मध्यकालीन भारत का इतिहास

Sub-मध्यकालीन भारत

मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत

(1) साहित्यिक स्रोत :

लेखक                                    पुस्तक                                    

हसन निजामी                      ताज-उल-मासिर

अलबरूनी                             तहकीक-ए-हिन्द

मिन्हाज-उस-सिराज         तबाकत-ए-नासिरी

अमीर खुसरो                        नूह सिपेहर, किरान-उस-सादेन, खजाय-उल-फुतुह, मिफ्रताह-उल-फुतुह,                                                            तुगलक-नामा

जियाउद्दीन बरनी                                तारीख-ए-फिरोजशाही, फतवा-ए-जहाँदारी  

फिरोज़शाह तुगलक            फुतहात-ए-फीरोज़शाही

इसमी                                     फुतूह-उस-सलातीन

अमीर तैमूर लंग                  मलफूजात-ए-तिमूरी (आत्मकथा)

याहिया बिन अहमद           तारीख-ए-मुबारकशाही

शेख रिजकुल्ला                   वाकियात-ए-मुश्ताकी और तारीख-ए-मुश्ताकी

अमीर हसन सिज्जी           फबाद-उल फआद

(2) विदेशी यात्रियों द्वारा विवरण

  • इब्नबतूता (1333 ई.) : यह मोरक्को का यात्री था, जो मोहम्मद बिन तुगलक के काल में भारत में रहा। इसकी रचना किताब-उल-रेहाला थी।
  • अब्दुल रज्जाक (ईरानी राजदूत): यह देवरायदृप्प् के शासनकाल में भारत आया।
  • मार्कोपोलो (इटली): 13वीं शताब्दी में भारत आया।
  • निकोलो कोण्टी (इटली का पर्यटक): इसने 1420  ई. में दकन की यात्रा  की।
  • डोमिंगोज पायज एवं बारबोसा (पुर्तगाली यात्री): यह विजयनगर के शासक कृष्ण देव राय के शासनकाल में भारत आये।
  • नुनीज :  यह पुर्तगाली घोड़े का व्यापारी था, जो विजयनगर दरबार में रहा।

(3) स्मारक

  • शेरशाह का मकबरा : सासाराम (बिहार)
  • ऐबक का मकबरा : लाहौर (पाकिस्तान)

प्रारम्भिक मध्यकालीन भारत, उत्तर भारत और दक्कन : तीन साम्राज्यों का युग

(8वीं से 10वीं सदी तक)

      सातवीं सदी में हर्ष के साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत, दक्कन और दक्षिण भारत में अनेक साम्राज्य उत्पन्न हुए। इसमें पाल, प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट प्रमुख थे।

पाल साम्राज्य

  • पाल साम्राज्य की स्थापना 750 ई. में गोपाल ने की थी।
  • गोपाल ने अपने नियंत्रण में बंगाल का एकीकरण किया और मगध तक को अपने अधीन ले लिया।
  • गोपाल ने ओदन्तपुरी विश्वविद्यालय (बिहार शरीफ) की स्थापना की थी।
  • धर्मपाल (770 ई.-810 ई.) के शासनकाल में कन्नौज पर नियंत्रण के लिए पाल, प्रतिहार एवं राष्ट्रकूटों में त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में धर्मपाल विजयी हुआ।
  • इसने नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुत्थान और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की, जहाँ वज्रयान शाखा की पढ़ाई होती थी।
  • देवपाल : देवपाल ने अपना नियंत्रण प्रागज्योतिषपुर (असम) और ओडिशा के कुछ भागों पर स्थापित किया।
    • प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान शांतरक्षित और दीपांकर (अतिस) ने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया।
    • पाल शासक बौद्ध ज्ञान-विज्ञान एवं धर्म के संरक्षक थे।
    • गुजराती कवि सोड्ढल ने धर्मपाल को उत्तरपथस्वामी की उपाधि दी थी।

प्रतिहार

  • विद्वानों के अनुसार प्रतिहार, गुर्जरों के वंशज थे,  इसलिए इन्हें गुर्जर-प्रतिहार भी कहते हैं।
  • नागभट्ट प्रथम (730 – 756 ई.): यह गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक था। इसकी आरंभिक राजधानी भनिमाल में थी।
  • नागभट्ट (द्वितीय) (800 – 833 ई.): इसमें पाल शासक धर्मपाल की सेना को मुंगेर के समीप पराजित किया। इसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया, लेकिन वह राष्ट्रकूट नरेश गोविन्ददृप्प्प् से पराजित हुआ।
  • मिहिरभोज प्रथम (836 – 885 ई.): यह इस वंश का सबसे महत्त्वपूर्ण शासक था।
    • इसने कन्नौज को पुनः अपनी राजधानी बनाया।
    • वह अपने समकालीन राजाओं-  पाल शासक देवपाल एवं राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से पराजित हुआ।
    • मिहिरभोज वैष्णव मतावलंबी था और उसने आदिवाराह और प्रभास जैसी उपाधियाँ धारण कीं।
    • इसका महत्त्वपूर्ण लेख (प्रशस्ति) ग्वालियर से मिला है।
  • महेन्द्रपाल प्रथम (885 – 909 ई.): इसने प्रतिहार साम्राज्य को अक्षुण्ण बनाये रखा।
    • उसके दरबार में राजशेखर निवास करते थे, जो उसके राजगुरु भी थे।
    • राजशेखर की रचनाएँ : कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, हरविलास, भुवनकोश, बाल रामायण आदि।
    • अलमसूदी, जो 915-16 ई. में बगदाद से भारत आया, ने प्रतिहार शासकों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा का वर्णन किया है।
    • अलमसूदी प्रतिहार को अल जुज्र कहता था।

राष्ट्रकूट

  • राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक दंतिदुर्ग था, जिसने शोलापुर के पास मान्यखेत या मलखेड़ को अपनी राजधानी बनाया।
  • ध्रुव इस वंश का एक महान शासक था, जिसने कन्नौज पर अधिकार करने के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष में हिस्सा लिया।
  • अमोघवर्ष एक अन्य प्रसिद्ध शासक था, जिसने 64 वर्ष तक राज किया। वह जैन मतावलंबी था।
  • उसने कविराज मार्ग नामक कन्नड़ ग्रंथ की रचना की।
  • इन्द्र द्वितीय  एवं बल्लभराज अन्य प्रसिद्ध शासक थे।
  • कृष्ण तृतीय अंतिम प्रतिभाशाली शासक था, जो मालवा के परमारों और वेंगी के पूर्वी चालुक्यों के साथ युद्धरत रहा।

                इसने चोल राजा परंतकदृप् को (949 ई.) पराजित किया।

                राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम ने एलोरा में कैलाश मंदिर बनवाया था।

चोल साम्राज्य  (9वीं से 12वीं सदी तक)

  • चोल साम्राज्य का संस्थापक विजयालय (850 ई. से 871ई.) था, जो पहले पल्लवों का सामंत था।
  • उसने 850 ई. में तंजावुर पर कब्जा किया और उसे अपनी राजधानी बनाया। यहाँ उसने निशुम्भसूदिवी देवी का मंदिर बनवाया।

आदित्य प्रथम (871-907 ई.)

  • 871 ई. में विजयालय के पुत्र आदित्य प्रथम ने चोल राजगद्दी सम्भाली। उसने चोल साम्राज्य को पल्लवों से मुक्त करवाया।
  • उसने कावेरी नदी के तट पर एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था।

परान्तक प्रथम (907-955 ई.)

  • यह आदित्य प्रथम का पुत्र था। इसने पाण्ड्य शासक राजसिंह-ii को पराजित कर मदुरा को जीता। इस उपलक्ष में उसने मदुरान्तक एवं मदुराइकोंड की उपाधि धारण की।

राजराज प्रथम (985-1014 ई.)

  • 985 ई॰ में परान्तक-ii (सुन्दर चोल) का पुत्र अरिमोलिवर्मन प्रथम (उपनाम राजराज प्रथम) चोल शासक बना।
  • तंजोर अभिलेख से उसके युद्ध अभियानों का वर्णन मिलता है।
    • उसने केरल राज्य पर आक्रमण कर केरल के शासक भास्कर रविवर्मन को पराजित किया। इस उपलक्ष्य में उसने कांडलूर शालैक्कलमरूत् की उपाधि धारण की।
    • अपनी नौसेना के उपयोग से उसने श्रीलंका की राजधानी अनुराधापुर पर आक्रमण कर वहाँ के नरेश महेन्द्र पंचम को पराजित किया।
    • उसने सिंहल राज्य का नाम मामुण्डीचोलदृमण्डलम् रखा एवं पोलोन्नरूवा को इसकी राजधानी बनाया तथा उसका नाम जगन्नाथमंगलम रखा।
    • वह शैव धर्मावलंबी था, उसने शिवपादशेखर की उपाधि ग्रहण की थी।
    • उसके द्वारा निर्मित तंजोर का राजराजेश्वर मंदिर (बृहदीश्वर मंदिर) द्रविड़ स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण है।

राजेन्द्र प्रथम (1014-44 ई.)

  • राजेन्द्र प्रथम अपने पिता राजराज प्रथम की भांति साम्राज्यवादी शासक था।
  • उसने समस्त श्रीलंका को चोल साम्राज्य में मिला लिया।
  • राजेन्द्र प्रथम  ने बंगाल के शासक महीपाल को पराजित किया।
  • उसने उत्तरी-पूर्वी पराजित राजाओं को गंगाजल से भरे कलश अपनी राजधानी गंगैकोण्डचोलपुरम लाने को कहा और उसे चोलगंग नामक तालाब में एकत्रित करवाया।
  • इस उपलक्ष्य में उसने गंगैकोंडचोल की उपाधि भी धारण की।

चोलकालीन शासन प्रणाली

  • चोलशासन प्रणाली राजतन्त्रत्मक थी। चोल शासकों की प्रारंभिक राजधानी उरैयूर थी। विजयालय ने तंजोर को अपनी राजधानी बनाया।
  • चोल राजतंत्र का राजा वंशानुगत आधार पर सत्ताधिकारी होता था।
  • राजा चोल शासन व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी होता था।

चोल शासकों की प्रशासनिक इकाई

                मण्डलम                                :               प्रांत                                        कोट्टम    :               कमिश्नरी

                नाडु                         :               जिला                                     कुर्रम      :               ग्रामों का संघ

  • चोल साम्राज्य छः प्रांतों में बँटा था, जिसे मण्डलम कहा जाता था।
  • मण्डलम प्रशासन से लेकर ग्राम प्रशासन तक शासकीय कार्यों में सहायता हेतु स्थानीय सभाएँ होती थीं-
    • नाट्टम : नाडु की स्थानीय सभा
    • नगस्तार  : नगर की स्थानीय सभा
    • श्रेणी : व्यवसायियों की सभा
    • पूग : शिल्पियों की सभा
    • उर : यह एक सामान्य प्रकार की ग्राम सभा थी, जिसमें ग्राम, पुर या नगर दोनों सम्मिलित थे। इसकी कार्यकारिणी समिति को आलुंगणम् कहा जाता था। इसका प्रमुख कार्य अपने प्रतिनिधियों से दस्तावेजों के मसौदे तैयार कराकर उसे लिपिबद्ध कराना था।
    • ग्रामसभा : यह मूलरूप से अग्रहारों तथा ब्राह्मण बस्तियों की संस्था थी। इसे पुरूगुरि कहा जाता था। इसके सदस्यों को पेरूमक्कल कहा जाता था।
    • नगरम् : यह व्यापारी समुदाय की सभा थी।
  • चोल काल का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलू उनकी स्थानीय ग्रामीण स्वशासन व्यवस्था थी।
  • चोल केन्द्रीय पदाधिकारियों में उच्च पदाधिकारियों को पेरुन्दरम तथा निम्न कोटि के अधिकारियों को शेरुन्दरम कहा जाता था।
  • गाँव में सभा की बैठक मंदिर के निकट वृक्ष के नीचे या तालाब के किनारे होती थी।

चोल काल के प्रमुख कर

  • आयम : राजस्व
    • मरमज्जाडि  : उपयोगी वृक्षकर
    • कडमै : सुपारी की बागात पर कर
    • मनैइरै : गृहकर
    • कढै़इरै : व्यापारिक प्रतिष्ठान कर
    • कडिमै : लौहकार, कुम्भहार, बढ़ई आदि के पेशे पर लगने वाला कर
  • राजस्व विभाग का प्रमुख अधिकारी वरित्पोत्तगकक् कहलाता था। भूमि कर उपज का 1/3 भाग था।

कुछ अन्य छोटे राजवंश

  • भिल्लम पंचम को यादव राजवंश को स्वतंत्र राज के रूप में स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है।
  • उसने दक्षिणी महाराष्ट्र एवं उत्तरी कोंकण में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी।
  • सिंहण द्वितीय एक पराक्रमी शासक था, जिसने होयसल राज्य पर आक्रमण किया।
  • महादेव, अस्मण, रामचन्द्र, कुछ अन्य राजा थे।
  • मलिक काफूर (अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति) ने देवगिरि पर आक्रमण कर अंतिम शासक शंकरदेव को मार दिया और वहाँ का प्रशासक बन गया।

काकतीय राजवंश

  • रुद्रदेव प्रथम काकतीय शासक था।
  • गणपति इस राजवंश का शक्तिशाली शासक था।
  • रुद्रंबादेवी को 1269 ई. के दुग्गि अभिलेख में गणपति की पटोट्धृति (राजत्व के लिए मनोनीत) बताया गया है। उसने स्वतंत्र शासिका के रूप में 1261 ई. में सत्ता सम्भाली।
  • प्रतापरुद्र काकतीय वंश का अंतिम शासक था।

होयसल राजवंश

  • विष्णुवर्धन ने एक विस्तृत एक शक्तिशाली होयसल राजवंश की स्थापना की। इनकी राजधानी द्वारसमुद्र (हालेविड) में थी।
  • बल्लाल-3 इस राजवंश का अंतिम शासक था। मलिक काफूर ने द्वारसमुद्र पर कब्जा कर लिया, जिससे बल्लावदृप्प्प् को उससे संधि करनी पड़ी।

राजपूत काल (800 ई.-1200 ई.)

      हर्ष की मृत्यु के बाद राजपूतों का उदय हुआ, जिन्होंने 8वीं शताब्दी में उत्तरी तथा पश्चिमी भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गहड़वाल (राठौर) वंश

  • गहड़वाल वंश की स्थापना यशोनिग्रह ने की थी। इसका पुत्र महिचन्द्र एक महत्त्वपूर्ण शासक था।
  • चन्द्रदेव: यह महिचन्द्र का पुत्र था, जिसने उत्तर भारत में महमूद की अनुपस्थिति में राष्ट्रकूट के राजा गोपाल को हराया था।
    • इसकी राजधानी बनारस थी।
    • चन्द्रदेव ने मुस्लिमों पर तरूक्षदंड नाम का कर लगाया, जो उनसे होने वाले युद्ध पर आने वाले खर्च के लिए लिया जाता था।
  • गोविन्द्रचन्द्र: इसके शासन में कन्नौज ने अपनी ख्याति पुनः प्राप्त की।
  • इसके मंत्री लक्ष्मीधर ने कानून और प्रक्रिया पर कृत्य कल्पतरु (कल्पद्रुम) की रचना की।
  • जयचंद: यह इस वंश का अंतिम शासक था।
    • पृथ्वीराज-iii  इसके समकालीन था।
    • चन्द्रबरदाई कृत पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज तृतीय ने जयचंद की पुत्री संयोगिता का अपहरण कर लिया था।
    • मोहम्मद गोरी ने 1194 में चन्दावर के युद्ध में जयचन्द को मार डाला।

चाहमान (चौहान) वंश

  • वासुदेव ने चौहान वंश की स्थापना की। इसकी राजधानी अहिच्छत्र थी।
  • अजयराज ने अजमेर की स्थापना कर चौहानों की राजधानी बनाई।
  • अजयराज के बाद अर्णोराज शासक बना।
  • इसने पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया।

विग्रहराज-iv (1153-63 ई.) : यह अर्णोराज का पुत्र था, जिसे बीसलदेव भी कहा जाता है। इसने हरिकेलि नाटक की रचना की।

  • इसके दरबारी कवि सोमदेव ने ललित विग्रहराज की रचना की।
  • विग्रहराज-iv ने अजमेर में एक संस्कृत मठ का निर्माण करवाया, जिसे आज ढाई दिन का झोपड़ा के नाम से जाना जाता है।
  • ढाई दिन का झोपड़ा एक मस्जिद है, जिसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने कराया था। इसकी दीवारों पर ललित विग्रहराज की पंक्तियाँ आज भी उत्कीर्ण हैं।

पृथ्वीराज चौहान तृतीय (1178-92 ई.) : इसने चंदेल राजा परमार्दिदेव को पराजित किया। इसको राय पिथौरा भी कहा जाता है।

  • चन्द्रबरदाई, जनक इसके दरबारी कवि थे। जनक ने पृथ्वीराज विजय की रचना की।
  • पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) ने मोहम्मद गौरी से दो युद्ध किये –
    • तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई.) : इसमें मो- गोरी पराजित हुआ।
    • तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.) : इसमें मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज (तृतीय) को पराजित किया और उसे मार डाला।
  • इस युद्ध के पश्चात् चौहानों की शक्ति समाप्त हो गई और तुर्क राज्य की स्थापना हुई।

सोलंकी वंश

  • गुजरात के चालुक्य (सोलंकी) वंश का संस्थापक मूलराज-i था।
  • इनकी राजधानी अन्हिलवाड़ (अन्हिलपाटन) थी।

भीम-I: इसके काल में महमूद गजनवी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अथाह सम्पति लूटी।

  • आबू पर्वत पर दिलवाड़ा मंदिर का निर्माण भीम-i के सामंत बिमल ने कराया था।

जयसिंह सिद्धराजा : इसने धारा के परमार शासक यशोवर्मन को युद्ध में बंदी बना लिया।

  • प्रसिद्ध जैन विद्वान हेमचन्द्र जयसिंह के दरबार में निवास करते थे।
  • इसने सिद्धपुर में रूद्रमहाकाल का भव्य मंदिर बनवाया था।

मूलराज-II: इसके काल में मोहम्मद गौरी का भारत पर आक्रमण हुआ था, जिसमें उसे पराजय मिली। यह गोरी की भारत में पहली पराजय थी।

  • भीम-ii इस वंश का अंतिम शासक था।
  • मोडेरा का सूर्य मंदिर (बड़ौदा के निकट) का निर्माण सोलंकी शासनकाल में हुआ था।

परमार वंश

  • मालवा के परमार वंश की स्थापना उपेन्द्र (कृष्णराज) ने की थी।
  • धार परमार वंश की राजधानी थी।
  • राजा भोज इस वंश का महत्त्वपूर्ण शासक था, जिसने अपनी राजधानी उज्जैन से बदलकर धार कर दी।
  • राजा भोज की उपाधि ‘कविराज’ थी।
  • राजा भोज ने भोजचम्पू,  श्रृंगार प्रकाश, शब्दानुशासन आदि पुस्तकों की रचना की थी।
  • उसने चितौड़ में त्रिभुवन नारायण मंदिर की स्थापना की।

चन्देल वंश

  • नन्नुक ने खजुराहो के समीप बुन्देलखंड में चन्देल वंश की स्थापना की।
  • वाक्पति का पुत्र जयशक्ति एक प्रसिद्ध शासक था और चंदेल राज्य उसी के नाम से (जेजाकभुक्ति के नाम से) जाना जाता था।
  • चन्देल अपनी कला के लिए विश्वविख्यात हैं। चन्देल कला के केन्द्र हैं- कालिंजर (उत्तर प्रदेश) तथा खजुराहो (छतरपुर जिला, मध्य प्रदेश)
  • चन्देलों ने खजुराहो में करीब 30 मंदिरों का निर्माण करवाया। ये मंदिर जैन ब्राह्मण धर्म से सम्बन्धित हैं।
  • यहाँ एक भी बौद्ध मंदिर का निर्माण नहीं हुआ है।
  • राजा धंग द्वारा निर्मित विश्वनाथ मंदिर खजुराहो का सबसे अलंकृत मंदिर है। धंग ने जिननाथ एवं वैद्यनाथ मंदिर का भी निर्माण करवाया।
  • कंदरिया महादेव मंदिर एक अन्य प्रसिद्ध मंदिर है।

कलचुरि-चेदि वंश

  • चेदि के कलचुरि (ढाल मंडल के राजा) ने अपनी राजधानी मध्य प्रदेश के जबलपुर के निकट त्रिपुरी में बनवाई थी।
  • कोक्कल प्रथम इस वंश का पहला राजा था।
  • एक अन्य शासक राजशेखर ने युवराज के दरबार में कुछ समय तक निवास किया।
  • कर्णदेव इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था, जिसने कलिंग पर विजय प्राप्त की और त्रिकलिंगाधिपति की उपाधि धारण की। उसने बनारस में कर्णमेख नामक शैव मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • विजय सिंह इस वंश का अंतिम शासक था।

भारत पर अरबों का आक्रमण

  • अरब खलीफा अल वाजि़द के आदेश पर मुहम्मद बिन कासिम ने 712 ई. मकरान के रास्ते, स्थल मार्ग से सिंध पर हमला किया। यह हमला सर्वप्रथम देवल (कराची) पर हुआ, जिसमें देवल का पतन हुआ।
  • उसके बाद कासिम ने चाचा के बेटे दाहिर पर हमला कर मुलतान तक के इलाके पर विजय प्राप्त की।
  • दाहिर राबौर के युद्ध में मारा गया।
  • सिंध पर कासिम के आक्रमण का प्रमुख उद्देश्य इस्लाम का प्रचार, भारत की आर्थिक सम्पन्नता एवं साम्राज्य विस्तार की लालसा थी।

भारत पर तुर्कों का आक्रमण

      भारत भूमि में अंदर तक प्रवेश पाने का श्रेय गजनवी वंश के सुल्तान महमूद को है, लेकिन भारत में राज्य स्थापित करने का श्रेय शंसबनी-वंश के मुहम्मद गोरी को है।

महमूद गजनवी (998 – 1030 .)

  • यमीनी वंश जिसे गजनवी वंश के नाम से पुकारा जाता था, ईरान के शासकों की एक शाखा थी।
  • अल्पतगीन ने इस वंश का एक स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। बाद में उसके दामाद सुबुक्तगीन ने गद्दी सम्भाली। सुबुक्तगीन के समय से गजनी और हिन्दूशाही राज्य का लंबा संघर्ष आरंभ हुआ, जो सुल्तान महमूद के समय तक चलता रहा, जिसका अंतिम परिणाम हिन्दूशाही राज्य का नष्ट होना हुआ।
  • सुबुक्तबीन की मृत्यु के बाद 998 ई. में महमूद, गजनी के तख्त पर बैठा और 1030 ई. तक शासन करता रहा। उसने 1000 ई. से लेकर 1027 ई. तक भारत पर 17 बार आक्रमण किया।

महमूद गजनवी के आक्रमण के कारण

  • वह भारत में इस्लाम धर्म को स्थापित करना चाहता था।
  • उसका प्रमुख उद्देश्य भारत की संपत्ति लूटना था।
  • उसका राजनीतिक उद्देश्य पड़ोस के हिन्दू-राज्य को नष्ट करना था।
  • यश की लालसा भी महमूद के आक्रमणों का कारण थी।
  • महमूद का दूसरा आक्रमण 1001 ई. में हिन्दूशाही राजा जयपाल के विरुद्ध था। पेशावर के युद्ध में जयपाल पराजित हुआ और उसने आत्मदाह कर लिया।
  • जयपाल का शासन काबुल व पंजाब क्षेत्र में था और वैहन्द उसकी राजधानी थी।
  • 1009 ई. में महमूद ने जयपाल के पुत्र आनन्दपाल को पराजित किया।
  • 1014 ई. में उसने थानेश्वर को लूटा।
  • महमूद 1018 ई. में कन्नौज पर आक्रमण के लिए आया।
  • आगे चलकर उसने मथुरा व वृन्दावन पर आक्रमण किया और अपार संपत्ति लूटी।
  • 1024 ई. में महमूद ने सोमनाथ (गुजरात) पर आक्रमण कर भव्य शिव मंदिर को लूटा और मंदिर को पूर्णतः नष्ट कर दिया। इस समय यहाँ का शासक भीम-i  था।
  • महमूद का अंतिम अभियान 1027  ई. में जाटों के विरुद्ध था। उसकी मृत्यु 1030  ई. में हुई।
  • सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला प्रथम शासक महमूद गजनी था।
  • महमूद की सेना में सेवंदराय एवं तिलक जैसे हिन्दू उच्च पदों पर आसीन थे।
  • महमूद के संरक्षण में अलबरूनी, फिरदौसी, उत्बी, फर्रूखी आदि विद्वान थे।
  • अलबरूनी की रचना किताब-उल-हिन्द (तारीख-ए-हिन्द) है। यह अरबी भाषा में है। अलबरूनी ने दो संस्कृत पुस्तकों का अरबी में अनुवाद किया- सांख्य (कपिल मुनि)  एवं महाभाष्य (पतंजलि)।

शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मुहम्मद गोरी

  • गोरी वंश का उदय 12वीं शताब्दी के मध्य हुआ। यह तुर्कों का शंसबनी वंश था, जो पूर्वी ईरान से आकर गोर प्रदेश में बस गया था।
  • मुहम्मद गोरी ने 12वीं शताब्दी में भारत पर आक्रमण किए और यहाँ पर अपने राज्य की स्थापना की।
  • मुहम्मद गोरी का प्रथम आक्रमण 1175 ई. में गोमल दर्रे से होकर मुल्तान पर हुआ। तत्पश्चात् उसने उच्छ को भी जीत लिया।
  • 1178 ई. में गोरी ने गुजरात पर आक्रमण किया, लेकिन मूलाज द्वितीय ने आबू पहाड़ के पास गोरी को हरा दिया। यह भारत में गोरी की पहली पराजय थी।
  • 1179 ई. में गोरी ने पेशावर को जीता, 1185 ई. में सियालकोट को जीता और 1186 ई. में उसने संपूर्ण पंजाब को जीतकर गजनवी का राजवंश समाप्त कर दिया।
    • तराइन का प्रथम युद्ध: यह युद्ध 1191 ई. भटिंडा के निकट तराइन में हुआ, जिसमें पृथ्वीराज तृतीय ने मुहम्मद गोरी को पराजित किया।
    • तराइन का द्वितीय युद्ध: यह युद्ध 1192 ई. में हुआ, जिसमें मुहम्मद गोरी विजयी रहा और पृथ्वीराज तृतीय को कैद कर लिया गया और बाद में मृत्यु दण्ड दे दिया गया।
    • चन्दावर का युद्ध: यह युद्ध 1194 ई. में हुआ, जिसमें गोरी ने कन्नौज के शासक जयचन्द को पराजित कर उसे मार डाला।
  • 1193 ई. में गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन ऐबक ने मेरठ और दिल्ली को जीता। 1193 ई. में दिल्ली भारत में गोरी के राज्य की राजधानी बन गई।
  • ऐबक ने 1194 ई. में अजमेर को जीता और वहाँ पर हिन्दू एवं जैन मंदिरों को नष्ट करके उनके अवशेषों से दिल्ली में कुव्वात-उल-इस्लाम मस्जिद बनवायी।
  • 1196 ई. में अजमेर में संस्कृत विश्वविद्यालय के स्थान पर ढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद बनवाई।
  • मुहम्मद गोरी जब वापस गजनी जा रहा था, तो दमयक नामक स्थान पर 15 मार्च, 1206 ई. को उसकी हत्या कर दी गई।
  • 1206 ई. में गोरी की मृत्यु के बाद ऐबक ने भारत में गुलाम वंश की नींव रखी।

विशेष :

  • अरबों ने सिन्ध में ऊँट पालन तथा खजूर की खेती का प्रचलन किया।
  • अपने पिता के काल में महमूद गजनी ‘खुरासान’ का शासक था।
  • महमूद गजनवी को भारतीय इतिहास में ‘बुतशिकन’ कहा जाता है।
  • मुहम्मद गोरी के सिक्कों पर ‘लक्ष्मी’ की आकृति अंकित थी।

दिल्ली सल्तनत (1206 – 1526 ई.)

      दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत सबसे पहले गुलाम वंश की स्थापना हुई। गुलाम वंश या मामलुक वंश की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने की।

कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.)

  • ऐबक को भारत में तुर्की राज्य का संस्थापक माना जाता है।
  • ऐबक का राज्याभिषेक 24 जून, 1206 ई. में हुआ। उसने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया।
  • 1208  ई. में गोरी के भतीजे गयासुद्दीन महमूद ने ऐबक को दास मुक्ति पत्र देकर उसे सुल्तान की उपाधि प्रदान की।
  • ऐबक ने न तो अपने नाम का खुतबा पढ़वाया और न ही अपने नाम के सिक्के चलवाये।
  • वह लाखों में दान दिया करता था, इसलिए उसे लाखबक्श कहा जाता था।
  • ऐबक के दरबार में हसन निजामी एवं फक्र-ए-मुदब्बिर रहते थे।
  • ऐबक ने सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर दिल्ली में कुतुबमीनार बनवाई, जिसे इल्तुतमिश ने पूरा किया।
  • उसने दिल्ली में कुव्वात-उल-इस्लाम और अजमेर में ढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिदों का निर्माण करवाया।
  • 1210 ई. में चौगान (पोलो) खेलते हुए (लाहौर में) घोडे़ से गिरकर ऐबक की म”त्यु हो गई।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद उसके सरदारों ने उसके पुत्र आरामशाह को लाहौर की गद्दी पर बैठा दिया, लेकिन इल्तुतमिश ने इसे अपदस्थ करके सिंहासन पर अधिकार कर लिया।

इल्तुतमिश (1211 – 1236 ई.)

  • इल्तुतमिश ऐबक का गुलाम एवं दामाद था।
  • इल्तुतमिश शम्शी वंश का था एवं इल्बारी तुर्क था।
  • वस्तुतः इल्तुतमिश दिल्ली का पहला सुल्तान था। उसने सुल्तान के पद की स्वीकृति गोर के किसी शासक से नहीं, बल्कि खलीफा से प्राप्त की।
  • उसने दिल्ली की गद्दी के दावेदार ताजुद्दीन यल्दोज और नासिरूद्दीन कुबाचा को समाप्त किया।
  • उसने दिल्ली को अपनी राजधानी बनवाया और अपने नाम के सिक्के चलाए।
  • उसने चालीस गुलाम सरदारों के गुट अर्थात् तुर्कान-ए-चिहालगानी के संगठन की स्थापना की।
  • इल्तुतमिश की दूरदर्शिता के कारण तुर्कराज्य, मंगोल आक्रमण से बचा रहा।
  • उसने इक्ता व्यवस्था लागू की और 1226 ई. में बंगाल को जीतकर उसे दिल्ली सल्तनत का इक्ता (सूबा) बनाया।
  • इल्तुतमिश ने 1226 ई. में ही रणथम्भौर पर विजय प्राप्त की और परमारों की राजधानी मंदौर (मंदसौर) पर अधिकार किया।
  • उसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए। चाँदी का टंका और ताँबे का जीतल उसी ने आरम्भ किया।
  • इल्तुतमिश की सेना इश्म-ए-कल्ब या कल्ब-ए-सुल्तानी कहलाती थी।
  • इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। उसे मकबरा निर्माण शैली का जन्मदाता कहा जाता है। उसने दिल्ली में स्वयं का मकबरा भी बनवाया। उसने बदायूँ में हौज-ए-खास (शम्सी ईदगाह) का निर्माण करवाया।
  • मिन्हाज-उस-सिराज, इल्तुतमिश का दरबारी लेखक था।
  • 1236 ई. बामियान के विरुद्ध अभियान पर इल्तुतमिश बीमार हो गया, जिसके कारण उसे दिल्ली वापस आना पड़ा, जहाँ अप्रैल, 1236 ई. में उसकी मृत्यु हो गई और दिल्ली में उसी के द्वारा निर्मित मकबरे में उसे दफनाया गया।
  • तुर्क सरदारों ने सुल्तान से अधिकार छीनकर नायब/नायब-ए-मामलिकात को सौंप दिए। यह पद एतगीन को दिया गया।
  • 1241 ई. में जब मंगोलों ने पंजाब पर आक्रमण किया, तब तुर्की सरदारों ने बगावत कर बहरामशाह को बन्दी बना लिया और 1242 ई. में उसकी हत्या कर दी।

रजिया (1236 – 1240 ई.)

  • इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद रूकनुद्दीन फिरोजशाह अपनी माँ शाह तुर्कान के सहयोग से गद्दी पर बैठा। शाह तुर्कान के अत्याचारों से परेशान होकर जन-समूह द्वारा उसे अपदस्थ कर रजिया को सुल्तान बनाया गया।
  • दिल्ली सल्तनत के इतिहास में रजिया एकमात्र महिला शासिका बनी। वह प्रथम तुर्क महिला शासिका भी थी।
  • रजिया ने पर्दा त्याग कर पुरुषों की भाँति कोट व कुलाह (टोपी) पहनना शुरू कर दिया।
  • रजिया ने एतगीन को बदायूँ का इक्तादार एवं अल्तूनिया को तबरहिन्द (भटिण्डा) का इक्तादार नियुक्त किया।
  • अल्तूनिया ने 1240 ई. में सरहिन्द विद्रोह कर दिया। अंततः रजिया ने अल्तूनिया से शादी कर ली। 13 अक्टूबर, 1240 ई. को मार्ग में कैथल के निकट कुछ डाकुओं ने रजिया व अल्तूनिया की हत्या कर दी।
  • रजिया की असफलता का मुख्य कारण तुर्की गुलामों की महत्त्वाकांक्षाएँ थीं।

मुइज्जुद्दीन बहरामशाह (1240 – 1242 ई.)

  • रजिया को तबरहिन्द प्रस्थान करने के बाद तुर्क सरदारों ने इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र बहरामशाह को सिंहासन पर बैठा दिया।

अलाउद्दीन मसूदशाह (1242 – 1246 ई.)

  • मसूदशाह, इल्तुतमिश के पुत्र सुल्तान फिरोज़शाह का पुत्र था। इसके शासन में समस्त शक्तियाँ नायब के पास थीं।
  • बलबन ने अमीर-ए-हाजिब का पद प्राप्त करके अपनी शक्ति बढ़ानी शुरू कर दी।
  • जून, 1246 ई. में बलबन ने मसूदशाह को सिंहासन से हटा दिया। मसूदशाह की मृत्यु कारागार में हुई।

नासिरूद्दीन महमूद (1246 – 1265 ई.)

  • नासिरूद्दीन महमूद 10 जून, 1246 ई. को 16 वर्ष की अवस्था में सिंहासन पर बैठा। उसके सुल्तान बनने के समय राज्य शक्ति के लिए जो संघर्ष सुल्तान और उसके तुर्की सरदारों के मध्य चल रहा था, वह समाप्त हो गया।
  • नासिरूद्दीन के शासनकाल में समस्त शक्ति बलबन के हाथों में थी। 1249 ई. में उसने बलबन को उलुग खाँ की उपाधि प्रदान की और नायब-ए-मामलिकात का पद देकर कानूनी रूप से शासन के सम्पूर्ण अधिकार बलबन को सौंप दिये।
  • 1265 ई. में नासिरूद्दीन की मृत्यु होने पर बलबन ने स्वयं को सुल्तान घोषित किया तथा उसका उत्तराधिकारी बना।

गियासुद्दीन बलबन (1265 – 1287 ई.)

  • बलबन इल्तुतमिश की भाँति इल्बरी तुर्क था। उसने 20 वर्ष तक वजीर की हैसियत से तथा 20 वर्ष तक सुल्तान के रूप में शासन किया।
  • रजिया के समय बलबन अमीर-ए-शिकार के पद पर था।
  • बहारामशाह के समय वह अमीर-ए-आखुर (अश्वशाला का प्रधान) बना।
  • बलबन के राजत्व सिद्धांत की दो मुख्य विशेषताएँ थीं- प्रथम, सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्रदान किया हुआ होता है और द्वितीय, सुल्तान का निरंकुश होना आवश्यक है।
  • बलबन ने चालीस तुर्क सरदारों के गुट की समाप्ति की।
  • बलबन ने कई ईरानी परम्पराएँ जैसे सिजदा (भूमि पर लेटकर अभिवादन) एवं पैबोस (सुल्तान के चरणों को चूमना) प्रारम्भ करवाई।
  • बलबन ने रक्त व लौह की नीति का पालन किया।
  • बलबन ने एक पृथक सैन्य विभाग दीवान-ए-अर्ज की स्थापना की।
  • उसने ईरानी त्यौहार नौरोज भी आरम्भ किया।
  • वह स्वयं को फिरदौस के शाहनामा में वर्णित अफरासियाब वंश का बताता था।
  • बलबन ने जिल्ल-ए-इलाही (ईश्वर का प्रतिबिम्ब) की उपाधि धारण की थी।

कैकुबाद और शम्सुद्दीन क्यूमर्स (1287 – 1290 ई.)

  • बलबन ने अपनी मृत्यु से पहले अपने बड़े पुत्र मुहम्मद के पुत्र कैखुसरव को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, लेकिन तुर्की सरदारों ने उसे मुल्तान का प्रान्तीय शासक बना दिया।
  • दिल्ली के कोतवाल फखरूद्दीन मुहम्मद ने षडयंत्र कर बलबन के दूसरे पुत्र बुगराखाँ के पुत्र कैकुबाद को सुल्तान बना दिया।
  • कुछ समय बाद कैकुबाद लकवाग्रस्त हो गया और तुर्क-सरदारों ने उसके अबोध पुत्र क्यूमर्स को सिंहासन पर बैठा दिया।
  • 1290 ई- में जलालुद्दीन खिलजी ने शम्सुद्दीन क्यूमर्स की हत्या कर एक नए खिलजी वंश की स्थापना की।

खिलजी वंश (1290 – 1320 ई.)

      भारत आने से पूर्व खिलजी जाति अफगानिस्तान में हेलमन्द नदी की घाटी के प्रदेश में रहती थी। दिल्ली के सिंहासन पर खिलजी वंश का आधिपत्य हो जाने से भारत में तुर्कों की श्रेष्ठता समाप्त हो गई। इसके साथ ही शासन में भारतीय और गैर तुर्क मुसलमानों का प्रभाव बढ़ गया।

जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी (1290 – 1296 ई.)

  • गुलाम वंश को समाप्त कर जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने 13 जून, 1290 ई. को खिलजी वंश की स्थापना की। उसने किलोखरी (कूलागढ़ी) को अपनी राजधानी बनाया था।
  • सुल्तान बनने के समय जलालुद्दीन 70 वर्ष का था। यही कारण था कि वह उदार और सहिष्णु बन गया था।
  • इसके शासनकाल में तीन प्रमुख विद्रोह हुए :

                (1)          मलिक छज्जू का विद्रोह,  

                (2)          ताजुद्दीन कुची का षडयंत्र,

                (3)          सीदी मौला का षडयंत्र, जिसे बाद में फाँसी दे दी गई।

  • जलालुद्दीन के समय की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना अलाउद्दीन का देवगिरि का आक्रमण था। रामचन्द्र देव देवगिरि का शासक था।
  • अमीर खुसरो और हसन देहलवी जलालुद्दीन के दरबार में रहते थे।
  • 20 जुलाई, 1296 ई. को अलाउद्दीन के इशारे पर इलाहाबाद में इख्तियारूद्दीन हूद द्वारा छलपूर्वक जलालुद्दीन का वध कर दिया गया।

अलाउद्दीन खिलजी (1296 – 1316 ई.)

  • अलाउद्दीन के बचपन का नाम अली और गुरशास्प था।
  • सुल्तान बनने से पहले अलाउद्दीन अमीर-ए-तुजुक के पद पर था।
  • 22 अक्टूबर, 1296 ई. को अलाउद्दीन ने दिल्ली में प्रवेश किया, जहाँ बलबन के लाल महल में उसने अपना राज्याभिषेक कराया और दिल्ली का सुल्तान बना तथा सिकन्दर सानी की उपाधि धारण की।

साम्राज्य विस्तार

  • अलाउद्दीन की आकांक्षाएँ साम्राज्यवादी थीं। उत्तर भारत के राज्यों के प्रति उसकी नीति राज्य विस्तार की थी, जबकि दक्षिण भारत में वह राज्यों से अपनी अधीनता स्वीकार करवाकर वार्षिक कर लेकर ही संतुष्ट था।

विजय अभियान

  • उत्तर भारत : गुजरात – रणथम्भौर-चितौड़-मालवा-धार -चन्देरी-शिवाना -जालौर।
  • दक्षिण भारत : देवगिरि -वारंगल-द्वारसमुद्र -मालाबार।
  • मलिक मोहम्मद जायसी की रचना ‘पदमावत’  के अनुसार अलाउद्दीन के चित्तौड़ अभियान का कारण यहाँ के शासक राणा रतनसिंह की पत्नी पद्मिनी को प्राप्त करना था।

मलिक काफूर

  • अलाउद्दीन के दक्षिण भारत की विजय का प्रमुख श्रेय उसके नायब मलिक काफूर को है।
  • उसने 1307 ई. में सर्वप्रथम देवगिरि पर आक्रमण कर वहाँ के शासक रामचन्द्र देव को पराजित किया।
  • इसके बाद काफूर ने तेलंगाना पर आक्रमण किया। वहाँ के शासक प्रतापरूद्र देव ने आत्मसमर्पण कर मलिक काफूर को कोहिनूर का हीरा सौंपा, जिसे मलिक ने अलाउद्दीन को सौंपा।

अमीर खुसरो

  • अमीर खुसरो का जन्म 1253 ई. में उत्तर प्रदेश के एटा जिले के पटीयाली नामक स्थान पर हुआ था।
  • उसका पूरा नाम था- अबुल हसन यामिनुद्दीन खुसरो। उसने कुल 9 सुल्तानों (बलबन से लेकर मुहम्मद तुगलक तक) का शासनकाल देखा।
  • वह निजामुद्दीन औलिया का शिष्य था।
  • अमीर खुसरो ने खड़ी बोली के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • उसने फारसी काव्यशैली सबक-ए-हिन्दी या हिन्दुस्तानी शैली को जन्म दिया।
  • वह स्वयं को तोता-ए-हिंद कहता था।
  • अमीर खुसरो ने भारतीय वीणा और ईरानी तम्बूरे को मिलाकर सितार बनाया।

अलाउद्दीन का राजत्व सिद्धांत

  • अलाउद्दीन ने धर्म और धार्मिक वर्ग को शासन में हस्तक्षेप नहीं करने दिया।
  • उसने खलीफा से अपने सुल्तान के पद की स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं समझी।
  • उसने शासन में न तो इस्लाम के सिद्धांतों का सहारा लिया, न उलेमा वर्ग की सलाह ली और न ही खलीफा के नाम का सहारा लिया।
  • अलाउद्दीन निरंकुश राजतंत्र में विश्वास करता था।

प्रशासनिक व्यवस्था

  • अलाउद्दीन व्यक्ति की योग्यता पर बल देता था।
  • उसने गुप्तचर विभाग को संगठित किया। इस विभाग का मुख्य अधिकारी वरीद-ए-मुमालिक था।
  • अलाउद्दीन ने मलिक याकूब को ‘दीवान-ए-रियासत’  नियुक्त किया था।
  • उसके द्वारा नियुक्त ‘परवाना-नवीस’  वस्तुओं की परमिट जारी करता था।

अलाउद्दीन का मंत्रिपरिषद्

                दीवाने वजारात    :               वजीर (मुख्यमंत्री)

                दीवाने इंशा           :               शाही आदेशों को पालन करवाना

                दीवाने आरिज      :               सैन्य मंत्री

                दीवाने रसातल     :               विदेश विभाग

राजस्व (कर) एवं लगान व्यवस्था

  • अलाउद्दीन ने लगान (खराज) पैदावार का 1/2 भाग निर्धारित किया।
  • वह पहला सुल्तान था, जिसने भूमि को नापकर लगान वसूल करना आरंभ किया। इसके लिए बिस्वा को एक इकाई माना गया।
  • अलाउद्दीन ने दो नए कर लगाए-मकान कर (घरई)  एवं चराई कर (चरई)।
  • अपनी व्यवस्था को लागू करने के लिए अलाउद्दीन ने एक प”थक विभाग दीवान-ए-मुसतखराज स्थापित किया।
  • खालसा भूमि (सुल्तान की भूमि): इस भूमि से लगान राज्य द्वारा वसूला जाता था। वह लगान को गल्ले के रूप में लेना पसंद करता था।

सैनिक व्यवस्था

  • अलाउद्दीन ने केन्द्र में एक बड़ी और स्थायी सेना रखी, जिसे वह नगद वेतन देता था। ऐसा करने वाला वह दिल्ली का पहला सुल्तान था।
  • केन्द्र में अनुभवी सेनानायक थे, जिन्हें कोतवाल कहा जाता था।
  • सेना की इकाइयों का विभाजन हजार, सौ और दस पर आधारित था, जो खानों, मलिकों, अमीरों और सिपहसलारों के अन्तर्गत थे।
  • दस हजार की सैनिक टुकडि़यों को तुमन कहा जाता था।
  • अलाउद्दीन ने सैनिकों का हुलिया लिखने और घोड़ों को दागने की नवीन प्रथा आरंभ की।

बाजार व्यवस्था

  • अलाउद्दीन की बाजार व्यवस्था का मुख्य कारण सैनिकों के वेतन में कमी करना न होकर वस्तुओं के मूल्यों को बढ़ने से रोकना था।
  • अलाउद्दीन ने प्रत्येक वस्तु के लिए अलग-अलग बाजार निश्चित किये- गल्ले के लिए मण्डी, कपड़े के लिए सराय-ए-आदिल, घोड़ा, गुलाम व मवेशी बाजार एवं सामान्य बाजार।
  • सभी व्यापारियों को शहना-ए-मण्डी के दफ़्तर में स्वयं को पंजीकृत कराना पड़ता था। पंजीकृत व्यापारी ही किसानों से गल्ला खरीद सकते थे।
  • सट्ट्टेबाजी, चोरबाजारी, कानून को भंग करने वालों को कठोर दंड दिया जाता था।

बाजार के नियंत्रण के लिए अधिकारी

                शहना-ए-मण्डी                    :               बाजार अधीक्षक

                दीवान-ए-रियासत              :               बाजार पर नियंत्रण रखना

                सराय अद्ल                          :               न्याय के लिए

                बरीद-ए-मण्डी                      :               बाजार निरीक्षक

                मुन्हैयान                               :               गुप्तचर

अन्य तथ्य

  • अलाउद्दीन ने कुतुबमीनार के निकट अलाई दरवाजा (कुश्क-ए-सीरी), सीरी नामक शहर, हौज-ए-अलाई तालाब तथा हजार खम्भा महल का निर्माण करवाया था।
  • उसने डाक व्यवस्था लागू की थी।
  • उसका अंतिम अधिनियम परवाना नवीस (परमिट देने वाले अधिकारी) की नियुक्ति थी।
  • अलाउद्दीन ने खम्स (युद्ध में लूट का हिस्सा) के 4/5 भाग पर राज्य का नियंत्रण एवं 1/5 भाग पर सैनिकों का नियंत्रण कर दिया।
  • अलाउद्दीन की मृत्यु  5 जनवरी, 1316  ई. को हुई।

कुतुबुद्दीन मुबारकशाह खिलजी (1316-20 ई.)

  • इसने स्वयं को खलीफा घोषित किया। ऐसा करने वाला वह सल्तनत का पहला सुल्तान था।
  • उसे नग्न स्त्री-पुरुष की संगत पसन्द थी।
  • मुबारक शाह के बाद नासिरूद्दीन खुसरवशाह (15 अप्रैल से  7 सितंबर, 1320  ई.)  शासक बना।
  • वह प्रथम भारतीय मुसलमान था, जो दिल्ली का शासक बना।

तुगलक वंश  (1320-1398 ई.)

गियासुद्दीन तुगलक (1320-1325 ई.)

  • गियासुद्दीन तुगलक ने तुगलक वंश की स्थापना की थी। तुगलक किसी वंश का नाम नहीं था। गियासुद्दीन का नाम गाजी तुगलक या गाजीबेग तुगलक था। इस कारण उसके उत्तराधिकारियों को भी तुगलक पुकारा जाने लगा।
  • गियासुद्दीन ने उदारता की नीति अपनाई, जिसे बरनी ने रस्मोनियम अथवा मध्यम पंथी नीति कहा है।
  • उसने सिंचाई व्यवस्था दुरुस्त करवाई और नहरों का निर्माण करवाया।
  • इससे किसानों और राज्य की आर्थिक नीति में सुधार हुआ।
  • उसकी डाक व्यवस्था श्रेष्ठ थी।
  • उसने न्याय व्यवस्था में सुधार किये।
  • उसने तुगलकाबाद नामक शहर की स्थापना की थी।
  • गियासुद्दीन ने सरकारी कर्मचारियों को राजस्व वसूली में हिस्सा न देकर, उन्हें कर मुक्त जागीरें दीं।
  • चिश्ती संत निजामुद्दीन औलिया के साथ उसके सम्बन्ध कटुतापूर्ण थे। जब गियासुद्दीन बंगाल अभियान से लौट रहा था, तो उसने दिल्ली आने से पहले ही औलिया को दिल्ली छोड़कर चले जाने को कहा था- हनूज-ए-दिल्ली दूरस्थ (यानि दिल्ली अभी दूर है)।
  • अफगानपुर नामक गाँव में विश्राम करते समय लकड़ी के महल की छत गिर जाने से गियासुद्दीन की मृत्यु हो गई।
  • उसे उसके द्वारा तुगलकाबाद में बनवाये गये कब्र में दफनाया गया।
  • इब्नबतूता के अनुसार गियासुद्दीन तुगलक की मृत्यु का कारण मोहम्मद बिन तुगलक का षड़यंत्र था।

मोहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई.)

  • गियासुद्दीन का पुत्र मोहम्मद बिन तुगलक का मूल नाम जूनाखाँ था, उसने उलूगखाँ की उपाधि धारण की थी।
  • गियासुद्दीन के शासनकाल में 1333 ई. में मोरक्को (अफ्रीका) का यात्री इब्नबतूता भारत आया था, जिसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया गया।
  • 1342 ई. में इब्नबतूता को अपना दूत बनाकर चीन भेजा।
  • उसने अपने सिक्कों पर ‘अल सुल्तान जिल्ली इलाह’  (सुल्तान ईश्वर की छाया है) अंकित कराया।
  • उसके शासनकाल में साम्राज्य 23 प्रान्तों में बँटा हुआ था।
  • कश्मीर और आधुनिक बलूचिस्तान को छोड़कर सारा हिन्दुस्तान दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण में था।
  • उसने निजामुद्दीन औलिया की कब्र पर मकबरे का निर्माण तथा तुगलकाबाद के पास आदिलाबाद नामक दुर्ग बनवाया।
  • उसने सतपलाह बाँध एवं बिजली महल का भी निर्माण करवाया था।

प्रशासनिक परिवर्तन

  1. वह दिल्ली का प्रथम सुल्तान था, जिसने योग्यता के आधार पर पद देना आरंभ किया और भारतीय मुसलमानों एवं हिन्दुओं को भी सम्मानित पद प्रदान किये।
  2. उसने दोआब में कर वृद्धि की।
  3. उसने कृषि की उन्नति के लिए एक नया विभाग खोला और एक नया मंत्री अमीर-ए-कोही नियुक्त किया।
  4. राजधानी परिवर्तन (1326-27 ई.): उसने दिल्ली से 1500 किमी. दूर अपनी राजधानी देवगिरि स्थानांतरित की तथा देवगिरि का नया नाम दौलताबाद रखा। उसकी यह योजना असफल हो गई, जिससे प्रशासन तंत्र के साथ राजस्व की भारी नुकसान हुआ।
  5. सांकेतिक मुद्रा (1329-30 ई.): मोहम्मद तुगलक की एक और असफल योजना थी, प्रतीक मुद्रा का चलन आरंभ करना। उस समय चाँदी के सिक्कों को टंका एवं ताँबे के सिक्कों को जीतल कहा जाता था। इस मुद्रा का चलन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चाँदी की कमी का सामना करने के लिए किया गया था। उसने ताँबे या पीतल के सिक्के चलवाए। (इससे पहले चीन में कुबलई खाँ के समय सांकेतिक मुद्रा का चलन सफलतापूर्वक किया गया था।)

मोहम्मद बिन तुगलक के अभियान

  1. उसके काल में एकमात्र मंगोल आक्रमण (1328-29 ई.) में अलाउद्दीन तार्माशीरीन के नेतृत्व में हुआ था।
  2. उसने खुरासान (अफगानिस्तान) को जीतने की योजना बनाई, जो कार्य-रूप में परिणित न की जा सकी और सुल्तान ने सेना को भंग कर दिया।
  3. उसने 1333-34 ई. में कुराचिल अभियान किया, जिसका उद्देश्य उन पहाड़ी राज्यों को अपनी अधीनता में लाना था, जहाँ अधिकांश विद्रोहियों को शरण प्राप्त होती थी। यह स्थान आधुनिक उत्तराखण्ड के कुमायूँ में था। इस आक्रमण से सुल्तान की सैन्य शक्ति दुर्बल हुई।

मोहम्मद बिन तुगलक के काल में प्रमुख विद्रोह

  1. गुलबर्गा के निकट सागर के जागीरदार वहाबुद्दीन गुर्सास्प का विद्रोह।
  2. मुल्तान के सूबेदार बहरान आईबा उर्फ किश्लू खाँ का विद्रोह।
  3. 1327-28 में बंगाल का विद्रोह।
  4. सुनम और समाना, कड़ा, बीदर, अवध के विद्रोह।
  5. 1336 में विजयनगर का विद्रोह।
  6. 1347 में देवगिरि में विद्रोह एवं बहमनी राज्य की नींव।

मृत्यु : एक विद्रोह के दमन के दौरान, थट्टा (सिंध) में मोहम्मद बिन तुगलक बीमार हो गया और 20 मार्च, 1351 ई. को उसकी मृत्यु हो गई। बदायूँनी के अनुसार सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुल्तान से मुक्ति मिल गई।

फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ई.)

  • जिस समय मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु हुई, तब फिरोज उसके साथ था। 20 मार्च, 1351 ई. फिरोज सुल्तान बना।
  • फिरोज, मोहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई था।
  • फिरोज की मृत्यु सितंबर 1388 ई. में हुई।
  • इतिहासकार एलफिन्सटन ने इसे सल्तनत युग का अकबर कहा है।

फिरोज का आंतरिक शासन

राजस्व व्यवस्था :

  • फिरोज ने इस्लामी कानूनों के आधार पर केवल 4 कर लगाये- खराज (लगान), खम्स (युद्ध में लूटे गए धन का 1/5 भाग), जजिया (हिन्दुओं पर धार्मिक कर) और जकात (आय का 2.5% जो मुसलमानों से लिया जाता था और उन्हीं के हित में व्यय किया जाता था) उसने 24 कष्टदायक करों को समाप्त किया।
  • फिरोज ने हर्ब-ए-शर्ब नामक सिंचाई कर लिया, जो उपज का 1/10 भाग होता था। फिरोज ने तकावी ऋण माफ कर दिया।
  • उसके समय लगान पैदावार का 1/5 से 1/3 भाग था।
  • उसने शशगनी नामक सिक्का चलाया। अफीफ के अनुसार सुल्तान ने अद्धा एवं बिख नामक ताँबा और चाँदी निर्मित सिक्का चलाया।

सिंचाई व्यवस्था :

  • फिरोज ने पाँच बड़ी नहरों का निर्माण कराया। इसमें यमुना नदी से हिसार तक 150 मील लंबी नहर थी।
  • उसने सिंचाई और यात्रियों की सुविधा के लिए 150 कुएँ खुदवाये।

नगर और सार्वजनिक निर्माण कार्य :

  • फिरोज ने फतेहाबाद, हिसार, फिरोजपुर और फिरोजाबाद नगर बसाये।
  • उसने मोहम्मद तुगलक (जूनाखाँ) की याद में जौनपुर नगर की स्थापना की।
  • फिरोज ने ताश घडि़याल एवं एक जलघड़ी का निर्माण कराया था।
  • उसने अशोक के दो स्तम्भों को दिल्ली मँगाया। इनमें से एक मेरठ और दूसरा टोपरा (पंजाब) से लाया गया था।
  • फिरोज ने कुतुबमीनार की चौथी मंजिल के स्थान पर दो और मंजिलों का निर्माण कराया। इस प्रकार कुतुबमीनार अब पाँच मंजिला बन गई।

परोपकारी कार्य :

  • उसने दीवान-ए-खैरात विभाग स्थापित किया, जो मुसलमान अनाथ स्त्रियों एवं विधवाओं को आर्थिक सहायता देता था।
  • उसने दिल्ली के निकट एक खैराती अस्पताल दार-उल-शफा स्थापित किया।
  • फिरोज ने दीवान-ए-इस्तिहाक की स्थापना की, जो मृत सैनिकों के आश्रितों को मदद देने से सम्बन्धित था।
  • उसने गुलामों के लिए पृथक विभाग दीवान-ए-बदगान बनाया।

शिक्षा

  • फिरोज विद्वानों का सम्मान करता था। उसके दरबार में बरनी एवं शम्से सिराज अफीफ जैसे विद्वान निवास करते थे।

प्रमुख पुस्तकें व लेखक

                पुस्तक                                                                   लेखक                             

                फतवा-ए-जहाँदारी                                              बरनी                                     

                तारीख-ए-फिरोजशाही                                       बरनी

                तारीख-ए-फिरोजशाही                                        शम्स ए सिराज अफीफ   

                फतुहाल-ए-फिरोजशाही (आत्मकथा)            फिरोजशाह तुगलक

  • उसने ज्वालामुखी मंदिर के पुस्तकालय से प्राप्त 1300 ग्रन्थों में से कुछ का फारसी में अनुवाद करवाया, जिसमें से एक का नाम दलायते फिरोजशाही था, जो नक्षत्र विज्ञान से सम्बन्धित था।

धार्मिक नीति

  • फिरोज ने राज्य की शासन व्यवस्था में इस्लाम के कानूनों और उलेमा वर्ग को प्रधानता दी। वह सूफी संत बाबा फरीद का अनुयायी था।
  • वह बहुसंख्यक हिन्दुओं के प्रति कठोर था।
  • फिरोज ने खलीफा से दो बार अपने सुल्तान के पद की स्वीकृति ली और अपने को खलीफा का नायब पुकारा।

नासिरूद्दीन महमूद (1394-1412 ई.)

  • यह तुगलक वंश का अंतिम शासक था।
  • उसका शासन दिल्ली तक ही सीमित था।
  • इसके शासनकाल में मंगोल तैमूर लंग ने 1398 ई. में आक्रमण किया।
  • नासिरूद्दीन की मृत्यु  1412 ई. हुई, जिसके बाद तुगलक वंश का शासन समाप्त हो गया।
  • 1412 ई. में दौलत खाँ लोदी सुल्तान बना, परन्तु खिज्र खाँ ने दिल्ली पर आक्रमण किया और उसे परास्त कर स्वयं 1414 ई. में दिल्ली के सिंहासन पर बैठकर सैयद वंश की स्थापना की।

सैयद वंश  (1414 – 1451 ई.)

  • सैयद वंश का संस्थापक खिज्रखाँ (1414-1421 ई.) था। उसने सुल्तान की उपाधि ग्रहण नहीं की, बल्कि रैयत-ए-आला की उपाधि से ही संतुष्ट था।
  • वह तैमूर के पुत्र शाहरूख को निरंतर भेंट और राजस्व भेजता था।
  • उसने कई वर्षों तक शाहरूख के नाम का खुतबा भी पढ़ा।
  • उसकी मृत्यु 20 मई, 1421 ई. को दिल्ली में हुई।
  • खिज्रखाँ ने अपने पुत्र मुबारकशाह (1421-1434 ई.) को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, जिसने शाह की उपाधि धारण की।
  • उसने अपने नाम के सिक्के चलाये।
  • उसने यमुना के किनारे मुबारकाबाद बसाया।
  • उसने तत्कालीन विद्वान याहिया सरहिन्दी को संरक्षण प्रदान किया, जिसने उस समय के इतिहास तारीख-ए-मुबारकशाही को लिखा।
  • मुबारकशाह सैयद शासकों में योग्यतम शासक था।
  • इस वंश का अंतिम शासक अलाउद्दीन आलमशाह (1445-1451 ई.) था।
  • सैयद वंश का शासन केवल 37 वर्ष का रहा।

लोदी वंश  (1451-1526 ई.)

बहलोल लोदी (1451-1489 ई.)

  • बहलोल लोदी ने 1451 ई. में अलाउद्दीन आलमशाह को अपदस्थ कर दिल्ली पर लोदी वंश की स्थापना की।
  • दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला प्रथम अफगान शासक बहलोल लोदी था।
  • वह 19 अप्रैल, 1451 को बहलोलशाह गाजी के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।
  • वह अफगानों की एक महत्त्वपूर्ण शाखा शाहूखेल से सम्बन्धित था।
  • उसकी महत्त्वपूर्ण सफलता जौनपुर राज्य को दिल्ली सल्तनत में मिलाना था।
  • बहलोल ने बहलोली सिक्के चलवाये, जो अकबर के पहले तक उत्तर भारत में विनिमय का मुख्य साधन बना रहा।
  • वह अमीरों को मकसद-ए-अली पुकारता था।
  • उसका अंतिम आक्रमण ग्वालियर पर हुआ। ग्वालियर से वापस आते हुए जलाली के निकट जुलाई, 1489 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

सिकंदर लोदी (1489-1517 ई.)

  • बहलोल की मृत्यु के बाद उसका पुत्र निजाम खाँ, सुल्तान सिकन्दरशाह के नाम से 17 जुलाई, 1489 ई. को दिल्ली का शासक बना।
  • उसने आगरा को बसाया, जहाँ पर बादलगढ़ का किला का निर्माण कराया।
  • 1506 ई. में आगरा, सिकन्दर लोदी की राजधानी बनी।
  • सिकन्दर लोदी गुलरुखी के उपनाम से फारसी में कविताएँ लिखता था।
  • उसके समय में गायन विद्या के एक श्रेष्ठ ग्रंथ लज्जत-ए-सिकन्दरशाही की रचना हुई।
  • उसने एक आयुर्वेदिक ग्रंथ का फारसी में अनुवाद कराया, जिसका नाम फरंहगे सिकन्दरी रखा गया।
  • उसने नाप के लिए पैमाना गज-ए-सिकन्दी प्रारम्भ किया, जो 30 इंच का होता था।
  • सिकन्दर ने अनाज पर जकात लेना बंद करवाया।
  • उसने ब्राह्मणों से जजिया लेना पुनः शुरू किया।
  • उसने नगरकोट के ज्वालामुखी की मूर्ति को तोड़कर उसके टुकड़ों को माँस तोलने के लिए कसाइयों को दे दिया।
  • उसने मुहर्रम में ताजिये निकालना भी बंद कर दिया था और मुस्लिम स्त्रियों को पीरों और संतों की मजारों पर जाने से रोक दिया।
  • सिकन्दर लोदी की मृत्यु  21 नवम्बर, 1517 ई. को आगरा में हुई।

इब्राहिम लोदी (1517-1526 ई.)

  • इब्राहिम लोदी, सिकन्दर लोदी का पुत्र  था, जो लोदी वंश का अंतिम शासक था।
  • प्रमुख अफगान सरदार दौलता खाँ लोदी (पंजाब का सूबेदार) और इब्राहिम लोदी का चाचा आलम खाँ ने इब्राहिम की सत्ता को समाप्त करने के उद्देश्य से काबुल के शासक बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया।
  • 12 अप्रैल, 1526 ई. को बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ, जिसमें इब्राहिम की पराजय हुई और वह युद्ध स्थल पर मारा गया।
  • इब्राहिम लोदी की मृत्यु से लोदी वंश एवं दिल्ली सल्तनत समाप्त हुआ और भारत में मुगल सत्ता की स्थापना हुई।

सल्तनतकालीन शासन व्यवस्था

केन्द्रीय शासन

  • केन्द्रीय शासन का प्रधान सुल्तान होता था। उत्तराधिकारी का नियम नहीं था।

प्रमुख अधिकारी एवं उनके कार्य

अधिकारी                                      :      कार्य                                            

वजीर (प्रधानमंत्री)                      :      राजस्व विभाग (दीवान-ए- वजारत) का प्रधान

आरिज-ए-मुमालिक                   :      सेना विभाग (दीवान-ए-अर्ज) का प्रधान

दबीर-ए-खास (अमीर मुंशी)      :      शाही पत्र-व्यवहार विभाग (दीवान-ए-इंशा) का प्रधान

दीवाने रसालत                             :      विदेश वार्ता और कूटनीतिक सम्बन्धों की देखभाल करने वाला अधिकारी

सद्र-उस-सुदूर                               :      धर्म विभाग का प्रधान

काजी-उल-कजात                       :      न्याय विभाग का प्रधान

बरीद-ए-मुमालिक                       :      गुप्तचर विभाग का प्रधान

अमीर-ए-आखुर                           :      अश्वशाला का प्रमुख

मुंसिफ-ए-मुमालिक                   :      महालेखाकार

अमीर-ए-मजलिस                      :      शाही उत्सवों का प्रबन्धकर्ता

खजिन                                           :      आय का संग्रहकर्ता

प्रमुख विभाग एवं उनके कार्य

विभाग                                                                                   कार्य                   

दीवान-ए-इश्तिहाक                            :                               पेंशन विभाग       

दीवान-ए-मुस्तखराज                        :                               राजस्व विभाग   

दीवान-ए-इंशा                                      :                               पत्रचार विभाग

दीवान-ए-अमीर कोही                        :                               कृषि विभाग

दीवान-ए-बंदगान                                                :                               दासों का विभाग

दीवान-ए-अर्ज                                      :                               सैन्य विभाग

दीवान-ए-खैरात                                  :                               दान विभाग

दीवान-ए-वजारत                                                :                               वित्त विभाग

कर व्यवस्था

दिल्ली सुल्तानों के समय कुछ विशेष कर इस प्रकार थे :

  1. उश्र :  मुसलमानों से लिया जाने वाला भूमि कर।
  2. खराज: गैर मुसलमानों पर भूमि कर।
  3. खम्स: लूट में प्राप्त धन। इसके 1/5 भाग पर सुल्तान का अधिकार एवं 4/5 भाग पर सैनिकों एवं अन्य अधिकारियों पर अधिकार होता था, लेकिन फिरोजशाह तुगलक को छोड़कर सभी सुल्तानों ने 4/5 भाग स्वयं अपने लिए रखा। सुल्तान सिकन्दर लोदी ने गड़े हुए खजानों में से कोई हिस्सा नहीं लिया।
  4. जकात:  मुसलमानों पर धार्मिक कर।
  5. जजिया: गैर मुसलमानों (जिम्मी) पर धार्मिक कर।

सेना की दशमलव प्रणाली

सरेखेल     :     10  घुड़सवारों का प्रधान                             सिपहसालार        :     10  सरेखेलों का प्रधान

अमीर        :     10  सिपहसालारों का प्रधान                      मलिक                  :     10  अमीरों का प्रधान

खान          :     10  मलिकों का प्रधान                                 सुल्तान                 :     सभी खानों का प्रधान

इक्ताओं का शासन

  • प्रान्तों को इक्ता के नाम से पुकारा जाता था।
  • इक्ताओं को शिकों में विभाजित किया गया, जिसका प्रमुख एक सैनिक अधिकारी शिकदार होता था।
  • शिकों को परगना में विभाजित किया जाता था, जिसका मुख्य अधिकारी आमिल होता था।
  • शासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी, जहाँ पर खुत (भूस्वामी) और मुकद्दम (मुखिया) मुख्य अधिकारी थे।
  • प्रांतीय या सूबे के स्तर के अधिकारियों को वली मुक्ता, अमीर या मलिक पुकारा जाता था।
  • अलाउद्दीन खिलजी के समय दीवान-ए-वजारत ने इक्ताओं की आय पर अपना नियंत्रण रखा और अंततः इक्ता प्रथा को समाप्त किया।
  • फिरोज तुगलक ने इक्ता प्रथा की दुबारा शुरूआत की थी।

कारखानें

  • दिल्ली सुल्तानों ने विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए अनेक कारखाने खोले थे। इन कारखानों में बनने वाली वस्तुएँ अमीरों और अन्य धनवान व्यक्तियों को बेची जाती थी, जिससे सुल्तान की आय में वृद्धि होती थी।
  • अफीक के अनुसार दो तरह के कारखाने थे :
    • रातिबी: इनमें कामगारों को निचित वेतन दिया जाता था।
    • गैर-रातिबी: यहाँ काम के अनुसार धन दिया जाता था।
  • प्रत्येक कारखाने की देखभाल के लिए मुतसर्रिफ नामक एक अधिकारी होता था और सभी मुतसर्रिफों के ऊपर एक प्रधान मुतसर्रिफ होता था।

प्रान्तीय राज्य

      मोहम्मद बिन तुगलक की असफल योजनाओं और प्रशासनिक विफलता के कारण साम्राज्य का विघटन होने लगा। इसके परिणामस्वरूप भारत के विभिन्न क्षेत्रें में स्वतंत्र प्रांतीय राज्यों का उदय हुआ। इनमें उत्तर भारत में जौनपुर, मालवा, कश्मीर, मारवाड़ एवं दक्षिण भारत में माबर, खानदेश, बहमनी तथा विजयनगर प्रमुख थे।

कश्मीर

  • कश्मीर में हिन्दू राज्य की स्थापना सूहादेव ने 1301 ई. में की। यहाँ हिन्दूशाही वंश का शासक था।
  • शाहमीर, शम्सुद्दीन के नाम से कश्मीर का प्रथम मुस्लिम शासक बना और इन्द्राकोट में शाहमीर राज्य की स्थापना की।
  • कालांतर में सिकंदरशाह नामक शासक हुआ, उसे बुतशिकन की उपाधि दी गई। उसके काल में तैमूर का भारत पर आक्रमण हुआ (1398 ई.)।
  • उसने मार्तण्ड मंदिर सहित अनेक हिन्दू मंदिर और मूर्तियों का विनाश किया। इस कारण इसे ‘बुतशिकन’  कहा गया।
  • 1420 ई. में सिकंदरशाह का पुत्र शाही खाँ, जैन-उल-आबदीन के नाम से सिंहासन पर बैठा। उसे बुधशाह व महान सुल्तान भी कहा जाता था।
  • वह फारसी, संस्कृत, कश्मीरार, तिब्बती आदि भाषाओं का ज्ञाता था।
  • वह धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक सहिष्णु था।
  • उसने महाभारत और राजतरंगिनी का फारसी में अनुवाद कराया था।
  • वह कुतुब उपनाम से फारसी में कविताएँ लिखता था।
  • उसने शिकायतनामा ग्रन्थ की रचना की। 1470 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
  • कश्मीर के लोगों ने उसे वुडशाह की उपाधि दी।
  • उसकी उदार नीतियों के कारण उसे कश्मीर का अकबर और मूल्य नियंत्रण व्यवस्था के कारण कश्मीर का अलाउद्दीन खिलजी कहा जाता है।
  • दिल्ली सल्तनत के किसी भी सुल्तान ने क”मीर पर अधिकार नहीं किया। बाद में 1588 ई. में अकबर ने उसे अपने राज्य में शामिल किया।

जौनपुर

  • जौनपुर नगर को फिरोजशाह तुगलक ने 1359 ई. में बसाया था।
  • जौनपुर में स्वतंत्र सत्ता का संस्थापक मलिक सरवर था, जिसे फिरोजशाह तुगलक के पुत्र सुल्तान महमूद ने मलिक-उस-शर्क की उपाधि दी थी।
  • उसके पद के कारण उसका वंश शर्की वंश कहलाया।
  • शर्की शासकों में सबसे उल्लेखनीय शासक इब्राहिम शाह था, जिसने सिराज-ए-हिन्द की उपाधि धारण की।
  • अटाला मस्जिद, जो जौनपुर ढंग की शिल्प विद्या के देदीप्यमान नमूने के रूप में खड़ी है, इब्राहिम शाह के काल (1408 ई.) में पूरी हुई। झँझरी मस्जिद का भी निर्माण इब्राहिम शाह ने करवाया था।
  • लाल दरवाजा मस्जिद का निर्माण मुहम्मदशाह ने 1450 ई. में कराया था।
  • उसने जौनपुर को एक सुन्दर नगर बनाया और उसके समय स्थापत्य कला में एक नयी शैली जौनपुर या शर्की शैली का जन्म हुआ।
  • इस काल में जौनपुर को पूरब का शिराज कहा जाने लगा।
  • जामा मस्जिद का निर्माण 1470 में हुसैनशाह शर्की ने कराया था।
  • शर्की वंश का अंतिम शासक हुसैनशाह शर्की था, जिसे बहलोल लोदी ने 1579 ई. में हराया और 1484 ई. में जौनपुर को अपने अधीन कर लिया।
  • महाकाव्य पदमावत् का रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी जौनपुर का ही निवासी था।

जौनपुर के अन्य शासक :

  • मुबारकशाह (1399-1402 ई.), शम्सुद्दीन इब्राहिमशाह (1402-36 ई.)।
  • महमूद शाह (1436-51 ई.) और हुसैनशाह (1458-1500 ई.)।
  • लगभग 75 वर्ष तक स्वतन्त्र रहने के बाद जौनपुर पर बहलोल लोदी ने कब्जा कर लिया।

बंगाल

  • बंगाल को दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित करने का श्रेय इख्तियारूद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी को था।
  • मोहम्मद तुगलक के समय 1338 ई. में बंगाल दिल्ली से स्वतंत्र हो गया।
  • चार साल बाद इलियास खाँ नामक एक अमीर ने लखनौती और सोनारगाँव पर कब्जा कर लिया और सुल्तान शम्सुद्दीन इलियास खाँ की उपाधि धारण कर बंगाल पर आक्रमण कर उसकी राजधानी पंडुआ पर कब्जा कर लिया। बाद में दोनों में संधि हो गई।
  • गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल को तीन भागों में विभाजित किया- लखनौती (उत्तर बंगाल), सतगाँव (दक्षिण बंगाल) एवं सोनार गाँव (पूर्वी बंगाल)।
  • 1345 ई. में काजी इलियास बंगाल के विभाजन को समाप्त कर शम्सुद्दीन इलियास शाह के नाम से बंगाल का शासक बना।
  • पांडुआ में अदीना मस्जिद का निर्माण 1364 ई. में सुल्तान सिकन्दर शाह ने करवाया।
  • इलियास खाँ के राजवंश का सबसे प्रसिद्ध सुल्तान गयासुद्दीन आजमशाह (1389-1409 ई.) था।
  • यह अपनी न्यायप्रियता के लिए जाना जाता था और प्रसिद्ध फारसी कवि हाजिफ शीरजी से उसका संपर्क था।
  • बंगाल के अमीरों ने 1498 ई. में अलाउद्दीन हुसैनशाह को बंगाल का शासक बनाया। चैतन्य महाप्रभु, अलाउद्दीन के समकालीन थे।
  • उसने राजधानी को पांडुआ से गौड़ स्थानान्तरित किया।
  • उसने सतदीरे नामक आंदोलन की शुरूआत की।
  • मालाधर बसु ने अलाउद्दीन के शासनकाल में श्रीकृष्ण विजय की रचना कर गुणराजखान की उपाधि धारण की तथा उसके पुत्र को सत्यराजखान की उपाधि दी गई।
  • अलाउद्दीन हुसैनशाह का पुत्र नासिरूद्दीन नुसरतशाह की उपाधि से सिंहासन पर बैठा।
  • उसने गौड़ में बड़ा सोना एवं कदम रसूल मस्जिद का निर्माण करवाया।
  • नुसरतशाह के शासनकाल में बाबर के आक्रमण किया था।
  • इस वंश का अंतिम शासक गियासुद्दीन महमूदशाह था, जिसे शेरशाह ने हराकर सम्पूर्ण बंगाल पर कब्जा कर लिया।

गुजरात

  • गुजरात को दिल्ली सल्तनत में मिलाने का कार्य अलाउद्दीन खिलजी ने राजा कर्ण (रायकरन) को 1297 ई. में परास्त करके किया।
  • मुहम्मद तुगलक ने जफरखाँ को गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया, जिसने 1407 ई. में अपने को गुजरात का स्वतन्त्र शासक बना लिया। जफरखाँ को मुजफ्रफरशाह की उपाधि दी गई थी।
  • मुजफ्रफरशाह की मृत्यु के बाद उसका पौत्र अहमदशाह सुल्तान बना। उसने नव स्थापित अहमदाबाद को अपनी राजधानी बनाया।
  • उसने अहमदाबाद में एक जामा मस्जिद का निर्माण कराया।
  • महमूद बेगड़ा (1458-1511 ई.) अपने वंश का महानतम शासक था। उसने चम्पानेर एवं गिरनार के किलों को जीता, इसलिए उसे बेगड़ा कहा जाने लगा। उसने मुस्ताफाबाद नगर की स्थापना की।
  • उसने सिद्धापुर मंदिर का विनाश किया और गुजरात में पहली बार हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया।
  • 1572  ई. में मुगल बादशाह अकबर ने गुजरात को अपने साम्राज्य में मिला लिया।

मालवा

  • अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा को दिल्ली सल्तनत का अंग बनाया था।
  • तैमूर के आक्रमण के बाद, दिलावर खाँ गोरी ने 1401 ई. में मालवा के स्वतन्त्रता की घोषणा की।
  • दिलावर खाँ का पुत्र अलप खाँ, होशंगशाह की उपाधि लेकर 1405 ई. में अगला शासक बना, जिसने नर्मदा नदी के किनारे होशंगाबाद शहर बसाया था। उसने मांडू को अपनी राजधानी बनायी।
  • महमूदशाह (1436-1469 ई.) ने मालवा में खिलजी वंश की नींव डाली। मेवाड़ के राणा कुम्भा से हुए युद्ध में दोनों शासकों ने अपनी-अपनी विजय का दावा किया।
  • राणा कुम्भा ने चित्तौड़ में विजय स्तम्भ बनवाया और महमूद खिलजी ने माण्डू में सात मंजिलों वाला स्तम्भ स्थापित किया।
  • गुजरात के शासक बहादुरशाह ने महमूद शाह द्वितीय को युद्ध में परास्त कर उसकी हत्या कर दी और मालवा को गुजरात में मिला लिया।
  • मांडू के किले का निर्माण हुशंगशाह ने करवाया था। इस किले में दिल्ली दरवाजा सबसे महत्वपूर्ण है।
  • बाजबहादुर एवं रूपमती का महल का निर्माण सुल्तान नासिरुद्दीन शाह द्वारा करवाया गया था।
  • हिंडोला भवन या दरबार हॉल का निर्माण हुशंगशाह ने करवाया।
  • जहाज महल का निर्माण गयासुद्दीन खिलजी ने मांडू में करवाया था।
  • कुश्कमहल को महमूद खिलजी ने फतेहाबाद में बनवाया था।
  • अकबर ने मालवा को मुगल साम्राज्य में सम्मिलित किया।

                महल/भवन                                                          निर्माणकर्ता         

                बाजबहादुर महल, रूपमती का महल              सुल्तान नासिरूद्दीन शाह

                कु”कमहल                                                            महमूद खिलजी

                जहाजमहल                                                          गियासुद्दीन खिलजी

                हिंडोला भवन (दरबार हाल)                               हुशंगशाह

मेवाड़ (आधुनिक उदयपुर)

  • अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. मेवाड़ को जीतकर दिल्ली सल्तनत में मिलाया था।
  • उस समय मेवाड़ का शासक राणा रतन सिंह, गुहिलौत राजपूत वंश का था।
  • गुहिलौत वंश की एक शाखा सिसोदिया वंश के हम्मीरदेव ने मेवाड़ राज्य की पुनः स्थापना की।
  • इस राजवंश का एक महान शासक राणा कुम्भा था। उसने मालवा के विरुद्ध सफलता प्राप्त करने के उपलक्ष्य में 1448 ई. में चितौड़ में कीर्ति स्तम्भ बनवाया, जिसे हिन्दू देवशास्त्र का चित्रित कोश कहा गया है।
  • उसने जसदेव कृत गीतगोविन्द पर रसिकप्रिया नामक टीका लिखी।
  • 1527 ई. में खानवा के युद्ध में बाबर ने राणा साँगा को पराजित किया एवं 1576 में अकबर ने हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप को पराजित किया।
  • मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ थी। जहाँगीर ने मेवाड़ को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।

खानदेश

  • नर्मदा व ताप्ती नदियों के बीच खानदेश के स्वतंत्र राज्य की स्थापना फिरोजशाह तुगलक के सूबेदार मलिक अहमद राजा फारूकी ने 1382 ई. में की।
  • उसकी राजधानी बुरहानपुर थी और असीरगढ़ का किला एक शक्तिशाली सैन्य अड्डा था।
  • अकबर ने 1601 ई. में खानदेश को मुगल साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया।

विजय नगर एवं बहमनी राज्य

  • भारत के दक्षिणी पश्चिमी तट पर 1336 ई. में विजयनगर राज्य (वर्तमान नाम हम्पी) की स्थापना हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने की थी।
  • मुहम्मद तुगलक ने जब कम्पिली को विजय किया, तब हरिहर एवं बुक्का को पकड़कर दिल्ली लाया और उन्हें मुसलमान बना दिया, लेकिन जब कम्पिली में विद्रोह हुआ, तो हरिहर एवं बुक्का को दक्षिण की सुरक्षा के लिए वहाँ भेजा गया। वहाँ पर संत विद्यारण्य के प्रभाव में आकर वे पुनः हिन्दू बन गये।
  • 1336 ई. में हरिहर ने हम्पी हस्तिनावती राज्य की नींव डाली तथा उसी वर्ज तुगंभद्रा के तट पर विजयनगर बसाया।

संगम वंश

हरिहर प्रथम (1336-56 ई.)

  • यह संगम वंश का प्रथम शासक था। इसकी पहली राजधानी अनेगोण्डी थी। सात वर्ज बाद उसने विजयनगर को अपनी राजधानी बनाया।
  • उसने होयसल को जीतकर विजयनगर में मिलाया, तथा मदुरा के मुसलमानी राज्य को पराजित किया।

बुक्का प्रथम (1356-77 ई.)

  • उसने मदुरा के अस्तित्व को मिटाकर विजयनगर साम्राज्य में मिला लिया।
  • उसने वेद-मार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि ग्रहण की थी।
  • बुक्कादृप्  ने चीन में एक दूत मंडल भेजा, उसने तेलुगू साहित्य को प्रोत्साहित किया।
  • उसने विद्यानगर का नाम विजयनगर रखा और कृष्णा नदी को विजयनगर एवं बहमनी राज्य की सीमा माना।

हरिहर द्वितीय  (1377-1404 ई.)

  • इसने महाराजाधिराज की उपाधि ग्रहण की थी।
  • यह शिव के विरूपाक्ष रूप का उपासक था।

देवराय प्रथम (1406-22 ई.)

  • उसने हरविलास तथा प्रसिद्ध तेलुगू कवि श्रीनाथ को संरक्षण दिया।
  • इसके काल में इटली का यात्री निकोली कोण्टी (1420 ई.) ने विजयनगर की यात्र की।
  • इसने तुर्की तीरंदाजों को सेना में शामिल किया।
  • इसी के शासनकाल में बहमनी शासक फिरोज बहमनी ने विजयनगर पर आक्रमण किया।

देवराय-II   (1422-46 ई.)

  • यह संगम वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। इसने कोण्डबिन्दु पर विजय प्राप्त करके अपने साम्राज्य में मिलाया।
  • देवराय-II  साहित्य का महान संरक्षक और स्वयं संस्कृत का विद्वान था।
  • उसने दो संस्कृत ग्रंथों महानाटक सुधानिधि और वादरायण के ब्रह्मसूत्र पर टीका की रचना की।
  • उसके समय फारसी यात्री अब्दुर्रज्जाक ने विजयनगर की यात्र की थी।
  • संगम वंश का अंतिम शासक विरूपाक्ष द्वितीय था, जिसे सालुव नरसिंह ने मारकर सालुव वंश की स्थापना की।

सालुव वंश

  • नरसिंह सालुव अपने वंश का एकमात्र शासक (1485-1506 ई.) हुआ। 

तुलुव वंश

  • तुलुव वंश का संस्थापक वीर नरसिंह तुलुव था। इसकी स्थापना 1505 ई. में हुई थी।

कृष्णदेव राय (1509-1529 ई.)

  • कृष्णदेवराय तुलुव वंश का सबसे महान शासक था। वह 8 अगस्त, 1509 ई. को शासक बना।
  • बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में विजयनगर के शासक कृष्णदेवराय को भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा बताया है।
  • सालुव तिम्मा कृष्णदेवराय का योग्य मन्त्री एवं सेनापति था।
  • उसने अपने प्रसिद्ध तेलुगू ग्रंथ आमुक्तमाल्याद में अपनी प्रशासनिक नीतियों की विवेचना की है।
  • उसने विजयनगर के निकट नागल्लपुर नाम का नया शहर बसाया।
  • उसके दरबार में तेलुगू साहित्य के आठ सर्वश्रेष्ठ कवि रहते थे, जिन्हें अष्ट दिग्गज कहा जाता था।
  • उसके शासनकाल को तेलुगू साहित्य का ‘क्लासिक युग’  कहा गया है।
  • कृष्णदेवराय ने तेलुगू में ‘अमुक्तमाल्यद्’  एवं संस्कृत में ‘जाम्बवती कल्याणम्’  की रचना की।
  • ‘पांडुरंग महात्म्य’ की रचना तेनालीराम रामकृष्ण ने की थी।
  • नागलपुर नामक नये नगर, हजारा एवं विट्ठलस्वामी मन्दिर का निर्माण कृष्णदेवराय ने करवाया था।
  • कृष्णदेवराय ने ‘आन्ध्रभोज’, ‘अभिनव भोज’, ‘आन्ध्र पितामह’ आदि की उपाधि धारण की थी।
  • उसके समय में पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पायस, डुआर्ट, बारवोसा ने विजयनगर की यात्र की। 
  • कृष्णदेवराय की 1529 ई. में हुई थी।

अच्युतदेव राय (1529-42 ई.)

  • उसने महामण्डलेश्वर नामक नये अधिकारी की नियुक्ति की थी।
  • उसके समय पुर्तगाली यात्री नूनिज ने विजयनगर की यात्र की थी।
  • इसी के शासनकाल में पुर्तगालियों ने तूतीकोरन के मोती क्षेत्र पर विजय प्राप्त कर ली।

सदाशिव राय (1542-1572 ई.)

  • यह विजयनगर का नाममात्र का शासक था। वास्तविक शक्ति आरवीडु वंशीय मंत्री रामराय के हाथों में थी।
  • तालीकोटा के युद्ध के समय विजयनगर का शासक सदाशिवराय था, लेकिन युद्ध का नेतृत्वकर्त्ता रामराय था।
  • विजयनगर विरोधी महासंघ में अहमदनगर, बीजापुर, गोलकोण्डा और बीदर शामिल थे (इसमें बरार शामिल नहीं था)। इसका संचालक अली आदिलशाह था।
  • 23 जनवरी, 1565 ई. में संयुक्त सेनाओं ने तालीकोटा के युद्ध (बन्नी हट्टी या राक्षण तगड़ी का युद्ध) में विजयनगर की सेना को पराजित किया और विजयनगर साम्राज्य का अंत हुआ।
  • इस युद्ध के बाद रामराय के भाई तिरूमाल ने वैनुगोंडा को अपनी राजधानी बनाकर विजयनगर के अस्तित्व को बनाये रखा।

अरावीडु वंश

  • तिरूमल ने 1570  ई. में सदाशिव को हटाकर अरावीडु वंश की स्थापना की।
  • इस वंश का अंतिम शासक श्रीरंगदृप्प् था।

विजयनगर की शासन व्यवस्था

नायकार व्यवस्था

  • इसके अनुसार राजा अपने जागीरदारों को निश्चित भूमि जिसे अमरन कहते थे, देता था। इन भूमि स्वामियों को अमर-नायक पुकारते थे। वे राजा को प्रतिवर्ज एक निश्चित राशि देते थे और युद्ध में राजा की मदद करते थे।

आयंगार व्यवस्था

  • इस व्यवस्था के अंतर्गत कुछ गाँवों को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में संगठित किया गया और इसके प्रशासन के लिए 12 व्यक्तियों को नियुक्त किया गया, इन्हें आयंगार पुकारा गया। इनका मुख्य कार्य अपने शासन क्षेत्र में शांति और व्यवस्था स्थापित रखना था।

प्रशासन क्षेत्र

                मण्डल (प्रांत) – कोट्टम या वलनाडु (जिला) – नाडु – मेलाग्राम  (50 ग्रामों का समूह) – उस (ग्राम)।

  • किसानों को पैदावार का 1/5 भाग लगान के रूप में देना पड़ता था।
  • सेना के लिए पृथक विभाग था, जिसका अधिकारी दण्डनायक या सेनापति कहलाता था।
  • विजयनगर का सर्वाधिक प्रसिद्ध सिक्का स्वर्ण का वराह था, जिसे विदेशी यात्रियों ने हूण, परदास या पगोडा के रूप में उल्लेखित किया है। चाँदी के छोटे सिक्के ‘तार’  कहलाते थे।
  • शेट्टी/चेट्टी : यह विजयनगर राज्य के व्यापारी वर्ग में प्रमुख समुदाय था।
  • वीर पांचाल: ये दस्तकार वर्ग था।
  • वेश बाग: दासों के खरीदे-बेचे जाने को वेश बाग कहा जाता था।
  • विट्टलस्वामी का मंदिर एवं कृष्णदेवराय द्वारा बनवाया गया हजार स्तम्भों वाला मंदिर हिन्दू स्थापत्य कला के अद्वितीय नमूने हैं।

प्रमुख विदेशी यात्री

                                यात्री                                                       देश                         शासक

  • निकोलो कोण्टी (1420 ई.)                 इटली                     देवराय-I
    • अब्दुर्रज्जाक (1442 ई.)                     फारस                     देवरायदृप्प्
    • नूनिज (1405 ई.)                                 पुर्तगाल                 अच्युतदेवराय
    • डोमिंगो पायस (1515 ई.)                   पुर्तगाल                 कृष्णदेवराय
    • बारबोसा (1515 ई.)                             पुर्तगाल                 कृष्णदेवराय

बहमनी राज्य

  • बहमनी राज्य की स्थापना 1347 ई. में हसन गंगू द्वारा की गई थी। वह अबुल हसन मुजफ्रफर अलाउद्दीन बहमनशाह के नाम से सिंहासन पर बैठा।
  • उसने गुलबर्गा बनाया और उसका नाम अहमदाबाद रखा।
  • उसने हिन्दुओं से जजिया न लेने का आदेश दिया।
  • उसने अपने राज्य को चार सूबों (तर्फों) में बाँटा। गुलबर्गा, दौलताबाद, बरार एवं बीदर उसकी प्रान्तीय राजधानियाँ थीं।
  • बहमनशाह के बाद उसका पुत्र मुहम्मदशाह प्रथम (1358-1375 ई.) गद्दी पर बैठा। उसने वारंगल और विजयनगर के हिन्दु राजाओं से युद्ध किया।
  • इसके काल में बारूद का प्रयोग पहली बार हुआ।

प्रमुख बहमनी शासक

  • मुहम्मदशाह प्रथम                             1358-1375 ई.                      
    • अलाउद्दीन मुजाहिद                           1375-1378 ई.
    • मुहम्मद द्वितीय                               1378-1397 ई.                      
    • ताजुद्दीन फिरोजशाह                          1397-1422 ई.
    • अहमदशाह                                           1422-1436 ई.                      
    • अलाउद्दीन अहमदशाह                      1436-1458 ई.
    • मुहम्मदशाह-III                                 1463-1482 ई.
  • ताजुद्दीन फिरोजशाह ने फिरोजशाह नामक एक शहर बसाया और चोल और दभौल बंदरगाहों की उन्नति की।
  • अहमदशाह ने 1425  ई. में बीदर को अपनी राजधानी बनाया, जिसे मुहम्मदाबाद का नाम दिया गया।
  • अलाउद्दीन अहमदशाह के शासनकाल में महमूद गवाँ को राज्य की सेवा में लिया गया।
  • हुमायूँ ने तीन वर्ष का शासन किया।
  • हुमायूँ बहुत क्रूर था। उसे दक्कन का नीरो भी कहा गया।
  • मुहम्मद-III के शासनकाल में रूसी यात्री निकितिन ने बहमनी राज्य की यात्र की थी। इसी काल में महमूद गवाँ प्रधानमंत्री (वजीर) बना और उसे ख्वाजा जहाँ की उपाधि दी गई।
  • बहमनी साम्राज्य में 18 शासक हुए, जिन्होंने 175 वर्ष तक शासन किया।

बहमनी राज्य का शासन

  • बहमनी राज्य चार अरतफों (प्रांत) में बाँटा गया था- दौलताबाद, बरार, बीदर और गुलबर्गा (इसमें बीजापुर सम्मिलित था)।
  • प्रत्येक अरतफ का प्रमुख तर्फदार होता था।
  • महमूद गवाँ के मंत्रित्वकाल में प्रांतों की संख्या चार से बढ़कर आठ कर दी गई।

प्रमुख पद

  • वकील-उल-सल्तनत                         प्रधानमंत्री
    • अमीर-ए-जुमला                                  वित्त मंत्री
    • वजीर-ए-अशरफ                                 विदेश मंत्री
    • वजीर-ए-कुल                                       सभी मंत्रियों के कार्यों का निरीक्षण
    • पेशवा                                                     वकील-ए-सल्तनत
    • कोतवाल                                               पुलिस अधिकारी
    • नाजिर                                                   अर्थ विभाग से सम्बन्धित
    • सद्रे-ए-जहाँ                                           न्याय एवं धर्म विभाग का अध्यक्ष
    • अमीर-उस-उमरा                                                राज्य का सेनापति
  • सुल्तान के अंगरक्षक साख-ए-खेल कहलाते थे।
  • शिहाबुद्दीन अहमद ने मंसबदारी प्रथा का आरम्भ किया, जिसमें सैनिक अधिकारियों को उनके मनसब के अनुसार जागीरें दी गईं।

बहमनी राज्य का पतन

बहमनी राज्य का अंतिम शासक कलीमुल्ला था, जिसकी मृत्यु 1538 ई. में हुई और उसके पश्चात् बहमनी राज्य पाँच स्वतंत्र  राज्यों में बँट गया।

                                राज्य                      वर्ष (ई.)                  संस्थापक                             वंश   

  • बीजापुर                 1489                      युसुफ आदिलशाह               आदिलशाही
    • अहमदनगर            1490                     मलिक अहमद                     निजामशाही
    • बरार                         1490                     इमादशाह                              इमादशाही
    • गोलकुण्डा               1512                     कुली कुतुबशाह                    कुतुबशाही
    • बीदर                      1526                      अमीर अली बरीद                                बरीदशाही
  • 1547 ई. में अहमदनगर ने बरार को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
  • बीजापुर ने बीदर को 1618-19 में अपने साम्राज्य में मिलाया।
  • शाहजहाँ ने 1636 ई. में अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
  • औरंगजेब ने 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा का अपने साम्राज्य में मिलाया।
  • मुहम्मद प्रथम के मन्त्री सैफुद्दीन गौरी ने केन्द्रीय शासन का कार्य कई विभागों में विभक्त किया और उसने 8 मन्त्रियों को नियुक्त किया :
    • वकील-ए-सल्तनत – दिल्ली के मलिक नायब के समान।
    • वकील-ए-कुल – सभी मन्त्रियों के कार्यों का निरीक्षण।
    • अमीर-ए-जुमला – अर्थ विभाग का अध्यक्ष।
    • वजीर-ए-अशरफ – विदेश नीति एवं दरबार सम्बन्धी कार्यों का निष्पादन करता था।
    • नाजिर – वह अर्थ विभाग से सम्बन्धित था।
    • पेशवा – वकील-ए-सल्तनत का सहायक था।
    • कोतवाल – नगर का मुख्य पुलिस अधिकारी था।
    • सद्र-ए-जहाँ – न्याय विभाग, धर्म तथा दान विभाग का अध्यक्ष।

मध्यकालीन भारत में धार्मिक आंदोलन

      मध्यकालीन भारत में मुसलमानों में सूफी सम्प्रदाय की प्रगति और हिन्दुओं में भक्ति मार्ग पर बल अथवा भक्ति आंदोलन की प्रगति थी।

सूफी आंदोलन

  • सूफी आंदोलन इस्लाम के रहस्यवादी व समन्वयवादी दर्शन की अभिव्यक्ति है।
  • इसमें इस्लाम के बाह्य स्वरूप अथवा क्रिया-कलापों पर बल नहीं दिया जाता, अपितु आंतरिक प्रेरणा, सदाचार, मानवता, ईश्वर के प्रति प्रेम आदि पर बल दिया जाता है।
  • सूफियों का मठ खानकाह कहलाता है, संघ को वस्ल एवं उनकी कब्र को दरगाह कहते हैं।
  • अबु फजल की रचना अकबरनामा में 14 सूफी सिलसिलों का वर्णन है, जिसमें से 4 सिलसिले भारत में काफी लोकप्रिय हुए।

चिश्ती सिलसिला

  • चिश्ती सिलसिले के संस्थापक अबु अब्दाल चिश्ती थे, लेकिन भारत में इसका प्रचार-प्रसार ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने किया।
  • उनका मुख्य केन्द्र अजमेर था।
  • इस सिलसिले के संत गरीबीपूर्ण जीवन-यापन करते थे तथा राज्य के संरक्षण को स्वीकार नहीं करते थे।
  • चिश्ती संत खानकाहों में संगीत को महत्व देते थे। इनकी संगीत सभा ‘शमाँ’ कहलाती थी। यहीं से कव्वाली का विकास भी हुआ।

चिश्ती संप्रदाय के प्रमुख संत

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती

  • मोहम्मद गोरी ने इनको सुल्तान-उल-हिन्द की उपाधि प्रदान की थी।
    • इनकी मृत्यु 1236 में हुई, जिसके बाद अजमेर में दरगाह का निर्माण कराया गया।
    • इनके दो प्रमुख शिष्य थे- शेख हमीदुद्दीन नागौरी और शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी।

शेख हमीदुद्दीन नागौरी

  • इनका जन्म दिल्ली में हुआ और उनका कार्यक्षेत्र नागौर था।
  • मोइनुद्दीन चिश्ती ने नागौरी को सुल्तान-उल तरिकिन (असहायों का बादशाह) की उपाधि प्रदान की।

बख्तियार काकी

  • ये इल्तुतमिश कालीन थे। मोइनुद्दीन चिश्ती इन्हें बख्तियार कहते थे।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक ने बख्तियार काकी की याद में कुतुबमीनार का निर्माण आरंभ कराया था।

बाबा फरीद

  • इनका पूरा नाम फरीदुद्दीन-मंसूर-शंकर-ए-गज था।
    • बाबा फरीद से गुरुनानक काफी प्रभावित थे, इसलिए आदि ग्रंथ में बाबा फरीद की शिक्षाओं का संकलन हैं।
    • इनका कार्यक्षेत्र पंजाब के अजोधन में था।
    • इन्होंने चिल्लाह-ए-मा-अकुश की साधना की।

निजामुद्दीन औलिया

  • ये बाबा फरीद के शिष्य थे। इनका कार्यक्षेत्र ज्ञासपुर (दिल्ली) था।
    • ये एकमात्र सूफी संत थे, उन्होंने शादी नहीं की थी।
    • इनको महबूबे इलाही (ईश्वर का प्रिय) भी कहा जाता था।
    • अमीर हसन रिजवी की रचना फवायदुल फवाद में औलिया की शिक्षाएँ संकलित हैं।
    • उन्होंने भारतीय योग प्राणायाम को अपनाया था, इसलिए उन्हें योगसिद्धी भी कहा गया।
    • शेख चिश्ती, अमीर खुसरो एवं अमीर हसन देहलवी इनके प्रमुख शिष्य थे।

बहरूद्दीन गरीब

  • इन्होंने दक्षिण भारत में चिश्ती सिलसिले का प्रचार-प्रसार किया।
  • इनकी गतिविधियों का केन्द्र दौलताबाद था।

गेसूदराज

  • इन्होंने दक्षिण भारत में गुलबर्गा को अपना केन्द्र बनाया।
  • इन्हें बन्दा नवाज की उपाधि प्राप्त थी।

शेख सलीम चिश्ती

  • ये अकबर के समकालीन थे।
  • अकबर ने अपने पुत्र जहाँगीर का नाम सलीम रखा।

सुहरावर्दी सिलसिला

  • सुहरावर्दी सिलसिले का प्रभाव उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत क्षेत्र में था।
  • शिहाबुद्दीन उमर सुहरावर्दी इसके मुख्य प्रवर्तक थे, लेकिन भारत में इस सिलसिले के प्रवर्तन का श्रेय संत शेख बहाउद्दीन जकारिया को है।
  • इस सिलसिले के संत शेख जलालुद्दीन को फिरोजशाह तुगलक ने शेख-उल-इस्लाम के पद पर नियुक्त किया था।
  • सुहरावर्दी सिलसिले के संतों ने राजनीतिक संरक्षण प्राप्त किया था तथा वे संपत्ति को आध्यात्मिक विकास में बाधक नहीं मानते थे।

कादिरिया सिलसिला

  • इस सिलसिले के संस्थापक अब्दुल कादिर जिलानी थे।
  • उनकी मजार बगदाद में है।
  • इस सिलसिले के संत सनातन पंथी इस्लाम के समर्थक थे तथा संगीत विरोधी थे।
  • ये अपने सिर पर हरे रंग की पगड़ी बाँधते थे।
  • इस सिलसिले के एक प्रमुख संत मोहम्मद गौस ने उत्तर भारत में इसका प्रचार-प्रसार किया।
  • गौस से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने अपनी पुत्री की शादी उनसे कर दी।
  • शेख मूसा, अकबर के समकालीन थे, दाराशिकोह, संत मुल्तान शाह बदख्सी के शिष्य थे।
  • फिरदौसी सिलसिला कादिरिया सिलसिले की एक शाखा थी, जो बिहार में लोकप्रिय रहा।

नक्शबंदी सिलसिला

  • ख्वाजा उबैदुल्ला नक्शबंदी, इस सिलसिले के संस्थापक थे, लेकिन शेख अहमद फारूखी सरहिन्दी ने भारत में इसका प्रचार किया।
  • ये कुरान, हदीस, शरियत के पालन पर जोर देते थे और संगीत को इस्लाम विरोधी मानते थे।
  • शेख अहमद सरहिन्दी को मुज्जदिद (इस्लाम)  सुधारक कहा जाता था। वे अकबर व जहाँगीर कालीन थे।
  • इन्होंने अकबर के दीन-ए-इलाही का विरोध किया।
  • जहाँगीर ने इन्हें बंदी बनाया था।
  • औरंगजेब के समय इस सिलसिले का प्रभाव काफी बढ़ गया था। वह शेख मासूम का शिष्य था।

प्रमुख अन्य तथ्य

  • शेख नसीरूद्दीन को चिराग-ए-दिल्ली के नाम से जाना जाता था।
  • सूफी मत में गुरु को पीर एवं शिष्य को मुरीद कहा जाता था।
  • सत्तारी सिलसिला का संस्थापक अब्दुल सत्तार था, जो केवल मध्य भारत में ही सक्रिय था।
  • वहदत्-उल-सहूद-सिद्धांत का प्रतिपादन शेख अहमद सरहिन्दी था।
  • सूफियों के संप्रदाय बा-शरा (जो शरीयत के आदेशों को मानते थे) तथा बे-शरा (जो शरीयत के आदेशों का उल्लंघन करते थे) थे।
  • प्रत्येक सूफी सिलसिले का प्रधान खलीफा कहलाता था।
  • औरंगजेब ने सरमद नामक सूफी संत को मृत्युदण्ड दिया था।

भक्ति आंदोलन

  • हिन्दू धर्म के अंतर्गत उत्पन्न भक्ति आंदोलन मध्य युग के धार्मिक जीवन की एक महान विशेषता थी।
  • हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग थे- ज्ञान, कर्म एवं भक्ति।
  • छठी शताब्दी में भक्ति आन्दोलन का प्रारम्भ तमिल क्षेत्र से हुई और फिर महाराष्ट्र, कर्नाटक में फैल गई।
  • इस आन्दोलन को उत्तर भारत में लाने का श्रेय 12वीं शताब्दी में रामानन्द को है।
  • भक्ति आंदोलन के प्रवर्तकों ने जाति प्रथा का विरोध किया, मूर्ति पूजा को आवश्यक नहीं बताया और एकेश्वरवाद का समर्थन किया।
  • शैव नयनारों और वैष्णव अलवारों ने मुक्ति के लिए ईश्वर की वैयक्तिक भक्ति पर जोर दिया। यह हिन्दुओं का सुधारवादी आंदोलन था।
  • भक्ति आन्दोलन का विकास बारह अलवार वैष्णव सन्तों और तिरसठ नयनार शैव सन्तों ने किया।
  • शैव सन्त अप्पार ने पल्लव राजा महेन्द्रवर्मन को यौव धर्म स्वीकार करवाया।
  • वैष्णव सन्त महाराष्ट्र में लोकप्रिय हुए। वे भगवान बिठोबा के भक्त थे।
  • विठोबा पंथ के सन्त और उनके अनुयायी वरकरी या तीर्थयात्री-पंथ कहलाते थे, क्योंकि वे प्रतिवर्ष पंडरपुर की तीर्थयात्रा पर जाते थे।

 प्रमुख मत और उनके प्रतिपादक

      प्रतिपादक             दर्शन                                      सम्प्रदाय               उपासना                                मार्ग  

  • शंकराचार्य            अद्वैतवाद                           स्मृति                    निर्गुण                    ज्ञान मार्ग
  • रामानुजाचार्य      विशिष्ट-द्वैतवाद              श्री संप्रदाय            सगुण                     भक्ति मार्ग
  • निम्बाकाचार्य      द्वैताद्वैतवाद                     सनक संप्रदाय      सगुण                     भक्ति मार्ग
  • माधवाचार्य           द्वैतवाद                               ब्रह्म संप्रदाय       सगुण                     भक्ति मार्ग
  • वल्लभाचार्य         शुद्धद्वैतवाद                        रूद्र संप्रदाय          सगुण                     भक्ति मार्ग

भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत

शंकराचार्य

  • शंकराचार्य का जन्म पूरना नदी के किनारे कालदी (मालाबार, केरल) नामक स्थान पर 788 ई. में हुआ था।
    • उन्हें प्रच्छन्न बौद्ध भी कहा गया है, क्योंकि उन पर बौद्ध धर्म के शून्यवाद का प्रभाव था।
    • उन्होंने ज्ञान मार्ग के अंतर्गत निर्गुण ब्रह्म की उपासना पर बल दिया और अद्वैतवाद दर्शन (जो दो न हो) प्रतिपादित किया।
    • शंकराचार्य ने बद्रीनाथ में ज्योति पीठ, द्वारिका में शारदा पीठ, पुरी में गोवर्द्धन पीठ एवं मैसूर में  श्रृंगेरी पीठ की स्थापना की थी।
    • इनकी मृत्यु मात्र 32 वर्ष की अवस्था में 820 ई. में हो गई थी।

रामानुजाचार्य (12वीं शताब्दी के आरम्भ में)

  • इनका जन्म 1017 ई. में मद्रास के निकट पेरुम्बर नामक स्थान पर हुआ।
    • वे सगुण ईश्वर में विश्वास करते थे।
    • उन्होंने बदरायण के भाष्य तथा वेदान्त सूत्र पर भाष्य लिखा था।
    • उन्होंने विशिष्ट द्वैतवाद प्रतिपादित कर शूद्रों को भी अपना शिष्य बनाया।
    • उन्होंने अपनी शिक्षा यादव प्रकाश एवं यामुनी मुनि से प्राप्त की।
    • इनकी मृत्यु 1137 ई. में हुई थी।

निम्बार्क (12वीं शताब्दी)

  • वे राधा कृष्ण के उपासक थे और उन्हें शंकर का अवतार मानते थे।
    • उन्होंने द्वैताद्वैत दर्शन प्रतिपादित किया।
    • वे रामानुजाचार्य के समकालीन थे।

माधवाचार्य (13वीं सदी)

  • उन्होंने द्वैतवाद दर्शन प्रतिपादित किया, और वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते थे।
  • वे लक्ष्मी नारायण के उपासक थे।

वल्लभाचार्य (1479-1531 ई.)

  • इनके पिता लक्ष्मणभट्ट तेलंगाना के ब्राह्मण थे, जब वे 1479 ई. में काशी की यात्रा पर थे, तब वल्लभाचार्य का जन्म हुआ था।
    • इनके माता का नाम यल्लमगरु तथा पिता का नाम लक्ष्मण भट्ट था।
    • इन्होंने शुद्धाद्वैतवाद सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
    • इवे वैष्णव संप्रदाय के अंतर्गत कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख संत थे।
    • वे श्रीनाथजी के रूप में कृष्ण भक्ति पर बल देते थे।
    • उन्होंने सुबोधिनी और सिद्धान्त-रहस्य जैसे धार्मिक ग्रंथ लिखे।
    • वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने कृष्ण भक्ति को और भी अधिक लोकप्रिय बनाया।
    • अकबर ने उन्हें गोकुल और जैतपुरा की जागीरें प्रदान की।
    • औरंगजेब के समय श्रीनाथजी की मूर्ति को उदयपुर पहुँचा दिया गया, जहाँ वह नाथद्वारा के नाम से विख्यात हुई।

रामानन्द (14वीं सदी में)

  • ये रामानुज के शिष्य थे, जिनका जन्म प्रयाग  (इलाहाबाद) में 1299 ई. में हुआ था।
    • इन्होंने सीता-राम की भक्ति पर बल दिया।
    • इन्होंने सभी जातियों और स्त्री-पुरुषों को समान स्थान दिया।
    • वे भक्ति आंदोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाये।
    • इनके 12 शिष्यों में दो महिलायें- पद्मावती एवं सुरसी थीं।
    • इनके प्रमुख शिष्यों में उधन्ना-जाट, सेनदास-नाई था, रविदास (रैदास) चमार और कबीर जुलाहा थे।
    • इनकी मृत्यु 111 वर्ष की अवस्था में 1410 ई. में हुई थी।

कबीर

  • इनका जन्म 1440 ई. (विवादित) में हुआ था। वे सिकन्दर लोदी के समकालीन थे। इनका पालन-पोषण नीरू नामक जुलाहा एवं उनकी पत्नी नीमा ने किया था।
    • उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों को निकट लाने का प्रयत्न किया।
    • कबीर ने भक्ति को ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया।
    • उनके दोहों का संकलन बीजक में संगृहीत है, जिसका संकलन भोगदास ने किया है।
    • निर्गुण भक्ति धारा से जुड़े कबीर ऐसे पहले भक्त थे, जिन्होंने सन्त होने के बाद भी पूर्णतः गृहस्थ जीवन निर्वाह किया।
    • कबीर व धर्मदास के बीच हुए संवादों का संकलन अमरमूल में है।
    • उनकी मृत्यु मगहर (संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश) में 1510 ई. में हुई।

गुरु नानक (1469-1538 ई.)

  • गुरु नानक का जन्म लाहौर में तलवण्डी (वर्तमान ननकाना) नामक स्थान पर 1469 ई. में एक खत्री परिवार में हुआ था। इनके माता का नाम तृप्तादेवी तथा पिता का नाम कालूराम था।
    • वे मूर्तिपूजा, तीर्थयात्र तथा धार्मिक आडम्बरों के कट्टर विरोधी थे, लेकिन कर्म एवं पुनर्जन्म में विश्वास रखते थे।
    • उन्होंने निराकार ईश्वर की कल्पना की, जिसे अकाल पुरुष की संज्ञा दी।
    • वे सूफी संत बाबा फरीद से प्रभावित थे।
    • उन्होंने शिष्य बनाये, जो सिख कहलाने लगे।
    • उनका निधन 1539 ई. में करतार में हुआ था।

चैतन्य (1486-1533 ई.)

  • इनका जन्म नवदीप (बंगाल) के मायापुर गाँ में 1486 ई. में हुआ।
  • इनके माता का नाम शचीदेवी तथा पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र था।
  • इनका वास्तविक नाम विश्वम्भर था, पर बचपन में इनका नाम निमाई था।
  • शिक्षा पूरी होने के बाद उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी गई।
    • इन्होंने कृष्ण को अपना आराध्य माना।
    • इनके प्रयासों से बंगाल और ओडिशा नरेश प्रताप रूद्र गजपति उनके शिष्य थे।
    • चैतन्य महाप्रभु का देहावसान 1533 ई. में पुरी में हुई।

दादू दयाल (1544-1603 ई.)

  • इनका जन्म 1544 ई. में अहमदाबाद में एक धुनिया परिवार में हुआ था। वे कबीर के अनुयायी थे।
    • इन्होंने ब्रह्म सम्प्रदाय की स्थापना की।
    • इन्होंने ‘निपख’  नामक आन्दोलन की शुरूआत की थी।
    • ये सुन्दरदास दादू के शिष्य थे।
    • उनकी मृत्यु राजस्थान के नारायण गाँव में 1603 ई. में हुई थी।

रविदास (पन्द्रहवीं शताब्दी)

  • इनके पिता का नाम रघु तथा माता का नाम घुरबिनिया था।
    • ये रामानन्द के शिष्य थे। वे निर्गुण ब्रह्म की उपासना पर बल देते थे।
    • इन्होंने अपने विचार ब्रजभाषा में रखे।
    • रायदासी सम्प्रदाय की स्थापना की।

शंकरदेव (1449-1569 ई.)

  • शंकरदेव ने असम में वैष्णव मत को लोकप्रिय बनाया।
    • इनको नारंगदेव भी कहा जाता था।
    • उन्होंने एकशरण सिद्धांत प्रतिपादित किया।

मीराबाई (1498-1546 ई.)

  • ये मेड़ता के राजा रत्नसिंह राठौर की पुत्री थीं, जिनका विवाह राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ था।
    • वह भगवान कृष्ण की भक्त थीं और इन्होंने राजस्थानी और ब्रजभाषा में गीतों की रचना की।
    • इन्होंने कृष्ण की उपासना प्रेमी और पति के रूप में की।

सूरदास (16वीं-17वीं शताब्दी)

  • इनका जन्म रूनकता नामक गाँव में हुआ था। ये अकबर और जहाँगीर के समकालीन थे।
    • वे वल्लभाचार्य के शिष्य थे।
    • इन्होंने ब्रजभाषा में सूरसारावली, सूरसागर एवं साहित्य लहरी की रचना की। ये सगुण भक्ति के उपासक थे।

तुलसीदास (1532-1623 ई.)

  • इनका जन्म बाँदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था। ये अकबर के समकालीन थे।
  • इनकी रचना रामचरितमानस अवधी भाषा में है।
  • इनके रचनाएँ हैं- गीतावली, कवितावली, विनयपत्रिका आदि।

धन्ना

  • इनका जन्म 1415 ई. में एक जाट परिवार में हुआ था।
    • राजपुताना से बनारस आकर ये रामानन्द के शिष्य बन गये।
    • कहा जाता है कि इन्होंने भगवान की मूर्ति को भोजन कराया था।

महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन

      महाराष्ट्र में भक्ति पंथ पण्डरपुर के देवता बिठोवा या बिट्टल के मंदिर के चारों ओर केन्द्रित था। बिठोवा को कृष्ण का अवतार माना जाता है। बिठोवा पंथ के तीन अनुयायी ज्ञानेश्वर, नामदेव एवं तुकाराम थे।

ज्ञानेश्वर

  • इन्होंने महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन की शुरूआत की थी।
  • ज्ञानेश्वर ने श्रीमदभगवत् गीता पर मराठी भाजा में भावार्थदीपिका (ज्ञानेश्वरी) नामक टीका लिखी।

तुकाराम

  • ये शिवाजी के समकालीन थे।
  • इनकी रचनाएं कृष्ण को समर्पित अभंग के नाम से जानी जाती हैं।

रामदास

  • ये शिवाजी के राजगुरु थे।
  • इन्होंने दास बोध नामक पुस्तक की रचना की।

एकनाथ

  • इन्होंने भावार्थ रामायण को मराठी भाषा में लिखा।

सिख धर्म गुरु

  1. गुरु नानक                             सिख धर्म के संस्थापक।
    1. गुरु अंगद                              गुरुमुखी लिपि के आविष्कारक।
    1. गुरु अमरदास                       अनुशासन पर बल दिया।
    1. गुरु रामदास                         अमृतसर नगर बनवाया।
    1. गुरु अर्जुन देव                      गुरु ग्रंथ साहिब या आदि ग्रंथ का संकलन किया, अमृतसर में                                                  हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर)  बनवाया, इन्हें जहाँगीर ने फाँसी दे                                          दी।
    1. गुरु हरगोविंद                       अकाल तख्त के संस्थापक।
    1. गुरु हरराय                             अपने पुत्र रामराय को मुगल दरबार में भेजा।
    1. गुरु हरकिशन                       गुरुपद के लिए संघर्ष।
    1. गुरु तेग बहादुर                     औरंगजेब ने फाँसी दे दी।
    1. गुरु गोविंद सिंह                   खालसा पंथ के संस्थापक।

मुगल साम्राज्य : इतिहास के स्रोत

साहित्यिक स्रोत

                                लेखक                                                    पुस्तक                        

  • बाबर                                                      तुजुक-ए-बाबरी (तुर्की भाषा) (आत्मकथा)
    • गुलबदन बेगम                                     हुमायूँनामा
    • अबुल फजल                                         आइन-ए-अकबरी, अकबरनामा
    • अब्बास खाँ शेरवानी                           तारीख-ए-शेरशाही
    • निजामुद्दीन अहमद                            तबाकत-ए-अकबरी
    • जहाँगीर (आत्मकथा)                        तुजुक-ए-जहाँगिरि
    • मुतमिद खाँ                                          नामा-ए-जहाँगिरि
    • ख्वाजा कामगार                                  मासीर-ए-जहाँगिरि
    • अब्दुल हमीद                                       पादशाहनामा
    • इनायत खाँ                                           शाहजहाँनामा
    • बदायूँनी                                                 मुंतख्ब-उत-तवारीख
    • मिर्जा मोहम्मद कजीम                     आलमगीर नामा
    • मुस्तैद खाँ                                            मासीर-ए-आलमगीरी
    • वक्फी खाँ                                              मुन्तखाब-उल-लुबाब

विदेशी विवरण

  • ग्राण्ट डफ: मराठों का इतिहास
  • कर्नल टॉड: राजपूतों का इतिहास
  • विलियम हाकिन्स: 1608-13 ई. के बीच जहाँगीर के दरबार में रहा।
  • सर टामस रो: (1616-19 ई.) जहाँगीर के दरबार में रहा ।
  • फ्रांसिस्को (डच डाक्टर): जहाँगीर के दरबार में रहा।
  • बर्नियर (फ्रैन्च डाक्टर), ट्रैवेनियर (फैन्च जौहरी) एवं मनूची: शाहजहाँ के दरबार में आये।

स्मारक

  • बाबर का मकबरा      :               काबुल   
    • हुमायूँ का मकबरा      :               नई दिल्ली
    • जहाँगीर का मकबरा    :               लाहौर
    • शाहजहाँ का मकबरा    :               आगरा
  • मंगोलों की एक शाखा इस्लाम धर्म स्वीकार करने के पश्चात् ‘मुगल’  नाम से जानी गई।
  • 1404 ई. में तैमूरलंग की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी शाहरुख मिर्जा के काल में साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। राजनीतिक शून्यता को भरने के लिए नये राज्य अस्तित्व में आये-
    • उजबेक राज्य- मंगोलों की शाखा दश्त-ए-किपचक के शैवानी खाँ ने ट्रांस-ऑक्सियाना क्षेत्र में उजबेक राज्य की स्थापना की।
    • सफवी राज्य- शाह इस्लाम के नेतृत्व में ईरान में सफवी राज्य की स्थापना की गई। सफवी कुर्दिस्तानी ईरानी थे। ये अजरी तुर्की भाषा बोलते थे तथा शिया एवं फारसी परम्परा का निर्वाह करते थे।
    • ऑटोमन साम्राज्य- इसकी स्थापना ईरान के पश्चिमी, यानि पूर्वी यूरोप में हुई।
    • मुगल राज्य- इसकी स्थापना उमर शेख मिर्जा के नेतृत्व में हुई। मुगल ट्रांस-ऑक्सियाना के एक छोटे से भाग फरगाना के निवासी थे।

मुगल राजवंश

बाबर (1526-30 ई.)

  • मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 को फरगाना में हुआ।
  • वह पितृ वंश की ओर से तैमूर का वंशज एवं मातृ वंश की ओर से चंगेज खाँ का वंशज था।
  • बाबर 1494  ई. में 11 वर्ष की आयु में फरगाना की गद्दी पर बैठा।
  • भारत पर आक्रमण से पहले बाबर ने काबुल, बुखारा, खुरासान और समरकन्द पर विजय प्राप्त की थी।
  • बाबर ने 1507 ई. में काबुल जीतने के बाद बादशाह की उपाधि धारण की।

बाबर का भारत पर आक्रमण

  1. बाबर ने अपने प्रथम आक्रमण (1519 ई.) में बाजौर और भेरा को जीता और वापस चला गया। बाबर खैबर दर्रे से होकर आया था।
  2. दूसरा आक्रमण भी 1519 ई. में हुआ और वह पेशावर से वापस चला गया।
  3. तीसरा आक्रमण 1520 ई. में हुआ और सियालकोट उसके अधिकार में आ गया।
  4. बाबर ने अपने चौथे आक्रमण (1524 ई.) में पंजाब के अधिकांश भाग पर कब्जा कर लिया।

बाबर द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध

  • पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल 1526 ई.): यह युद्ध बाबर एवं इब्राहिम लोदी के मध्य हुआ था। बाबर ने इस युद्ध में तुगलुमा युद्ध पद्धति व तोपखाने (इस युद्ध में पहली बार तोपों का प्रयोग हुआ) का प्रयोग किया।
    • उस्ताद अली कुली एवं मुस्तफा, बाबर के तोपची थे। इन्होंने तोपों को सजाने की उस्मानी विधि (रूमी विधि) का प्रयोग किया।
    • खानवा का युद्ध (17 मार्च, 1527 ई.): यह युद्ध बाबर और मेवाड़ के शासक राणा सांगा के बीच हुआ। युद्ध जीतने के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि ग्रहण की।
    • चन्देरी का युद्ध (29 जनवरी, 1528 ई.): यह युद्ध बाबर और मेदिनीराय के मध्य हुआ, जिसमें मेदिनीराय मारा गया। उसने इस युद्ध में जेहाद घोषित किया।
    • घाघरा का युद्ध (6 मई, 1529 ई.): इस युद्ध में बाबर ने घाघरा के तट (बिहार) पर अफगानों को पराजित किया। यह बाबर द्वारा लड़ी गई अंतिम लड़ाई थी।
    • पानीपत युद्ध जीतने के बाद बाबर ने सरदारों को उचित इनाम दिये और हुमायूँ ने बाबर को कोहिनूर का हीरा दिया।
  • बाबर की इस उदारता के लिए उसे कलन्दर कह कर पुकारा गया।
  • बाबर ने पद्य में एक नवीन शैली में मुबइयान को लिखा, जो मुस्लिम कानून की पुस्तक है।
  • बाबर की आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी तुर्की भाषा में थी, जिसे अकबर ने अब्दुर्ररहीम खानेखाना के द्वारा फारसी भाजा में रूपान्तरण कराया था।
  • इसमें भारत में पाँच मुसलमान राज्य-दिल्ली, गुजरात, बहमनी, मालवा और बंगाल और दो काफिर राज्य-विजयनगर तथा मेवाड़ का वर्णन है।
  • उसने आगरा में ज्यामितीय विधि पर नूरे अफगान नामक बाग लगवाया, जिसे आरामबाग कहा जाता है।
  • 26 दिसम्बर, 1530 ई. को बाबर की मृत्यु आगरा में हुई। पहले उसे आगरा के आरामबाग में, परन्तु बाद में उसे काबुल में उसी के द्वारा चुने स्थान पर दफना दिया गया।
  • बाबर ने मरने से पहले हुमायूँ को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

हुमायूँ (1530-1556 ई.)

  • बाबर के सबसे बड़े पुत्र हुमायूँ का जन्म 6 मार्च, 1508 ई. को काबुल में हुआ। उसकी माँ माहम सुल्ताना थी।
  • हुमायूँ ने 30 दिसंबर, 1530 ई. को 23 वर्ज की आयु में आगरा की गद्दी सम्भाली।

हुमायूँ द्वारा लड़े गये युद्ध

  1. कालिंजर पर आक्रमण (1531 ई.): हुमायूँ ने कालिंजर के शासक प्रतापरूद्रदेव पर अपना पहला आक्रमण किया, लेकिन वह असफल रहा।
  2. दौराहा (दोहरिया का युद्ध) और चुनार का प्रथम घेरा (1532 ई): यह युद्ध हुमायूँ और अफगान महमूद लोदी के मध्य हुआ, जिसमें महमूद लोदी पराजित हुआ। इसके बाद हुमायूँ ने चुनारगढ़ का घेरा डाला और शेरशाह के हाथों से छीनने का प्रयत्न किया।
  3. बहादुरशाह से संघर्ष (1535-36 ई.): हुमायूँ ने गुजरात के शासक को हराकर माण्डू और चम्पानेर का दुर्ग जीता।
  4. चौसा का युद्ध (26 जून, 1539 ई.): यह युद्ध हुमायूँ और शेरखाँ के मध्य चौसा नामक स्थान पर हुआ। चौसा कर्मनाशा नदी पर स्थित था। इस युद्ध में हुमायूँ पराजित हुआ। युद्ध जीतने के बाद शेरखाँ ने शेरशाह की उपाधि धारण की। इस युद्ध में हुमायूँ बड़ी मुश्किल से निजाम नामक एक भिश्ती की सहायता से गंगा पार कर सका।
  5. कन्नौज या बिलग्राम का युद्ध (17 मई, 1540 ई.): इस युद्ध में शेरशाह ने हुमायूँ को पराजित कर आगरा और दिल्ली पर अधिकार कर लिया और हुमायूँ भारत छोड़कर सिन्ध चला गया।

हुमायूँ का निष्काषित जीवन (1540-55 ई.)

  • 15 वर्ष के निष्कासित जीवन के दौरान हुमायूँ ने हिन्दाल के गुरु मीर अली अकबर की पुत्री हमीदाबानो बेगम से 1541 ई. में विवाह किया, जिसने कालान्तर में अकबर को जन्म दिया।

भारत की पुनः विजय और मृत्यु (1555-56 ई.)

  • 15 मई, 1555  ई. को मच्छीवारा के युद्ध में मुगलों की विजय हुई और उन्होंने पंजाब को जीत लिया।
  • 22 जून, 1555 ई. को सरहिन्द के युद्ध में मुगलों ने सिकन्दर सूर को पराजित किया। इसके बाद हुमायूँ ने दिल्ली, आगरा सम्भल आदि क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।
  • 23 जुलाई, 1555 ई. को हुमायूँ एक बार फिर दिल्ली का बादशाह बना।
  • हुमायूँ की मृत्यु दीनपनाह के पुस्तकालय की सीढि़यों से गिरकर 1 जनवरी, 1556 ई. को हुई। उसने अकबर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। दिल्ली में दीनपनाह नामक नगर की स्थापना हुमायूँ ने की थी।

शेरशाह सूरी (शेर खाँ) (1540-1545 ई.)

  • शेरशाह ने उत्तर-भारत में सूर वंश के द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की। पहला अफगान साम्राज्य लोदी वंश का था।
  • शेरशाह का जन्म 1472 ई. (डा. कानूनगो के अनुसार 1486 ई.) में हुआ था। उसके बचपन का नाम फरीद था।
  • 1497 से 1518 ई. तक निरंतर 21 वर्ष तक फरीद ने अपने पिता की जागीर की देखभाल की और शासन का अनुभव प्राप्त किया।
  • बहारखाँ लोहानी ने फरीद को शेर को मारने के उपलक्ष्य में शेरखाँ की उपाधि दी।
  • शेर खाँ ने हजरत-ए-आला की उपाधि ग्रहण की और दक्षिण बिहार का वास्तविक शासक बना।
  • 1530 ई. में शेरशाह ने चुनार के किलेदार ताजखाँ की विधवा पत्नी लाड मलिका से विवाह कर चुनार के किले पर अधिकार किया।
  • 1539 ई. में चौसा के युद्ध में हुमायूँ को पराजित करने के बाद शेरखाँ ने शेरशाह सुल्तान-ए-आदिल की उपाधि ग्रहण की और सुल्तान बना।
  • 22 मई, 1545 ई. को कालिंजर पर आक्रमण के समय, तोपखाना फट जाने से शेरशाह की मृत्यु हो गई।

शासन प्रबन्ध

केन्द्रीय प्रशासन

शेरशाह स्वयं शासन का प्रधान था। उसके अन्तर्गत निम्न विभाग थे –

  • दीवाने-वजारत    :               वित्त विभाग, मुख्य अधिकारी :  वजीर।
    • दीवाने-आरिज     :               सैन्य विभाग, मुख्य अधिकारी :  आरिजे मुमालिक।
    • दीवाने-रसालत    :               विदेश मंत्री की भाँति कार्य।
    • दीवाने-इंशा           :               सुल्तान के आदेशों को लिखना, प्रधान :  दबीरे मुमालिक।
    • दीवाने-काजा        :               सुल्तान के बाद मुख्य न्यायाधीश।
    • दीवाने-बरीद         :               गुप्तचर विभाग।

प्रान्तीय प्रशासन

  • सूबा: शेरशाह ने संपूर्ण सूबे को सरकारों में बांटकर प्रत्येक को एक सैनिक अधिकारी की देख-रेख में छोड़ दिया। उनकी सहायता के लिए सूबे में एक असैनिक अधिकारी अमीन-ए-बंगाल भी नियुक्त किया गया।
  • सरकार (जिला): प्रत्येक सरकार में दो प्रमुख अधिकारी थे, जिन्हें शिकदार-ए-शिकदारां (सैनिक अधिकारी) और मुन्सिफ-ए-मुन्सिफां (न्याय अधिकारी) कहा जाता था।
  • परगना: प्रत्येक सरकार कई परगनों में बँटा था। प्रत्येक परगने में एक शिकदार (सैनिक अधिकारी), एक मुन्सिफ (दीवानी मुकदमों का निर्णय करना), एक फोतेदार (खजाँची) और दो कानकुन (क्लर्क, जो हिसाब किताब लिखते थे) होते थे।

अर्थव्यवस्था

  • शेरशाह ने उत्पादन के आधार पर भूमि को तीन श्रेणियों में बाँटा- अच्छी, मध्यम और अनउपजाऊ।
  • उसने भूमिकर निर्धारण के लिए राई (फसलदारों की सूची) लागू करवाया।
  • किसानों को संलग्न अधिकारियों के वेतन के लिए सरकार को जरीबना और महासीलाना नामक कर देना होता था। जो पैदावार का 2.5% से 5% तक होते थे।
  • उसने भूमि के माप के लिए सिकन्दरी गज (31 अंगुल या 32 इंच)  एवं सन की डंडी का प्रयोग करवाया।
  • शेरशाह ने लगान निर्धारण के लिए तीन प्रकार की प्रणालियाँ अपनाई :

                (1) गल्लाबक्शी (बटाई), (2) नश्क (मुक्ताई) या कनकूत, (3) जब्ती (जमई)।

  • किसानों से पैदावार का 1/3 भाग लगान के रूप में लिया जाता था।

मुद्रा

  • शेरशाह ने घिसे-पिटे पुराने तथा पूर्ववर्ती शासकों के द्वारा चलाये गये सिक्कों का चलन बंद कर दिया।
  • उसकी मुद्रा व्यवस्था बहुत श्रेष्ठ थी। उसने चाँदी के रुपये (180 ग्रेन), ताँबे के सिक्के दाम (380 ग्रेन) चलाये। शेरशाह के समय सोने के सिक्के (167 ग्रेन) अशर्फी कहलाते थे।
  • उसके समय 23 टकसालें थीं। उसके सिक्कों पर उसका नाम फारसी के साथ-साथ नागरी लिपि में अंकित होता था।

सड़कें एवं सराय

  • शेरशाह ने करीब 1700 सरायों का निर्माण कराया, जिसकी देखभाल शिकदार करता था।
  • उसने कई नई सड़कों का निर्माण करवाया और पुरानी सड़कों की मरम्मत करवाई :
    • बंगाल में सोनारगांव से आगरा, दिल्ली होते हुए लाहौर तक। यह सड़क-ए-आजम कहलाती थी। इसे अब ग्राण्ड ट्रंक रोड कहते हैं :
    • आगरा से बुरहानपुर तक।
    • आगरा से चितौड़ तक।
    • लाहौर से मुल्तान तक।

भवन एवं इमारतें

  • शेरशाह ने रोहतासगढ़ किला दिल्ली का पुराना किला (दीनपनाह को तुड़वाकर) एवं उसके अंदर किला-ए-कुहना, सासाराम (बिहार) में स्वयं का मकबरा बनवाया, कन्नौज नगर को बर्बाद कर शेरसूर नगर बसाया और पाटलिपुत्र को पटना के नाम से पुनः स्थापित किया।

अन्य तथ्य

  • मलिक मोहम्मद जायसी शेरशाहसूरी कालीन थे।
  • शेरशाह का समकालीन इतिहासकार हसन अली खाँ था, जिसने तवारीख-ए-दौलते-शेरशाही की रचना की थी।

अकबर (1556-1605 ई.)

  • अकबर का जन्म 15 अक्टूबर, 1542 ई. को अमरकोट के राणा वीरसाल के महल में हुआ था। उसकी माता का नाम हमीदा बानो बेगम था। वह तीन वर्ष तक अस्करी के संरक्षण में था।
  • अकबर से हुमायूँ की भेंट पुनः उस समय हुई जब हुमायूँ ने काबुल और कन्धार पर विजय प्राप्त की। इस समय उसका नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर रखा गया।
  • अकबर ने गजनी और लाहौर के सूबेदार के रूप में कार्य किया।
  • हुमायूँ की मृत्यु के समय वह अपने संरक्षक बैरम खाँ के साथ पंजाब में सिकन्दर सूर से युद्ध कर रहा था।
  • अकबर का राज्याभिषेक पंजाब में गुरदासपुर जिले के निकट कलानौर नामक स्थान पर 14 फरवरी, 1556 ई. को बैरमखाँ की देख-रेख में मिर्जा अबुल कासिम ने किया।
  • बैरम खाँ के संरक्षण में अकबर (1556-60 ई.)  ने शासन संभाला।
  • अकबर ने बैरम खाँ को अपना वकील (वजीर) नियुक्त किया और उसे खान-ए-खाना की उपाधि प्रदान की।
  • अकबर की प्रारंभिक कठिनाइयों का हल निकालने और भारत में मुगल साम्राज्य की सुरक्षा करने का श्रेय बैरमखाँ को था।

पानीपत का दूसरा युद्ध (5 नवंबर, 1556 ई.)

  • पानीपत का दूसरा युद्ध वास्तव में अकबर के संरक्षक बैरमखाँ और मोहम्मद आदिलशाह शूर के वजीर हेमू (जिसने दिल्ली पर अधिकार कर, विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। वह इस उपाधि को धारण करने वाला भारत का 14वाँ शासक था।) के मध्य हुई, जिसमें हेमू की पराजय और मृत्यु हुई।
  • 1560 ई. में बैरमखाँ का पतन हो गया। अकबर ने उसे मक्का चले जाने को कहा। मक्का जाते वक्त पाटन (गुजरात) नामक स्थान पर मुबारक खाँ नामक एक अफगान ने बैरम खाँ की हत्या कर दी।

पर्दा शासन (1560-1562 ई.)

  • बैरमखाँ की मृत्यु के बाद अकबर पर शाही हरम का प्रभाव रहा, जिसमें माहम अनगा का प्रभाव सर्वाधिक था।
  • आधमखाँ (माहम अनगा का पुत्र) को मृत्युदण्ड (1562 ई.)  और माहम अनगा की मृत्यु (1562 ई.) के बाद अकबर ने स्वयं को अपने निकटस्थ सम्बन्धियों के प्रभाव से मुक्त कर लिया।
    • 1562 ई. –              दास प्रथा का अंत
    • 1563 ई. –              तीर्थंकर की समाप्ति।
    • 1564 ई. –              जजिया कर की समाप्ति।

हल्दी घाटी का युद्ध (18 जून, 1576 ई.)

  • यह युद्ध राणा प्रताप और मुगल (नेतृत्व राजा मानसिंह एवं आसफ खाँ) के मध्य हल्दीघाटी में हुआ इस युद्ध में राणा प्रताप पराजित हुआ (राणा प्रताप की मृत्यु 1597 ई. में हुई) ।
  • अकबर की मृत्यु 25 अक्टूबर, 1605 ई.। उसे बौद्ध प्रभाव से निर्मित सिकन्दरा (आगरा) के मकबरे में दफनाया गया। अकबर की मृत्यु के समय उसका एकमात्र जीवित पुत्र सलीम था।

अकबर की राजपूत नीति

  • अकबर की राजपूत नीति दमन और समझौते की थी। उसने राजपूतों से वैवाहिक सम्बन्धों की शुरूआत की।
  • अकबर ने आमेर के राजा भारमल की पुत्री हरखा बाई से विवाह किया, जिससे उत्पन्न पुत्र का नाम सलीम था।

अकबर के दरबार के नौ रत्न

  • बीरबल : अकबर ने उसे राजा एवं कविप्रिय की उपाधि प्रदान की।
  • टोडरमल: वह अकबर का वित्तमंत्री था। उसने भूमि माप के आधार पर लगान की पद्धति का विकास किया।
  • मानसिंह: वह अकबर का सेनापति था।
  • तानसेन: वह अकबर के दरबार का प्रसिद्ध गायक था। वह ग्वालियर से सम्बन्धित था। उसका मकबरा भी ग्वालियर में है।
  • अकबर ने तानसेन को कण्ठाभरण वाणीविलास की उपाधि प्रदान की।
  • मुल्ला दो प्याजा: प्याज से अधिक प्रेम होने के कारण इसे ‘मुल्ला दो प्याजा’  कहा जाता था। यह उपाधि उन्हें अकबर ने दिया था।
  • उसका असली नाम अब्दुल हसन था।
  • हकीम हुमाम: वह शाही विद्यालय का प्रमुख था।
  • फैजी: वह अबुल फजल का बड़ा भाई था। उसने लीलावती (गणित की पुस्तक) का फारसी भाजा में अनुवाद किया था।
  • अब्दुर्रहीम खानेखाना: वह बैरम खाँ का पुत्र था।
  • अबुल फजल: उसने फारसी में अकबरनामा की रचना की, जिसका तीसरा भाग ‘आइने अकबरी’  कहलाता है।
  • यह अकबर के शासनकाल का सरकारी गजट माना जाता है।
  • 1602 ई. में सलीम के इशारे पर ओरछा के राजा वीर सिंह बुन्देला ने अबुल फजल की हत्या कर दी।

अकबर की धार्मिक नीति

अकबर की धार्मिक नीति का उद्देश्य सार्वभौमिक सहिष्णुता था।

  • इबादतखाना (प्रार्थना भवन) (1575 ई.): अकबर ने फतेहपुर सीकरी में दार्शनिक एवं धार्मिक विजयों पर वाद-विवाद के लिए इबादतखाना स्थापित करवाया।
    • पहले यह केवल इस्लाम धर्म के लोगों के लिए खुला था, परन्तु 1578 ई. से सभी धर्म के लोग इबादतखाने में जाने लगे।
    • अकबर ने विभिन्न धर्म के विद्वानों को इबादतखाने में आमंत्रित किया जिनमें प्रमुख थे-
      • जैन धर्म से जिनचन्द्र सूरी, हरिविजय सूरी, विजयसेन सूरी
      • पारसी धर्म से दस्तूर मेहर जी राणा
      • ईसाई धर्म से मोंसेरात एवं एकाबीवा
      • हिन्दू धर्म से पुरुषोत्तम और देवी।
  • मजहरनामा (घोषणा पत्र) (1579 ई.): मजहरनामा के द्वारा अकबर ने स्वयं को धर्म के मामलों में सर्वोच्च बना दिया। इसके बाद उसने सुल्तान-ए-आदिल की उपाधि धारण की।
  • दीन-ए-इलाही (1582 ई): अकबर ने सभी धर्मों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए दीन-ए-इलाही (अबुल फजल के अनुसार तौहीद-ए-इलाही) की स्थापना की।
    • बीरबल इसे स्वीकार करने वाला प्रथम एवं अंतिम हिन्दू था।
  • सुलह कुल: इसके द्वारा अकबर ने सार्वभौमिक सौहार्द्र व शांति स्थापित करने की कोशिश की।
    • अकबर ने हरिविजय सूरि को जगतगुरु व जिनचन्द्र सूरि को युग प्रधान की उपाधि प्रदान की थी।

अकबर का साम्राज्य विस्तार

क्र.    प्रदेश                                            काल          पराजित शासक                     मुगल सेनापति           

1.      मालवा (राजधानी-सांगरपुर) 1561 ई.     बाजबहादुर                              आधम खाँ, पीर मुहम्मद

2.      चुनार                                           1562 ई.           —                                         अब्दुल्ला खाँ

3.      गोण्डवाना                                   1564 ई.     वीरनारायण एवं दुर्गावती     आसफ खाँ

4.      राजस्थान

         (a)  आमेर (जयपुर)                  1562 ई.     भारमल                                    स्वेच्छा से अधीनता स्वीकार की

         (b)  मेड़ता                                   1562 ई.     जयमल                                    सर्फुउद्दीन

         (c)  मेवाड़                                   1568 ई.     उदय सिंह                                अकबर

               हल्दीघाटी युद्ध                     1576 ई.     महाराणा प्रताप                      आसफ खाँ एवं मानसिंह

         (d) रणथम्भौर                          1569 ई.     सुर्जनहाड़ा                               अकबर एवं भगवान दास

         (e)  कालिंजर (बाँदा)                1569 ई.     रामचन्द्र                                  मजनू खाँ

         (f)  मारवाड़                                1570 ई.     राव चन्द्रसेन                          स्वेच्छा से अधीनता स्वीकार की

         (g)  बीकानेर                               1570 ई.     राजा कल्याणमल                 स्वेच्छा से अधीनता स्वीकार की

         (h) जैसलमेर                             1570 ई.     रावल हरिराय                         स्वेच्छा से अधीनता स्वीकार की

5.      गुजरात (प्रथम युद्ध)                 1571 ई.     मुजफ्फर खाँ-III               अकबर

         (द्वितीय युद्ध)                           1573 ई.     मुहम्मद हुसैन मिर्जा            अकबर

6.      बिहार एवं बंगाल               1574-76 ई.       दाऊद खाँ                                 मुनीमखाँ एवं अकबर

7.      काबुल                                          1581 ई.     हकीम मिर्जा                           मानसिंह एवं अकबर

8.      कश्मीर                                        1586 ई.     याकूब खाँ                                भगवान दास एवं कासिम खाँ

9.      सिन्ध                                          1593 ई.     जानीबेग                                  अब्दुर्रहीम खानेखाना

10.   ओडिशा                             1590-92 ई.        निसार खाँ                               मानसिंह

11.   बलूचिस्तान                               1595 ई.     पन्नी अफगान                       मीर मासूम

12.   कन्धार                                        1595 ई.     मुजफ्फर हुसैन                       मुगल सरदार शाहबेग को स्वेच्छा                                          से किला सौंप दिया।

13.   दक्षिण भारत

         (a) खानदेश                               1591 ई.     अली खाँ                                   स्वेच्छा से अधीनता स्वीकार की

         (b) दौलताबाद                           1599 ई.     चाँद बीबी                                 मुराद, अबुल फजल, अकबर

         (c) अहमदनगर                         1600 ई.     बहादुर शाह, चाँद बीबी                     खानेखाना एवं शहजादा मुराद

         (d) असीरगढ़                             1601 ई.     मीरन बहादुर                                      अकबर (यह उसका अंतिम                                                 अभियान था)                                    

सामाजिक कार्य

  • अकबर ने तुलादान, पायबोय एवं झरोखा दर्शन जैसी पारसी परंपराओं को शुरू किया।
  • बहाउरद्दीन ने फतेहपुर सीकरी का खाका तैयार किया था।
  • अकबर ने सती प्रथा को रोकने का प्रयास किया, विधवा विवाह को कानूनी मान्यता दी, शराब बिक्री पर रोक लगाई और लड़के, लड़कियों के विवाह की उम्र क्रमशः 16 वर्ष एवं 14 वर्ष निर्धारित की।

मनसबदारी व्यवस्था

  • अकबर ने 1575 ई. में मनसबदारी व्यवस्था के आधार पर सैन्य संगठन किया। यह व्यवस्था नागरिक व सैन्य व्यवस्था का आधार थी।
  • प्रत्येक सैनिक अधिकारी को मनसब (पद) प्रदान किया गया।
  • इस व्यवस्था का मुख्य आधार दशमलव प्रणाली था।
  • मीर बक्शी मनसबदारों की सूची रखता था। बाद में अकबर ने मनसबदारी व्यवस्था में जात और सवार के पदों को आरंभ किया था।

लगान व्यवस्था

      राज्य की आय का प्रमुख साधन लगान (भूमि कर) था। अकबरकालीन लगान व्यवस्था श्रेष्ठतम लगान पद्धति थी।

  • दहसाला व्यवस्था (1580): इसे टोडरमल ने प्रारंभ किया। उसका मुख्य सहायक ख्वाजा शाह मंसूर था।
  • नश्क प्रणाली (कनकूत प्रणाली): इसमें फसल देखकर पैदावार का अंदाजा लगाया जाता था।
  • भूमि नापने के लिए 1586-87 ई. में गज-इलाही (41अंगल या 33.5 इंच) का प्रयोग बुलंद किया गया।
  • राज्य का हिस्सा पैदावार का 1/3 भाग होता था।
  • गल्ला बक्शी (बँटाई): फसल का किसान एवं राज्य में बँटवारा।
  • जब्ती अथवा नकदी: पैमाइश और गल्ले की किस्म के आधार पर लगान तय करना।

प्रमुख साहित्यिक कार्य

  • अकबर का काल हिन्दी साहित्य के लिए स्वर्णकाल कहा जाता है। अबदुर्रहीम खानेखाना ने रहीम सतसई की रचना की थी।

प्रमुख अनुवाद

  • महाभारत का अनुवाद नकीब खाँ, बदायूँनी, अबुल फजल, फैजी आदि विद्वानों द्वारा रज्मनामा के नाम से किया।
  • बदायूँनी ने रामायण का अनुवाद किया।
  • बदायूँनी ने अथर्ववेद का अनुवाद शुरू किया, जिसे हाजी इब्राहिम सरहिन्दी ने पूरा किया।
  • लीलावती का अनुवाद फैजी ने किया, राजतरंगिणी का अनुवाद मुहम्मद शाहबादी ने, कालियादमन का अबुल फजल ने, नलदमयन्ती का फैजी ने किया।
  • अबुल फजल ने पंचतंत्र का अनुवाद कर उसका नाम अनवर-ए-सादात रखा।

अकबर के दरबार में प्रमुख चित्रकार

  • दशवन्त, वसावन, मीर सैयद अली एवं ख्वाजा अब्दुस्समद।

स्थापत्य कला

  • अकबर ने आगरा में लालकिला बनवाया। किले के अंदर जहाँगीरी महल तथा अकबरी महल का निर्माण भी कराया।
  • आगरा से कुछ दूरी पर फतेहपुर सीकरी का निर्माण भी करवाया। इसके कुछ प्रमुख भवन हैं :
    • दीवाने आम                         
    • दीवाने खास                         
    • शेख सलीम चिश्ती का मकबरा
    • 176  फीट ऊँचा बुलंद दरवाजा                                         
    • जोधाबाई का पंच महल।

अन्य तथ्य

  • 1575-76  में संपूर्ण साम्राज्य 12  सूबों में बाँटा गया (दक्षिण की विजय के बाद संख्या 15  हो गई) ।
  • 1573-74  में गुजरात विजय के बाद मनसबदारी प्रथा आरंभ हुई।
  • अकबर के दरबार में ईसाइयों का जेब्रसुइट मिशन तीन बार आया, जिसका प्रथम बार नेतृत्व कादर एकाबीवा ने किया था।
  • अकबर ने 1577 ई. में दिल्ली में शाही टकसाल बनवाई, जिसका प्रधान ख्वाजा अब्दुस्समद था। उसने मुहर नामक एक सोने का सिक्का शंसब और 10 रुपये मूल्य के बराबर गोलाकार सिक्का इलाही चलाया। चाँदी का सिक्का जलाली एवं ताँबे का सिक्का दाम कहलाता था।

जहाँगीर (1605-27 ई.)

  • जहाँगीर (सलीम) का जन्म 30 अगस्त, 1569 को हुआ था। उसकी माता आमेर (जयपुर) के राजा भारमल की पुत्री हरखाबाई मरियम उज्जमानी थी।
  • अकबर सलीम को शेखूबाबा पुकारता था।
  • जहाँगीर का प्रमुख शिक्षक बैरम खाँ का पुत्र अर्ब्दुरहीम खानेखाना था।
  • जहाँगीर का राज्याभिषेक 3 नवम्बर, 1605 को आगरा के किले में हुआ, उसने नुरूद्दीन मुहम्मद जहाँगीर बादशाही गाजी की उपाधि धारण की।
  • जहाँगीर की पत्नियों में मानबाई (शाहबेगम), जगतगोसाईं एवं नूरजहां (मेहरून्निसा) प्रमुख थीं।
  • जहाँगीर के पांच पुत्र थे- (1) खुसरो, (2) परवेज, (3) खुर्रम (शाहजहां), (4) शहरयार, (5) जहांदार।
  • बादशाह बनने के बाद उसने 12 आदेश जारी किये, मुख्य इस प्रकार हैं :
    • शराब व मादक पदार्थों के निर्माण व बिक्री पर रोक।
    • रविवार (अकबर का जन्म दिवस) एवं बृहस्पतिवार (जहाँगीर के राज्याभिषेक का दिन) को पशु वध बन्द करवाया।
    • दण्डस्वरूप नाक एवं कान काटने की प्रथा का अंत।
    • किसानों की भूमि पर जबरन अधिकार पर रोक।

खुसरो का विद्रोह

  • जहाँगीर के बड़े पुत्र खुसरो ने विद्रोह किया और आगरा से भाग निकला। सिख गुरु अर्जुनसिंह ने उसकी मदद की।
  • 1621  ई. में खुर्रम ने खुसरो को मरवा डाला।
  • जहाँगीर ने अर्जुनसिंह को खुसरो की मदद करने के लिए मृत्यु दण्ड दे दिया।

साम्राज्य विस्तार

  • जहाँगीर ने मेवाड़ के साथ युद्ध कर संधि की, जिसमें मेवाड़ के राणा अमरसिंह ने मुगलों का आधिपत्य स्वीकार किया और मेवाड़ पुनः प्राप्त किया।
  • दक्षिण में खुर्रम ने अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। 1617 ई- में अहमदनगर और मुगलों में संधि हो गई।
  • जहाँगीर के काल में काँगड़ा पर मुगलों ने विजय प्राप्त की।
  • जहाँगीर के समय 1622 ई. कन्धार भारत के हाथ से निकल कर शाह अब्बास के हाथ में चला गया।
  • 1622 में शाहजहाँ तथा 1626 ई. में महाबत खाँ ने जहाँगीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। महाबत खाँ ने जहाँगीर को झेलम नदी के किनारे बंदी बनाया था। नूरजहाँ ने महाबत खाँ के विद्रोह को कुचलने में अहम भूमिका निभाई।

यूरोपियों का आगमन

  • जहाँगीर के दरबार में सबसे पहले पुर्तगाली आए थे। जहाँगीर ने उन्हें स्वतंत्रता के साथ-साथ अतिरिक्त सहायता दी। वह जेसुइट पादरियों खासकर फादर जेवियर से बहुत प्रभावित था।
  • अंग्रेज भी व्यापारिक सुविधाओं का फायदा उठाना चाहते थे और विलियम हाकिन्स सर टामस रो, विलियम फिंच एवं एडवर्ड टैरी, जहाँगीर के दरबार में आए। जहाँगीर ने हाकिन्स को 400 का मनसब दिया था।
  • जहाँगीर ने 1606  ई. में नौरोज (9 दिन का पारसी त्यौहार) धूमधाम से मनाया।
  • उसने आगरे के किले से कुछ दूर तक घंटियाँ लगवाई, जिसमें एक स्वर्ण जंजीर लगी थी। कोई भी व्यक्ति घंटी बजाकर सीधे बादशाह से संपर्क कर सकता था।
  • जहाँगीर का सबसे बड़ा गुण उसकी न्यायप्रियता थी।
  • जहाँगीर ने दो अस्पा, सिंह अस्पा की प्रथा चलाई। दो अस्पा में मनसबदार को अपने सवार पद के दो गुना घोडे़ रखने होते थे और सिंह अस्पा में तीन गुना अधिक।

नूरजहाँ

  • नूरजहाँ के बचपन का नाम मेहरून्निसा था। 1594 में मेहरून्निसा की शादी आलीकुलीबेग के साथ हुई। अलीकुलीबेग की मृत्यु के बाद मई 1611 में जहाँगीर ने उससे विवाह किया और उसे नूरमहल व नूरजहाँ की उपाधियाँ दीं।
  • 1613 में नूरजहाँ को पट्टमहिजी या बादशाह बेगम बनाया गया।
  • उसने नूरजहाँ गुट का निर्माण किया। नूरजहाँ का प्रभुत्व शासन में बढ़ता गया, जिसके कारण शाहजहाँ ने विद्रोह किया।
  • 1621 ई. में नूरजहाँ ने शेर अफगान (अलीकुलीबेग) से पैदा हुई अपनी पुत्री लाडली बेगम की शादी शहरयार से कर दी।
  • जहाँगीर की मृत्यु के बाद नूरजहाँ ने शहरयार को बादशाह घोषित कर दिया।
  • नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम उसकी मुख्य परामर्शदात्री थी और इत्र की आविष्कारक मानी जाती हैं।
  • उसने अपनी जीवन गाथा तुजुके जहाँगीर की रचना फारसी भाषा में की।

चित्रकला

  • मुगल काल में चित्रकला का चरमोत्कर्ज जहाँगीर के काल में आया। उसके दरबार में उस्ताद मंसूर एवं अबुल हसन प्रमुख चित्रकार थे।
  • जहाँगीर ने अबुल हसन को नादिरूज्जमा एवं उस्ताद मंसूर को नादिल-उल-असर की उपाधि प्रदान की थी।
  • जहाँगीर ने हेरात के चित्रकार आगारजा के नेतृत्व में आगरे में एक चित्रणशाला की स्थापना की।

स्थापत्य कला

  • जहाँगीर ने आगरा के निकट सिकन्दरा में अकबर का मकबरा, लाहौर की मस्जिद बनवाई।
  • जहाँगीर काल में अंतिम भाग में पूरी तरह संगमरमर की इमारतें बनवाने तथा दीवारों को फूलदार आकृतियों में सजाने का चलन शुरू हुआ। साज-सज्जा की यह शैली जड़ाऊ नक्काशी (पिएत्र दुयूरा) कहलाती है।
  • नूरजहाँ द्वारा आगरा में बनवाया गया उसके पिता एत्मातुद्दौला का मकबरा पच्चीकारी और संगमरमर के पत्थर के प्रयोग के कारण अद्वितीय है।
  • जहाँगीर की मृत्यु 7 नवम्बर, 1627 को भीमवार नामक स्थान पर हुई। उसे लाहौर में दफनाया गया, वहाँ बाद में नूरजहाँ ने एक मकबरा बनवाया।

शाहजहाँ (1627-58 ई.)

  • शाहजहाँ (खुर्रम) का जन्म 5 जनवरी, 1592 ई. को लाहौर में हुआ। उसकी माता मारवाड़ के शासक उदय की पुत्री जगतगोसाई थी।
  • खुर्रम का विवाह 1612 ई. में आसफ खाँ की पुत्री अुर्जुमन्द बानू बेगम के साथ हुआ, जो बाद में मुमताज महल के नाम से विख्यात हुई।
  • 1627 ई. में जब जहाँगीर की मृत्यु हुई, तब शाहजहाँ दक्षिण भारत में था।
  • उसके श्वसुर आसफ खाँ और ख्वाजा अबुल हसन ने कूटनीतिक चाल के तहत खुसरो के पुत्र दावर बक्श को सिंहासन पर बैठाया।
  • शाहजहाँ के आदेश पर उसके सभी प्रतिद्वंद्वियों और दावर बक्श को समाप्त कर दिया गया।
  • 24 फरवरी, 1628 ई. को शाहजहाँ आगरा में अबुल मुजफ्रफर शाहबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानीर की उपाधि लेकर गद्दी पर बैठा।
  • उसने आसिफ खाँ को चाचा और महाबत खाँ को खानेखाना की उपाधि दी।

प्रमुख विद्रोह

  1. 1628 से 31  ई. में खानेजहाँ लोदी के नेतृत्व में अफगानों का विद्रोह।
  2. 1635 से 39 ई. के मध्य पुर्तगालियों एवं जुझार सिंह बुन्देला का विद्रोह।

साम्राज्य विस्तार

  • शाहजहाँ ने दक्षिण भारत में महाबत खाँ के नेतृत्व में अहमदनगर पर 1633 ई. में आक्रमण कर उसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
  • गोलकुण्डा के शासक अब्दुल्ला कुतुबशाह ने 1636 ई. में मुगलों से संधि कर ली। इस संधि के बाद शाहजहाँ ने औरंगजेब को दक्षिण का सूबेदार और औरंगाबाद को मुगलों की दक्षिण के सूबे की राजधानी बनाया।
  • औरंगजेब दक्षिण का सूबेदार पहली बार 1636-44  ई. तक रहा और दूसरी बार 1652-57 ई. में सूबेदार बना।
  • मीर जुमला जो हीरे और कीमती पत्थरों का व्यापारी था, अपनी योग्यता से गोलकुण्डा का प्रधानमंत्री बना था। उसने भी मुगलों का संरक्षण स्वीकार कर लिया।
  • मीर जुमला के सहयोग से ही बीजापुर ने औरगंजेब से संधि की थी और 1636 ई. में बीजापुर ने मुगल आधिपत्य स्वीकार लिया।

मुमताज महल

  • शाहजहाँ की सभी प्रमुख संतानें मुमताज से ही उत्पन्न हुईं थीं। उसकी 14 संतानों में से 7 ही जीवित रहीं। इनमें 4 पुत्र एवं 3 पुत्रियाँ थीं। ये थे- जहांआरा (1614 ई.), दाराशिकोह (1615 ई.), शाहशुजा (1616 ई.),  रोशनआरा (1617 ई.), औरंगजेब (1618 ई.), मुरादबक्श (1624 ई.) और गोहनआरा (1631 ई.)।
  • इनमें से प्रत्येक ने उत्तराधिकार के युद्ध में भाग लिया। जहांआरा दाराशिकोह के पक्ष में थी, रोशनआरा औरंगजेब के पक्ष में और गोहनआरा ने मुरादबक्श का पक्ष लिया।
  • अर्जुमन्द बानो बेगम (मुमताज महल) की मृत्यु 1633 ई. में प्रसव पीड़ा के दौरान बुराहनपुर में हुई। उसी की कब्र पर शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाया।

स्थापत्य कला

  • शाहजहाँ का काल स्थापत्य कला का स्वर्णकाल था। उसने दिल्ली का लालकिला और जामा मस्जिद, आगरा के किले में मोती मस्जिद, दीवाने आम, दीवाने खास और ताजमहल, लाहौर के किले में दीवाने-आम, मुसमम बुर्ज, शीशमहल, नौलक्खा और ख्वाबगाह बनवाया।
  • उसने रावी नहर लाहौर तक बनवायी और तीन नहर-ए-साहिब को ठीक करवाकर उसे 60 मील लंबा कराया और उसका नाम नहर-ए-शाह रखा।
  • आगरा की जामा मस्जिद शाहजहाँ की पुत्री जहाँआरा ने बनवाई थी।
  • ताजमहल का निर्माण करने वाला मुख्य कलाकार उस्ताद अहमद लाहौरी था, जिसे शाहजहाँ ने नादिर-उज-असर की उपाधि प्रदान की थी।
  • संसार का सबसे प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा शाहजहाँ के पास था।

साहित्यिक कार्य

  • गंगाधर व जगन्नाथ पंडित (गंगालहरी के लेखक) शाहजहाँ के राजकवि थे।
  • आचार्य सरस्वती और सुन्दरदास (सुन्दर श्रृंगार और सिंहासन बत्तीसी के लेखक) को राजकीय संरक्षण प्राप्त था।
  • अब्दुल हमीद लाहौरी ने पादशाहनामा लिखा व इनायत खाँ की रचना की।
  • दारा शिकोह संस्कृत, अरबी एवं फारसी का विद्वान था। उसने अनेक पुस्तकों का फारसी में अनुवाद करवाया। मुंशी बनवारीदास ने प्रबोध चन्द्रोदय एवं इब्न हरिकरन ने रामायण का अनुवाद किया।
  • दाराशिकोह ने 52 उपनिषदों का अनुवाद सिर्र-ए-अकबर के नाम से किया।

उत्तराधिकार का युद्ध और शाहजहाँ का अंत

शाहजहाँ के पुत्रों में उत्तराधिकारी के लिए युद्ध हुआ, जिसमें औरंगजेब विजयी रहा। ये युद्ध थे-

  • बहादुरपुर का युद्ध (14 फरवरी, 1658 ई.): इस युद्ध में शाहशुजा शाही सेना से पराजित हुआ।
  • धरमत का युद्ध (25 अप्रैल, 1658): औरंगजेब और मुराद की सेनाओं ने शाही सेना को पराजित किया।
  • सामूगढ़ का युद्ध (8 जून, 1658 ई.): औरंगजेब और मुराद की सेनाओं ने दारा को पराजित किया। इस युद्ध के बाद शाहजहाँ कैदी बना लिया गया। कैद में 8 वर्ज रहने के बाद, 22 जनवरी, 1666  ई. में शाहजहाँ की मृत्यु हो गई।
  • खजवा का युद्ध (3 जनवरी, 1659 ): औरंगजेब ने शाहशुजा को पराजित किया।
  • देवराई का युद्ध: औरगंजेब ने अजमेर के निकट देवराई के दर्रे में दारा को परास्त कर कैद कर लिया और 30 अगस्त, 1659 को उसका कत्ल कर दिया।

अन्य तथ्य

  • फ्रेंच यात्री बर्नियर एवं इटली का यात्री मनूची ने शाहजहाँ के शासन का वर्णन किया है।
  • शाहजहाँ का रत्न जडि़त सिंहासन तख्ते ताउस था, जिसमें कोहिनूर हीरा जड़ा था।
  • शाहजहाँ ने दारा को शाहुबलन्द इकबाल एवं लालखाँ को गुनसमुन्दर (गुण समुद्र) की उपाधि प्रदान की थी।
  • शाहजहाँ ने सिजदा और पायबोस की प्रथा को समाप्त कर उसके स्थान पर चहार तस्लीम की प्रथा शुरू करवाई।

औरंगजेब (1658-1707 ई.)

  • औरंगजेब का जन्म 3 नवम्बर, 1618 ई. को गुजरात स्थित दाहोद नामक स्थान पर हुआ था। 18 मई, 1637 ई. को औरंगजेब का विवाह रबिया बीबी (दिलरास बानो बेगम) से हुआ था।
  • उसका राज्याभिषेक दो बार हुआ :  पहला राज्याभिषेक 31 जुलाई, 1658 ई. को आगरा में हुआ और दूसरा दिल्ली में 15 मई, 1659 ई. को हुआ। वह अबुल मुजफ्रफर मुहीउद्दीन मुजफ्फर औरंगजेब बहादुर आलमगीर पादशाह गाजी की उपाधि धारण कर मुगल सिंहासन पर बैठा।
  • जनता के आर्थिक कष्टों के निवारण के लिए शाहदारी (आंतरिक पारगमन शुल्क) और पानदारी (व्यापारिक चुंगियों) आदि करों को समाप्त कर दिया।
  • औरंगजेब ने कुरान को अपने शासन का आधार बनाया और उसने देश को दार-उल-हर्ब के स्थान पर दार-उल-इस्लाम में परिवर्तित करना चाहा।
  • उसने अपने सिक्कों पर कलमा खुदवाया, नौरोज का आयोजन, सार्वजनिक संगीत समारोह, भांग उत्पादन, शराब पीने तथा जुआ खेलने पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
  • औरंगजेब ने 1663 ई. में सती प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया, हिन्दुओं पर तीर्थयात्रा कर लगाया और 1668 ई. में हिन्दू त्यौहारों को मनाये जाने पर रोक लगा दी।
  • औरंगजेब ने अपने शासन के 11वें वर्ष झरोखा दर्शन और 12वें वर्ष तुलादान प्रथा को भी समाप्त कर दिया।
  • उसने 1679 ई. में जजिया कर पुनः लगा दिया, लेकिन 1704  ई. में दक्कन से यह कर हटा दिया गया।
  • उसके काल में सर्वाधिक रुपये की ढलाई हुई और अपने अंतिम काल में ढाले गये सिक्कों पर मीर अब्दुल बाकी शाहबई द्वारा रचित एक पद्य अंकित करवाया।
  • औरंगजेब को जिंदा पीर एवं शाही दरवेश भी कहा जाता है।
  • औरगंजेब ने सर्वाधिक हिन्दू अधिकारियों की नियुक्ति की थी और उसी के समय मुगल प्रांतों की संख्या सबसे अधिक 21 थी।

 औरंगजेब की दक्कन नीति

  • औरंगजेब शाहजहाँ के काल में दो बार दक्षिण का सूबेदार रह चुका था।
  • 1682 ई. में अपने पुत्र शहजादा अकबर का पीछा करते हुए, वह दक्षिण भारत पहुँचा और फिर कभी उत्तर भारत नहीं आ सका। यही दक्षिण भारत औरंगजेब का कब्रिस्तान सिद्ध हुआ।
  • उसने 1685 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा को मुगल साम्राज्य में मिलाया था।

औरंगजेब के समय प्रमुख विद्रोह

                1.   अफगान विद्रोह, 1667 ई.                                            2.   जाट विद्रोह, 1669 ई.

                3.   सतनामी विद्रोह, 1672 ई.                                           4.   बुन्देला विद्रोह, 1661 ई.

                5.   शाहजादा अकबर का विद्रोह, 1681 ई.                      6.   अंग्रेजों का विद्रोह, 1686 ई.

                7.   राजपूतों का विद्रोह, 1679-1709 ई.                           8.   सिख विद्रोह, 1675 ई.

अन्य तथ्य

  • औरंगजेब के काल में मथुरा का केशव मंदिर, बनारस का विश्वनाथ मंदिर और पाटन का सोमनाथ मंदिर तोड़ा गया।
  • उसने तिलपट के युद्ध में जाटों को परास्त किया और उनके नेतृत्वकर्ता गोकुल को पकड़कर मार डाला।
  • औरंगजेब ने दिल्ली के लालकिला में मोती मस्जिद का निर्माण कराया था।
  • उसने अपनी पत्नी राबिया उद्-दौरानी का मकबरा औरंगाबाद में बनवाया, जिसे बीबी का मकबरा भी कहा जाता है।
  • औरंगजेब ने केवल एकमात्र ग्रंथ को संरक्षण प्रदान किया, वह था- फतवा-ए-जहाँदारी। उसने न्याय और कानून पर एक पुस्तक फतवा-ए-आलमगीर की रचना करायी।
  • औरंगजेब ने मराठों पर अपने प्रभुत्व की स्थापना की। राजा जयसिंह और शिवाजी में 1665 ई. में पुरन्दर की संधि हुई। शिवाजी और उसका पुत्र शंभाजी औरंगजेब से मिलने आगरा गये, तो औरंगजेब ने उन्हें बंदी बना लिया, किन्तु शिवाजी वहाँ से भागने में सफल रहे।
  • मारवाड़ के शासक जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद राठौरों ने दुर्गादास के नेतृत्व में युद्ध जारी रखा। दुर्गादास राठौरों के युद्ध का जीवन और आत्मा सिद्ध हुआ।
  • टॉड ने दुर्गादास को राठौरों का यूलीसेस कहा है।
  • औरंगजेब ने सिखों के नौवें गुरु तेगबहादुर की 1675 ई. में हत्या करवा दी।
  • औरंगजेब ने मुहतसिन नामक अधिकारी नियुक्त किये, ताकि वह जान सके कि शरीयत का पालन ठीक प्रकार से हो रहा है।
  • औरगंजेब की मृत्यु 20 फरवरी, 1707 ई. को हो गई। उसे दौलताबाद के पास शेख-जैम-उल-हक की मजार के निकट दफना दिया गया।

मुगल शासन व्यवस्था

केन्द्रीय शासन

  • मुगल शासन व्यवस्था नियंत्रण व संतुलन पर आधारित थी। उसके बाद वकील-ए-मुतलक का पद था।

प्रमुख अधिकारी

  • मीर बक्शी: यह सेवा विभाग का प्रधान था। उसके द्वारा सरखत नामक पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद ही सेना का मासिक वेतन मिलता था।
  • सद्र-उस-सद्र: वह धार्मिक मामलों में बादशाह का सलाहकार था। उसे शेख-उल-इस्लाम भी कहा जाता था। जब कभी इसे मुख्य काजी का पद प्राप्त हो जाता था, तो उसे काजी-उल-कुजात कहा जाता था।
  • वह लगान मुक्त भूमि का भी निरीक्षण करता था। इस भूमि को सयूरगाल या मदद-ए-माश कहा जाता था।
  • मुहतसिब: लोक आचरण की निरीक्षणकर्ता।
  • मीर-ए-सामाँ: वह बादशाह के परिवार, उसके महल और उसकी व्यक्तिगत और दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति की देखभाल करता था।
  • मीर आतिश: वह शाही तोपखाने का प्रधान था।
  • दरोगा-ए-डाकचौकी: इसके अधीन राज्य के गुप्तचर व संवादवाहक थे।
  • मीर मुंशी: वह शाही पत्रें को लिखता था।
  • मीर बहर: आंतरिक जलमार्गों एवं नौसेना का अधिकारी।

प्रांतीय प्रशासन

  • सूबेदार: प्रांतीय शासन का सर्वोच्च अधिकारी।
  • दीवान: सूबे का वित्त अधिकारी।
  • बक्शी: सूबे की सेना की देखभाल करना।
  • वाकिया-ए-नवीस: सूबे के गुप्तचर विभाग का प्रधान।
  • कोतवाल: सूबे की घटनाओं को नियंत्रित करना।
  • सदर और काजी: सूबे का न्याय अधिकारी।
  • साम्राज्य  – सूबा  – सरकार (जिला) – परगना – दस्तूदर – ग्राम (मावदा या दीह)

सरकार (जिले)  का शासन

  • फौजदार : कानून व्यवस्था की देखभाल।
  • अमलगुजार: लगान वसूल करना।
  • खजानदार: खजाँची।

परगना का शासन

  • शिकदार: सैनिक अधिकारी।      
  • आमिल: वित्त अधिकारी।
  • फौतदार: खजाँची।
  • कानूनगो : पटवारियों का प्रधान।

नगर का प्रशासन

  • कोतवाल नगर के शासन का प्रधान होता था।

गाँव का शासन

  • गाँव का मुख्य अधिकारी ग्राम प्रधान होता था, जिसे खुत, मुक्कदम या चौधरी कहा जाता था।

भूमि के प्रकार

  • पोलज: वह भूमि जिस पर हर वर्ष खेती होती थी।
  • परती: उर्वरता प्राप्त करने के लिए एक दो वर्ज बिना बोये छोड़ दिया जाता था।
  • चाचर: इसे तीन-चार वर्ष तक बिना बोये छोड़ दिया जाता था।
  • बंजर: यह खेती योग्य भूमि नहीं थी।
  • कृषक वर्ग: कृषकों को तीन वर्ग में बांटा गया था-
    • खुदकाश्त: खेतिहार किसान।
    • पाहीकशात: दूसरे गाँव जाकर खेती का काम करने वाले।
    • मुजारियान: बटाईदार के रूप में खेती करने वाला।

भूमिकर के आधार पर भूमि का विभाजन

  • खालसा भूमि: यह शाही भूमि थी ।
  • जागीर भूमि: प्रमुख लोगों को वेतन के रूप में दी जाने वाली भूमि।
  • सयूरगाल (मदद-ए-माश) भूमि: अनुदान में दी गई लगानमुक्त भूमि। इसे मिल्क भी कहा जाता था।

दहसाला व्यवस्था

  • इस प्रणाली का वास्तविक प्रणेता टोडरमल था।
  • इसके अन्तर्गत अलग-अलग फसलों के पिछले दस वर्ष के उत्पादन और प्रचलित मूल्यों का औसत निकाल कर, उस औसत का 1/3 हिस्सा राजस्व के रूप में वसूला जाता था, जो नकद रूप में होता था।
  • इस प्रणाली में 1/10 भाग हर साल वसूला जाना था, जिसे माल-ए-हरसाला कहा जाता था।

सैन्य व्यवस्था

  • मुगलकाल में सेना चार भागों में विभाजित थी : पैदल, घुड़सवार, तोपखाना और हाथी सेना।
  • इस काल में सैन्य व्यवस्था पूर्णतः मनसबदारी प्रथा पर आधारित थी। इसे अकबर ने प्रारंभ किया था।
  • 10 से 500 तक मनसब प्राप्त करने वाले ‘मनसबदार’, 500 से 2500 तक मनसब प्राप्त करने वाले ‘उमरा’, इससे अधिक मनसब प्राप्त करने वाले ‘अमीर-ए-आजम’ कहलाते थे।
  • जाति से व्यक्ति के वेतन एवं प्रतिष्ठा का बोध होता था। ‘सवार पद’ से घुड़सवार दस्तों की संख्या की जानकारी मिलती थी।
  • अकबर के शासन में ऐसे 29 मनसबदार थे, जो 5,000 जाति की पदवी के थे। औरंगजेब के शासनकाल तक ऐसे मनसबदारों की संख्या 79 थी।
  • जहाँगीर ने ‘सवार पद’ में दो ‘अस्पा’ व ‘सिंह अस्पा’  की व्यवस्था की थी।
  • सर्वप्रथम यह पद महावत खाँ को दिया गया था।

मराठों का उत्कर्ष

  • 17वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया आरम्भ होने के साथ कई स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हुई, जिसमें मराठों का महत्वपूर्ण स्थान है।

शिवाजी (1627-80 ई.)

  • शिवाजी का जन्म अप्रैल, 1627 ई. को पूना के उत्तर में स्थित जुन्नान नगर के निकट शिवनेर के दुर्ग में हुआ था। उनके पिताजी का नाम शाहजी भौंसले और माता का नाम जीजाबाई था।
  • आरंभ से ही शिवाजी का मूल उद्देश्य दक्षिण भारत में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना था।
  • शिवाजी के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव उनकी माता जीजाबाइर् और उनके शिक्षक दादा कोंडदेव का पड़ा।
  • उनके आध्यात्मिक गुरु का नाम समर्थ रामदास था।
  • 25 जनवरी, 1656 ई. में शिवाजी ने जावली पर विजय प्राप्त की।
  • शिवाजी की विस्तारवादी नीति पर रोक लगाने के लिए 1659 ई. में बीजापुर राज्य ने अफजल खाँ को भेजा, किन्तु शिवाजी ने 2  नवंबर, 1659 ई. को उसकी हत्या कर दी।
  • 1660 ई. में मुगल सूबेदार शाइस्ता खाँ को शिवाजी को समाप्त करने के लिए भेजा गया। 15 अप्रैल, 1663 ई. को शिवाजी चुपके से पूना में प्रवेश कर गये और रात को शाइस्ता खाँ पर आक्रमण कर दिया। शाइस्ता खाँ घबराकर भाग गया।
  • 1665 ई. में औरंगजेब ने राजा जयसिंह को शिवाजी के विरुद्ध भेजा। जयसिंह ने वज्रगढ़ को जीतकर, शिवाजी को पुरन्दर के किले में घेर लिया। अंततः शिवाजी ने आत्मसमर्पण कर दिया।
  • 22 जून, 1665 ई. को शिवाजी और जयसिंह के मध्य पुरन्दर की संधि हुई, जिसके अनुसार :
  • शिवाजी ने 23 किले और 4 लाख हूण की वार्षिक आय की भूमि मुगलों को दी –
    • शिवाजी के पास केवल 12 किले ही बचे।
    • शिवाजी ने मुगल आधिपत्य स्वीकार कर लिया।
    • शिवाजी ने बीजापुर के विरुद्ध मुगलों को सैनिक सहायता देने का वादा किया।
  • शिवाजी ने मुगल व्यापारिक केन्द्र सूरत को दो बार 1664 एवं 1670 ई. में लूटा था।
  • 1666 ई. में शिवाजी औरंगजेब से मिलने आगरा गये, जहाँ औरंगजेब ने शिवाजी को जयपुर भवन (आगरा) में नजरबंद रखा, परन्तु चतुराई से शिवाजी वहाँ से भागने में सफल हुए।
  • 1672 ई. में शिवाजी ने पन्हाला दुर्ग को बीजापुर से छीन लिया।
  • 16 जून, 1674 में शिवाजी ने काशी के प्रसिद्ध विद्वान श्रीगंगाभट्ट द्वारा अपना राज्याभिषेक करवाया। उन्होंने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की और रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया।
  • शिवाजी की मृत्यु 3 अप्रैल, 1680  ई. को 53 वर्ष की आयु में हो गई।

शिवाजी का प्रशासन

  • राजा या छत्रपति: राजा की सम्पूर्ण शक्तियाँ शिवाजी में केन्द्रित थीं।
  • वह राज्य के अंतिम कानून निर्माता, प्रशसकीय प्रधान, न्यायाधीश और सेनापति थे।
  • उन्होंने मराठी को शासन की भाषा बनाया और उसकी प्रगति के लिए रघुनाथ पंडित हनुमन्ते के नेतृत्व में एक शब्दकोष, राज्य व्यवहार कोष लिखवाया।

अष्टप्रधान: शासन का वास्तविक संचालन अष्टप्रधान नामक आठ मंत्री करते थे –

  1. पेशवा या प्रधानमंत्री                           संपूर्ण राज्य के शासन की देखभाल करना।
  2. अमात्य या मजूमदार                         राज्य की आय और व्यय की देखभाल करना।
  3. मंत्री या वाकिया-नवीस                      राजा के दैनिक कार्यों को लेखबद्ध करना।
  4. सचिव या शुरू-नवीस                         राजा के पत्रों की भाषा एवं शैली को ठीक करना।
  5. सुमन्त/दबीर (विदेश मंत्री)                              राजा को संधि या युद्ध के बारे में सलाह देना।
  6. सेनापति या सर-ए-नौबत                  सेना की भर्ती, संगठन, शिक्षा, रसद की व्यवस्था करना।
  7. पण्डित राव                                           विद्वानों एवं धार्मिक कार्यों के लिए दिए जाने वाले अनुदानों का                                                             दायित्व निभाना।
  8. न्यायाधीश                                           राज्य के समस्त दीवानी एवं फौजदारी मामलों को निपटाना।

सैन्य व्यवस्था

  • शिवाजी की सेना का मुख्य भाग घुड़सवार और पैदल सेना थी।
  • घुड़सवार- यह दो प्रकार के थे:
    • बरगीर: ये शाही घुड़सवार थे, इन्हें राज्य की ओर से शस्त्र मिलते थे।
    • सिलेदार: इन्हें घोडे़ एवं शस्त्र स्वयं खरीदने पड़ते थे।

पैदल सेना

  • नायक: नौ सैनिकों या पाइकों का अधिकारी
    • हवलदार: दस नायकों का अधिकारी
    • जुमलादार: दो या तीन हवलदारों का अधिकारी
    • एक हजारी: दस जुमलादारों का अधिकारी
    • सर-ए-नौबल: संपूर्ण पैदल सेना का प्रधान
  • सैनिकों को वेतन नकद दिया जाता था।

लगान व्यवस्था

  • शिवाजी ने अपनी आय का मुख्य साधन चौथ और सरदेशमुखी को बनाया था। ये कर पड़ोसी राज्यों की सीमाओं और नगरों से अथवा अपने प्रभाव क्षेत्र के नागरिकों से वसूले जाते थे।
  • चौथ उस प्रदेश की वार्षिक आय का एक-चौथाई भाग और सरदेशमुखी उस प्रदेश की आय का 1/10वाँ भाग होता था।

शम्भाजी (1680-1689 ई.)

  • शिवाजी की मृत्यु के बाद उनके दो पुत्रें शम्भाजी एवं राजाराम के मध्य उत्तरधिकार का विवाद खड़ा हो गया।
  • शम्भाजी 20 जुलाई, 1680 को सिंहासन पर बैठा।
  • शम्भाजी ने उज्जैन के हिन्दी व संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया।
  • वह अभिमानी, क्रोधी और भोगविलासी था। मृत्यु से पहले शिवाजी ने उसे पन्हाला के किले में कैद कर लिया था।
  • शम्भाजी ने 1681 ई- में औरंगजेब के पुत्र अकबर को शरण दी थी।
  • 21 मार्च, 1689 को औरंगजेब ने शम्भाजी की हत्या करवा दी और रायगढ़ पर कब्जा कर लिया।

राजाराम (1689-1700 ई.)

  • राजाराम का राज्याभिषेक 1689 में रायगढ़ के किले में हुआ। उसने अपने को शाहू का प्रतिनिधि माना और कभी गद्दी पर नहीं बैठा।
  • राजाराम ने अपनी दूसरी राजधानी सतारा को बनाया।
  • उसने मराठों को जागीरें दी, जिसके परिणाम स्वरूप मराठा मंडल या राजसंघ का उदय हुआ।
  • मुगलों से संघर्ष करते हुए 2 मार्च, 1700  ई. को उसकी मृत्यु हो गई।

शिवाजी द्वितीय एवं ताराबाई (1700-07 ई.)

  • राजाराम की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी ताराबाई ने अपने 4 वर्ज के पुत्र शिवाजी द्वितीय को गद्दी पर बैठाया और मुगलों से संघर्ष जारी रखा।
  • ताराबाई ने रायगढ़, सतारा और सिंहगढ़ किलों को मुगलों से जीत लिया।

शाहू (1707-1748 ई.)

  • 12 अक्टूबर, 1707 ई. में शाहू और ताराबाई के मध्य खेड़ा का युद्ध हुआ, जिसमें बालाजी विश्वनाथ की मदद से शाहू की विजय हुई।
  • शाहू ने 22 जनवरी, 1708 ई. में सतारा पर अधिकार कर लिया।
  • इस प्रकार शक्ति के दो केन्द्र बने- एक सतारा (शाहू) और दूसरा कोल्हापुर (ताराबाई)। इन दोनोँ के मध्य शत्रुता का अन्त 1731 ई. में वार्ना की संधि के द्वारा हुआ।
  • साहू के नेतृत्व में मराठा साम्राज्यवाद के प्रवर्त्तक पेशवा लोग थे, जो साहू के पैतृक प्रधानमन्त्री थे। पेशवा पद पहले पेशवा के साथ ही वंशानुगत हो गया था। वह पुणे में स्थित दफ्फतर में रहता था। इस दफ्फतर को हुजूर दफ्फतर कहा जाता था।

बालाजी विश्वनाथ

  • साहू ने 1713 ई. में बालाजी विश्वनाथ को पेशवा बनाया।
  • इनकी मृत्यु 1720 ई. में हो गई।

बाजीराव प्रथम

  • पालेखेड़ा का युद्ध 7 मार्च, 1728 ई. को बाजीराव प्रथम एवं निजामुल मुल्क के बीच हुआ, जिसमें निजाम की हार हुई। निजाम के साथ मुंगी शिवागाँव की सन्धि हुई।
  • दिल्ली पर आक्रमण करने वाला प्रथम पेशवा बाजीराव प्रथम था। उसने 29 मार्च, 1737 ई. को दिल्ली पर आक्रमण किया था।
  • 1740 ई. में बाजीराव प्रथम की मृत्यु हो गई।
  • वह ‘मस्तानी’ नामक महिला से सम्बन्ध होने के कारण चर्चित रहा।

बालाजी बाजीराव

  • ये 1740 ई. में पेशवा बने।
  • 1750 ई. में संगोला सन्धि के बाद पेशवा को सारे अधिकार प्राप्त हो गये।
  • झलकी की सन्धि हैदराबाद के निजाम एवं बालजी बाजीराव के मध्य हुई।
  • पानीपत के तृतीय युद्ध (14 जनवरी, 1761 ई.) में मराठों की हार के बाद बालाजी की मृत्यु हो गई।
  • इन्हें ‘नाना साहब’  के नाम से भी जाना जाता था।

माधवराव नारायण प्रथम

  • ये 1761 ई. में पेशवा बने।
  • इसने मराठों की खोई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया।
  • ईस्ट इंडिया कम्पनी की पेंशन पर रह रहे मुगल बादशाह आलम द्वितीय को माधवराव ने पुनः दिल्ली की गद्दी पर बैठाया। मुगल बादशाह अब मराठों का पेंशनभोगी बन गया।
  • पेशवा नारायण राव (1772-73) की हत्या उसके चाचा रघुनाथ राव ने कराई थी।

माधवराव नारायण द्वितीय

  • इसे अल्पायु में पेशवा बनाया गया था।
  • मराठा राज्य की देख-देख ‘बारहभाई सभा’  नामक 12 सदस्यों की एक परिषद् करती थी।
  • बारहभाई सभा में दो महत्वपूर्ण सदस्य महादजी सिंधिया एवं नाना फड़नबीस थे।
  • नाना फड़नबीस का मूल नाम बालाजी जनार्दन भानु था।
  • नाना फड़नबीस को जेम्स ग्रांट डफ ने मराठों का मैकियावेली कहा था।

बाजीराव द्वितीय

  • अन्तिम पेशवा बाजीराव द्वितीय, राघोवा का पुत्र था, यह अंग्रेजों की सहायता से पेशवा बना था।
  • मराठों के पतन का सबसे बड़ा हाथ बाजीराव द्वितीय का था।
  • यह सहायक सन्धि स्वीकार करने वाला पहला मराठा सरदार था।
  • 1776 ई. में पुरन्दर की सन्धि हुई। इसके तहत कम्पनी ने रघुनाथ राव के समर्थन को वापस ले लिया।
  • पेशवा बाजीराव द्वितीय ने कोरेगाँव एवं अष्टी के युद्ध में हारने के बाद फरवरी, 1818 ई. में मेल्कम के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया।
  • अंग्रेजों ने पेशवा पद को समाप्त कर बाजीराव द्वितीय को पुणे से हटाकर कानपुर स्थित बिठूर में पेंशन पर जीने के लिए भेज दिया, जहाँ 1853 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।

मराठा व अंग्रेजों के मध्य प्रमुख सन्धियाँ

सन्धियाँ                                                 वर्ष                                         सन्धियाँ                                                 वर्ष  

सूरत की सन्धि                    1775 ई.                                  पुरन्दर की सन्धि                                1776 ई.

बड़गाँव की सन्धि                                1779 ई.                                  सालबाई की सन्धि             1782 ई.

बसीन की सन्धि                  1802 ई.                                  देवगाँव की सन्धि                               1803 ई.

सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि                1803 ई.                                  राजापुर घाट की सन्धि      1804 ई.

नागपुर की सन्धि                                1816 ई.                                  ग्वालियर की सन्धि           1817 ई.

पूना की सन्धि                     1817 ई.                                  मन्दसौर की सन्धि            1818 ई.

चौथ एवं सरदेशमुखी

  • इससे प्राप्त धन का 25% भाग छत्रपति के पास जाता था, जिसे बाबती कहा जाता था।
  • इस धन से 6% पन्त सचिव को मिलता था, जिसे सहोत्र कहा जाता था।
  • इस धन का 3% छत्रपति के विवेक से विभिन्न सरदारों के मध्य विभाजित किया जाता था, जिसे नादगोंदा कहा जाता था।
  • शेष 66% मराठा घुड़सवारों को दे दिया जाता था।

आंग्ल-मराठा संघर्ष

  • प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध: यह युद्ध 1775-82 ई. में हुआ था, सालबाई सन्धि से समाप्त युद्ध समाप्त हुआ।
  • द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध: यह युद्ध 1803-05 ई. में हुआ। इसमें भोंसले (नागपुर) ने अंग्रेजों को चुनौती दी। इसके फलस्वरूप 7 सितम्बर, 1803 ई. को देवगाँव की सन्धि हुई।
  • तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध: यह युद्ध 1816-18 ई. में हुआ। इस युद्ध के बाद मराठा शक्ति और पेशवा के वंशानुगत पद को समाप्त कर दिया गया।

प्रमुख राजवंश, संस्थापक एवं उनकी राजधानी

राजवंश                        संस्थापक                  राजधानी               राजवंश                  संस्थापक               राजधानी

हर्यक वंश                     बिम्बिसार                 राजगृह                  शिशुनाग वंश        शिशुनाग                वैशाली

नन्द वंश                      महापद्मनन्द             पाटलिपुत्र               मौर्य वंश                चन्द्रगुप्त               पाटलिपुत्र

कण्व वंश                      वासुदेव                      पाटलिपुत्र           सातवाहन              सिमुक                    प्रतिष्ठान

गुप्त वंश                      श्रीगुप्त                      पाटलिपुत्र               हूण वंश                  तोरमाण                 स्यालकोट

सेन वंश                        सामन्त सेन              लखनौती               परमार वंश            उपेन्द्र                     धारा नगरी

गहड़वाल वंश               चन्द्रदेव                     कन्नौज                 गुर्जर प्रतिहार        नागभट्ट प्रथम       कन्नौज

राष्ट्रकूट वंश                दन्तिदुर्ग                   मान्यखेट               सैयद वंश               खिज्र खाँ                दिल्ली

लोदी वंश                      बहलोल लोदी            दिल्ली                 चोल वंश                विजयालय             तन्जौर

पांड्य वंश                     नेडियोन                   मदुरै                   यादव वंश              भिल्लभ पंचम       देवगिरि

होयसल वंश                 विष्णुवर्द्धन                द्वार समुद्र            कलचुरी वंश          कोकल्ल                 त्रिपुरी

सालुव वंश                    नरसिंह         विजयनगर            तुलुव वंश          वीर नरसिंह           विजयनगर

सोलंकी वंश                  मूलराज                     अन्हिलवाड            शर्की वंश          मलिक सरवर        जौनपुर

भोंसले वंश                   शिवाजी                     रायगढ़                   पाल वंश          गोपाल                    मुंगेर

चौहान वंश                   वासुदेव                      अजमेर                   लोहार वंश       संग्राम राज            कश्मीर

कुषाण वंश                   कुजल कड़फिसेस     पुरुषपुर                   वर्द्धन वंश          पुष्यभूति                थानेश्वर/कन्नौज

चन्देल वंश                   नन्नुक                    खजुराहो/महोबा   पल्लव वंश          सिंह वर्मन चतुर्थ   काँचीपुरम्

शुंग वंश                        पुष्यमित्र शुंग            पाटलिपुत्र         चालुक्य (बादामी) जयसिंह प्रथम       वातापी

चालुक्य (बेंगी)            विष्णुवर्द्धन                बेंगी                    चालुक्य (कल्याणी)तैलप-II               मान्यखेट/कल्याण

गुलाम वंश                   कुतुबुद्दीन ऐबक        दिल्ली                खिलजी वंश           जलालुद्दीन खिलजी       दिल्ली

तुगलक वंश                 गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली                    कुतुबशाही वंश      कुली कुतुबशाह      गोलकुण्डा

आदिलशाही वंशआ  दिलशाह                    बीजापुर                  निजामशाही वंश   मलिक अहमद       अहमदनगर

इमादशाही वंश     फतेहउल्ला               इमादशाहबरार      संगम वंश              हरिहर-बुक्का        विजयनगर

बहमनी वंश                 हसन गंगू                  गुलबर्गा (बीदर)     आरवीडू वंश          तिरुमल               पेनुकोंडा

बरीदशाही वंश             अमीरअली बरीद      बीदर                       मुगल वंश        बाबर             दिल्ली/आगरा

कार्कोट वंश                  दुर्लभ वर्द्धन               कश्मीर                   उत्पल वंश         अवन्ति वर्मन        कश्मीर

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