उनकी टीम से संपर्क कर बताया कि वे खुद को इस कहानी से जोड़ पाए, क्योंकि इसमें एक सार्वभौमिक अपील की शक्ति है। उन्होंने इफ्फी के लिए चुने जाने पर अपनी टीम की ओर से प्रसन्नता व्यक्त की। साथ ही उन्हें ऐसा मंच प्रदान करने के लिए इफ्फी और ईएसजी तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार का आभार व्यक्त किया।
कहा जाता है कि “व्याकरण की बूंदों में दर्शन के बादल समाहित होते हैं।” कम्पाचो दारेयो के निर्माता हमें यकीन दिलाना चाहते हैं कि हमारी आकांक्षाओं के बादलों में हमारी जड़ों का समंदर है।