‘ग्रेट बैरियर रीफ’ : यूनेस्को ने इसे खतरे की सूची में डाला

पर्यावरण विज्ञान राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति ने ऑस्ट्रेलिया के ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ को ऐसी विश्व धरोहरों की सूची में रखने की सिफ़ारिश की है जिन पर ख़तरा मंडरा रहा है। जबकि केवल ”खतरे की सूची” में शामिल किये जाने से प्रतिबंध लागू नहीं होते हैं। बल्कि कुछ देश अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करने तथा अपनी साइटों को बचाने में मदद करने के लिये उन्हें इस सूची से जोड़ते है।

खतरे की सूची में डालने का कारण

  • यूनेस्को द्वारा गठित ‘विश्व धरोहर समिति’ का मानना है कि ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया की सबसे बड़ी प्रवाल-भित्ति प्रणाली को जलवायु परिवर्तन के असर से बचाने के लिये पर्याप्त उपाय नहीं किये हैं।
  • समिति ने अपने मसौदे में यह भी कहा है कि ग्रेट बैरियर रीफ़ को बचाने के लिये ‘Reef 2050’ नामक एक योजना की शुरूआत की गई थी, किन्तु यह अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पाई है। वहीं ‘रीफ 2050’ लॉन्ग-टर्म सस्टेनेबिलिटी प्लान, वर्ष 2050 तक ग्रेट बैरियर रीफ की सुरक्षा और प्रबंधन के लिये ऑस्ट्रेलियाई और क्वींसलैंड सरकार की संयुक्त प्रयास है।
  • समिति के रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रेट बैरियर रीफ़ की मूँगा-चट्टानों को पिछले कुछ वर्षों में काफी क्षति पहुंची है। जबकि गंभीर समुद्री हीटवेव के कारण कोरल रीफ पारिस्थितिकी तंत्र को वर्ष 2015 के बाद से तीन प्रमुख विरंजन घटनाओं का सामना करना पड़ा है। समुद्री हीटवेव कई दिनों से लेकर वर्षों तक प्रतिलोम रूप से गर्म समुद्री सतह के तापमान (SST) की घटना है।

प्रवाल विरंजन

जब कोरल, तापमान, प्रकाश या पोषक तत्त्वों जैसी स्थितियों में परिवर्तन के कारण तनाव का सामना करते हैं तो वे अपने ऊतकों में रहने वाले सहजीवी शैवाल ‘जूजैंथिली’ को बाहर निकाल देते हैं, जिससे वे पूरी तरह से सफेद हो जाते हैं। इस घटना को प्रवाल विरंजन कहा जाता है।

ग्रेट बैरियर रीफ

ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर स्थित ग्रेट बैरियर रीफ दुनिया की सबसे व्यापक और समृद्ध प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी तंत्र है, जो कि 2,900 से अधिक भित्तियों और 900 से अधिक द्वीपों से मिलकर बना है। यह ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के उत्तर-पूर्वी तट में 1400 मील तक फैला हुआ है। यहां तक कि इसे बाह्य अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है तथा यह जीवों द्वारा बनाई गई विश्व की सबसे बड़ी एकल संरचना है। यह समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र अरबों छोटे जीवों से मिलकर बना है, जिन्हें प्रवाल पॉलिप्स के रूप में जाना जाता है। ये समुद्री पौधों की विशेषताओं को प्रदर्शित करने वाले सूक्ष्म जीव होते हैं, जो कि समूह में रहते हैं। चूना पत्थर (कैल्शियम कार्बोनेट) से निर्मित इसका निचला हिस्सा (जिसे कैलिकल्स भी कहते हैं) काफी कठोर होता है, जो कि प्रवाल भित्तियों की संरचना का निर्माण करता है। इन प्रवाल पॉलिप्स में सूक्ष्म शैवाल पाए जाते हैं जिन्हें जूजैंथिली (Zooxanthellae) कहा जाता है जो उनके ऊतकों के भीतर रहते हैं। हालांकि इंडोनेशिया में दुनिया का सबसे बड़ा प्रवाल भित्ति क्षेत्र है। वहीं ग्रेट बैरियर रीफ को वर्ष 1981 में विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था।

कोरल की रक्षा हेतु अंतर्राट्रीय प्रयास

  • ग्लोबल कोरल रीफ आर एंड डी एक्सेलेरेटर प्लेटफार्म
  • ग्लोबल कोरल रीफ एलायंस की स्थापना
  • अंतर्राष्ट्रीय कोरल रीफ पहल
  • ग्लोबल कोरल रीफ मॉनीटरिंग नेटवर्क

भारत में प्रवाल भित्ति

भारत में चार प्रवाल भित्ति क्षेत्र हैं यथा मन्नार की खाड़ी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप द्वीप समूह और कच्छ की खाड़ी। वहीं इसके संरक्षण के लिए  पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने तटीय क्षेत्र अध्ययन (CZS) के तहत प्रवाल भित्तियों पर अध्ययन को शामिल किया है। जबकि भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI), गुजरात के वन विभाग की मदद से “बायोरॉक” या खनिज अभिवृद्धि तकनीक का उपयोग करके प्रवाल भित्तियों को पुनर्स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।

प्रवाल भित्तियों को खतरा

समुद्री तटीय क्षेत्रों में रहने वाली मानव आबादी के कारण फैलने वाले संक्रामक सूक्ष्मजीवों के कारण काली पट्टी और सफेद पट्टी जैसे प्रवाल रोग। तटीय विकास, मछली पकड़ने के अनुचित तरीकों और घरेलू तथा औद्योगिक सीवेज से प्रदूषण जैसी मानवजनित गतिविधियों के कारण। बढ़े हुए अवसादन, अति-शोषण और आवर्ती चक्रवातों के कारण प्रवाल भित्तियों पर हमेशा किसी न किसी रूप में खतरा बना रहता हैं। जबकि मैंग्रोव वन फिल्टर का कार्य करते हैं तथा चक्रवात, तूफान और सुनामी जैसे कारको से सुरक्षा प्रदान करके प्रवाल भित्तियों को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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