‘भूगोल’ मानव तथा उसके पर्यावरण एवं दोनों के बीच सम्बन्धों का अध्ययन करता है; जो भी घटनाएं धरातल पर होती ह्रै अथवा पाई जाती हैं, वे सभी भूगोल की विषय-वस्तु के लिए महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इसलिए भूगोल को ‘भौतिक भूगोल’ एवं ‘मानव भूगोल’, दो मुख्य भागों में बाँटा जाता है।
‘भौतिक भूगोल’ पृथ्वी के भौतिक तत्वों के अध्ययन से सम्बन्धित है। दूसरी ओर ‘मानव भूगोल’ भू-तल पर मानव का अध्ययन करता है।
ब्रह्माण्ड ( The Universe)
ब्रह्माण्ड का वैज्ञानिक अध्ययन ब्रह्माण्ड विज्ञान (Cosmology) कहलाता है। ब्रह्माण्ड में तारों, आकाशगंगाओं, ग्रहों, उपग्रहों, उल्कापिण्डों आदि को शामिल किया जाता है।
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति (Origin of the Universe ) : ब्रह्माण्ड की उत्पति के संदर्भ में तीन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया था –
- सतत् सृष्टि सिद्धांत : इसका प्रतिपादन थॉमस गोल्ड एवं हर्मन बॉण्डी द्वारा किया जाता है।
- संकुचन विमोचन सिद्धांत (दोलन सिद्धांत) : इसका प्रतिपादन डॉ. एलेन संडेज द्वारा किया गया था।
- महाविस्फोट सिद्धांत : ऐब जार्ज लेमैत्रे द्वारा प्रतिपादित महाविस्फोट सिद्धांत के अनुसार 15 अरब वर्ष पूर्व सम्पूर्ण ब्रह्माण्डीय पदार्थ अत्यंत सघन पिण्ड के रूप में था, जिसमें विस्फोट के पश्चात् ब्रह्माण्डीय पदार्थ चारों ओर फैल गये। यह पदार्थ ही विभिन्न गैलेक्सियों के रूप में हमें दिखाई देते हैं। आज करोड़ों वर्ष के बाद भी ब्रह्माण्ड फैल रहा है, लेकिन एक स्थान पर स्थिर है, जिसमें अनेक पिण्ड गुरुत्व द्वारा आपस में स्थिर अवस्था में हैं।
- आकाशगंगा : आकाशगंगा तारों, निहारिकाओं और अन्तर- तारकीय पदार्थों का एक समूह होता है। एक आकाशगंगा करोड़ों तारों का परिवार होता है और ये अपने गुरुत्व से आपस में एक-दूसरे को रोके रखते हैं। ये आकाशगंगा गैस और धूल के साथ तारों से संगठित हैं।
- आकाशगंगा के प्रकार : आकृति के अनुसार तीन प्रकार की आकाशगंगायें पाई जाती हैं –
- सर्पिल (Spiral) आकाशगंगा
- दीर्घवृत्ताकार (Elliptical) आकाशगंगा
- अव्यवस्थित (Irregular) आकाशगंगा।
- मंदाकिनी : हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी की आकृति सर्पिलाकार है, जिसकी तीन भुजाएँ हैं। सूर्य इनमें से दूसरी भुजा पर स्थित है। हमारी आकाशगंगा का व्यास एक लाख प्रकाश वर्ष है। सूर्य जो केन्द्र से दो तिहाई बाहर की ओर है, आकाशगंगा का एक चक्कर लगभग 2250 लाख वर्षों में लगाता है। सूर्य की आयु की गणना की जाये, तो अब तक इसने लगभग 30 चक्र पूरे कर लिए हैं।
- हमारी आकाशगंगा का निकटवर्ती पड़ोसी आकाशगंगा देवयानी है, जो 20 लाख प्रकाश वर्ष दूर है।
- ब्रह्माण्ड में पाया जाने वाला ‘ड्वार्फ आकाशगंगा’ नवीनतम ज्ञात आकाशगंगा है।
- निहारिका : आकाशगंगा में स्थित निहारिका धूल और गैस के मेघ होते हैं। यदि गैस उद्दीप्त होती है अथवा मेघ सीधेे प्रतिबिम्बित होते हैं अथवा अधिक दूरी की वस्तुओं से प्रकाश ढंक जाता है, तब निहारिका दिखाई देती है।
सम्बन्धित तथ्य
- लाल दानव : ये मृत्योन्मुखी तारे होते हैं। जब किसी तारे में हाइड्रोजन घटने लगता है, तब उसमें लालिम दिखने लगती है।
- वामन तारे : जिन तारों का प्रकाश सूर्य के प्रकाश से कम होता है, वे वामन तारे कहलाते हैं।
- युग्म तारे : गुरुत्वाकर्षण से आपस में बंधे तारे, जिनमें एक तारा सामान्यतः दूसरे की अपेक्षा मंद होता है, युग्म तारे कहलाते हैं।
- नोवा : यह अत्यधिक चमक के साथ अचानक दिखाई देता है तथा बाद में अपने मूल स्तर पर वापस मंद पड़ जाता है। इसको नोवा तारे कहते हैं।
- सुपर नोवा : 20 से अधिक मैग्नीट्यूड वाले तारे को सुपर नोवा कहते हैं।
- न्यूट्रॉन तारा : सुपर नोवा विस्फोट में बिखरे न्यूट्रॉन युक्त तारीय पदार्थ न्यूट्रॉन तारा कहलाता है।
- बहुल तारे : दो से अधिक तारों का निकाय बहुल तारा कहलाता है।
- क्वासर्स : ब्रह्मांड में बिखरे अर्द्धतारीय पदार्थ, जिनसे रेडियो तरंगें निकलती हैं, क्वासर्स कहलाते हैं।
- कृष्ण विवर : जब तारे का अन्त होता है, तो उसका भार तीन गुना अधिक हो जाता है। निपात होने के साथ यह सघन हो जाता है। यह इतना सघन हाके जाता है कि प्रकाश भी इसके गुरुत्व से निकल नहीं पाता। यह अन्धक्षेत्र हो जाता है, इसे देखा नहीं जा सकता। इसे कृष्ण विवर या ब्लैक होल कहते हैं।
- अमेरिका के भौतिकशास्त्री जॉन व्हीलन ने 1967 में सर्वप्रथम ब्लैक होल शब्द का प्रयोग किया था।
- पल्सर : घूमते हुए न्यूट्रॉन तारे को पल्सर कहते हैं, जो विद्युत चुम्बकीय तरंगें छोड़ते हैं।
- ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने के लिए 30 मार्च, 2010 को यूरोपीयन सेन्टर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (CERN) ने जेनेवा में पृथ्वी की सतह से 50 से 175 मीटर नीचे 27-36 किमी लम्बे सुरंग में लार्ज हैड्रन कोलाइजर (LHC) नामक महाप्रयोग किया गया। इसके तहत प्रोटॉन बीमों को लगभग प्रकाश की गति से टकराया गया और हिग्स बोसॉन के निर्माण का प्रयास किया गया। वैज्ञानिकों के अनुसार गॉड पार्टिकल के नाम से जाना जाने वाला हिग्स बोसॉन में ही ब्रह्माण्ड के रहस्य छिपे हैं। CERN ने 4 जुलाई, 2012 को हिग्स बोसॉन से मिलता-जुलता सब एटॉमिक पार्टिकल की खोज करने में सफलता हासिल की।
तारा
- तारे उष्ण चमकती हुई गैस के भाग होते हैं, जो निहारिकाओं से उत्पन्न होते हैं। ये आकार, द्रव्यमान और तापमान में सूर्य से व्यास में 450 गुना छोटे से 1000 गुना बडे़ तक होते हैं, और इनका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से °C से 50°C के ऊपर तथा उसके धरातल का तापमान 3000°C से 50,000°C तक पाया जाता है।
- तारों का रंग उनके तापमान पर निर्भर करता है और उनकी आयु का सूचक है। जो तारा जितना चमकीला हेाता है, उसकी आयु उतनी कम होती है।
- तारों में पाई जाने वाली गैसों में हाइड्रोजन 71%, हीलियम 26.5% तथा अन्य तत्व 2.5% होते हैं।
- तारों में हाइड्रोजन व हीलियम में संलयन की प्रक्रिया पाई जाती है।
तारा : जीवन चक्र
- ब्रह्माण्ड अनन्त गैलेक्सियों का सम्मिलित रूप है। प्रत्येक गैलेक्सी में लाखों तारे हैं, जिनका निर्माण निहारिकाओं से होता है।
- गुरुत्वाकर्षण बल से गैस एवं धूल के बादलों का गोले के आकार में संघटन, गति, उच्च ताप, संलयन अभिक्रिया, एक तारे के निर्माण के कारक हैं।
- तारे के विकास क्रम में प्रथम अवस्था प्रोटोस्टार करता है। सूर्य के आकार का तारा, इस अवस्था में 10 बिलियन वर्ष तक रहता है।
- किसी तारे की जीवन अवधि उसके आकार पर निर्भर करती है।
- सूर्य के आकार (एक सोलर द्रव्यमान – one solar mass) के तारे की अवधि 10 बिलियन वर्ष की होती है।
- तारा जितना बड़ा होता जाएगा, उसकी जीवनावधि उतनी कम होती जाएगी।
- रक्त दानव या सुपर रक्त दानव अवस्था में क्रमशः नोवा या सुपरनोवा विस्फोट के पश्चात्् तारा अपने आकार के अनुरूप मृत्यु की तीन दशाओं कृष्ण वामन, न्यूट्रॉन स्टार, कृष्ण विवर में से कोई एक प्राप्त करता है, जो इस प्रकार है :
- सूर्य सदृश्य छोटे तारे : रक्त दानव अवस्था एवं नोवा विस्फोट के पश्चात् यदि अवशेष सौर्यिक द्रव्यमान के 1.44 गुना की सीमा के अंदर होगा, तो तारा श्वेत वामन बनेगा और अन्त में कृष्ण वामन के रूप में मृत्यु की अन्तिम अवस्था प्राप्त करेगा।
- मध्यम आकार के तारे : सुपर रक्त दानव अवस्था के पश्चात्् सुपरनोवा विस्फोट के बाद अवशेष 1.44 सौर्यिक द्रव्यमान से 3 सौर्यिक द्रव्यमान तक रहने वाले तारे न्यूट्रॉन तारे के रूप में परिवर्तित हो जाने की संभावना रखते हैं।
- बड़े आकार के तारे : सुपरनोवा विस्फोट के पश्चात् 3 सौर्यिक द्रव्यमान से अधिक अवशेष वाले तारे, कृष्ण विवर या ब्लैक होल में परिवर्तित होते हैं।
- चन्द्रशेखर सीमा (Chandra Shekhat Limit): भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक सुब्रह्मण्यम चन्द्रशेखर ने 1930 में सौर्यिक द्रव्यमान की वह सीमा निश्चित की थी, जिसके अंदर के तारे श्वेत वामन बनते हैं और जिसके ऊपर के अवशेष वाले तारे, न्यूट्रॉन स्टार या कृष्ण विवर (ठसंबा भ्वसम) के रूप में परिवर्तित होते हैं। 1ण्44 सौर्यिक द्रव्यमान की चन्द्रशेखर सीमा नोवा या सुपरनोवा विस्फोट के बाद बचे अवशेष तारे के द्रव्यमान से सुनिश्चित होती है।
तारा मण्डल
- तारा मंडल कई तारों के समूह होते हैं, इनकी एक विशेष आकृति होती है।
- सप्तऋषि तारामंडल की आकृति भालू से मिलती है।
- तारामंडल का सर्वाधिक चमकदार नक्षत्र ‘अल्फा नक्षत्र’, उससे कम चमकदार बीटा नक्षत्र और इसी प्रकार गामा नक्षत्र आदि कहलाते हैं।
- इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) के अनुसार आकाश में कुल 88 तारामंडल हैं, जिनमें से अधिकांश को दक्षिणी गोलार्द्ध से देखा जा सकता है।
सौरमण्डल
सौरमण्डल में एक केन्द्रीय सूर्य और अन्य ग्रह, जो उसके चारों ओर परिक्रमा करते हैं, को सम्मिलित किया जाता है। सूर्य का परिवार सौरमण्डल कहलाता है। सौरमण्डल 8 ग्रह, उपग्रह, क्षुद्रग्रह धूमकेतु आदि से मिलकर बना है। सौरमण्डल का लगभग 99.99% द्रव्यमान सूर्य में है। सौरमण्डल मंदाकिनी के केन्द्र से लगभग 30,000 से लेकर 33,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है।
सूर्य
- आधुनिक अनुमान के आधार पर मंदाकिनी के केन्द्र से सूर्य की दूरी 32,000 प्रकाश वर्ष है।
- सूर्य एक गोलाकार कक्ष में 250 किमी प्रति सेकण्ड की औसत गति से मंदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर परिक्रमा करता है। इस गति से केन्द्र के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में सूर्य को 25 करोड़ वर्ष लगते हैं। यह अवधि ब्रह्माण्ड वर्ष कहलाती है।
- सूर्य पृथ्वी से 109 गुना बड़ा एवं तीन लाख तैंतिस हजार गुना भारी है, लेकिन उसका गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से 28 गुना अधिक है।
- सूर्य पृथ्वी से 15 करोड़ किमी दूरी पर है, जिसका प्रकाश पृथ्वी पर 8 मिनट 20 सेकण्ड में पहुँचता है।
- सूर्य की आयु 5 अरब वर्ष है। इसका व्यास 13,91,016 किमी है।
- सूर्य के रसायनिक संघटन में 71% हिस्सा हाइड्रोजन, 26.5% हीलियम तथा 2.5% लीथियम व यूरेनियम जैसे भारी तत्व का है। नाभिकीय संलयन द्वारा हाइड्रोजन का हीलियम में रूपान्तरण होता है। यह प्रक्रिया ही सूर्य की ऊर्जा का स्रोत है।
सूर्य की संरचना
- सूर्य का केन्द्रीय भाग कोर कहलाता है, जिसका तापमान 1,50,00,000°C है। बाहरी सतह प्रकाशमण्डल है, जो दीप्तमान सतह के रूप में जाना जाता है, इसका तापमान 6000°C है।
- सौर ज्वालाएँ – बाहरी सतह से उठने वाली लपटें सौर ज्वालाएँ कहलाती हैं, जिनकी पहुँच 10,00,000 किमी ऊँचाई तक होती है।
- वर्णमण्डल – ये प्रकाशमंडल के वे किनारे हैं, जो कि वायुमण्डल के प्रकाश का अवशोषण कर लेने के कारण प्रकाशमान नहीं होते हैं। इसका रंग लाल होता है।
- किरीट – यह X-किरण उत्सर्जित करने वाला बाहरी भाग है, जो सिर्फ सूर्यग्रहण के समय दिखाई देता है।
- फ्रानहॉफर रेखाएँ – ये काली रेखाएँ होती हैं, जिन्हें सूर्य की सतह पर देखा जा सकता है।
- सौर कलंक – कोरोना में विद्यमान काले रंग के धब्बे, जिनका तापमान सूर्य की सतह के तापमान से कम होता है, सौर कलंक कहलाते हैं। इनमें विशाल मात्र में चुम्बकीय क्षेत्र विद्यमान रहता है। इन कलंकों से उत्पन्न ज्वालाओं के परिणामस्वरूप पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में झंझावत उत्पन्न होता है, जो उपग्रह आदि को प्रभावित करता है। सौर कलंकों का एक चक्र लगभग 11 वर्षों का होता है।
- सौर पवन – सूर्य के कोरोना से निकलने वाली प्रोटोन्स (हाइड्रोजन अणुओं के नाभिक) की धारा को सौर पवन कहते हैं।
- ध्रुवीय ज्योति – उत्तर ध्रुव पर ओरोरा बोरियालिस आस्ट्रालिस तथा दक्षिणी ध्रुव पर ओरोरा आस्ट्रालिस वे नजारे हैं, जो रोशनी की बरसात का आभास करवाते हैं। ये वायुमण्डल एवं सौर पवनों के घर्षण से उत्पन्न होते हैं।
सौरमण्डल के पिण्ड
अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने प्राग सम्मेलन, 2006 में आकाशीय पिण्डों को तीन वर्ग में विभाजित कियाµ
- परम्परागत ग्रह – बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण।
- बौने ग्रह (क्षुद्रग्रह )- प्लूटो, चेरान, सेरस।
- लघुपिण्ड – उपग्रह, धूमकेतु एवं अन्य पिण्ड।
ग्रह – सूर्य से निकले हुए पिंड जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं तथा सूर्य से ही ऊष्मा व प्रकाश प्राप्त करते हैं, ग्रह कहलाते हैं। ग्रहों में गुरुत्वाकर्षण शक्ति होती है और अपनी परिक्रमण कक्षा पाई जाती है।
- बुध, शुक्र, पृथ्वी एवं मंगल को पार्थिव/आन्तरिक ग्रह कहा जाता है, क्योंकि ये पृथ्वी के सदृश हैं।
- बृहस्पति, शनि, अरुण व वरुण को बृहस्पति/बाह्य ग्रह कहा जाता है।
- सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रहों का क्रम-
1. बुध 2. शुक्र 3. पृथ्वी
4. मंगल 5. बृहस्पति 6. शनि
7. अरुण 8. वरुण
आकार के अनुसार –
1. बृहस्पति 2. शनि 3. अरुण
4. वरुण 5. पृथ्वी 6. शुक्र
7. मंगल 8. बुध
बुध
- बुध सौरमंडल में सूर्य का निकटतम ग्रह है। सूर्य के करीब होने के कारण यह सूर्य की परिक्रमा सबसे कम समय में लगाता है।
- आकार की दृष्टि से यह सबसे छोटा ग्रह है, इसका कोई उपग्रह नहीं है।
- इसका कोई वायुमंडल नहीं है, अतः इसका तापान्तर अधिक पाया जाता है।
- दिन में सतह का तापमान 467°C तथा रात में -180°C रहता है।
- इस ग्रह पर कैलोरिस बेसिन पाया जाता है।
शुक्र
- शुक्र का आकार लगभग पृथ्वी के समान है, इसे पृथ्वी की बहन ग्रह कहते हैं।
- यह पृथ्वी के सबसे निकटतम ग्रह है, जिसका कोई उपग्रह नहीं है।
- इसे भोर का तारा या संध्या का तारा कहते हैं, क्योंकि सुबह के समय यह पूर्व दिशा में दिखता है तथा संध्या के समय पश्चिम दिशा में दिखाई देता है।
- यह सर्वाधिक गर्म ग्रह है (480°C) तथा सौर ऊर्जा का सर्वाधिक परावर्तन करने के कारण यह सबसे चमकीला ग्रह है।
- इसका परिक्रमण पूर्व से पश्चिम दिशा में है।
- इसका सर्वोच्च बिन्दु मैक्सवेल है, जो बीटा माउंटेन पर स्थित है।
पृथ्वी
- पृथ्वी, सूर्य का तीसरा निकटतम ग्रह है। आंतरिक ग्रहों में यह सबसे बड़ा ग्रह है।
- पृथ्वी सौरमंडल का एकमात्र ग्रह है, जिस पर जीवन पाया जाता है।
- जल की उपस्थिति के कारण इसे नीला ग्रह भी कहते हैं।
- इसका अक्षीय झुकाव 23.50 तथा कक्षीय झुकाव 66.50 है।
- सूर्य के बाद पृथ्वी से निकटतम तारा प्रोक्सिमा सेन्चुरी है (4.5 प्रकाश वर्ष)।
- पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चन्द्रमा है।
चन्द्रमा
- सेलेनोलॉजी – यह विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें चन्द्रमा की आंतरिक स्थिति और उसकी सतह का अध्ययन किया जाता है।
- शांत सागर – यह चन्द्रमा का पिछला व अंधकारपूर्ण भाग है, जो एक तरह का धूल का मैदान है।
- चन्द्रमा को जीवाश्म ग्रह भी कहा जाता है, क्योंकि यह पृथ्वी की तरह लगभग 460 करोड़ वर्ष आयु का है।
- इसका सर्वोच्च शिखर लिबनीट्ज पर्वत (10,668 मीटर) है।
- पृथ्वी से चन्द्रमा का केवल 59% भाग ही दिखाई देता है।
- अपभू – चन्द्रमा जब अपनी कक्षा में पृथ्वी से अत्यधिक दूरी पर होता है, उस स्थिति को अपभू कहते हैं, यह 4,06,699 किमी होता है।
- उपभू – चन्द्रमा जब अपनी कक्षा में पृथ्वी से न्यूनतम दूरी (3,56,399 किमी) पर होता है, तो उसे उपभू कहते हैं।
- जब चन्द्रमा का प्रकाशित भाग प्रतिदिन बढ़ता जाता है, तो वह शुक्ल पक्ष होता है। जब चन्द्रमा का प्रकाशित भाग घटता रहता है, तो वह कृष्ण पक्ष कहलाता है।
- चन्द्रमा पर वायुमण्डल नहीं पाया जाता है।
चन्द्रमा विवरण
- पृथ्वी से औसत दूरी 3,98,067 किमी
- व्यास 3,473 किमी
- घनत्व जल के घनत्व 3.3
- पृथ्वी के संदर्भ में द्रव्यमान 1/81
मंगल
- मंगल को लाल ग्रह कहते हैं, क्योंकि इसकी सतह पर लौह ऑक्साइड पाया जाता है, जिसमें इसका रंग लाल हो गया है।
- मंगल के दो ध्रुव हैं और वहाँ भी पृथ्वी की तरह ऋतु परिवर्तन होता है। ऐसा पृथ्वी की तरह मंगल की धुरी झुकी होने के कारण होता है।
- मंगल के दो उपग्रह हैं- फोबोस एवं डोमोस।
- मंगल पर स्थित ‘निक्स ओलम्पिया’ एक पर्वत है, जो माउण्ट एवरेस्ट से तीन गुना ऊँचा है तथा ओलिंपस मेसी ज्वालामुखी है, जो सौरमंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी है।
बृहस्पति
- आकार की दृष्टि से यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है।
- यह गैसों से निर्मित ग्रह है और इसके वायुमंडल में मुख्यतः हाइड्रोजन एवं हीलियम पाई जाती है।
- बृहस्पति से रेडियो तरंगें प्रसारित होती हैं।
- इसके 63 उपग्रह हैं, जिनमें गैनीमीड सबसे बड़ा उपग्रह है।
- इस ग्रह पर एक विशाल गड्ढा है, जिसमें आग की लपटें निकलती रहती है, जो विशाल लाल धब्बा जैसा दिखाई देता है।
शनि
- यह सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है।
- इसके चारों ओर वलय पाए जाते हैं, जिनकी संख्या 10 है।
- शनि के 62 उपग्रह हैं, जिनमें टाइटन सबसे बड़ा उपग्रह है।
- शनि तीव्रगति से घूमने के कारण सौरमण्डल का सबसे चपटा ग्रह है।
- यह आकाश में पीले तारे की तरह नजर आता है।
अरुण
- अरुण पर मीथेन गैस की अधिकता है, जिसके कारण यह हरे रंग का दिखाई देता है। टिटेनिया अरुण का सबसे बड़ा उपग्रह है।
- यह पूर्व से पश्चिम दिशा में घूमता है, इसलिए यहाँ सूर्योदय पश्चिम में तथा सूर्यास्त पूर्व में होता है। अरुण के चारों ओर छल्ले पाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा व इप्सिलॉन।
- अरुण अपनी धुरी पर सूर्य की ओर अधिक झुकाव के कारण लेटा हुआ प्रतीत होता है, इसलिए इसे लेटा हुआ ग्रह भी कहा जाता है।
वरुण
- सूर्य से अधिकतम दूरी पर स्थित होने के कारण वरुण सबसे ठंडा ग्रह है।
- वरुण का सबसे छोटा उपग्रह ने याद है।
- इसके 13 उपग्रह हैं। इसका उपग्रह टिटान चन्द्रमा से बड़ा है।
- इस ग्रह का रंग हल्का पीला है।
यम :
अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) के प्राग (चेकोस्लोवाकिया) सम्मेलन 2006 में प्लूटो (यम) को सौरमंडल से बाहर का ग्रह माना गया है। इसमें ग्रह के लिए नई परिभाषा दी गई है, जिसमें यह कहा गया है कि वे आकाशीय पिण्ड ही सौरमंडल के ग्रह माने जायेंगे, जो अपनी निश्चित कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करते हैं तथा अन्य ग्रहों की कक्षा का परिक्रमण नहीं करते हैं। यूरेनस की कक्षा का अतिक्रमण करने के कारण नई परिभाषा के आधार पर प्लूटो को सौरमंडल के ग्रहों से बाहर कर दिया गया है।
डॉप्लर प्रभाव :
जब हम किसी रेल पटरी के पास खड़े होते हैं और सीटी बजाता हुआ रेल इंजन (ध्वनि स्रोत) हमारी ओर आता है, तो एक सीटी की आवाज अधिक तीक्ष्ण मालूम पड़ती है, अर्थात् ध्वनि की आभासी आवृत्ति बढ़ी हुई प्रतीत होती है और जब इंजन हमसे दूर जाता है, तो सीटी की आवाज कम तीक्ष्ण मालूम पड़ती है। अर्थात् ध्वनि की आभासी आवृत्ति घटी हुई मालूम पड़ती है। अतः जब कभी ध्वनि स्रोत और श्रोता (प्रेक्षक) के बीच आपेक्षित गति होती है, तो ध्वनि की आवृत्ति में आभासी परिवर्तन होता है। इस घटना को डॉप्लर प्रभाव कहते हैं।
सौरमंडल में पृथ्वी का स्थान
- टॉलेमी का मानना था कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र बिन्दु है तथा सूर्य एवं अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं।
- पोलैंड के खगोलविद् कॉपरनिकस, 1543 में इस मत को परिवर्तित कर यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि सूर्य ब्रह्माण्ड के केन्द्र में है, उन्होंने सौरमंडल की भी खोज की। सूर्य केन्द्रित परिकल्पना के अनुसार आकाशीय पिण्ड सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। इन्हें ग्रह कहते हैं।
- जोहानस केपलर ने ग्रहों के गति सम्बन्धी नियमों का प्रतिपादन किया।
क्षुद्र ग्रह
- क्षुद्र ग्रहों की बेल्ट मंगल और बृहस्पति के बीच पड़ती है। इन्हें अवान्तर ग्रह भी कहते हैं, जो अन्य ग्रहों की भाँति सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
- सबसे बड़ा क्षुद्र ग्रह सेरेस है, जो 1032 किमी तक फैला है। इसे गिसेप्पे पियाजी ने खोजा था। एरिस (जेना) एवं वेस्टा अन्य क्षुद्र ग्रह हैं।
धूमकेतु
आकाशीय धूल, गैसों व हिमकणों से निर्मित पिंड जो अनियमित कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करते हैं, धूमकेतु या पुच्छल तारे कहलाते हैं। सामान्यतः ये पूँछ रहित होते हैं, किन्तु जैसे ही वे सूर्य के निकट आते हैं, सूर्य की गर्मी के कारण इनकी बाहरी परत पिघलकर गैसों में परिवर्तित हो जाती है और चमकीली पूँछ के समान दिखाई देती है।
सर्वाधिक प्रसिद्ध धूमकेतु हेली है, जिसका आवर्तकाल 76 वर्ष है। 1994 में शूमेकर लेवी-9 बृहस्पति से टकराया था। टेंपल-1, हेलबोप, ऐंकी कुछ अन्य प्रमुख धूमकेतु हैं।
उल्का एवं उल्कापिंड
- उल्का धूल एवं गैस से निर्मित लघुपिंड हैं, जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी पर जल कर नष्ट हो जाते हैं।
- पिंड पूर्णतः नष्ट नहीं होते, चट्टानों के रूप में पृथ्वी पर गिरते हैं। इन्हें उल्काश्म कहते हैं। बड़े उल्काश्मों को उल्कापिंड कहते हैं।
पृथ्वी की गति, काल्पनिक रेखाएँ एवं समय का निर्धारण
पृथ्वी की गति : यह गति दो प्रकार की होती है –
- घूर्णन गति – पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व दिशा में 23 घंटे 56 मिनट और 4 सेकण्ड में घूमती है। इसे पृथ्वी की घूर्णन गति कहा जाता है। इसे परिभ्रमण/ दैनिक गति भी कहते हैं। इसी के कारण दिन व रात की घटना होती है।
- परिक्रमण या वार्षिक गति – पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में अर्थात् अपनी कक्षा का चक्कर लगाने में 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट तथा 48 सेकण्ड लगते हैं। पृथ्वी की इस गति को परिक्रमण गति कहते हैं। इसी गति के कारण ऋतु परिवर्तन होते हैं।
- नत अक्ष: पृथ्वी जिस अक्ष या धुरी पर घूमती है, वह अपने कक्ष-तल के साथ 66.50 का कोण बनाता है और पृथ्वी इस तल पर लम्बवत् रेखा से 23.50 झुकी रहती है। इसके कारण :
- दिन रात की लम्बाई में अंतर उत्पन्न होता है।
- मौसम में परिवर्तन होता है।
- वर्ष के विभिन्न समयों में परिवर्तन आता है।
पृथ्वी से सूर्य की दूरी
पृथ्वी दीर्घवृत्ताकार पथ पर सूर्य की परिक्रमा करती है, जिसके कारण सूर्य से इसकी दूरी बदलती रहती है। पृथ्वी और सूर्य के मध्य दूरी की दो स्थितियाँ हैं –
- अपसौर – जब पृथ्वी और सूर्य के मध्य अधिकतम दूरी पायी जाती है, तो उसे अपसौर की स्थिति या सूर्योच्च कहते हैं। इस समय सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी 15.21 करोड़ किलोमीटर होती है तथा सूर्यात अपेक्षाकृत कम होता है। यह स्थिति 4 जुलाई को होती है।
- उपसौर – जब पृथ्वी और सूर्य के मध्य न्यूनतम दूरी होती है, तो उसे उपसौर की स्थिति या रविनीच कहते हैं। इस समय सूर्यताप और पृथ्वी के बीच की दूरी 14.70 करोड़ किमी होती है। यह स्थिति 3 जनवरी को होती है।
अयनांत/संक्राति
सूर्य की अयनरेखीय (कर्क तथा मकर रेखा) स्थिति को अयनांत कहा जाता है –
ग्रीष्म अयनांत/कर्क-संक्रांति
- 21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है, जिससे उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की सबसे अधिक ऊँचाई होती है और वहाँ दिन बडे़ और रातें छोटी होती हैं। इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु होती है। इस स्थिति को कर्क संक्रांति कहते हैं।
- इसी समय दक्षिणी गोलार्द्ध में विपरीत स्थिति रहती है, जहाँ सूर्य तिरछा चमकता है, जिससे यहाँ रातें बड़ी और दिन छोटे होते हैं तथा गर्मी कम होने से शीत ऋतु रहती है।
शीत अयनांत/मकर संक्रांति
- 22 दिसम्बर को दक्षिणी गोलार्द्ध सूर्य के सम्मुख रहता है, जिससे सूर्य मकर रेखा (23.50 द.) पर लम्बवत् रहता है, जिससे यहाँ ग्रीष्म ऋतु रहती है। इस स्थिति को मकर संक्रांति कहा जाता है।
- इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य तिरछा चमकता है, जिससे दिन छोटे व रातें बड़ी होती हैं और गर्मी कम होने के कारण शीत ऋतु रहती है।
विषुव
- 21 मार्च और 23 सितंबर को सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत् चमकता है। इस समय समस्त अक्षांश रेखाओं का आधा भाग प्रकाश में रहता है, जिससे सभी जगह दिन-रात बराबर होते हैं। दोनों गोलार्द्धों में दिन-रात बराबर रहने की स्थिति को विषुव अथवा सम् रात-दिन कहा जाता है।
- 21 मार्च वाली स्थिति को बसंत विषुव और 23 सितंबर वाली स्थिति को शरद विषुव कहा जाता है।
दिन की अवधि
- 21 मार्च से 23 सितंबर की अवधि में उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य का प्रकाश 12 घंटे से अधिक समय तक रहता है, जिससे दिन बड़े व रातें छोटी होती हैं। उत्तरी ध्रुव पर दिन की अवधि 6 महीने की होती है।
- 23 सितंबर से 21 मार्च की अवधि में सूर्य का प्रकाश, दक्षिणी गोलार्द्ध में 12 घंटे या उससे अधिक समय तक रहता है, जिससे वहाँ दिन बड़े व रातें छोटी होती हैं।
- दक्षिणी ध्रुव पर दिन की अवधि 6 महीने की होती है।
ग्रहण
- सूर्यग्रहण – पृथ्वी द्वारा सूर्य की तथा चन्द्रमा द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा के दौरान जब सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी एक सीधी रेखा में आते हैं, तो सूर्यग्रहण होता है। यह स्थिति अमावस्या को होती है, किन्तु चन्द्रमा में झुकाव के कारण प्रत्येक अमावस्या के दिन सूर्यग्रहण नहीं लगता।
- चन्द्रग्रहण – जब पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य के बीच आ जाती है, इस स्थिति को चन्द्रग्रहण कहा जाता है। चन्द्रग्रहण पूर्णिमा को होता है, परन्तु प्रत्येक पूर्णिमा को नहीं होता, क्योंकि चन्द्रमा, पृथ्वी व सूर्य के मुकाबले प्रत्येक पूर्णिमा को उस स्थिति में नहीं होता है।
पृथ्वी की काल्पनिक रेखाएँ
- अक्षांश – पृथ्वी सतह पर विषुवत रेखा के उत्तर या दक्षिण में एक याम्योत्तर पर पृथ्वी के केन्द्र से किसी भी बिन्दु पर मापी गई कोणीय दूरी को अक्षांश कहते हैं। इसे अंशों, मिनटों एवं सेकण्डों में दर्शाया जाता है।
- विषुवत वृत्त को 0° अक्षांश कहते हैं और यह पृथ्वी का अक्षांशीय दृष्टिकोण से दो बराबर भागों में बाँटता है। विषुवत वृत्त के उत्तर में 90° के अक्षांशीय विस्तार को उत्तरी गोलार्द्ध तथा विषुवत वृत्त के दक्षिण में 90° के अक्षांशीय विस्तार को दक्षिणी गोलार्द्ध कहते हैं।
अक्षांश रेखा की विशेषताएँ
- यह पूर्व से पश्चिम दिशा में खींची जाती हैं।
- इनका महत्व किसी स्थान की स्थिति बतलाने में है।
- भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर अक्षांश रेखा की लम्बाई कम हो जाती है।
- किन्हीं दो अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी समान होती है, जो 111.13 किमी की होती है।
- अक्षांश रेखाओं की कुल संख्या 181 है। भूमध्य रेखा सबसे बड़ी अक्षांश रेखा है, जिसे वृहद वृत्त भी कहा जाता है।
- किन्हीं दो अक्षांश रेखाओं के बीच के क्षेत्र को कटिबंध कहते हैं।
- 23.50 उत्तरी अक्षांश रेखा को कर्क रेखा तथा 23.50 दक्षिणी अक्षांश रेखा को मकर रेखा कहा जाता है।
देशांतर
- किसी भी स्थान की प्रधान याम्योत्तर से पूर्व या पश्चिम में कोणीय दूरी, देशांतर कहलाती है।
देशांतर रेखा की विशेषताएँ
- 0° देशांतर को प्रधान याम्योत्तर माना गया है, जो लंदन के पास ग्रीनविच वेधशाला से गुजरती है, इसलिए इसे ग्रीनविच रेखा भी कहते हैं।
- 0° के दोनों ओर 180° तक देशांतर रेखाएँ पाई जाती हैं, जो कुल मिलाकर 360° हैं। सभी देशांतर रेखाओं की लम्बाई समान होती है तथा ये रेखाएँ पृथ्वी को दो बराबर भागों में बाँटती है। इसलिए सभी देशांतर रेखाओं को महान वृत्त कहा जाता है।
- सभी देशांतर रेखाएं ध्रुव पर मिलती हैं अर्थात् इन रेखाओं को उत्तर-दक्षिण दिशा में खींचा जाता है।
- दो देशांतर रेखाओं के बीच की दूरी को गोरे कहा जाता है।
- पृथ्वी 24 घंटे में अपने अक्ष पर 3600 घूमती है, अर्थात् 10 दूरी तय करने में पृथ्वी को 4 मिनट का समय लगता है। इनका उपयोग किसी स्थान की स्थिति एवं समय दोनों के निर्धारण में किया जाता है।
समय का निर्धारण
- समय का निर्धारण दो प्रकार से किया जाता है- (1) स्थानीय समय, (2) प्रामाणिक समय।
स्थानीय समय
- पृथ्वी 24 घंटे में 3600 घूमती है। अर्थात् 1 घंटे में देशांतर के 360 > 24 = 150 सूर्य के ठीक सामने से होकर जाते हैं, 10 देशांतर के अंतर के लिए स्थानीय समय में 4 मिनट का अंतर होता है।
- पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, इसलिए पूर्व की ओर प्रत्येक 10 देशांतर बढ़ने पर समय 4 मिनट बढ़ जाता है और इसी तरह पश्चिम जाने पर 10 देशांतर पर समय चार मिनट घट जाता है।
प्रामाणिक या मानक समय
- किसी देश का प्रामाणिक समय वह समय है, जो उस देश के केन्द्रीय देशांतर रेखा के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
- भारत में 82.50 पूर्वी देशांतर रेखा, केन्द्रीय देशांतर रेखा है, जो नैनी (इलाहाबाद) से गुजरती है।
- भारत का मानक समय ग्रीनविच समय (GMT) से 5.30 घंटे आगे है।
समय जोन
- विश्व को 24 समय जोन में विभाजित किया गया है। यह विभाजन ग्रीनविच मीन टाइम व मानक समय में 1 घंटे (अर्थात् 150 देशांतर) के अंतराल के आधार पर है।
- ग्रीनविच याम्योत्तर 00 देशांतर पर है, जो कि ग्रीनलैण्ड व नार्वेनियन सागर व ब्रिटेन, फ्राँस, स्पेन, अल्जीरिया, माले, बुर्किनाफासो, घाना व दक्षिण अटलांटिक से गुजरता है। जिस देश का क्षेत्रफल बड़ा है, वहाँ एक से अधिक समय जोन की आवश्यकता पड़ती है। जैसे- संयुक्त राज्य अमेरिका में सात समय जोन व रूस में ग्यारह समय जोन हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा
- 1884 में वाशिंगटन में संपन्न इंटरनेशनल मेरीडियन कांफ्रेंस में 180वें याम्योत्तर को अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा निर्धारित किया गया। 1800 पूर्वी व 1800 पश्चिमी देशांतर एक ही रेखा है।
- यदि कोई व्यक्ति अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा को पश्चिम से पूर्व की ओर पार करता है, तो एक दिन बढ़ जाता है और जब पूर्व से पश्चिम की ओर पार करता है, तो एक दिन कम हो जाता है।
- यह रेखा आर्कटिक महासागर में 750 उ. अक्षांश पर महाद्वीप से बचने के लिए पूर्व की ओर मोड़ी गई है और बेरिंग जलसन्धि से निकाली गई है। बेरिंग समुद्र में यह पश्चिम की ओर मुड़ती है।
- भूमध्य रेखा के दक्षिण में इसे पूर्व की ओर खिसकाया गया है; ताकि फिजी व टोगो द्वीप समूह एक ही समय जोन में रहें।
- यह रेखा आर्कटिक सागर, चुकी सागर, बेरिंग स्ट्रेट व प्रशांत महासागर से गुजरती है। इस रेखा का अधिकांश भाग स्थल से दूर रखा गया है; ताकि एक ही देश में रहने वाले व्यक्तियों को एक ही दिन में अलग-अलग तिथियाँ न माननी पड़े।
- कर्क और मकर वृत्त के बीच के क्षेत्र को उष्ण कटिबंध तथा कर्क वृत्त एवं आर्कटिक वृत्त के बीच तथा मकर वृत्त एवं अंटार्कटिक वृत्त के बीच के क्षेत्र को शीतोष्ण कटिबंध कहते हैं।
- आर्कटिक एवं अंटार्कटिक वृत्त तथा ध्रुवों के बीच के क्षेत्र को शीत कटिबंध कहते हैं।
स्थलमंडल
पृथ्वी की आंतरिक संरचना
- पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी भूगर्भिक ताप, ज्वालामुखी क्रिया, चट्टानों का घनत्व, भूकम्पीय तरंग के आधार पर प्राप्त होती है।
- पूरी पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। दबाव बढ़ने के साथ घनत्व बढ़ता है।
- पृथ्वी में प्रत्येक 32 मीटर की गहराई पर 10C तापमान की वृद्धि होती है।
पृथ्वी की परतें
रसायनिक संगठन के आधार पर पृथ्वी की तीन मुख्य परतें हैं-
- सियाल – यह पृथ्वी की ऊपरी परत है, जिसमें सिलिका एवं एल्यूमिनियम पाया जाता है। इस परत में ग्रेनाइट की अधिकता है और इस परत की चट्टानें अम्लीय होती है।
- सीमा – यह पृथ्वी की दूसरी परत है, जिसमें सिलिकन एवं मैग्नीशियम की अधिकता है। यहाँ क्षारीय चट्टानों की अधिकता है, जिसमें बेसाल्ट एवं ग्रेबो प्रमुख हैं।
- निफे – यह पृथ्वी की तीसरी परत है, जिसमें निकेल एवं फेरस पाया जाता है।
अभिनव मत- भूकम्पीय लहरों के आधार पर पृथ्वी को 3 स्तर में बाँटा है-
1. भूपटल
- यह पृथ्वी का बाहरी भाग है, जिसकी औसत मोटाई महासागरों के नीचे 5 किमी तथा महाद्वीपों के नीचे 30 किमी है।
- महाद्वीपीय भूपटल नीस एवं ग्रेनाइट का बना है, जबकि महासागरीय भूपटल बेसाल्ट चट्टानों का बना है।
- भूकम्पीय लहरों की गति के आधार पर क्रस्ट को दो उप भागों- ऊपरी क्रस्ट तथा निचली क्रस्ट में विभाजित करते हैं।
- ऊपरी तथा निचली क्रस्ट के मध्य कोनार्ड असम्बद्धता पाई जाती है।
- क्रस्ट तथा मैंटल का संपर्क मंडल मोहोरोविकिक कहलाता है।
2. मैंटल
- भूपृष्ठ के आधार और क्रोड के बीच का संस्तर मैंटल कहलाता है।
- इसकी गहराई 200-2900 किमी के बीच है।
3. क्रोड
- पृथ्वी का केन्द्रीय भाग (क्रोड) 2,900 किमी से 6,371 किमी तक पाया जाता है। इसमें सघन लोहा-निकेल मिश्रण (निफे) होता है, जिसका तापमान 2,7000C के लगभग है।
- मैंटल एवं कोर सीमा को गुटेनबर्ग असम्बद्धता कहते हैं। इससे लेकर पृथ्वी के केन्द्र तक को दो उपभाग में बाँटा जाता है-
(1) बाह्य क्रोड, (2) आन्तरिक क्रोड ।
- बाहरी क्रोड तथा आन्तरिक क्रोड के बीच पायी जाने वाली असम्बद्धता को लैहमेन-असम्बद्धता कहते हैं।
समस्त पृथ्वी एवं भूपटल के तत्व
भूपटल (क्रस्ट) समस्त पृथ्वी तत्व प्रतिशत
1. ऑक्सीजन 46.8 1. लोहा 35.0
2. सिलिकन 27.7 2. ऑक्सीजन 30.0
3. एल्यूमिनियम 8.1 3. सिलिकन 15.0
4. लोहा 5.0 4. मैग्नीशियम 13.0
5. मैग्नीशियम 2.0 5. निकल 2.4
6. कैल्शियम 3.6 6. गन्धक 1.9
चट्टान
- पृथ्वी की पपड़ी के पदार्थों को चट्टान कहा जाता है, चाहे वे चीका की तरह मुलायम हों अथवा ग्रेनाइट की भाँति कठोर हों।
- चट्टानों की रचना खनिज पदार्थों से मिलकर होती है।
- प्रत्येक शैल में एक से अधिक खनिजों का सम्मिश्रण होता है।
चट्टानों का वर्गीकरण
चट्टानों को निर्माण के आधार पर तीन वर्गों में रखा जाता है-
(1) आग्नेय चट्टान – आग्नेय चट्टानों का निर्माण ज्वालामुखी उद्गार के समय भूगर्भ से निकलने वाले लावा के जमकर ठण्डा हो जाने के पश्चात् होता है।
- यह रवेदार, कठोर एवं पर्तविहीन होती है।
- इन चट्टनों में जीवाश्म नहीं पाए जाते हैं। उदाहरणः ग्रेनाइट, बेसाल्ट, गेब्रो, जायोराइट पिचस्टोन, प्यूमिस, पेग्माटाइट आदि।
- मूल्यवान खनिज जैसे लौह अयस्क, सोना, चाँदी, जस्ता, ताँबा, सीसा, निकल आदि आग्नेय चट्टðानों में पाए जाते हैं।
आंतरिक आग्नेय चट्टान
- बैथोलिथ – धरातल के नीचे काफी खडे़ ढाल वाले गुम्बदाकार रूप में विशाल लावा के जमाव को बैथोलिथ कहते हैं।
- लैकोलिथ – धरातल के अंदर परतदार चट्टानों की परतों के बीच लावा के गुम्बदाकार जमाव से विकसित संरचना लैकोलिथ कहते है।
- फैकोलिथ – यह भूमि के अंदर लावा का लहरदार (अपनति एवं अभिनति) जमाव होता है।
- लोपोलिथ – धरातल के भीतर किसी बेसिन में मैग्मा के तृतरीनुमा जमाव से विकसित संरचना को लोपोलिथ कहते हैं।
- सिल एवं शीट – सिल एवं शीट का निर्माण अत्यधिक तरल बेसाल्टिक मैग्मा से होता है, जो संस्तरण अथवा अन्य ढाँचा तल के अनुरूप होती है। शीट की मोटाई सिल से कम होती है।
- डाइक – लावा के बाहर निकलते समय जब मार्ग में अवसादी चट्टानों के बीच एक लम्बवत् दीवार के रूप में जम जाता है, तो वह डाइक कहलाता है।
- स्टॉक – छोटे आकार के बैथोलिथ जो गुम्बदाकार रूप में पाए जाते हैं, स्टॉक कहलाते हैं।
(2) अवसादी चट्टानें
- अपरदन की प्रक्रिया द्वारा पूर्व विद्यमान शैलों अथवा जैविक स्रोतों से प्राप्त पदार्थों से बनी शैलें अवसादी शैलें/चट्टानें कहलाती हैं।
- इन्हें परतदार चट्टान भी कहा जाता है। ये सम्पूर्ण भूपृष्ठ के 75% भाग पर पाई जाती हैं।
- अधिकतर जीवाश्म एवं खनिज तेल इन्हीं चट्टानों में पाए जाते हैं।
(3) रूपान्तरित चट्टानें –
- रूपान्तरित चट्टानें, आग्नेय अथवा अवसादी शैलें जो प्रायः वलन, भ्रंशन और पर्वत निर्माण काल में ऊष्मा और दाब के प्रयुक्त होने से उनमें यांत्रिक और रसायनिक परिवर्तन से बनी होती है। उदाहरण- स्लेट, शिस्ट, क्वार्टजाइट, संगमरमर, नीस आदि।
भूकम्प
भूकम्प भूपटल की कम्पन अथवा लहर है, जो धरातल के नीचे अथवा ऊपर चट्टानों के लचीलेपन या गुरुत्वाकर्षण की समस्थिति में क्षणिक अवस्था होने पर उत्पन्न होती है।
भूकम्प के कारण – भूकम्प के कारण प्राकृतिक एवं मानव निर्मित दोनों ही हो सकते हैं :
- ज्वालामुखी क्रिया
- भूपटल भ्रंश (वलन तथा भ्रंशन)
- आंतरिक गैसों का फैलाव
- भूसंतुलन में अव्यवस्था
- भूपटल में सिकुड़न
- प्लेट विवर्तनिक
- मानव जनित कारक
भूकम्प : प्रमुख शब्दावली
- भूकम्प मूल : जहाँ सर्वप्रथम भूकम्प का आविर्भाव होता है।
- अधिकेन्द्र : जहाँ सर्वप्रथम भूकम्प लहरों का अनुभव होता है।
- समभूकम्पीय रेखा : भूकम्प केन्द्र के चारों ओर समान भूकम्पीय तीव्रता की खींची जाने वाली रेखाएं।
- भूकम्पमापी : भूकम्पीय तरंगों को मापने का यंत्र।
- भूकम्प का विज्ञान : भूकम्प का विज्ञान।
भूकम्पीय लहरें
भूकम्प मूल से भूकम्प शुरू होता है, इस केन्द्र से भूकम्पीय लहरें उठने लगती हैं एवं सर्वप्रथम भूकम्प अधिकेन्द्र पर पहुँचती हैं।
भूकम्पीय लहरों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है :
- प्राथमिक लहरें : इन लहरों का औसत गति 8 से 14 किमी प्रति सेकण्ड के बीच होती है।
- अनुप्रस्थ लहरें : ये लहरें प्रकाश तरंग के समान होती हैं। इनके अणुओं की गति समकोण होती है। इन्हें द्वितीय लहर भी कहते हैं। ये तरल पदार्थों से नहीं गुजर पाती हैं; अतः सागरों में ये लुप्त हो जाती हैं।
- धरातलीय लहरें : इनका भ्रमण पथ पृथ्वी का धरातलीय भाग ही होता है। इनका वेग 3 किमी प्रति सेकण्ड होता है। इन्हें लम्बी लहरें इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इनका भ्रमण समय अधिक होता है तथा ये सर्वाधिक दूरी तय करती हैं।
भूकम्प की तीव्रता
भूकम्प को मापने के लिए दो पैमाने हैं :
- रिक्टर पैमाना : यह भूकम्प के समय मुक्त होने वाली ऊर्जा के मापन पर आधारित है। इस पैमाने पर भूकम्प के वेग में एक अंक की वृद्धि 10 गुना अधिक तीव्रता को प्रदर्शित करती है।
- मरकेली पैमाना : इसमें भूकम्प का मापन भूकम्प द्वारा होने वाली क्षति के आधार पर किया जाता है। इस पैमाने का उपयोग अब नहीं होता है।
भूकम्प का वितरण
भूकम्प की विश्व में तीन प्रमुख मेखलाएँ पाई जाती हैं :
- प्रशांत महासागर तटीय पेटी : विश्व के लगभग 66% भूकम्प इसी पेटी में विद्यमान हैं, इसलिए इसे अग्नि विलय कहते हैं। सर्वाधिक विस्तार की प्रबल भूकम्प क्रियाएँ अभिसारी प्लेट सीमाओं पर स्थित हैं। यह पेटी पश्चिम में अलास्का से क्यूराइल, जापान, मेरियाना और फिलीपाइन खाई तक है तथा चिली, कैलिफोर्निया और न्यूजीलैण्ड के समुद्रतटीय भाग सम्मिलित है।
- मध्य महाद्वीपीय पेटी : यहाँ विश्व के 21% भूकम्प आते हैं। पिरेनीज, आल्पस, काकेश, हिमालय, म्यांमार की पहाडि़याँ, पूर्वी द्वीप समूह की श्रेणियाँ इन्हीं में शामिल हैं। भारत के भूकम्प क्षेत्र इसी पेटी का हिस्सा हैं।
- मध्य अटलांटिक पेटी : यह मेखला अटलांटिक की कटकों और कई द्वीपों के निकट मध्य महासागरीय कटकों के सहारे फैली हुई है। भूकम्प आने का मुख्य कारण सागरतल प्रसरण है। यह मेखला स्पिट वर्जेन तथा आइसलैण्ड से प्रारम्भ होकर बोवेट द्वीप के साथ विस्तृत है।
सुनामी
- सागरीय भूकम्पों द्वारा उत्पन्न लहरों को सुनामी कहते हैं।
- ये लहरें सागरीय तटों पर भारी विनाश करती हैं।
- इनकी गति 100-150 किमी प्रति घंटा होती है।
- गहरे सागरों में सुनामी लहर की लम्बाई सर्वाधिक होती है, परन्तु सागर तट की ओर जाने पर कम होती है।
ज्वालामुखी
- ज्वालामुखी एक दरार अथवा निकास होता है, जिसका सम्बन्ध पृथ्वी के आंतरिक भाग से होता है, जिससे लावा, ज्वालामुखी गैसें, भाप और ताप खण्डमय पदार्थ बाहर निकलते हैं।
ज्वालामुखी के अंग
- ज्वालामुखी शंकु : जब लावा और अन्य पदार्थ ज्वालामुखी छिद्र के चारों तरफ जमा होने लगते हैं, तब ज्वालामुखी शंकु बनते हैं।
- ज्वालामुखी छिद्र : ज्वालामुखी पर्वत के ऊपर लगभग बीच में एक छिद्र होता है, जिसे ज्वालामुखी छिद्र कहते हैं।
- ज्वालामुखी नली : छिद्र का सम्बन्ध धरातल के नीचे एक पतली नली से होता है, जिसे ज्वालामुखी नली कहते हैं।
- ज्वालामुखी का मुख : जब ज्वालामुखी का छिद्र बड़ा होता है, तब उसे ज्वालामुखी का मुख कहते हैं।
ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ
- गैसें : ज्वालामुखी उद्भेदन में जलवाष्प की मात्रा सर्वाधिक होती है। अन्य गैसों में सल्फर, हाइड्रोजन और कार्बन डाइआक्साइड होती हैं।
- ठोस : जब कोई उद्भेदन, विस्फोटों की एक श्रृंखला के साथ होता है, उससे निष्कासित ठोस पदार्थ टेफ्रा कहलाता है। इसमें स्थानीय “ौल के खण्ड, ज्वालामुखी बम, स्कोरिया, लेपिलि, ब्रेसिया, धूल और राख के कण सम्मिलित रहते हैं।
- लावा : ज्वालामुखी उद्गार के समय निकलने वाले तरल पदार्थ को मैग्मा कहते हैं। जब मैग्मा धरातल पर पहुँचकर जम जाता है, तो उसे लावा कहते हैं। लावा, सिलिका की मात्र के आधार पर दो प्रकार के होते हैं –
- एसिड लावा : इस लावा में सिलिका की मात्रा अधिक होती है। यह तीव्रता से जमता है और अधिक दूरी तक प्रवाहित नहीं हो पाता है।
- बेसिक लावा : इसमें सिलिका की कमी होती है। यह ठोस होने से पूर्व अधिक दूरी तक प्रवाहित होता है।
ज्वालामुखी के प्रकार
सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं :
1. सक्रिय ज्वालामुखी : ऐसे ज्वालामुखी जिनके मुख से हमेशा धूल, धुआँ, गैसें, वाष्प आदि पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं, उन्हें सक्रिय ज्वालामुखी कहते हैं।
विश्व में सक्रिय ज्वालामुखी
- किलायु : हवाई द्वीप (अमेरिका)
- कोटोपैक्सी : इक्वेडोर
- माउण्ट इरेबस : अंटार्कटिका
- बैरन द्वीप : अण्डमान
- ओजल डेल सालाडो : अर्जेंटीना-चिली सीमा पर
- स्ट्राम्बोली : लेपारी द्वीप
- माउण्ट एटना : सिसली
- मौनालोवा : हवाई द्वीप
2. प्रसुप्त ज्वालामुखी : ऐसे ज्वालामुखी जिनमें निकट अतीत में उद्गार नहीं हुआ है, लेकिन उसकी संभावना बनी हुई है, प्रसुप्त ज्वालामुखी कहलाते हैं।
विश्व में प्रसुप्त ज्वालामुखी
- विसुवियस : इटली
- फ्रयुजीयामा : जापान
- क्राकाटाओ : इडोनेशिया
- नारकोंडम : अण्डमान-निकोबार द्वीप
3. शान्त ज्वालामुखी : जब ज्वालामुखी का उद्गार पूर्णतः समाप्त हो जाता है और उसके मुख में जल आदि भर जाता है, तब उसे शान्त ज्वालामुखी कहते हैं।
विश्व में शान्त ज्वालामुखी
- पोपा : म्यांमार
- एकांकागुआ : एण्डीज पर्वत
- किलिमंजारो : तंजानिया
- कोहसुल्तान एवं देवबंद : ईरान
उद्गार के अन्य रूप
- गीजर और उष्ण स्रोत : भूमि के एक छिद्र से होकर भूमिगत जल स्रोत से वाष्प और अति उष्ण जल का प्रचण्ड निकास गीजर कहलाता है। उदाहरण- येलोस्टोन पार्क (संयुक्त राज्य अमेरिका) का ओल्ड फेथफुल। उष्ण स्रोत से वाष्प तथा जल निरन्तर निकलता रहता है; जैसे- पुगा (लद्दाख), राजगीर (बिहार), सोहना (हरियाणा) आदि।
- धुँआरे : ऐसे छिद्र जिसके सहारे गैस तथा वाष्प निकला करती है, धुँआरे कहलाते हैं। धुँआरे ज्वालामुखी की सक्रियता के अंतिम लक्षण माने जाते हैं। उदाहरण- कोह सुल्तान धुँआरा (ईरान), हवाई द्वीप का धुँआरा आदि।
पर्वत
- पर्वत स्थलरूप, द्वितीय श्रेणी के उच्चावच हैं। भूमि का ऐसा भाग जो निकट के धरातल से अत्यधिक ऊँचाई में उठा हो या अकेले ऊँचा हो अथवा श्रेणी में या फिर श्रृंखला में हो, पर्वत कहलाता है।
- कुछ भूगोलविद् 600 मीटर से अधिक की ऊँचाई को पर्वत की संज्ञा देते हैं और उससे नीचे के उठे भाग को पहाडि़यों की संज्ञा देते हैं।
- पर्वतन : प्रक्रमों के समूह, जिनके द्वारा सामूहिक रूप से पर्वत क्रम का निर्माण होता है, उनको पर्वतन कहते हैं।
- निर्माण प्रक्रिया के आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण : निर्माण प्रक्रिया के आधार पर पर्वतों को निम्नलिखित रूप में विभाजित किया जाता है :
- वलित पर्वत : पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों द्वारा जब चट्टानों में मोड़ या वलन पड़ जाते हैं, उन्हें मोड़दार या वलित पर्वत कहते हैं। इनका निर्माण भूसन्नतियों में होता है। ये विश्व के प्रमुख पर्वत तंत्र हैं तथा सबसे युवा पर्वत हैं। उदाहरण- एशिया में हिमालय, अफ्रीका में एटलस, दक्षिण अमेरिका का एण्डीज, उत्तरी अमेरिका का रॉकी ।
- भ्रंशोत्थ पर्वत : पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों के प्रभाव से धरातल पर विकसित दो समानान्तर भ्रंशों के भ्रंशतलों के सहारे उत्थित स्थलखण्ड भ्रंशोत्थ पर्वत के रूप में विकसित होते हैं। उदाहरण- भारत में नीलगिरि, पाकिस्तान में साल्ट रेंज, जर्मनी का ब्लैक फॉरेस्ट।
- ज्वालामुखी पर्वत : लावा एवं पायरोक्लास्टिक पदार्थों के निष्कासन से ज्वालामुखीय पर्वत बनते हैं। यदि ये लम्बे समय तक जारी रहते हैं, तो इनसे अति विशाल ज्वालामुखीय अम्बार बन जाता है। उदाहरण- अफ्रीका के किलिमंजारो, चिली का एकांकागुआ।
- गुम्बदाकार पर्वत : जब पृथ्वी के धरातलीय भाग में चाप के आकार में उभार होने से धरातलीय भाग ऊपर उठ जाता है, तो उसे गुम्बदनुमा पर्वत कहा जाता है। जैसे- संयुक्त राज्य अमेरिका की ब्लैक पहाडि़याँ, सिनसिनाती उभार और हेनरी पर्वत।
- अवशिष्ट पर्वत : वे पर्वत जो एक लंबे समय अंतराल में अपरदन की प्रक्रिया द्वारा काट-छाँट से बनते हैं, अवशिष्ट पर्वत कहलाते हैं। उदाहरण- भारत में विंध्याचल, अरावली, सतपुड़ा आदि।
- अफ्रीका का सर्वोच्च पर्वत शिखर माउण्ट किलिमंजारो है। माउण्ट ब्लैक, आल्पस पर्वत का सर्वोच्च शिखर है, जो यूरोप में स्थित है।
- व्हाइट पर्वत कैलिफोर्निया में स्थित है।
- विश्व की सर्वाधिक लम्बी पर्वत शृंखलाएँ हैं- एण्डीज (7,000 किमी), रॉकी (4,800 किमी) एवं हिमालय (2,500 किमी)।
- मौनाकी पर्वत (हवाई द्वीप) सागर नितल के आधार पर विश्व का सर्वाधिक ऊँचा पर्वत है।
- आल्पस पर्वत फ्रांस, इटली, स्विट्जरलैंड व आस्ट्रिया में विस्तृत है।
- अफ्रीका का एटलस पर्वत मोरक्को, अल्जीरिया एवं ट्यूनीशिया में विस्तृत है।
पठार
- पठार धरातल पर स्थित सपाट शीर्ष, मन्द ढाल और विस्तृत आधार वाले स्थलरूप होते हैं। पठार कभी-कभी मैदानों से नीचे होते हैं; जैसे- पीडमाण्ट पठार (संयुक्त राज्य अमेरिका) या पर्वतों से ऊँचे भी होते हैं।
विश्व के प्रमुख पठार
- पठार स्थिति
- ओजार्क पठार यूएसए
- अनातोलिया पठार तुर्की
- शान पठार म्यांमार
- अबीसीनिया पठार इथियोपिया
- मेसेटा पठार स्पेन
- चियापास पठार मैक्सिको
- माटोग्रासो पठार ब्राजील
- ग्रेट बेसिन पठार यूएसए
- तिब्बत का पठार तिब्बत
- पैंटागोनिया पठार अर्जेन्टीना
- ब्राजील पठार ब्राजील
- कोलम्बिया पठार यूएसए
- कोरात पठार थाइलैण्ड
- पोतवार पठार पाकिस्तान
- गुयाना पठार वेनेजुएला, गुयाना
- पीडमाण्ट पठार यूएसए
- अलास्का (यूकान) यूएसए
- बोलिविया पठार बोलिविया
- प्रायद्वीपीय पठार भारत
- मध्य साइबेरिया रूस
मैदान
- मैदान सपाट भूमि का एक विस्तृत क्षेत्र होता है अथवा बिना उन्नत पहाडि़यों वाला, धीमी तंरगित धरातल अथवा अवनति का क्षेत्र होता है। मैदानों में तटीय तथा आंतरिक मैदानों को ही सम्मिलित किया जाता है।
विश्व के प्रमुख मैदान
विश्व के मैदान निर्माण प्रक्रिया
- भारत का विशाल मैदान अवसादी जमाव
- हंगरी का मैदान रचनात्मक मैदान
- फ्लोरिडा का मैदान कार्स्ट मैदान
- रूसी प्लेटफार्म उत्थित मैदान
- कच्छ का मैदान उत्थित मैदान
- ग्रेट प्लेन्स (यूएसए) निर्गमन
- यूगोस्लाविया का मैदान कार्स्ट मैदान
- उत्तर-पश्चिमी चीन का मैदान लोयस मैदान
- लद्दाख का मैदान हिमानीकृत मैदान
- कश्मीर का मैदान झीलकृत मैदान
विश्व की प्रमुख झीलें
झील क्षेत्र
- कैस्पियन सागर पूर्वी सोवियत संघ
- ग्रेट बीयर झील कनाडा
- टोरेन्स झील आस्ट्रेलिया
- टैगानिका झील पूर्व सोवियत संघ
- बैकाल झील पूर्व सोवियत संघ
- विनीपेग झील कनाडा
- टिटिकाका झील पेरू, बोलिविया
- जेनेवा झील स्विट्जरलैण्ड
- रेन्डियर झील कनाडा
- इसिक कुल झील किर्गिस्तान
- ग्रेट स्लेव झील कनाडा
- लोपनोर झील चीन
- ठिसो सिकरू झील तिब्बत का पठार
- बोल्टा झील घाना
- अरल सागर कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान
- रूडोल्फ झील केन्या
- ह्यूरन झील सं. रा. अमेरिका, कनाडा
- विक्टोरिया झील केन्या, यूगाण्डा, तंजानिया
- सुपीरियर झील सं. रा. अमेरिका, कनाडा
- न्यासा झील (मलावी झील) तंजानिया, मोजांबिक, मलावी
- किन्धामी झील चीन
- हूवर झील संयुक्त राज्य अमेरिका
विश्व के प्रमुख द्वीप
द्वीप स्थिति
- ग्रीनलैंड आर्कटिक महासागर
- न्यू गिनी प्रशांत महासागर
- मेडागास्कर हिन्द महासागर
- बोर्नियो हिन्द महासागर
- बैफीन द्वीप उत्तरी ध्रुव महासागर
- सुमात्रा हिन्द महासागर
- होंशू प्रशांत महासागर
- जावा द्वीप हिन्द महासागर
- ब्रिटेन अटलांटिक महासागर
- तस्मानिया प्रशांत महासागर
- सेलेबीज हिन्द महासागर
- विक्टोरिया आर्कटिक महासागर
- ऐलेसमेरे द्वीप आर्कटिक महासागर
- द. न्यूजीलैंड प्रशांत महासागर
- उ. न्यूजीलैंड प्रशांत महासागर
- श्रीलंका हिन्द महासागर
नदी द्वारा उत्पन्न स्थलाकृतियाँ
नदियों द्वारा उत्पन्न स्थलरूप इस प्रकार है :
- गार्ज एवं कैनियन : नदी के लम्बवत कटाव क्रिया से V आकार की घाटी गार्ज एवं कैनियन के रूप में विकसित होती है।
- जलप्रपात : जब नदियों का जल ऊँचाई से खडे़ ढाल से अत्यधिक वेग से नीचे गिरता है, तो उसे जलप्रपात कहते हैं।
- जलगर्तिका : नदी के प्रवाह मार्ग में जल दाब एवं घर्षण क्रिया से गर्तों का विकास होता है, जिसे जलगर्तिका कहते हैं।
- जलोढ़ पंख : नदियों द्वारा पर्वतों के आधार तल के पास अर्द्धवृत्ताकार रूप में पदार्थों का निक्षेपण, जो आकृति में पंख के समान होता है, जलोढ़ पंख कहलाता है।
- नदी वेदिका : नदी घाटी के दोनां ओर नवोन्मेज के कारण विकसित सोपानी संरचना नदी वेदिका कहलाता है।
- नदी विसर्प : नदियों के अंतिम प्रौढ़ावस्था मार्ग में अवरोध के कारण विकसित नदियों के घुमावदार मार्ग को नदी विसर्प कहा जाता है।
- तटबन्ध : नदी के दोनों किनारों पर मिट्टियों के जमाव द्वारा बने लंबे-लंबे बन्ध तटबन्ध कहलाता है।
- छाड़न झील : जब नदियाँ अपने विसर्प को त्यागकर सीधे प्रवाहित होने लगती हैं, तब नदियों का विसर्प या अवशिष्ट भाग छाड़न या गोखुर झील कहलाता है।
- डेल्टा : नदियां द्वारा मुहाने के पास लाए गए अवसादों के जमा किए जाने से ग्रीक अक्षर < जैसा विकसित स्थलरूप डेल्टा कहलाता है। गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा सबसे बड़ा डेल्टा है।
विश्व के प्रमुख जलप्रपात
जल प्रपात ऊँचाई (मीटर में) अवस्थिति
- एंजेल 979 कैरानी नदी (वेनेजुएला)
- ब्राऊनी 836 न्यूजीलैंड
- योसेमाइट 739 कैलिफोर्निया
- सदरलैण्ड 580 न्यूजीलैंड
- नियाग्रा 51 यू.एस.ए. एवं कनाडा
- विक्टोरिया 108 जाम्बेजी नदी (जिंबाब्वे)
- टुगेला 948 दक्षिण अफ्रीका
- मुल्टनोमाह 250 ओरेगन (यू.एस.ए.)
- जोग 253 भारत
- ग्रैण्ड प्रपात 160 लेब्राडोर (कनाडा)
- थ्री सिस्टर 914 पेरू
- टकाकू 400 ब्रिटिश कोलम्बिया (कनाडा)
हिमनदीय स्थलाकृतियाँ
- U आकार की घाटी : हिमनदी अपने प्रवाह मार्ग में किसी नदी निर्मित घाटी में अपघर्षण द्वारा उसे U आकार की घाटी में परिवर्तित कर देती है।
- लटकती घाटी : हिमनदी की सहायक घाटी, लटकती घाटी कहलाती है।
- सर्क : ‘सर्क’ एक फ्रेंच शब्द है, जिसे ढालू शीर्ष और ढालू पार्श्व दीवारों वाले घिरे हिमनदीय अपरदित शैल के लिए व्यापक रूप से अपना लिया गया है।
- श्रृंग : हिमानी नेत्र में हिमनद के अपरदन से विकसित होने वाली पिरामिडनुमा चोटी को श्रृंग कहते हैं।
- एरीट : किसी पहाड़ी के दोनों ओर सर्क के विकास क्रम में बनने वाले दांतेदार आरी के समान स्थलरूप को एरीट कहते हैं।
- कोल : एक पर्वतीय दर्रा जो एक घाटी को दूसरे से मिलाता है।
- नूनाटक : हिम क्षेत्र में हिम के ऊपर निकली हुई चोटियों को नूनाटक कहा जाता है।
- एस्कर : हिमानी क्षेत्र में हिमोढ़ों के जमाव से विकसित होने वाले भेड़नुमा स्थलरूप को एस्कर कहा जाता है।
- ड्रमलिन : ये भूमि हिमोढ़ द्वारा निर्मित गोल टीले वाली पहाडि़याँ होती हैं, जिनकी आकृति उल्टी नाव के समान होती है।
- केम : हिम अग्र के समक्ष जमा अतिप्रवण जलोढ़ शंकु केम कहलाता है।
वायूढ़ स्थलाकृतियाँ
- ज्यूगेन : कोमल पदार्थों के अधोरदन स्तम्भ के ऊपर अधिक अवरोधी शैलों का टिका हुआ ढेर, ज्यूगेन कहलाता है।
- वातागर्त : गतिशील वायु के अपघर्षण एवं अपवाहन क्रिया से विकसित होने वाले गर्त वातागर्त कहलाते हैं।
- इन्सेलबर्ग : उच्च मरुस्थलीय प्रदेशों में ग्रेनाइट शैल के अपरदन के कारण गुम्बद या पिरामिड के आकार के टीले इन्सेलबर्ग कहलाते हैं।
- छत्रकशिला या गारा : मरुस्थलीय भागों में वायु के मार्ग में आने वाली चट्टानी खण्ड अपरदन क्रिया से छतरीनुमा आकृति धारण कर लेते हैं, जिन्हें छत्रकशिला कहते हैं।
- यारडांग : यारडांग अतिप्रवण गहराई में अपरदन प्रलम्बी शैल कटक होती है, जो एक-दूसरे से कोमल शैलों में काटे गये लंबे गलियारे द्वारा अलग हुई होती है।
- भूस्तम्भ : वायु अपरदन द्वारा चट्टानों से विकसित शैल स्तम्भ, जिसका ऊपरी भाग कठोर व निचला भाग मुलायम हो, भू-स्तम्भ कहलाता है।
- लोयस : मरुस्थलीय क्षेत्रों के बाहर पवन द्वारा उड़ाकर लाये गये महीन कणों के वृहद जमाव को लोयस कहते हैं।
- बरखान : शुष्क प्रदेशों में विकसित होने वाले अनुप्रस्थ बलुआ स्तूपों को बरखान कहा जाता है।
भौमजल स्थलाकृतियाँ
- कार्स्ट गुफा : चूना पत्थर चट्टानी क्षेत्र में चूना के विलयन क्रिया द्वारा विकसित गुफा को कार्स्ट गुफा कहते हैं।
- स्टैलेक्टाइट्स एवं स्टैलेग्माइट : चूना के विलयन क्रिया से कार्स्ट गुफा में विकसित आकाशी स्तम्भ को स्टैलेक्टाइट्स तथा धरातलीय स्तम्भ को स्टैलेग्माइट कहा जाता है।
- युवाला : चूना प्रस्तर क्षेत्र में धरातल धंसाव को युवाला कहा जाता है।
- पोल्जे : जब कई युवाला मिल जाते हैं, तो अत्यंत विशाल खाइयाँ बनती हैं, जिन्हें पोल्जे कहा जाता है।
- लैपीज : चूना प्रस्तर क्षेत्र में जल के विलयन क्रिया से विकसित शिखरिकाओं को लैपीज कहा जाता है।
तटीय स्थलाकृतियाँ
- तटीय क्लिफ : सागरीय तरंगों द्वारा अपरदन से जब कोई सागर तट एकदम सीधा खड़ा होता है, तो उसे तटीय भृगु या क्लिफ कहा जाता है।
- तटीय कन्दरा : सागरीय तरंगों के अपरदन क्रिया से विकसित चट्टानी खोह को कन्दरा कहते हैं।
- स्टैक : प्राकृतिक मेहराब के ध्वस्त होने से चट्टान का अगला भाग समुद्री जल के बीच एक स्तम्भ की भाँति खड़ा रहता है, जिसे स्टैक कहा जाता है।
- पुलिन : तटवर्ती क्षेत्रें में सागरीय तरंगों के अपरदन से प्राप्त रेतों के जमाव से विकसित बालुकामय मैदान को पुलिन कहते हैं।
- टोम्बोलो : तट के किसी द्वीप या शीर्ष स्थल से किसी द्वीप को मिलाने वाली रोधिका को टोम्बोलो कहते हैं।
जलमंडल
पृथ्वी के 70.8% भाग जल और 29.2% भाग पर स्थल है। उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल और जल का प्रतिशत क्रमशः 61 और 39 है, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में यह 81 और 19 है। इस वितरण के कारण उत्तरी गोलार्द्ध को स्थल गोलार्द्ध और दक्षिणी गोलार्द्ध को जल गोलार्द्ध कहते हैं।
महासागरीय नितल के उच्चावच
- महासागरों के तल को उच्चतामितीय वक्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसके आधार पर सागरीय नितल के चार प्रमुख उच्चावच मंडल पाए जाते हैं :
- महाद्वीपीय मग्नतट : यह महाद्वीप के किनारे वाला भाग है, जो महासागरीय जल में डूबा रहता है। इसकी औसत चौड़ाई 80 किमी, गहराई 150-200 मीटर तथा ढाल 1° या उससे कम होता है।
- महाद्वीपीय मग्न ढाल : जलमग्न तट तथा गहरे सागरीय मैदान के बीच तीव्र ढाल वाले मण्डल को महाद्वीपीय मग्न ढाल कहा जाता है। इसकी ढाल प्रवणता 2° से 5° तथा गहराई 200 से 300 मीटर तक होती है। इसका विस्तार अटलांटिक महासागर में (12.4%) है।
- गहरे सागरीय मैदान : यह महासागरीय नितल का सर्वाधिक विस्तृत मण्डल होता है, जिसकी गहराई 3 से 6 हजार मीटर तक होती है। यह महासागरीय क्षेत्रफल के लगभग 75.9% भाग पर विस्तृत है। इसका सर्वाधिक विस्तार प्रशांत महासागर में (80.3%) पाया जाता है। 60°-70° उत्तरी अक्षांशों के बीच इनका अभाव पाया जाता है।
- महासागरीय गर्त : ये महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं, जो महासागरीय नितल के लगभग 9% भाग पर फैले हैं। इनके ढाल खड़े होते हैं। आकार की दृष्टि से गर्त दो प्रकार के होते हैं –
- कम क्षेत्रफल वाले, किन्तु अधिक गहरे खड्ड को गर्त (कममचे) कहते हैं।
- लंबे खड्ड को खाई कहते हैं।
प्रमुख गर्त
गर्त गहराई (मीटर में) स्थिति
- मेरियाना (चैलेंजर) 11033 उत्तरी प्रशांत महासागर
- टोंगा (एल्ड्रिच) 10882 मध्य दक्षिण प्रशांत महासागर
- जापान (रामापो) 10554 उत्तरी प्रशांत महासागर
- क्यूराइल 10498 सखालिन कमचटका से दूर
- स्वायर (फिलीपीन्स) 10475 उ.-प. प्रशांत महासागर
- प्यूर्टोरिको 8385 पश्चिमी द्वीप समूह
- डोएमेटिना 8047 हिंद महासागर
- रोमशे (टिजार्ड) 7631 दक्षिण अंध महासागर
पृथ्वी पर जल का वितरण
जलाशय आयतन कुल का (10 लाख घन किमी) प्रतिशत
- महासागर 1370 97.15
- हिमानियाँ एवं हिमटोपी 29 2.05
- भूमिगत जल 9.5 0.68
- झीलें 0.125 0.01
- मृदा में नमी 0.065 0.005
- वायुमंडल 0.013 0.001
- नदी-नाले 0.0017 0.0001
- जैवमंडल 0.0006 0.00004
उच्चावच की अन्य आकृतियाँ
- अन्तःसागरीय कन्दरा : महाद्वीपीय मग्नतट तथा मग्नढाल पर संकरी, गहरी तथा खड़ी दीवार से युक्त घाटियों को महासागर के अन्दर होने के कारण अन्तःसागरीय कन्दराएँ या कैनियन आदि कहा जाता है। जैसे- हडसन कैनियन, कांगो कैनियन, बेरिंग कैनियन, प्रिबिलाफ कैनियन आदि।
- नितल पहाडि़याँ : जलमग्न पर्वत का शिखर, जिसकी ऊँचाई 1000 मीटर से अधिक होती है, समुद्र पर्वत कहलाते हैं। सपाट शीर्ष वाले समुद्री पर्वतों को गाईआट (ळनलवज) कहा जाता है।
- महासागरीय कटक : महासागरों के मध्य प्रसार के कारण अगाध सागरीय मैदान के ऊपर ये कटक पाए जाते हैं। कहीं-कहीं पर ये समुद्री जल स्तर के ऊपर द्वीप बनाते हैं। जैसे- एजोर्स द्वीप। इन कटकों का सर्वाधिक विस्तार अटलांटिक एवं हिन्द महासागरों में पाया जाता है।
महासागर
विश्व के प्रमुख महासागर
महासागर क्षेत्रफल (वर्ग किमी) क्षेत्रफल (% में) औसत गहराई (मीटर में)
- प्रशांत 16,52,46,200 45.77 10,924
- अन्ध 8,24,41,500 22.83 9,219
- हिन्द 7,34,42,700 20.34 7,455
- आर्कटिक 1,40,90,100 3.91 5,625
- महासागरों की औसत गहराई 3,800 मीटर स्थल की औसत ऊँचाई 840 मीटर है।
प्रशांत महासागर
- प्रशांत महासागर पृथ्वी के एक-तिहाई क्षेत्रफल पश्चिम से पूर्व 16,000 किमी चौड़ाई, उत्तर में बेरिंग जलडमरूमध्य तथा दक्षिण में अण्टार्कटिका महाद्वीप के मध्य 14,880 किमी की लम्बाई में एक त्रिभुजाकार रूप में फैला है। इसकी औसत गहराई 4,572 मीटर है।
- इसके उत्तर में बेरिंग जलडमरूमध्य, दक्षिण में अण्टार्कटिका महाद्वीप, पूर्व में दक्षिणी तथा उत्तरी अमेरिका महाद्वीप तथा पश्चिम में एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया स्थित हैं।
- इसमें कई आंतरिक तथा सीमांत सागर जैसे- जापान सागर, ओखोटस्क, बेरिंग सागर, चीन सागर, कोरल सागर, अराफुरा सागर आदि पाए जाते हैं।
- प्रशांत महासागर में अन्ध महासागर तथा हिन्द महासागर के समान मध्यवर्ती कटक नहीं पाए जाते हैं, किन्तु कुछ बिखरे कटक जैसे- प्रशांत कटक (अलबंट्रास पठार), न्यूजीलैण्ड रिज, क्वीन्सलैण्ड पठार आदि पाए जाते हैं।
अटलांटिक महासागर
- यह महासागर विश्व के क्षेत्रफल का 1/6 भाग तथा प्रशांत महासागर के क्षेत्रफल का 1/2 भाग में विस्तृत है। इसका क्षेत्रफल 820 लाख वर्ग किमी है। इसका आकार S अक्षर के समान है।
- 35° दक्षिण अक्षांश पर इसकी पूर्व-पश्चिम चौड़ाई 5,920 किमी है। यह भूमध्य रेखा की ओर संकरा होता जाता है। साओराक अन्तरीप तथा लाइबेरिया तट के बीच इसकी चौड़ाई 2,560 किमी है।
- इसके उत्तर में ग्रीनलैण्ड, हडसन की खाड़ी बाल्टिक सागर तथा उत्तरी सागर स्थित है, दक्षिण खुला है, पूर्व में यूरोप तथा अफ्रीका एवं पश्चिम में उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका स्थित है।
- अटलांटिक महासागर के मग्नतट पर कई सीमान्त सागर एवं अंसख्य द्वीप पाये जाते हैं। सीमान्त सागर, जैसे- बाल्टिक सागर, उत्तरी सागर, हडसन की खाड़ी, डेनमार्क जलडमरूमध्य, डेविस जलडमरूमध्य आदि।
- मग्नतट पर स्थित द्वीपों में बरमुडा, सेंट हेलेना, फाकलैण्ड, केप वर्डे, ब्रिटिश द्वीप, ट्रिनिडाड जार्जिया आदि प्रमुख हैं।
मध्य-अटलांटिक कटक
- अन्ध महासागर के तली की विशेषता एक अनुदैर्घ्य उभार है, जिसे मध्य अटलांटिक कटक कहा जाता है। इस कटक के उत्तर में आइसलैंड से दक्षिण में बोवेट द्वीप तक S अक्षर के आकार में 14,400 किमी की लम्बाई में फैला है।
अटलांटिक कटक की विभिन्न शाखाएँ
- डॉल्फिन उभार : भूमध्य रेखा के उत्तर में स्थित है।
- चैलेंजर उभार : भूमध्य रेखा के दक्षिण में स्थित है।
- विविल टामसन कटक : यह आइसलैंड और स्कॉटलैंड के बीच स्थित है।
- टेलिग्राफिक पठार : यह ग्रीनलैण्ड के दक्षिण में स्थित है।
- न्यूफाउण्डलैण्ड उभार : 50° उत्तरी अक्षांश के पास मध्य अटलांटिक कटक न्यूफाउण्डलैण्ड उभार कहलाता है।
- अजोर उभार : 40° उत्तरी अक्षांश के द- मध्यवर्ती कटक से एक शाखा अलग होकर अजोर उभार के नाम से अजोर तट की ओर जाती है।
- वालविस कटक : 40° उत्तरी अक्षांश पर यह अफ्रीका के मग्नतट पर स्थित है।
- रायोग्रैंडी उभार : यह दक्षिण अमेरिका की ओर उन्मुख है। मध्यवर्ती कटक में कई चोटियाँ सागर के ऊपर दृष्टिगत होती हैं; जैसे- अजोर्स का पिको द्वीप तथा केप वर्डे द्वीप।
- अटलांटिक महासागर में बहुत कम द्वीप पाए जाते हैं। इनमें प्रमुख हैं- दक्षिण सैंडविच खाई, केप वर्डे गर्त, प्यूर्टोरिको गर्त, रोमांश गर्त आदि।
हिन्द महासागर
- हिन्द महासागर चारों ओर महाद्वीपीय भागों (उत्तर में एशिया, पश्चिम में अफ्रीका, पूर्व में एशिया, दक्षिण-पूर्व में ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण में अंटार्कटिका) से घिरा है।
- सीमान्त सागरों में मोजाम्बिक चैनल, अण्डमान सागर, लालसागर, फारस की खाड़ी प्रमुख हैं।
मध्यवर्ती कटक
- इस महासागर में भारत के दक्षिण से शुरू होकर मध्यवर्ती कटक दक्षिण में अंटार्कटिका तक क्रमबद्ध रूप में उत्तर से दक्षिण दिशा में फैला है, जो इस प्रकार है- सोकोन्ना, चैगोस, सेचलीस, सेंटपाल, एमस्टर्डम, भारत-अंटार्कटिका करगुलेन गासबर्ग, मेडागास्कर।
- मध्यवर्ती कटक पर क्रम से लंकादीव, मालदीव, चैगोस, न्यूएमस्टर्डम, सेंट पाल, करगुलेन आदि द्वीप पाए जाते हैं। अन्य बिखरे कटकों पर द्वीपों में प्रिन्स एडवर्ड क्रोजेट आदि प्रमुख हैं।
- हाल ही में कार्ल्सबर्ग कटक का पता चला है, जो अरब सागर को दो बराबर भागों में बाँटता है।
तापमान एवं लवणता
महासागरीय तापमान
- महासागरीय जल का तापमान वनस्पति व जीव जगत दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। यह तटवर्ती स्थलीय भागों की जलवायु को प्रभावित करता है।
- महासागरीय जल का औसत तापान्तर नगण्य (लगभग 10C) होता है। उच्चतम तापमान दोपहर को दो बजे एवं न्यूनतम तापमान प्रातः पाँच बजे होता है।
- सागरीय जल का उच्चतम वार्षिक तापमान अगस्त में तथा न्यूनतम फरवरी में पाया जाता है।
- महासागरीय जल के तापमान के वितरण को कई कारक प्रभावित करते हैं, जैसे :
अक्षांश :
- भूमध्य रेखा से उत्तरी ध्रुव या दक्षिणी ध्रुव की ओर जाने से सतही जल का तापमान घटता है, क्योंकि ध्रुवों की ओर सूर्य की किरणें तिरछी होती जाती हैं।
जल एवं स्थल के वितरण में असमानता :
- उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल की अधिकता एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में जल की अधिकता के कारण तापमान वितरण असमान होता है।
- उत्तरी गोलार्द्ध में गर्म स्थल के संपर्क में आने से महासागर अधिक ऊष्मा प्राप्त कर लेता है, जिस कारण यहाँ का तापमान दक्षिणी गोलार्द्ध की अपेक्षा अधिक रहता है।
- निम्न अक्षांशों में स्थलीय भागों से घिरे सागरों का तापमान अधिक होता है; जैसे- भूमध्य सागर (26.6°C), लाल सागर (37.8°C) तथा फारस की खाड़ी (34.4°C)।
पवन :
- व्यापारिक हवाओं की पेटी में महासागरों के पूर्वी भाग में कम तापक्रम तथा पश्चिमी भाग में अधिक तापमान होता है।
- पछुवा पवन की पेटी में महासागरों के पूर्व में अधिक तापमान होता है।
महासागरीय धाराएँ :
- जिस स्थान पर गर्म धाराएँ पहुँचती हैं, वहाँ का तापमान बढ़ जाता है; जैसे- गल्फस्ट्रीम उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट का तापमान बढ़ा देती है।
- ठंडी धाराएँ तापक्रम को नीचा कर देती हैं; जैसे- लेब्राडोर ठंडी धारा उत्तरी अमेरिका के उत्तर-पूर्वी तट के तापमान को हिमांक के पास पहुँचा देती है।
- महासागरीय सतह जल का औसत तापमान लगभग 27°C होता है।
- बढ़ते हुए अक्षांश के साथ तापमान 0.5°C प्रति अक्षांश घटता है।
- उत्तरी गोलार्द्ध का औसत वार्षिक तापमान 19°C तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में यह 16°C होता है।
महासागरीय लवणता
- सागरीय जल के भार एवं उसमें घुले हुए पदार्थों के भार के अनुपात को सागरीय लवणता की प्रति हजार ग्राम जल में स्थित लवण की मात्र 0/000 के रूप में दर्शाया जाता है; जैसे 250/000 अर्थात् 1000 ग्राम सागरीय जल में 25 ग्राम लवण की मात्र है। यह प्रतिशत नहीं है, बल्कि मात्रा है।
महासागरीय लवणता के प्रमुख घटक
लवण कुल मात्रा (प्रति 1000 ग्राम) प्रतिशत
- सोडियम क्लोराइड 27.213 77.8
- मैग्नेशियम क्लोराइड 3.807 10.9
- मैग्नेशियम सल्फेट 1.658 4.7
- कैल्शियम सल्फेट 1.260 3.6
- पौटेशियम सल्फेट 0.863 2.5
- कैल्शियम कार्बोनेट 0.123 0.3
- मैग्नेशियम ब्रोमाइड 0.076 0.2
- सागरीय लवणता अधिक होने पर जल का क्वथनांक अधिक तथा हिमांक कम होता है। सागरीय लवणता के कारण जल का घनत्व भी बढ़ता है। लवणता अधिक होने से वाष्पीकरण न्यून होता है।
सागरीय लवणता के स्रोत
- पृथ्वी सागरीय लवणता का मुख्य स्रोत है। नदियाँ सागर तक लवण पहुँचाने वाली प्रमुख कारक हैं। पवन भी स्थल से सागर तक नमक पहुँचाने का कार्य करती हैं। ज्वालामुखी से निस्सृत राखों से भी कुछ लवण प्राप्त होता है।
सागरीय लवणता के नियंत्रक कारक
- नदियाँ महासागर के तटीय जल की लवणता को कम कर देती हैं।
- वर्षा भी लवणता को कम करती है।
- सागरीय हिम के पिघलने से लवणता में कमी आती है।
- वाष्पीकरण से सागरीय लवणता में वृद्धि होती है।
- प्रतिचक्रवातीय दशा व उच्च वायुमंडलीय दाब से सागरीय लवणता बढ़ती है।
- उच्च अक्षांशों (ध्रुवीय क्षेत्रों) में सागरीय जल के जमने से तथा हिम के निर्माण के कारण सागरीय लवणता में मामूली वृद्धि होती है, परन्तु हिम के पिघलने पर लवणता में कमी होती है।
- समलवण रेखा : समलवण रेखाएँ वे रेखाएँ होती हैं, जो कि सागरों की सतह पर समान लवणता वाले क्षेत्रों को मिलाती हैं।
महासागरीय धाराएँ
सागरों व महासागरों में जल की प्रवाहित होने की गति को धारा कहते हैं। सागरीय जल में विभिन्न प्रकार की गतिशीलता पाई जाती हैं; जैसे –
- प्रवाह : जब पवन वेग से प्रेरित होकर सागरीय सतह का जल मंद गति से परिसंचालित होता है, उसे प्रवाह कहते हैं; उदाहरण- दक्षिणी एवं उत्तरी अटलांटिक प्रवाह।
- धारा : समुद्र का जल जब एक निश्चित दिशा में अपेक्षाकृत अधिक वेग से अग्रसर होता है, उसे धारा कहते हैं। इनका वेग 28-42 किमी प्रति घंटा होता है। उदाहरण- एल नीनो धारा।
- विशाल धारा : समुद्र का जल जब अधिक गति से एक सुनिश्चित दिशा में भूपृष्ठीय नदियों की भाँति गतिशील होता है, उसे विशाल धारा कहते हैं; उदाहरण- गल्फस्ट्रीम।
धाराओं के प्रकार
तापमान के आधार पर महासागरीय धाराएँ दो प्रकार की होती हैं :
- ऊष्ण धारा : विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर प्रवाहित होने वाली धाराएँ उष्ण (गर्म) धाराएँ होती हैं; जैसे- ब्राजील धारा।
- ठण्डी धारा : ध्रुवों से विषुवत रेखा की ओर बहने वाली धाराएं ठंडी होती हैं; जैसे लेब्रो डोर धारा।
धाराओं की उत्पत्ति :
- सागर का जल सदा गतिशील रहता है। सन्मार्गी पवनों का प्रवाह, जल का ताप और घनत्व में अंतर, वर्षा की मात्रा और पृथ्वी की गतिशीलता आदि कारक धाराओं को जन्म देते हैं।
- पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण धाराओं की दिशा में झुकाव हो जाता है। फैरेल के नियमानुसार, यह झुकाव उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी तरफ तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं तरफ होता है।
- पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिऑलिस बल कहते हैं।
अटलांटिक महासागर की धाराएँ
गर्मजल धाराएँ ठण्डी जल धाराएँ
उत्तरी विषुवतरेखीय धारा लेब्रोडोर धारा
ब्राजील धारा कनारी धारा
गल्फ स्ट्रीम बेंगुएला धारा
विपरीत विषुवतरेखीय धारा (गिनी धारा) फाकलैण्ड धारा
फ्लोरिडा धारा महासागर प्रवाह दक्षिण अटलांटिक
दक्षिण विषुवतरेखीय धारा इरमिन्गर धारा
एण्टीलीज धारा अंटार्कटिका प्रवाह
सारगैसो सागर
उत्तरी अटलांटिक महासागर में गल्फस्ट्रीम, कनारी धारा एवं उत्तरी विषुवती रेखीय धारा द्वारा एक प्रति चक्रवातीय प्रवाह क्रम पाया जाता है, जिसके अंतर्गत शांत एवं गतिहीन जल पाया जाता है। इसमें सारगैसम घास फैली रहती है। इस भाग को सारगैसो सागर कहा जाता है। सारगैसो शब्द पुर्तगाली भाषा के शब्द सारगैसम से लिया गया है; जिसका अर्थ है समुद्री घास ।
- विस्तार : यह 20° उत्तर से 40° उत्तर और 35° पश्चिमी देशान्तर से 75° पश्चिमी देशांतर तक पाया जाता है।
- विशेषता : यहाँ अटलांटिक महासागर की सर्वाधिक लवणता पाई जाती है। सागर का औसत वार्षिक तापमान 28° रहता है।
प्रशांत महासागर की धाराएँ
गर्मजलधारा ठण्डी जलधारा
- क्यूरोशियो धारा पेरू या हम्बोल्ट धारा
- उत्तर विषुवतरेखीय धारा कैलिफोर्निया धारा
- उत्तरी प्रशांत धारा क्यूराइल या ओयाशियो धारा
- एल नीनो धारा ओखाटस्क धारा
- सुशिमा धारा पश्चिम पवन धारा
- अलास्का धारा –
- दक्षिण विषुवतरेखीय धारा –
- पूर्वी ऑस्ट्रेलिया धारा –
हिन्द महासागर की धाराएँ
गर्म जल धाराएँ ठण्डी जल धाराएँ
- अगुल्हास धारा पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया धारा
- मोजाम्बिक धारा –
- दक्षिण विषुवत् रेखीय धारा –
- दक्षिण-पश्चिम मानसून धारा –
- उत्तर-पूर्वी मानसून धारा –
- मेडागास्कर धारा –
महासागरीय धाराओं का प्रभाव
- पृथ्वी का ऊष्मा संतुलन : महासागरीय धाराएँ तापक्रम के विवरण का महत्त्वपूर्ण ड्डोत होती हैं। जब गर्म धाराएँ ठंडे भागों में पहुँचती हैं, तो वहाँ अधिक सर्दी होने लगती हैं। जैसे ग्रेट ब्रिटेन, नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क आदि का तापमान गल्फ स्ट्रीम के बढ़े भाग उत्तरी अटलांटिक धारा के कारण अपेक्षाकृत गर्म रहता है।
- इसी तरह ठंडी धारा किसी स्थान के तापमान को अत्यन्त नीचा कर देती है, जैसे -क्यूराइल, लेब्रोडोर, फाकलैंड की ठंडी धाराएँ, प्रभावित क्षेत्रें में भारी हिमपात के लिए जिम्मेदार हैं।
- वर्षा पर प्रभाव : गर्म धाराओं के ऊपर चलने वाली हवाएं, नमी धारण करके प्रभावित क्षेत्रें में वर्षा करती हैं। उदाहरण के लिए जापान के पूर्वी भाग में क्यूरोशियो धारा के कारण वर्षा होती है।
- वातावरण पर प्रभाव : गर्म और ठंडी धाराओं के मिलन स्थल पर कुहरा पड़ता है, जो नौवहन के लिए संकट की स्थिति होती है। न्यू फाउण्डलैंड के पास लैब्रोडोर ठंडी धारा तथा गल्फस्ट्रीम गर्म धारा के मिलने से ताप व्यतिक्रम होने से घना कुहरा पड़ता है।
- मत्स्य उद्योग पर प्रभाव : जहाँ ठण्डी और गर्म धाराएँ मिलती हैं, वहाँ मछली पकड़ने का विशाल क्षेत्र बन जाता है। धाराओं द्वारा मछलियों के लिए प्लैंकटन (घास) लाया जाना मछलियों के लिए आदर्श स्थिति पैदा करता है। गल्फस्ट्रीम द्वारा यह प्लैंकटन न्यूफाउण्डलैण्ड तथा उत्तर-पश्चिम यूरोपीय तट पर पहुँचाया जाता है, जिस कारण वहाँ पर मत्स्य उद्योग अत्यधिक विकसित हो गया है।
ज्वार भाटा
- सूर्य-चन्द्रमा की आकर्षण शक्तियों के कारण सागरीय जल के ऊपर उठने व गिरने को ज्वार-भाटा कहते हैं। इससे उत्पन्न तरंगों को ज्वारीय तरंग कहते हैं।
- सागरीय जल के ऊपर उठकर तट की ओर बढ़ने को ज्वार तथा उस समय निर्मित उच्च जल-तल को उच्च ज्वार तथा सागरीय जल के नीचे गिरकर (सागर की ओर) पीछे लौटने को भाटा तथा उस समय निर्मित निम्न जल को निम्न ज्वार कहते हैं।
ज्वार के प्रकार
- दीर्घ ज्वार : वह ज्वार जिसकी सीमा औसत ज्वारीय स्तर से अधिक बढ़ी हुई होती है, दीर्घ ज्वार कहलाता है। यह प्रत्येक महीने में दो बार अमावस्या (युति) और पूर्णिमा (वियुति) के दिन होता है।
- लघु ज्वार : चन्द्रमा की समकोणीय स्थिति के समय होने वाला ज्वार, जब ज्वार उत्पन्न करने वाले बल एक-दूसरे को संपूरण नहीं करते, लघु ज्वार का कारण होता है।
- अपभू ज्वार : पृथ्वी से चन्द्रमा की अधिकतम दूरी पर होने से उत्पन्न ज्वार को अपभू ज्वार कहते हैं।
- उपभू ज्वार : पृथ्वी से चन्द्रमा की निकटतम दूरी के कारण उत्पन्न ज्वार को उपभू ज्वार कहते हैं।
ज्वार का समय
- प्रत्येक स्थान पर प्रतिदिन 12 घंटे 26 मिनट बाद ज्वार तथा ज्वार के सवा 6 (6 घंटे 13 मिनट) घंटे बाद भाटा आता है। (एक ज्वार केन्द्र को चन्द्रमा के सामने आने में 24 घंटे 52 मिनट का समय लगता है।)
- 24 घंटे में प्रत्येक स्थान पर दो बार ज्वार तथा दो बार भाटा आता है। पृथ्वी पर एक ही समय में दो बार ज्वार उत्पन्न होते हैं, एक तो चन्द्रमा के सामने तथा दूसरा ठीक उसके पीछे के भाग में।
- चन्द्रमा का ज्वार उत्पादक बल सूर्य के बल से दोगुना है। चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण और पृथ्वी तथा चन्द्रमा के केन्द्र प्रसारी बल द्वारा ज्वार उत्पन्न होता है।
- जब सूर्य तथा चन्द्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं, तो दोनों की आकर्षण शक्ति एक साथ मिलकर कार्य करती है तथा उच्च ज्वार अनुभव किया जाता है। यह स्थिति पूर्णिमा तथा अमावस्या को होती है, लेकिन जब सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा मिलकर समकोण बनाते हैं, तो सूर्य तथा चन्द्रमा के आकर्षण बल एक-दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं, जिस कारण निम्न ज्वार आता है।
- यह स्थिति प्रत्येक महीने में कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होती है।
प्रवाल भित्तियाँ
- कुछ उष्णकटिबन्धीय सागरों के उथले सागर तटों के सहारे प्रवाल पोलिप द्वारा निर्मित भित्ति को प्रवाल भित्ति कहा जाता है। इसके निर्माण में अनेक जीवों का योगदान होता है। जैसे कैल्शियमी वाली प्रवाल भित्ति को तटीय प्रवाल भित्ति कहते हैं। ये भित्तियाँ मकाऊ द्वीप, दक्षिणी फ्लोरिडा के तट पर पाई जाती हैं।
- अवरोधक प्रवाल भित्ति : सागरीय तट से कुछ दूर, किन्तु उसके समानान्तर स्थित वृहदाकार प्रवाल भित्ति को अवरोधक प्रवाल भित्ति कहा जाता है। उदाहरण- ग्रेट बैरियर रीफ जो ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के सहारे 9°C-22°C दक्षिणी अक्षांशों के बीच 1920 किमी की लम्बाई में पाई जाती हैं।
- प्रवाल द्वीप वलय : घोडे़ की नाल या मुद्रिका के आकार वाली प्रवाल भित्ति को एटॉल कहा जाता है। जैसे- फुराफुटी एटॉल।
प्रवाल विरंजन
- जब सागरीय तापमान में वृद्धि हो जाती है, तो प्रवाल शैवालों को अपने शरीर से निकाल देते हैं, जिसके कारण प्रवालों को आहार नहीं मिल पाता है और वे मर जाते हैं। शैवाल के निकल जाने से प्रवाल श्वेत रंग के हो जाते हैं। इसे प्रवाल विरंजन कहते हैं।
वायुमण्डल
- वायुमण्डल एक बहुस्तरीय गैसीय आवरण है, जो पृथ्वी को चारों तरफ से घेरे हुए है।
- यह प्राकृतिक पर्यावरण एवं जीवमंडलीय पारिस्थितिक तंत्र का एक महत्त्वपूर्ण संघटक है, क्योंकि जीवमंडल के सभी जीवधारियों के अस्तित्व के लिए इसमें सभी आवश्यक गैसें, ऊष्मा तथा जल प्राप्त होता है।
- आयतन के अनुसार वायुमण्डल में (30 मील के अन्दर) विभिन्न गैसों का मिश्रण इस प्रकार है-
- नाइट्रोजन 78.07%, ऑक्सीजन 20.93%, कार्बन-डाइऑक्साइड 0.03% और ऑर्गन 0.93%।
वायुमण्डल में गैसों की मात्रा
गैस आयतन (%)
- नाइट्रोजन (N2) 78.084
- ऑक्सीजन (O2) 20.99
- आरगॉन (Ar) 00.932
- कार्बन डाइआक्साइड (CO2) 00.03
- निओन (Ne) 00.0018
- हीलियम (He) 00.0005
- जीनोन (Xe) 00.0000087
वायुमण्डल का संघटन
पृथ्वी की सतह से लगभग 80 किमी की ऊँचाई तक वायु की रचना गैसों के अनुपात में अधिकतर एक-सी रहती है, जो इस प्रकार है :
- नाइट्रोजन (N2) : नाइट्रोजन जीवमण्डल के जीवधारियों के लिए महत्त्वपूर्ण गैस है, क्योंकि यह एमीनो का संघटक है, जिससे कि प्रोटीन का निर्माण होता है। जीव नाइट्रोजन को प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण नहीं कर सकते, बल्कि लेग्यूमिनस पौधे एवं शैवाल की प्रजातियाँ नाइट्रोजन का स्थितिकरण करती हैं।
- ऑक्सीजन (O2): ऑक्सीजन रसायनिक दृष्टि से अधिक सक्रिय होती है, क्योंकि यह ऑक्सीकरण की प्रक्रिया से अन्य तत्वों के साथ तुरन्त मिल जाती है। यह कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इससे पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं। ऑक्सीजन का उपयोग श्वसन क्रिया, जीवाश्म ईंधनों एवं लकड़ी को जलाने में होता है।
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2): गैसीय कार्बन डाइ-ऑक्साइड की दो भूमिका होती हैं :
- यह प्रकाश संश्लेजण में सहायक होती है।
- वायुमण्डलीय कार्बन डाइऑक्साइड प्रवेशी सूर्य विकिरण के लिए पारदर्शी होती है, लेकिन बहिर्गामी पार्थिव विकिरण के लिए अपारदर्शी होती है और पुनः वापस लौटा देती है, जिस कारण हरितगृह प्रभाव में वृद्धि होती है। इसके कारण धरातल के तापमान में वृद्धि होती है, जिसे भूमण्डलीय ऊष्मन कहते हैं।
ओजोन
- ओजोन वास्तव में ऑक्सीजन के अणु आइसोटोप (O3) होता है। वायुमण्डल में इसकी मात्र बहुत कम पाई जाती है।
- यह पृथ्वी की सतह से 15-50 किमी की ऊँचाई तक पाई जाती है, परन्तु इसका सर्वाधिक सान्द्रण 15-35 किमी ऊँचाई के बीच होता है।
- यह सूर्य से निकलने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करके कैंसर जैसी बीमारी से बचाती है।
- ओजोन क्षरण के लिए उत्तरदायी तत्वों में क्लोरोफ्रलोरो कार्बन, हैलोजन्स, नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रमुख हैं।
- जलवाष्प : वायुमण्डल में जलवाष्प 0-4% तक पाया जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड की भाँति यह भी ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करता है।
- धूलकण : यह वायुमण्डल में आर्द्रताग्राही नाभिक के रूप में महत्त्वपूर्ण होते हैं, जिनके चारों ओर जलवाष्प का संघनन होता है। धूलकण के कारण ही सूर्य की किरणों का परावर्तन एवं प्रकीर्णन होता है।
वायुमण्डल की संरचना
वायुमंडल को तापमान के आधार पर कई मंडलों में विभाजित किया जाता हैµ
- क्षोभमण्डल
- समतापमण्डल
- मध्यममण्डल
- आयनमण्डल
- बाह्यमण्डल
क्षोभमण्डल/परिवर्तन मण्डल
- यह वायुमण्डल की सबसे निचली परत है।
- इस परत की ऊँचाई भूमध्य रेखा पर 16 किमी तथा ध्रुवों पर 8 किमी है।
- क्षोभमण्डल में समस्त मौसमी परिवर्तन होते हैं, जिस कारण इसे परिवर्तन मंडल भी कहा जाता है। इस परत में प्रत्येक 165 मीटर की ऊँचाई पर जाने पर 1°C ताप का ह्रास होता है, जिसे ताप की सामान्य ह्रास दर कहते हैं।
- क्षोभसीमा क्षोभमण्डल एवं समतापमण्डल को अलग करती है। इसकी निचली सीमा में जेट पवनें चलती हैं।
समतापमण्डल
- क्षोभसीमा के ऊपर स्थित परत जो भूमध्य रेखा के ऊपर लगभग 18 किमी तथा ध्रुवों पर 50 किमी तक होता है, समतापमण्डल कहलाता है।
- भाग में तापमान स्थिर रहता है, इसलिए इसे समतापमंडल कहते हैं।
- यह मौसम सम्बन्धी घटनाओं से मुक्त है, इसलिए वायुयान की उड़ान के लिए आदर्श परत है।
- इस मण्डल में 15 से 35 किमी के बीच ओजोन गैस पाई जाती है, जो पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करती है। कभी-कभी समतापमण्डल के निचले भाग में मुक्ताभ मेघ (मदर आफ पर्ल क्लाउड) विकसित होते हैं।
मध्यमण्डल
- मध्यमण्डल का विस्तार सागर तल से 50 से 80 किमी की ऊँचाई तक पाया जाता है।
- इस मण्डल में ऊँचाई के साथ तापमान में पुनः गिरावट होने लगती है।
- मध्यमण्डल की ऊपरी सीमा को मेसोपॉज कहते हैं, जिसके ऊपर जाने पर तापमान पुनः बढ़ने लगता है।
आयनमण्डल
- पृथ्वी सतह से 80 से 640 किमी की ऊँचाई तक आयनमंडल पाया जाता है।
- ऊँचाई के साथ इस मण्डल में तापमान की वृद्धि होती है।
- यहाँ पर विद्युत चुम्बकीय कण पाये जाते हैं तथा रेडियो तरंगों का परावर्तन होता है।
- आयनमण्डल में ऊँचाई के साथ कई परतें पाई जाती हैं, जैसे- D, E, F और G परत।
- D परत : यह निम्न आवृत्ति की रेडियो तरंग का परावर्तन करती है।
- E परत (केनली हेवीसाइड परत) : यह मध्य एवं उच्च आवृत्ति वाली रेडियो तरंगों का परावर्तन करती है।
- F परत (अप्लीटन परत) : यह भी मध्य और उच्च आवृत्ति वाली रेडियो तरंगों का परावर्तन करती है।
बाह्यमण्डल
- आयनमण्डल के ऊपर वायुमण्डल की सबसे ऊपरी परत बाह्य मण्डल कहलाती है। यहाँ हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसों की प्रधानता है।
- इस परत में गैसें अत्यन्त विरल होती हैं और धीरे-धीरे बाहरी अंतरिक्ष में विलीन हो जाती हैं।
- सूर्याताप : सूर्य, पृथ्वी तथा वायुमण्डल की ऊष्मा का प्रधान ड्डोत है। सौर्यिक ऊर्जा को ही सूर्यातप कहते हैं।
- सूर्य से पृथ्वी, उसकी कुल ऊर्जा का 1/2,00,00,00,000 भाग ही प्राप्त करती है।
- पृथ्वी औसत रूप से वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर 1.94 कैलोरी प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रति मिनट ऊर्जा प्राप्त करती है।
वायुमण्डल का तापन :
वायुमण्डल की तापन क्रियाएं संवहन, विकिरण और अभिवहन हैं :
- संवहन : जब वायु पृथ्वी के संपर्क में आकर गर्म होती है, तब वह लम्बवत् उठती है और वायुमण्डल में ताप का संचरण करती है। वायुमण्डल में लम्बवत् तापन की यह प्रक्रिया संवहन कहलाती है।
- संचालन : संचालन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें पदार्थ से होकर ताप सीधे अणु संघात के द्वारा उच्च ताप बिन्दु से न्यून ताप के बिन्दु तक स्थानान्तरित होती है, स्वयं पदार्थ का संचालन नहीं होता है।
- जब धरातल विकिरण का अवशोषण करता है और ऊपर की वायु तापमान को गर्म करती है, तब संचालन ऊष्मा के एक भाग को वायु की निचली परत में स्थानान्तरित कर देता है।
- वायु ऊष्मा का एक घटिया चालक है।
- विकिरण : यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक पिण्ड ताप के रूप में विकिरण ऊर्जा (सूर्य से प्राप्त ऊर्जा) उत्सर्जित करती है। इसके कारण ताप का ह्रास होता है और शीतलन होता है।
- पृथ्वी अंतरिक्ष में विकिरण द्वारा ताप छोड़ती रहती है।
- दिन के समय सूर्य से प्राप्त सूर्यताप की मात्र पृथ्वी के द्वारा छोड़े गए ताप की मात्र से अधिक होती है और इसलिए तापमान बढ़ता रहता है, जब तक कि अधिकतम नहीं पहुँच जाता।
- रात्रि में इसके विपरीत अवस्था होती है, ताप कम होता जाता है, जब तक कि न्यूनतम तक नहीं पहुँच जाता।
- अभिवहन : वायु में क्षैतिज संचलन से होने वाली ताप का स्थानांतरण अभिवहन कहलाता है। मध्य अक्षांशों में दैनिक मौसम में आने वाली भिन्नताएँ केवल अभिवहन के कारण होती हैं।
- एल्बिडो : एक ज्योतिहीन वस्तु पर गिरने वाला सौर विकिरण का समानुपात, जो वह वस्तु परावर्तित करती है, एल्बिडो कहलाता है। पृथ्वी का एल्बिडो 0.3% है, अर्थात् सौर विकिरण का 30% वापस अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है।
- ऊष्मा बजट : सूर्यातप तथा पार्थिव विकिरण में संतुलन के कारण पृथ्वी पर औसत तापमान एक समान रहता है। इस संतुलन को ऊष्मा बजट कहते हैं।
- धरातल पर तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों में अक्षांश, समुद्र तल से ऊँचाई, समुद्र तल से दूरी, स्थल एवं जल का असमान वितरण, समुद्री धाराएँ, प्रचलित पवनें तथा धरातल का स्वभाव महत्त्वपूर्ण है।
समताप रेखाएँ
- मानचित्र पर समान तापमान वाले (सागर तल पर) स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समताप रेखा कहते हैं।
- ये रेखाएँ सीधी होती हैं, लेकिन समुद्रतट के पास इनमें झुकाव आ जाता है।
- दक्षिणी गोलार्द्ध में जल की अधिकता के कारण समताप रेखाएँ, सीधी रेखाओं के रूप में होती हैं।
- जब ताप रेखाएँ नजदीक होती हैं, तब वे तीव्र ताप प्रवणता को प्रदर्शित करती हैं।
- गर्मी के समय स्थल से सागर की ओर जाने वाली समताप रेखा भूमध्य रेखा की ओर तथा सर्दी में ध्रुवों की ओर मुड़ जाती है।
वायु दाब तथा पवन संचार
वायुदाब
- वायुमंडल द्वारा पृथ्वी पर डाले जाने वाले भार को वायुदाब कहा जाता है। इसे बैरोमीटर से मापा जाता है।
- सामान्यतः समद्र-तल पर वायुदाब पारे के 760 मिलीमीटर ऊँचे स्तम्भ द्वारा पड़ने वाले दाब के बराबर होता है। जलवायु वैज्ञानिक वायुदाब को मिलीबार में नापते हैं।
समदाब रेखा
- समदाब रेखा वह कल्पित रेखा है, जो समुद्र-तल पर समान वायुदाब वाले क्षेत्रें को मिलाती है।
- समदाब रेखाएँ दाब प्रवणता को दर्शाती हैं।
- दूरी की प्रति इकाई पर दाब के घटने की दर को दाब प्रवणता कहते हैं।
वायुदाब का महत्व
- वायुमण्डलीय दाब में परिवर्तन से वायु में क्षैतिज गति उत्पन्न होती है और पवन चलती है। पवन तापमान तथा आर्द्रता दोनों को प्रभावित करती हैं।
वायुदाब की पेटियाँ
सम्पूर्ण पृथ्वी पर पाए जाने वाले सात कटिबंधों को चार समूहों में रखा जाता है :
- भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब की पेटी : यह पेटी भूमध्यरेखा के दोनों ओर 10° उत्तरी और 10° दक्षिणी अक्षांशों के बीच पाई जाती है।
- भूमध्य रेखा पर वर्ष भर सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं तथा वर्ष भर दिन-रात बराबर होते हैं, जिस कारण अधिक तापमान होता है, जिससे हवाएं फैलकर ऊपर उठती हैं। इससे निम्न वायुदाब बना रहता है। निम्न वायुदाब तापमान के कारण होता है, इसे तापजन्य न्यून वायुदाब कहते हैं।
- यहाँ पर हवाओं की गति कम होने के कारण वातावरण शांत रहता है। इसी कारण इस पेटी को शांत पेटी या डोलड्रम कहते हैं।
- उपोष्ण उच्च वायुदाब की पेटियाँ : यह दोनों गोलार्द्धों में 30°-35° अक्षांशों के बीच पाया जाता है।
- यहाँ लगभग वर्षभर उच्च तापमान रहता है, जिस पर भी यहाँ पर उच्च वायुदाब होता है (नियमतः निम्न वायुदाब होना चाहिए)।
- यहाँ उच्च वायुदाब, तापमान से सम्बन्धित न होकर पृथ्वी की गति एवं वायु के अवतलन से सम्बन्धित है।
- यह उच्च वायुदाब गतिजन्य होता है।
- अश्व अक्षांश : इस पेटी को अश्व अक्षांश भी कहा जाता है, क्योंकि प्राचीन काल में जब जलयान इस पेटी में पहुँचता था, तो शान्त वायु के कारण वह आगे नहीं बढ़ पाता था। अतः जलयान को हल्का करने के लिए घोड़ों को समुद्र में फेंकना पड़ता था।
- उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी : इस पेटी का विस्तार दोनों गोलार्द्धों में 60°-65° अक्षांशों के बीच पाया जाता है। यह पेटी भी गति जनित है।
- ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियाँ : ध्रुवों के निकट निम्न तापमान के कारण वायुदाब उच्च रहता है। अतः यह उच्च वायुदाब तापजन्य होता है।
पवन
पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब की भिन्नता के कारण वायु में गति उत्पन्न होती है, जिसे पवन कहते हैं। पवन की दिशा एवं गति को दाब प्रवणता, कारिऑलिस बल, अभिकेन्द्रीय त्वरण तथा भूतल से घर्षण प्रभावित करते हैं।
- पवन का प्रवाह सदैव उच्च दाब से निम्न दाब की तरफ होता है तथा पवन की गति दाब प्रवणता पर निर्भर करती है।
- यदि समदाब रेखाएँ पास-पास होंगी, तो ढाल तीव्र होगा और पवनें तीव्र गति से चलेंगी, लेकिन यदि समदाब रेखाएँ दूर होंगी, तो वायुदाब का ढाल मन्द होगा और पवन की गति धीमी होगी।
- कारिऑलिस बल : पृथ्वी के घूर्णन के कारण हवाओं की दिशा में कुछ अंतर आ जाता है। इस घूर्णन से जनित बल को कारिऑलिस बल कहते हैं।
- फैरल का नियम : उत्तरी गोलार्द्ध में पवन अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर विक्षेपित हो जाती है।
- बाइस बैलट का नियम : जिस दिशा में हवा चल रही है, यदि उस दिशा में मुँह करके खड़ा हुआ जाए, तो उत्तरी गोलार्द्ध में न्यून वायुदाब बायीं तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर होगा।
पवनों के प्रकार
प्रचलित पवनें : वायुदाब के अक्षांशीय अंतर के कारण एक कटिबन्ध से दूसरे कटिबन्ध की ओर लगातार वर्ष भर बहने वाली पवनों को स्थायी या प्रचलित या भूमंडलीय पवन कहते हैं। ये तीन प्रकार की होती हैंµ
1. सन्मार्गी पवन (व्यापारिक हवाएँ) :
- उपोष्ण उच्च दाब कटिबन्धों से भूमध्यरेखीय निम्न दाब कटिबंध की ओर चलने वाली पवनों को व्यापारिक पवन कहते हैं। ये 30° से 5° उत्तर व दक्षिण अक्षांशों के बीच चलती हैं।
- कारिऑलिस बल के प्रभाव में ये पवनें उत्तर गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्वी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्वी दिशा में चलती हैं। इसलिए इन्हें पूर्वा पवन भी कहते हैं।
2. पछुवा पवनें :
- पछुआ हवाएँ उस प्रदेश में चलती हैं, जो उपोज्ण उच्च भार क्षेत्रें अथवा अश्व अक्षांशों के उत्तर में ध्रुवों की ओर स्थित हैं। इन पवनों को प्रति व्यापारिक पवन या पछुआ पवन कहा जाता है।
- उत्तरी गोलार्द्ध में ये दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व दिशा में चलती हैं।
- दक्षिणी गोलार्द्ध में 40°-60° अक्षांशों के बीच इन्हें गरजता चालीसा, प्रचण्ड पचासा तथा चीखता साठा कहा जाता है।
3. ध्रुवीय पवनें :
- ध्रुवीय उच्च वायुदाब कटिबंध से न्यून वायुदाब कटिबंध की ओर बहने वाली पवनों को ध्रुवीय पवनें कहते हैं।
- इनका क्षेत्र दोनों गोलार्द्ध में ध्रुवों से 65° अक्षांश तक होता है।
सामयिक पवनें : जिन पवनों की दिशा मौसम या समय के अनुसार बदलती हैं, उन्हें सामयिक पवनें कहते हैं। ये तीन प्रकार की होती हैं –
1. मानसून पवनें :
- ग्रीष्म में ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं, जिन्हें ग्रीष्मकालीन मानसून कहते हैं। शीत ऋतु में ये पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं, जिन्हें शीतकालीन मानसून कहते हैं।
- मानसूनी पवनें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी सहित द.-पू. एशिया, उ. ऑस्ट्रेलिया के ऊपर बहती हैं।
2. समुद्री एवं स्थलीय समीर :
- समुद्री समीर : स्थल एवं जलीय भाग के तापमान में विषमता के कारण दिन के समय वायुमंडल की निचली परतों में समुद्र समीर बहती है। ये हवाएँ समुद्र के निकटवर्ती स्थानों के तापमान और आर्द्रता को प्रभावित करती हैं।
- स्थलीय समीर : रात्रि के समय स्थल भाग शीघ्र ठण्डा होता है, जिससे रात्रि में वायुदाब अधिक और जलीय भाग पर कम रहता है। इसलिए रात्रि में हवाएँ स्थल से जल की ओर चलती हैं, जिन्हें स्थलीय समीर कहते हैं।
3. पर्वत एवं घाटी समीर :
- घाटी समीर : पर्वतीय क्षेत्रों में दिन के समय पर्वत के ढाल घाटी तल की अपेक्षा अधिक गर्म होते हैं। इस कारण पवन घाटी तल से पर्वतीय ढाल की ओर बहने लगती है, जिसे घाटी समीर कहते हैं।
- पर्वत समीर : सूर्यास्त के बाद पर्वत ढाल पर पार्थिव विकिरण से ऊष्मा की हानि घाटी तल की अपेक्षा तेजी से होता है तथा पर्वतीय ढाल से ठंडी घनी पवन नीचे घाटी में उतरने लगती हैं, जिन्हें पर्वत समीर कहा जाता है।
स्थानीय पवनें : किसी स्थान विशेष में चलने वाली विशेष प्रकार की पवनों को स्थानीय पवन कहा जाता है, जैसे-
- चिनुक : चिनुक अर्थात् ‘हिम खाने वाला’। यह शुष्क पवन है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में रॉकी पर्वत के ढालों व कनाडा में चलती है।
- यह शीतकाल में हिम को पिघला और सुखा देती है। इस प्रकार पूरी शीतऋतु में पशुओं को चराने में सुविधा प्रदान करती है।
- हिम झंझावात : ये शीतल पवन है, जिसमें मेघों से हिम वर्षा होती है। ये कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका व अंटार्कटिका महाद्वीप में चलती है।
- सिरोको : यह अत्यन्त उज्ण, धूल भरी पवन है, जो सहारा मरुस्थल से भूमध्य सागर की ओर चला करती है।
- यह भूमध्य सागर को पार करने के क्रम में आद्र्र्रता ग्रहण करती है और माल्टा, सिसिली और इटली तक पहुँचती है।
- मिड्ड में ये पवनें खमसिन, ट्यूनिसिया में चिली, लीबिया में गिबली के नाम से जानी जाती हैं।
- फोहन : यह एक गर्म और शुष्क पवन है, जो पर्वतों के पवनाभिमुख (अनुवात ढालों पर नीचे की ओर चलती है।
- ये पवनें उत्तरी आल्पस पर्वत घाटियों में चलती हैं। इनका सर्वाधिक प्रभाव स्विट्जरलैंड में होता है।
- ब्रिक फील्डर : यह एक गर्म, शुष्क पवन है, जो ऑस्ट्रेलिया के आन्तरिक भाग में दक्षिण-पूर्व के तटवर्ती भूमि की ओर ग्रीष्म ऋतु में चलती है।
- हरमाटन : ये शक्तिशाली उत्तर पूर्वी पवनें सहारा मरुस्थल से चलती हैं। जब ये पवनें गुआना तट पर प्रवेश करती हैं, तब ये यहाँ के निवासियों को राहत प्रदान करती हैं और स्वास्थ्यवर्धक होती हैं। इसलिए इन पवनों को ‘डाक्टर विंड’ भी कहा जाता है।
- सिमूम : सिमूम उष्ण धूल भरी पवनें होती हैं, जिनका तापमान उत्तरी सहारा में 40°C से 59°C तक रहता है।
- मिस्ट्रल : मिस्ट्रल एक शीतल पवन है, जिसका अनुभव रोन की घाटी (फ्रांस) तथा उसके डेल्टा में होता है।
- पुरगा : यह साइबेरिया की ठण्डी उत्तरी-पूर्वी पवनें हैं। इसकी हिम विशिष्टता के कारण इसे टुण्ड्रा में इस नाम से पुकारा जाता है।
- विलि-विलि : ये ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी-पश्चिमी तट पर बहने वाली उज्ण कटिबंधीय तीव्र तूफानी पवनें हैं।
आर्द्रता तथा वर्षा
आर्द्रता
- वायु की जलवाष्प धारिता की मात्र को आर्द्रता कहा जाता है।
- आर्द्रता को ग्राम प्रति घनमीटर में मापा जाता है।
- गर्म वायु में जलवाष्प रोके रखने की सामर्थ्य अधिक होती है, जबकि शीतल वायु की सामर्थ्य कम होती है।
- आर्द्रता तीन प्रकार की होती है :
- निरपेक्ष आर्द्रता : वायु की प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्र को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं। इसे ग्राम प्रतिघन मीटर में व्यक्त किया जाता है।
- सापेक्ष आर्द्रता : सापेक्ष आर्द्रता जलवाष्प का अनुपात होता है, जो वास्तव में वायु में पाई जाती है, उसकी तुलना में जो वह वायु उस तापक्रम पर जलवाष्प को रोके रख सकती है।
- विशिष्ट आर्द्रता : वायु के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आर्द्रता कहते हैं।
संघनन
संघनन प्रक्रिया में जलवाष्प तरल अवस्था में बदल जाता है। वायु के जिस तापमान पर जल अपनी गैसीय अवस्था (जलवाष्प) से तरल या ठोस अवस्था में बदलता है, तो उसे ओसांक कहते हैं। संघनन निर्भर करता है :
(1) वायु की सापेक्ष आर्द्रता पर, (2) ठण्डा होने की अवस्था पर।
- ओस : जब पृथ्वी पर रात्रि के समय विकिरण द्वारा वायुमंडल की निचली परतें ओसांक बिन्दु से नीचे ठण्डी हो जाती हैं और उसमें उपस्थित जल वाष्प बूँदें संघनित हो जाती हैं, तो ओस कहलाती है। घास, फूल पत्तियों पर जल-बूँदों को ओस कहा जाता है।
- पाला : पृथ्वी के धरातल पर जब वायु तापमान 0°C से नीचे चला जाता है, जमी हुई नमी के कण से पाला बनता है, अर्थात् हिम के रूप में जमी हुई ओस को ही पाला कहा जाता है।
- कोहरा : कोहरा वायुमंडल की निचली परत में छोटे जल बिंदुओं का धुआँ या धूल कणों के साथ सघन पुंज होता है। वायु की निचली परत में जलवाष्प का संघनन कोहरे का कारण होता है, वायु का उसके हिमांक बिन्दु से नीचे शीतल होता है। दृश्यता एक किमी से कम होती है।
- धुंध : संघनन केन्द्र की बड़ी संख्या में उपस्थिति के कारण वायुमंडल की निचली परतों में धुंधलेपन की अवस्था को धुंध कहते हैं। इनमें दृश्यता एक किमी से अधिक तथा दो किमी से कम होती है।
- हिम : हिम तब बनता है, जब हिमांक बिन्दु से नीचे तापमान पर जल वाष्प का संघनन होता है। हिम वर्षण का एक ठोस रूप है, जिसमें हिम कण और बर्फ की सूक्ष्म कटिकाओं का सामंजस्य रहता है।
- ओला : जब जल की बूँदें जम जाती हैं और इनके कणों का आकार बढ़ता है। जब ये कण अधिक बड़े हो जाते हैं और आरोही वायु प्रवाह अवरोध को पार नहीं कर पाते हैं, ये गिरना प्रारम्भ कर देते हैं। ये कपासी मेघों से गिरते हैं और गरजने वाले तूफानों से सम्बन्धित होते हैं।
बादल
बादल, हवा के रुदोष्म प्रक्रिया द्वारा ठंडा होने पर उसके तापमान के ओसांक से नीचे गिरने से बनते हैं।
बादलों का वर्गीकरण
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मेघों की अन्तर्राष्ट्रीय एटलस में मेघों का दस स्तरीय वर्गीकरण किया गया है :
निम्न मेघ (धरातल से 200 मीटर की ऊँचाई तक)
- स्तरी कपासी मेघ : स्तरी कपासी नीचे मेघ होते हैं, जो गोलाकार परिणामों अथवा बेलनाकार परतों में व्यवस्थित होते हैं, आपस में इतने निकट होते हैं कि उनके किनारे मिल जाते हैं।
- वर्जा स्तरी मेघ : ये काला धूसर रंग के और लगभग एक समान आधार वाले मेघ होते हैं, जो निरंतर वर्षा अथवा हिम देते हैं।
- कपासी मेघ : ये संवहन मेघ होते हैं, ये उस समय बनते हैं, जब ऊपर उठती वायुराशि उस स्तर तक पहुँचती है, जहाँ संघनन होता है। ये फूल के समान चमकदार एवं झोंकेदार होते हैं।
- कपासी वर्षा मेघ : ये नीचे से देखे जाने पर काले, धूसर दिखाई देते हैं, लेकिन किनारों से सफेद दिखाई देते हैं। ये तडि़त झंझा से सम्बन्धित मेघ होते हैं, जिनसे तेज वर्षा, ओलावृष्टि या हिमपात होता है। इनके ऊपरी भाग निहाई (Anvil) मेघों के रूप में फैल जाता है।
- स्तरी मेघ : इन मेघों में एक समान परतें पाई जाती हैं। ये मन्द, धूसर तथा साधारण दिखाई देते हैं।
- उच्च कपासी मेघ : ये मेघ परतों में होते हैं। इन मेघों को भेड़ मेघ या ऊन के प्रकार के मेघ भी कहा जाता है।
मध्यम मेघ (2000 मीटर से 6000 मीटर तक)
- उच्चस्तरी मेघ : उच्चस्तरी मेघ कभी पतले और कभी गहरे होते हैं, जो सूर्य या चन्द्रमा को ढंक लेते हैं। ये प्रायः चक्रवात के आने से सम्बन्धित होने के कारण वर्षा का पूर्वाभास देने वाले मेघ होते हैं।
उच्च मेघ (6000 मीटर से अधिक ऊँचे)
- पक्षाभ मेघ : पक्षाभ मेघ कोमल रेशेदार, भूसे के ढेर के समान तथा खुश्क मौसम के मेघ होते हैं। ये चक्रवात के आने का सूचक होते हैं।
- पक्षाभ स्तरी : ये पतले व सफेद चादर के समान पूरे आकाश में छाए रहते हैं। दिन में सूर्य व रात्रि में चन्द्रमा के चारों ओर प्रभामंडल बनाते हैं।
- पक्षाभ कपासी : हिम रवों से बने एक प्रकार के उच्च मेघ जो छोटे हिमकणों से या गोलाकार राशि समूह अथवा रेखाओं में होते हैं, पक्षाभ कपासी मेघ होते हैं। इन्हें मेकरेल आकाश कहा जाता है।
वर्षा
जल के वाष्पीकरण होने से वाष्प वायुमंडल में पहुँचता है तथा ऊँचाई पर तापमान कम होने से उसका संघनन होता है; तत्पश्चात् मेघ बनते हैं तथा वर्षा बूँदों का निर्माण होता है। जब बूँदों का आकार 1-3 मिमी होता है, तो यह धरातल पर गिरता है, जिसे वर्षा कहते हैं।
वर्षा के प्रकार : वर्षा तीन प्रकार की होती है –
- संवहन वर्षा : वायुमंडल में संवहन प्रक्रिया द्वारा जो वर्षा होती है, उसे संवहन वर्षा कहते हैं।
- इस प्रकार की वर्ष विषुवतरेखीय प्रदेश में होती है। गर्म हवा ऊपर उठती है तथा ठंडी होकर बादल का रूप ले लेती है और वर्षा प्रारम्भ हो जाती है। वर्षा के पश्चात् ठंडी हवा नीचे उतर जाती है।
- पर्वतीय वर्षा : नमी से लदी वायु के मार्ग में पर्वत या अवरोध पड़ने से वह ऊपर उठती है और इस कारण रुदोष्म रूप से ठंडी हो जाती है, जिस ढाल पर वर्षा होती है, उसे वर्षा पोषित या पवनाभिमुख क्षेत्र कहते हैं, जबकि विमुख ढाल पर वर्षा नहीं होती, इसे वृष्टि छाया प्रदेश कहते हैं।
- वाताग्र या चक्रवातीय वर्षा : दो विपरीत हवाएँ आपस में टकराकर वाताग्र का निर्माण करती हैं। इसके सहारे गर्म वायु ऊपर उठती है और मध्य व उच्च अक्षांशों में वर्षा होती है।
वायुराशियाँ, वाताग्र एवं चक्रवात
वायुराशियाँ : पृथ्वी के धरातल के व्यापक क्षेत्र को घेरे और अग्र धरातलों से घिरी लगभग विशिष्टताओं में समरूप वायु के ढेर को वायुराशि कहते हैं। वायुराशि में पाये जाने वाले भौतिक लक्षण हैं : तापक्रम, ह्रास दर और आर्द्रता सम्बन्धी दशाओं को परिमार्जित करती है और स्वयं भी उनसे प्रभावित होती हैं।
- एक वायुराशि का अनुप्रस्थ विस्तार कई हजार किलोमीटर और ऊपर की ओर क्षोभमंडल तक रहता है।
- विश्व के विभिन्न भागों में मौसम सम्बन्धी परिवर्तन विभिन्न वायुराशियों की क्रिया प्रतिक्रिया के कारण होती है।
वाताग्र : दो परस्पर वायुराशियों के बीच निर्मित सीमा सतह को वाताग्र कहते हैं। वाताग्र धरातलीय सतह पर कुछ कोण पर झुका होता है।
- इसका ढाल पृथ्वी की अक्षीय गति पर आधारित होता है और ध्रुवों की ओर बढ़ता है।
चक्रवात : चक्रवात निम्न वायुदाब का एक तंत्र होता है, जिसमें वायुदाब प्रवणता तीव्र रहती है।
- इसमें पवन घूमती हुई चलती है, उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा वामावर्त (घड़ी की सूई के विपरीत) और अन्दर की ओर होती है।
- दक्षिणी गोलार्द्ध में इनकी दिशा दक्षिणावर्त रहती है।
चक्रवात दो प्रकार के होते हैं :
शीतोष्ण चक्रवात
- इनकी उत्पत्ति पछुआ पवनों की पेटी में 30° – 35° अक्षांशों के मध्य होती है। ये अंडाकार होते हैं।
- ये प्रायः पश्चिम से पूर्व दिशा में भ्रमण करते हैं।
- आकार में यह 150 किमी से 3000 किमी तक हो सकता है। इनसे हल्की से मध्यम वर्षा होती है, जो हल्की बौछारों के रूप ले लेती हैं और अस्थिर उष्ण वायु में संवहन होती है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात
- उष्ण कटिबंधीय चक्रवात एक निम्न भार का तंत्र है, जो उष्ण कटिबंधीय अक्षांशों में विकसित होता है।
- इसका विस्तार 23.5° उत्तर कर्क रेखा से 23.5° दक्षिण मकर रेखा तक रहता है। इनकी उत्पत्ति सागरों के पश्चिम छोर के निकट होती है, जहाँ पर उष्ण कटिबंधीय धाराएँ बहुत अधिक जलवाष्प की पूर्ति करती रहती हैं।
- इन चक्रवातों का केन्द्रीय भाग चक्रवात की आँख या शांत क्षेत्र कहलाता है।
- इन चक्रवातों में पवन की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में वामावर्त और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त (घड़ी की सूई के घूमने की दिशा में) रहती है।
हरीकेन, टायफून एवं टोरनेडो चक्रवात इसके प्रकार हैं-
हरीकेन : इसका सम्बन्ध कैरेबियन सागर और मैक्सिको की खाड़ी के परिक्रमी उष्ण कटिबंधीय तूफानों से है।
- ये पूर्वी प्रशांत महासागर में मैक्सिको, ग्वाटेमाला, होण्डुरस, निकारगुआ और पनामा के तटवर्ती भागों में उत्पन्न होते हैं।
- इसमें एक शांत केन्द्रीय क्षेत्र होती है, जिसके चारों ओर उच्च गति (160 किमी प्रति घंटा) से वायु परिक्रमा करती है।
टायफून : पश्चिमी प्रशांत महासागर और चीन सागर में उज्ण कटिबंधीय चक्रवातों को टायफून कहते हैं।
- यह तीव्र न्यून भार तंत्र होता है, जो उग्र पवनों को उत्पन्न करता है और भारी वर्षा करता है। इसकी गति 160 किमी प्रति घंटे तक की होती है।
बवंडर : एक अत्यंत तीव्र न्यून दाब केन्द्र के चारों ओर विकसित वायु का तीव्रता से घूर्णन बवंडर (टोरनेडो) कहलाता है।
- यह मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पन्न होता है।
- प्रभाव की दृष्टि से यह सबसे प्रलयकारी एवं प्रचण्ड होता है।
- इसकी गति 300-500 किमी/घंटा से भी अधिक होती है।
प्रतिचक्रवात : यह वृत्ताकार समदाब रेखाओं द्वारा घिरा हुआ वायु का ऐसा क्रम है, जिसके केन्द्र में वायुदाब अधिकतम होता है और बाहर की ओर घटता जाता है, जिस कारण हवाएं केन्द्र से परिधि की ओर चलती है।
- उत्तरी गोलार्द्ध में प्रतिचक्रवात पवन का संचरण दक्षिणावर्त तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में वामावर्त रहता है।
- यह 30-35 किमी/घंटे की चाल से चलता है। केन्द्र में हवाएँ ऊपर से नीचे उतरती हैं, केन्द्र का मौसम साफ और वर्षा की संभावना नहीं रहती है।
महाद्वीप
एशिया
एशिया विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। इसका क्षेत्रफल 4,44,44,100 वर्ग किमी है, यह स्थलीय भाग का 33% है। यूराल पर्वत, कैस्पियन सागर, काकेशस पर्वत तथा काला सागर एशिया तथा यूरोप की सीमा बनाते हैं, जबकि स्वेज नहर, लाल सागर एशिया एवं अफ्रीका के बीच सीमा बनाते हैं।
- सर्वोच्च शिखर : माउण्ट एवरेस्ट (8,848 मीटर)
- सबसे गहरा गर्त : चैलेन्जर गर्त, प्रशांत महासागर फिलीपींस के पास
- सबसे ऊँचा पठार : पामीर (विश्व की छत)
- सबसे बड़ी झील : कैस्पियन सागर, रूस
- सबसे गर्म स्थान : जैकोबा बाद, पाकिस्तान (52°C)
- सबसे ठंडा स्थान : बर्खोयांस्क, साइबेरिया (-68°)
- सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान : मासिनराम, भारत।
- सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश : चीन
- सबसे लम्बी नदी : यांग्सी, चीन (5,797 किमी)
- सबसे बड़ा देश : चीन
- सबसे छोटा देश : मालदीव
- सबसे लम्बा रेलमार्ग : चीन (चीन से स्पेन)
- इसका अक्षांशीय विस्तार 10° दक्षिणी अक्षांश से 80° उत्तरी अक्षांश व देशान्तरीय विस्तार 25° पूर्वी देशान्तर से 180° पूर्वी देशांतर है।
- एशिया में स्थित तिब्बत का पठार विश्व का सर्वाधिक ऊँचा एवं विस्तृत पठार है। यहाँ संसार का सबसे निचला भाग, मृत सागर (समुद्र तल से 400 मीटर नीचा) के तट पर इजराइल, फिलीस्तीन एवं जार्डन है।
- चीन व जापान विश्व के सर्वाधिक मत्स्य आहरण करने वाले देश हैं।
- पाकिस्तान में सुलेमान श्रेणी, किरथर श्रेणी और साल्ट रेंज पर्वत विस्तृत हैं। इन श्रेणियां को केवल दर्रों (खैबर, गोमल व बोलन) द्वारा पार किया जा सकता है। सिन्धु नदी पर तारबेला बाँध परियोजना पाकिस्तान की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना है।
- चश्मा तथा कराची में नाभिकीय बिजली उत्पादन केन्द्र है।
- पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हामुन-ई-मशुकेल मरुस्थल स्थित है।
- एशिया में स्थित श्रीलंका को पूर्व का मोती भी कहा जाता है।
- श्रीलंका पाक जल सन्धि द्वारा भारत से अलग है। यहाँ प्रवाल द्वीप पाए जाते हैं, जिन्हें आदम का पुल कहा जाता है।
- माउण्ट पिदुरूतालागाला श्रीलंका की सर्वोच्च चोटी है।
- महावेली गंगा, श्रीलंका की सबसे लम्बी नदी है।
- चीन और भारत के बीच नेपाल एक प्रतिरोधी राज्य के रूप में स्थित है।
- नेपाल एक स्थलीय अवरुद्ध देश है। इसका विदेशी व्यापार कोलकाता पत्तन से होता है।
- भूटान एक स्थल अवरुद्ध देश है, जिसे सर्पराज का देश कहा जाता है। यहाँ का राष्ट्रीय चिन्ह अजगर है। भूटान का सर्वोच्च शिखर कुलकंगरी (8,200 मीटर) महान हिमालय में स्थित है।
- म्यांमार की नई राजधानी नाएप्यीडॉ है। माउण्ट हकाका यहाँ की सर्वोच्च चोटी है। सालवीन नदी के पूर्व में सुनहरा त्रिभुज है, जो अफीम की खेती के लिए प्रसिद्ध है।
- एशिया में सर्वाधिक रबड़ का उत्पादन थाईलैण्ड में होता है।
- मलेशिया एशिया का सर्वाधिक टिन उत्पादक देश है।
- चावल का सर्वाधिक उत्पादक देश चीन है तथा भारत चाय का सर्वाधिक उत्पादक देश है।
- जकोट त्रिभुज एक बड़ी औद्योगिक शक्ति के रूप में उभरा है। शंघाई को चीन का मैनचेस्टर कहा जाता है।
- जापान में वसन्त के अन्त या ग्रीष्म के प्रारम्भ में ध्रुवीय सागरीय वायुराशियों से मध्य तथा दक्षिणी भाग में भारी वर्षा होती है, जिसे बाइ-यू या प्लम वर्षा कहते हैं।
- कागोन एक उष्ण कटिबंधीय घास है, जो फिलीपीन्स में उगती है।
- तुर्की के यूरोपीय और एशियाई भाग के मध्य दार्देनेलीज और बासपोरस जलडमरूमध्य है। प्लीफेन्ट माउण्टेन कंबोडिया में स्थित है।
- बेरिंग जलसन्धि अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा के समानान्तर स्थित है।
- बहरीन और कतर के बीच होर्मुज जलसन्धि है।
- इण्डोनेशिया की राजधानी जकार्ता जावा द्वीप पर स्थित है।
- मकासार जलसन्धि जावा और सेलीबीज को अलग करती है।
- जापान में टोक्यो-याकोहामा नगर क्वाण्टो के मैदान में बसे हुए हैं।
अफ्रीका
अफ्रीका विश्व का दूसरा बड़ा महाद्वीप है। इस महाद्वीप से भूमध्य रेखा, कर्क रेखा और मकर रेखा तीनों गुजरते हैं। इसके उत्तर में भूमध्य सागर, उत्तर-पूर्व में लाल सागर, पश्चिम एवं दक्षिण-पश्चिम में अटलांटिक महासागर एवं पूर्व में हिन्द महासागर है।
- इसका 2/3 भाग उत्तरी गोलार्द्ध में तथा 1/3 भाग ही दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित है।
- सर्वोच्च बिंदु : माउण्ट किलिमंजारो (5,895 मीटर)
- न्यूनतम बिंदु : आस्सल झील (समुद्र तल से 156 मीटर नीचे)
- सबसे गर्म स्थान (विश्व का) : अल-अजीजिया (लीबिया) (58°C)
- सबसे लम्बी नदी : नील (6,650 किमी)
- सबसे बड़ी झील : विक्टोरिया (नील नदी का उद्गम)
- विश्व का सबसे बड़ा मरुस्थल : सहारा
- विशेष भौतिक लक्षण : महान भू-भ्रंश घाटी
- विश्व प्रसिद्ध पिरामिड एवं स्फिंक्स : मिड्ड
- अफ्रीका को विश्व का काला महादेश व पठारों का महाद्वीप कहा जाता है।
- उत्तर-पश्चिम अफ्रीका में एटलस पर्वत (सर्वोच्च शिखर मोरक्को तुबाकल 4,166 मीटर) तथा दक्षिण अफ्रीका में ड्रेकम्स्बर्ग (3,000 मीटर) है।
- यहाँ सर्वोच्च ज्वालामुखी शिखर किलिमन्जारो है।
- मिड्ड में नील नदी पर आस्वान बाँध, मोजाम्बिक में कबोरा बस्सा बाँध, जायरे (कांगो) नदी पर इनगा बाँध, घाना में अकासोम्बो बाँध, नाइजीरिया में कन्जी बाँध तथा जोस बाँध महत्त्वपूर्ण हैं, जहाँ विद्युत उत्पादन होता है।
- सहारा मरुस्थल में तिबिस्ती पठार, अहागर और एयर पर्वत महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ हैं। अफ्रीका स्वेज जलसन्धि द्वारा एशिया से जुड़ा हुआ है।
- अफ्रीका के उष्ण घास के मैदान सवाना और शीतोष्ण घास के मैदान वेल्डस कहलाते हैं।
- विश्व में कोको का सर्वाधिक उत्पादन आइवरी कोस्ट में होता है।
- जाम्बेजी नदी पर बने करीबा बाँध से सर्वाधिक जल विद्युत पैदा होती है।
- विट्सवार्टसरेंड (दक्षिण अफ्रीका) विश्व का प्रमुख स्वर्ण उत्पादक देश है।
- द. अफ्रीका स्थित किम्बरले खदान विश्व की सबसे बड़ी हीरे की खान है।
- मानव (होमोसेपिएन्स) की उत्पत्ति स्थल अफ्रीका महाद्वीप को माना जाता है।
- अफ्रीका में जैतून का सर्वाधिक उत्पादन ट्यूनीशिया, कसावा का सर्वाधिक उत्पादन जायरे (कांगो), ज्वार का सर्वाधिक उत्पादन नाइजीरिया, चाय का सर्वाधिक उत्पादन केन्या में होता है।
- कालाहारी क्षेत्र में बुशमैन, कांगो क्षेत्र में पिग्मी एवं सहारा क्षेत्र में बद्दू जनजातियाँ पाई जाती हैं। मिड्ड के किसान को फैल्लाह कहते हैं।
- अफ्रीका का हार्न में सम्मिलित देश हैं- इथिओपिया, जिबूती, इरीट्रिया एवं सोमालिया। अफ्रीका महाद्वीप के स्थल अवरुद्ध देश हैं- द- सूडान, माली, नाइजर, चाड, यूगांडा जाम्बिया, मलावी, बोत्सवाना।
- नाइजर नदी को पाम तेल की नदी कहा जाता है।
- मोरक्को, ट्यूनीशिया तथा अलजीरिया के उत्तरी भाग को बराबरी स्टेट्स कहा जाता है। अफ्रीका में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश नाइजीरिया है।
- क्षेत्रफल की दृष्टि से अल्जीरिया अफ्रीका का सबसे बड़ा देश है एवं सेशेल्स सबसे छोटा देश है।
- टुर्काना, एल्बर्ट, टांगानिका और न्यासा झीलें, अफ्रीका के भूमध्य रेखीय झील तंत्र में सम्मिलित झीलें हैं।
- अफ्रीका में पाए जाने वाले प्रमुख पशु-पक्षी हैं- अदवर्क, सक्रेटी, जेबरा, जिराफ, शतुर्मुर्ग, गोरिल्ला, चिंपाजी आदि।
- अफ्रीका में पाई जाने वाली एस्पार्टो घास से कागज का उत्पादन होता है।
- दक्षिण अफ्रीका का सबसे दक्षिणी छोर आशा अंतरीप कहलाता है।
- नाइजीरिया को तेल ताड़ का देश कहा जाता है।
- दक्षिण अफ्रीका विश्व का प्रमुख ऊन उत्पादक देश है।
- विश्व में लौंग का सर्वाधिक उत्पादन पेम्बाद्वीप एवं जंजीबार में होता है।
- स्वेज नहर के भूमध्य सागरीय तट पर पोर्ट सईद बन्दरगाह तथा लाल सागरीय तट पर स्वेज बन्दरगाह है।
- अफ्रीका में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा स्वाहिली है।
यूरोप
- क्षेत्रफल की दृष्टि से यूरोप का विश्व में छठा स्थान है। यह एक सघन जनसंख्या वाला विकसित महाद्वीप है।
- यूरोप के उत्तर में बैरन्ट सागर, दक्षिण में भूमध्य सागर, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, पूर्व में यूराल, काकेशस पर्वत तथा कैस्पियन सागर, इसे एशिया से अलग करते हैं।
- सर्वोच्च बिंदु : माउंट एल्ब्रश (5,642 मीटर)
- निम्नतम बिंदु : कैस्पियन सागर (-28 मीटर)
- सबसे लम्बी नदी : डेन्यूब (2,842 किमी)
- विश्व का सबसे उत्तर में स्थित शहर : हैमरफास्ट (नार्वे)
- सबसे महत्वपूर्ण रेलमार्ग : ओरिएंट रेलवे (पेरिस से कुस्तुन्तनिया)
- फियोर्ड तटों का देश : नार्वे।
- सबसे प्रमुख भौगोलिक लक्षण : अल्पाइन पर्वत तंत्र।
- बाल्टिक देश : एस्टोनिया, लिथुआनिया एवं लटाविया।
- बाल्कन राज्य : बुल्गारिया, सार्बिया एवं माण्टेंनेग्रो, रूमानिया, अल्बानिया और ग्रीस।
- स्केण्डिनेविया : नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क, आइसलैण्ड।
- आइबेरिया : स्पेन एवं पुर्तगाल।
- स्थल अवरुद्ध देश : हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया, आस्ट्रिया, स्विट्जरलैण्ड तथा वेटिकन सिटी।
- यहाँ स्थित वोल्गा एवं यूराल नदियाँ कैस्पियन सागर में गिरती हैं।
- पो नदी को इटली की गंगा कहा जाता है।
- डेन्यूब नदी यूरोप के चार शहर बुखारेस्ट, बेलग्रेड, बुडापेस्ट एवं वियना से होकर काला सागर में गिरती है।
- अत्यन्त उपजाऊ लम्बार्डी का मैदान इटली के उत्तरी भाग में है।
- नीदरलैण्ड में समुद्रों के किनारे की भूमि को सुखाकर कृषि योग्य भूमि बना लिया गया है, जिसे पोल्डर भूमि कहा जाता है।
- आल्पस पर्वत का सर्वाधिक विस्तार स्विट्जरलैण्ड देश में है।
- आइसलैण्ड भूतापीय ऊर्जा शक्ति का प्रमुख केन्द्र है।
- हंगरी में यूरोप के शीतोष्ण घास के मैदान को पुस्टाज तथा यूक्रेन में स्टेपी कहा जाता है। हंगरी को गेहूँ का स्टोर हाउस कहा जाता है।
- यूरोप में विश्व का 60% चुकन्दर पैदा होता है।
- ‘तूरिन’ को इटली का डेट्राइट तथा ‘मिलानो’ को इटली का मैनचेस्टर कहते हैं। डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन को बाल्टिक सागर की कुँजी कहा जाता है।
- फ्रांस, यूरोप का दूसरा बड़ा लोहा उत्पादक क्षेत्र है, जहाँ की लारेन लोहे की खान विश्व प्रसिद्ध है।
- यूक्रेन का डोनेत्सक मुख्य कोयला उत्पादक क्षेत्र है। यूराल क्षेत्र का चिलियाविंस्क भी मुख्य लोहा उत्पादक केन्द्र है।
- इंग्लैण्ड में लंकाशायर सूती वस्त्र उत्पादन का सबसे बड़ा क्षेत्र है।
- पोलैण्ड का जर्मनी के बीच की रेखा को हिण्डरबर्ग या ओडरनिसे रेखा कहते हैं। फ्रांस और जर्मनी के मध्य रेखा को मैगिनेट रेखा कहते हैं।
- मेसेटा पठार स्पेन तथा पुर्तगाल में स्थित है।
- सेन्ट जार्ज चैनल आयरलैण्ड व ग्रेट ब्रिटेन के बीच स्थित है।
- उत्तरी सागर में विश्व प्रसिद्ध मछली पकड़ने का केन्द्र डागर बैंक स्थित है।
- एंटवर्प (बेल्जियम) विश्व का सबसे बड़ा हीरा व्यापार केन्द्र है।
- पिरेनीज पर्वत फ्रांस को स्पेन से अलग करते हैं।
- जर्मनी का रूर क्षेत्र यूरोप में कोयला उत्पादन में अग्रणी क्षेत्र है।
- फ्रांस के औद्योगिक क्षेत्रों में टुलूज विमान उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।
- फ्रांस किसानों का देश है, जो खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर है।
- डेनमार्क विश्व में डेयरी उत्पादन का सबसे बड़ा देश है।
- विश्व का सबसे लम्बा भूमिगत रेलमार्ग पेरिस एवं लंदन को जोड़ता है।
- वेनिस को एड्रियाटिक की रानी कहा जाता है।
- स्विट्जरलैण्ड को यूरोप के खेल का मैदान कहा जाता है।
- आयरिश गणराज्य को एमराल्ड द्वीप कहा जाता है।
- रोम को शाश्वत नगर कहा जाता है।
ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया विश्व का सबसे छोटा तथा सबसे कम जनसंख्या वाला महाद्वीप है। यह पूर्णतः दक्षिणी एवं पूर्वी गोलार्द्ध में स्थित है।
- सर्वोच्च बिंदु : माउंट कोशियुस्को (2228 मीटर)
- निम्नतम बिंदु : आयर झील
- प्रमुख नदी बेसिन : मर्रे-डार्लिंग
- सबसे बड़ा नगर : सिडनी
- सबसे बड़ा बन्दरगाह : सिडनी
- प्रमुख भौगोलिक लक्षण : ग्रेट बैरियर रीफ
- सबसे गर्म स्थान : क्लोन कंट्री
- सबसे लम्बा रेलमार्ग : ट्रांस आस्ट्रेलियन रेलमार्ग (सिडनी से पर्थ)
- ऑस्ट्रेलिया के चारों ओर प्रशांत महासागर, हिन्द महासागर, अराफुरा सागर, कोरल सागर, टस्मान सागर तथा तिमोर सागर स्थित है।
- ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व आसपास के द्वीपों को ओशेनिया कहा जाता है।
- ऑस्ट्रेलिया को प्यासी भूमि कहा जाता है, यहाँ नाममात्र वर्षा होती है।
- ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी अबोजीनल तथा न्यूजीलैंड के मूल निवासी माओरी कहलाते हैं।
- ऑस्ट्रेलिया की आयर झील बेसिन में पाताल तोड़ कुएँ मिलते हैं। इन कूपों का विस्तृत क्षेत्र ग्रेट आर्टेसियन बेसिन कहलाता है।
- पश्चिमी पठार में कालगुर्ली एवं कूलगार्डी में सोने की खदानें पाई जाती हैं।
- पूर्वी उच्च भूमि ऊँचे पठारों और पहाडि़यों की पट्टी है, जिसे ग्रेट डिवाडिंग रेंज कहते हैं।
- ऑस्ट्रेलिया विश्व का सर्वाधिक बॉक्साइट एवं सीसा उत्पादक राष्ट्र है।
- यह विश्व का सर्वाधिक मेरिनो ऊन उत्पादक देश है। सिडनी को वुलपोर्ट कहते हैं, क्योंकि यह विश्व का सबसे बड़ा ऊन का निर्यातक बन्दरगाह है। इस महाद्वीप में कुछ पशु-पक्षी ऐसे हैं, जो अन्य महाद्वीपों पर नहीं हैं, जैसे- कंगारू, कोआला, वलाबीज, प्लेटिपस (स्तनपायी), कुकाबर्रा आदि।
- ऑस्ट्रेलिया में शीतोष्ण घास के मैदान को डाउन्स कहते हैं।
- न्यूसाउथ वेल्स की हण्टरघाटी को ऑस्ट्रेलिया का रूर कहा जाता है।
- वर्षा की कमी के कारण यहाँ केवल 4% भूमि पर ही कृषि होती है।
- ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख लौह क्षेत्र पिलवारा एवं आयरननाब है।
- ऑस्ट्रेलिया और न्यूगिनी के बीच टारेस जलसन्धि तथा ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया द्वीप के मध्य बाँस जलसन्धि है।
अंटार्कटिका
अंटार्कटिका विश्व का पाँचवाँ बड़ा एवं सर्वाधिक ठंडा महाद्वीप है, जहाँ पूरी तरह से बर्फ की परत जमी रहती है, जिसके कारण इसे श्वेत महाद्वीप कहते हैं। इसे विश्व का सबसे ठंडा मरुस्थल भी कहते हैं। यह एक ऐसा महाद्वीप है, जहाँ कोई भी व्यक्ति स्थायी रूप से नहीं रहता है।
- सर्वोच्च बिंदु : विन्सन मौसिफ
- एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी : माउंट इरेबस
- विश्व का सबसे ठंडा स्थानµ दक्षिणी ध्रुव (दृ95°ब्)
- विश्व का सबसे बड़ा ग्लेशियर लैम्बर्ट यहीं स्थित है।
- क्वीन माड पर्वत श्रेणी अंटार्कटिका को दो भागों में बाँटती है।
- यहाँ 22 मार्च से 23 सितम्बर तक अन्धकार तथा 24 सितम्बर से 21 मार्च तक सूर्य कभी अस्त नहीं होता है।
- द. गंगोत्री, मैत्री व भारती अंटार्कटिका में स्थित भारत के शोध संस्थान हैं।
- अंटार्कटिका जाने वाले प्रथम भारतीय रामचरण जी थे।
- यहाँ पाए जाने वाले पक्षी हैं- पेंगुइन, अल्बाटरोस एवं पेटरल।
- अराकट पाल्मर ही एक ऐसा क्षेत्र है, जो बर्फ से मुक्त है।
- इस महाद्वीप को विज्ञान के लिए समर्पित महाद्वीप भी कहा जाता है।
- रॉस सागर अंटार्कटिका महाद्वीप पर स्थित है।
- अंटार्कटिका महाद्वीप को गतिशील महाद्वीप की भी संज्ञा दी गई है।
- अंटार्कटिका सन्धि 1991 के अंतर्गत अंटार्कटिका महाद्वीप को केवल शांति उद्देश्य से इस्तेमाल किया जा सकता है।
- राष्ट्रीय अंटार्कटिका अध्ययन केन्द्र गोवा (भारत) में स्थित है।
उत्तरी अमेरिका
- उत्तरी अमेरिका विश्व का तीसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है। इसे नई दुनिया भी कहा जाता है।
- इसके उत्तर में आर्कटिक महासागर, पूर्व में अटलांटिक महासागर, पश्चिम व दक्षिण में प्रशांत महासागर और दक्षिणी में दक्षिणी अमेरिका स्थित है।
- सर्वोच्च बिन्दु : माउंट मैककिनले (6,194 मीटर)
- निम्नतम बिन्दु : मृत्यु की घाटी (-85.9 मीटर)
- सबसे बड़ा देश (क्षेत्रफल) : कनाडा
- ताजा पानी की विश्व की सबसे बड़ी झील : सुपीरियर
- महान झीलों का महाद्वीप : सुपीरियर, मिशिगन, ह्यूरन, ईरी, ऑन्टेरियो
- सबसे गर्म तथा शुष्क स्थान : मौत की घाटी (57°C) यलोस्टोन नेशनल पार्क में ओल्ड फैथफुल नामक विश्व का सबसे बड़ा गीजर
- विश्व का सबसे बड़ा बन्दरगाह : न्यूयार्क
- विश्व का व्यस्ततम हवाई अड्डा : न्यूयार्क (केनेडी हवाई अड्डा)
- विश्व का सबसे बड़ा रेलवे जंक्शन : शिकागो (सं.रा.अ.)
- विश्व प्रसिद्ध फिल्म उद्योग : हॉलीवुड (लास एंजेल्स)
- इस महाद्वीप के दक्षिणी भाग में अनेक द्वीप कैरेबियन सागर में स्थित हैं, जिन्हें पश्चिमी द्वीप समूह कहते हैं।
- इस महाद्वीप में विश्व का सबसे बड़ा द्वीप ग्रीनलैण्ड भी स्थित है, यह राजनैतिक रूप से डेनमार्क के अधिकार में है।
- ईरी और ओंटेरियो झीलों के मध्य विश्व प्रसिद्ध नियाग्रा प्रपात स्थित है।
- पश्चिमी कार्डिलेरा का सर्वोच्च पर्वत शिखर माउण्ट मैकिन्ले है, जो अलास्का में स्थित है। यह सक्रिय ज्वालामुखी पर्वत है।
- सेंट लॉरेन्स नदी महान झील क्षेत्र से निकलकर अटलांटिक महासागर में गिरती है। यह उत्तरी अमेरिका का सर्वाधिक व्यस्त अन्तःस्थलीय जलमार्ग है।
- ग्रेट बेसिन पठार, इस महाद्वीप का सबसे बड़ा अंतर-पर्वतीय पठार है।
- इसका प्रमुख रेगिस्तान सोनोस है, जो एरीजोना, कैलिफोर्निया एवं मैक्सिको में फैला हुआ है। यहाँ की नदियाँ समुद्र तक नहीं पहुँच पाती हैं।
- रेड इंडियन, इन्यूइट, अलूटस, एस्किमों उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी हैं।
- एस्किमों सर्दी के मौसम में बर्फ के घर इग्लू बनाकर रहते हैं। ये रेंडियर कुत्ते से स्लेज गाड़ी खींचते हैं। इनका हथियार हारपून कहलाता है।
- इस महाद्वीप की सर्वप्रमुख फसल गेहूँ है। प्रेयरी का मैदान गेहूँ का प्रमुख उत्पादन क्षेत्र तथा विनिपेग गेहूँ की विश्व प्रसिद्ध मंडी है।
- मक्का का सर्वाधिक उत्पादन इसी महाद्वीप में होता है। सेंट लुइस विश्व की सबसे बड़ी मक्का की मंडी है।
- मिसीसिपी द्रोणी का दक्षिण भाग कपास की पेटी के नाम से प्रसिद्ध है।
- क्यूबा को चीनी का कटोरा कहा जाता है। इस देश में स्थित हवाई द्वीप में गन्ने का प्रति हेक्टेयर उत्पादन सर्वाधिक है।
- केला उत्पादन के लिए जमैका विश्व प्रसिद्ध है।
- सूरजमुखी के उत्पादन में यूएसए का प्रथम स्थान है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के टुण्ड्रा प्रदेश के शंकुधारी वनों को टैगा कहते हैं।
- महाद्वीप शेल्फ पर स्थित ग्रान्ड बैंक, जार्ज बैंक, न्यू इंग्लैंड तथा न्यू फाउण्डलैंड प्रमुख मत्स्य उत्पादन क्षेत्र हैं।
- सं.रा. अमेरिका का डेट्राइट शहर मोटर गाडि़याँ बनाने का प्रमुख केन्द्र है।
- कनाडियन शील्ड विश्व में खनिजों का सबसे बड़ा भंडार है।
- कनाडा के वनों में लकड़ी काटने वाले लोगों को लम्बरजैक कहते हैं।
- यह विश्व में यूरेनियम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक तथा प्रथम निर्यातक राष्ट्र है। इसकी सडबरी खान निकेल के निक्षेप में विश्व में सबसे बड़ी है।
- ब्रिटिश कोलंबिया (कनाडा) की सुलीवान खान का विश्व में पहला स्थान है।
- मांट्रियल कागज उत्पादन का प्रमुख केन्द्र है।
- ‘एलिजाबेथ’ कनाडा एवं ग्रीनलैंड के बीच स्थित एक द्वीप है, जिस पर पृथ्वी का उत्तरी चुम्बकीय ध्रुव स्थित है।
- यूएसए की मेसाबी व वर्मिलन प्रमुख लौह खानें हैं, जो सुपीरियर झील में हैं।
- सुपीरियर झील पर स्थित डुलुथ इस्पात का प्रमुख केन्द्र है।
- पीडमाण्ट और तटीय भाग में झरनों की पंक्ति को प्रपात रेखा कहते हैं।
- यूएसए के डेनेवर को मील ऊँचा नगर के नाम से जाना जाता है।
- विश्व का सबसे बड़ा अजायबघर ‘अमेरिकन म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री’, न्यूयार्क में स्थित है। न्यूयार्क को नगरों का नगर भी कहा जाता है।
- केप केनवेरल संयुक्त राज्य अमेरिका का भू-उपग्रह प्रक्षेपण केन्द्र है।
- डच हार्बर नौसैनिक स्टेशन है, जहाँ 1942 में जापान ने हमला किया था।
- यूएसए की रेड नदी घाटी को विश्व की रोटी का टोकरी की संज्ञा दी गई है। विश्व का सबसे बड़ा सिंथेटिक रबड़ टायर बनाने का प्रमुख केन्द्र एक्रान (यूएसए) है। सेन फ्रांसिस्को में सिलिकन वैली स्थित है।
दक्षिणी अमेरिका
- दक्षिणी अमेरिका संसार का चौथा बड़ा महाद्वीप है, जिसका अधिकांश भाग दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित है। पनामा नहर इसे उत्तरी अमेरिका से तथा दक्षिण में ड्रेक पैसेज इसे अंटार्कटिका महाद्वीप से अलग करता है।
- द. अमेरिका में ईस्टर द्वीप, फाकलैंड, गालापागोस एवं टेयार्रा डेल फ्रयूगो द्वीप शामिल हैं।
- सर्वोच्च बिंदु : माउंट एकांकागुआ (6,960 मीटर)
- निम्नतम बिंदु : वाल्डेस प्रायद्वीप (-39.9 मीटर)
- प्रमुख भौगोलिक लक्षण : एण्डीज पर्वतमाला जो विश्व की सबसे लम्बी तथा हिमालय के बाद दूसरी सबसे ऊँची पर्वतमाला है।
- विश्व का सर्वोच्च सक्रिय ज्वालामुखी : कोटोपेक्सी (एण्डीज पर)।
- विश्व की सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित राजधानी : लापाज (बोलीविया)। बोलीविया की संवैधानिक राजधानी ‘सोके’ है।
- स्थल अवरुद्ध देश : बोलीविया, पराग्वे
- शुष्कतम क्षेत्र : एरिका (उ. चिली)
- सबसे बड़ा नगर : रियो डि जिनेरियो (ब्राजील)
- विश्व का सर्वोच्च जल प्रपात : एंजेल्स (वेनेजुएला)
- इस महाद्वीप के उत्तर में कैरीबियन सागर, उत्तर पूर्व में उत्तरी अटलांटिक महासागर, दक्षिण व द.-पू. में दक्षिणी अटलांटिक महासागर तथा पि”चम में प्रशांत महासागर है। इसका सबसे दक्षिणी सिरा हार्न अन्तरीप है।
- चिली, पेरू, बोलीविया, इक्वेडोर व कोलंबिया को इंडियन देश कहा जाता है। रेड इण्डियन दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासी थे।
- यहाँ पर मेस्टिजो प्रजाति का विकास रेड इण्डियन तथा यूरोपियन्स से, मुलाटो प्रजाति का विकास नीग्रो व यूरोपियन्स से तथा जैम्बो प्रजाति का विकास अश्वेत व इण्डियन के मिश्रण से हुआ है।
- अर्जेन्टीना के पूर्व में शीतोष्ण घास के मैदान पम्पास कहलाता है। यह पजाऊ घास भूमियों में से एक है व गेहूँ के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। इसके उत्तरी भाग में ग्रानचाको की निम्न भूमि है, जिसका मुख्य वृक्ष क्वेब्रेको है। इसकी छाल का उपयोग चमड़ा उद्योग में किया जाता है।
- अर्जेन्टीना का चैको का मैदान कपास उत्पादन का सुप्रसिद्ध क्षेत्र है।
- अमेजन नदी बेसिन में विषुवतीय वर्षा वन को सेल्वास कहा जाता है।
- लानोस उष्ण कटिबंधीय घास के मैदान हैं, जो ओरीनिको नदी द्रोणी एवं गायना उच्च भूमि में पाए जाते हैं।
- कैंपोस भी उष्ण कटिबंधीय घास के मैदान हैं, जो सेल्वास के दक्षिण में ब्राजील के मध्यवर्ती भाग में स्थित हैं।
- वाल्सा विश्व की सबसे हल्की लकड़ी है, इसका उपयोग नाव में होता है।
- अटाकामा एवं पैंटागोनिया दो प्रमुख मरुस्थल हैं।
- अपवाह की दृष्टि से अमेजन नदी संसार की सबसे बड़ी नदी है।
- पराना, पराग्वे, उरूग्वे और सहायक नदियों के तंत्र को प्लाआ कहते हैं।
- ब्राजील, कोलम्बिया, इक्वेडोर विश्व में कहवा उत्पादन के सबसे बडे़ देश हैं।
- यहाँ की लाल मिट्टी (टेरारोसा) कहवा की खेती के लिए सर्वोत्तम है।
- ब्राजील कहवे का सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट्र है। इसे कहवे का घर कहा जाता है। कहवे के विशाल बागों को फजेण्डा कहते हैं।
- साओपालो संसार की सबसे बड़ी कहवा की मण्डी है।
- ब्राजील का सैंटास बन्दरगाह विश्व का कहवा पत्तन कहलाता है।
- ब्राजील का इटाबिरा पर्वत लौह अयस्क उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
- नाइट्रेट व ताँबा का सबसे बड़ा उत्पादक देश चिली है। चिली का चुक्कीकमाटा ताँबा खनन क्षेत्र संसार में प्रसिद्ध है।
- वेनेजुएला का मरैकेबो झील प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र है।
- टिन उत्पादन में बोलीविया का विश्व में चौथा स्थान है।
- अटाकामा मरुस्थल में नाइट्रेट के विशाल भंडार पाए जाते हैं।
- चिली का एंटीफगास्टा बन्दरगाह विश्व में ताँबा पत्तन के रूप में विख्यात है।
- दक्षिणी अमेरिका को पक्षियों का महाद्वीप कहा जाता है।
- यहाँ का ग्वानों खाद (पक्षियों का बीट) पोजक तत्व की दृष्टि से सर्वोत्तम है। यह पेरू के तट के पास गुआनों द्वीप में मिलता है।
- यहाँ पर रीया, केंडोर, एनाकोंडा, प्यूमा, आर्मेडिलो, लामा जन्तु पाए जाते हैं।
- गेहूँ की चन्द्राकार पेटी अर्जेंटीना में स्थित है।
- उरूग्वे दक्षिणी अमेरिका का सर्वाधिक नगरीकृत देश है।
विश्व आर्थिकी
प्रमुख फसलें, फल एवं उनके उत्पादक राष्ट्र
फसल प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ भारत
- गेहूँ चीन भारत रूस यूएसए दूसरा
- धान चीन भारत इंडोनेशिया बांग्लादेश दूसरा
- गन्ना ब्राजील भारत चीन थाईलैंड दूसरा
- कपास चीन भारत यूएसए पाकिस्तान दूसरा
- केला भारत चीन फिलीपींस इक्वेडोर पहला
- नारियल इंडोनेशिया फिलीपींस भारत ब्राजील तीसरा
- तम्बाकू चीन भारत ब्राजील यूएसए दूसरा
- प्राकृतिक रबर थाईलैंड इंडोनेशिया मलेशिया भारत चौथा
- आलू चीन भारत यूएसए रूस दूसरा
- प्याज चीन भारत यूएसए पाकिस्तान दूसरा
- जूट भारत बांग्लादेश चीन म्यांमार पहला
- दलहन भारत मोजाम्बिक पाकिस्तान वियतनाम पहला
- जौ फ्रांस ऑस्ट्रेलिया रूस यूक्रेन –
- ज्वार नाइजीरिया भारत अमेरिका सूडान दूसरा
- सोयाबीन अमेरिका ब्राजील अर्जेंटीना चीन पाँचवाँ
- मूँगफली चीन भारत नाइजीरिया अमेरिका दूसरा
- रेपसीड कनाडा चीन भारत जर्मनी तीसरा
- सूरजमुखी यूक्रेन रूस अर्जेंटीना रोमानिया –
- सेब चीन अमेरिका भारत तुर्की तीसरा
- मसाले भारत बांग्लादेश तुर्की चीन पहला
- अंगूर चीन इटली अमेरिका फ्रांस 12वाँ
- संतरा ब्राजील अमेरिका चीन भारत चौथा
पौधों के उत्पत्ति स्थल
स्थल पौधा स्थल पौधा
- उ. अमेरिका मक्का, सोयाबीन, सूरजमुखी यूरोप राई, जई
- द. अमेरिका मूँगफली, आलू, शकरकन्द, तम्बाकू चीन चाय, जौ
- द.-पू. एशिया गन्ना, चावल, केला
विश्व के प्रमुख खनिज संसाधन
खनिज प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ
- कोयला चीन यूएसए भारत ऑस्ट्रेलिया
- लौह अयस्क चीन ऑस्ट्रेलिया ब्राजील भारत
- ताँबा चिली पेरू चीन यूएसए
- सोना चीन ऑस्ट्रेलिया यूएसए रूस
- चाँदी मैक्सिको पेरू चीन ऑस्ट्रेलिया
- एल्यूमीनियम चीन रूस कनाडा ऑस्ट्रेलिया
- टिन चीन इंडोनेशिया पेरू बोलीविया
- यूरेनियम कजाख्स्तान कनाडा ऑस्ट्रेलिया नामीबिया
- मैंगनीज चीन ऑस्ट्रेलिया द- अफ्रीका गैबन
- एण्टीमनी चीन बोलीविया तजाकिस्तान –
- राक फास्फेट चीन मोरक्को यू-एस-ए- –
- सीमेण्ट चीन भारत यू-एस-ए- –
- कोबाल्ट कांगो चीन जाम्बिया –
- पेल्स्पार तुर्की इटली चीन –
- ग्रेफाइट चीन भारत ब्राजील –
- जिप्सम चीन ईरान स्पेन –
- प्लेटीनम द- अफ्रीका रूस कनाडा –
- टंगस्टन चीन रूस बोलीविया –
- टाइटेनियम कनाडा ऑस्ट्रेलिया द- अफ्रीका –
- हीरा रूस कांगो ऑस्ट्रेलिया –
- प्राकृतिक गैस यूएसए रूस कनाडा –
- खनिज तेल सउदी अरब रूस यूएसए –
खनिज उत्पादन के क्षेत्र
- कोयला : अप्लेशियन क्षेत्र, मिसौरी, टेक्सास (यूएसए) टुला-मास्को, कुजबास (कुजनेत्सक) (रूस), डोनेट्स या डोनाबास क्षेत्र (यूक्रेन), शान्सी-शेन्सी, मंचूरिया (चीन), रूर घाटी (जर्मनी)।
- लौह अयस्क : शान्तुंग, शान्सी (चीन), सुपीरियर झील प्रदेश (यूएसए), पिलबारा क्षेत्र (ऑस्ट्रेलिया), क्रिवॉय राग (यूक्रेन)।
- मैंगनीज : अंशान-चांगलिग (चीन), माओड खान (गैबौन), यूक्रेन, जार्जिया आदि
- ताँबा : क्यूरीकमाटा क्षेत्र (चिली), कटंगा क्षेत्र (जायरे/कांगी), ओंटारिया का सैडबरी जिला (कनाडा)।
- बॉक्साइट : केपयार्ड प्रायद्वीप (आस्ट्रेलिया), कोला प्रायद्वीप (रूस)। विश्व में बॉक्साइट का सर्वाधिक संचित भंडार ऑस्ट्रेलिया में है।
- सोना : विटवाट्सर्रैंड (द. अफ्रीका), कालगूर्ली व कूलगार्डी (आस्ट्रेलिया)।
- टिन : हुनान (चीन), पेंनाग, सेलागोंर (मलेशिया), यूकेट (थाइलैंड)।
- चाँदी : चिहुआहुआ (मैक्सिको), ट्राँसवाल व नेटाल (दक्षिण अफ्रीका), पोर्टसी (बोलीविया)।
- हीरा : किम्बरले (दक्षिण अफ्रीका), कंटगा पठार (कांगो), पन्ना व गोलकुंडा की खानें (भारत)। हीरा उत्पादन में अफ्रीका महाद्वीप का एकाधिकार है।
- पेट्रोलियम : अप्लेशियन क्षेत्र (यूएसए) अम्मान, धावर व आइनेदार (सऊदी अरब) लाली, करमशाह (ईरान), बुरघान पहाड़ी (कुवैत), किरकुक, बसरा (ईराक)।
- यूरेनियम : कोलोरैडो का पठार (यूएसए), कटंगा पठार (कांगो), अथाबस्का झील (यूरेनियम सिटी), ग्रेट बियर झील (पोर्टरेडियम) (कनाडा)।
- अभ्रक : भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका एवं सं.रा. अमेरिका अभ्रक के उत्पादक देश हैं। भारत अभ्रक का सबसे बड़ा उत्पादक व इसके संचित भंडार एवं निर्यात की दृष्टि से भी विश्व में प्रथम स्थान रखता है।
विश्व के प्रमुख औद्योगिक नगर
नगर देश उद्योग
- नगोया (जापान का डेट्राइट) जापान सूती वस्त्र, जलयान-निर्माण
- ओसाका (जापान का मानचेस्टर) जापान वस्त्र उद्योग
- बाकू अजरबेजान तेलशोधन
- वियना ऑस्ट्रिया काँच
- बैंकाक थाइलैंड जलयान-निर्माण
- ग्लास्गो स्कॉटलैंड जलयान-निर्माण
- कीव यूक्रेन इंजीनियरिंग
- क्रिवाइरॉग यूक्रेन लौह-इस्पात
- राटरडम नीदरलैंड जलपोत निर्माण
- ज्यूरिख स्विट्जरलैंड इंजीनियरिंग
- कावासाकी जापान लोहा-इस्पात
- वेलिंगटन न्यूजीलैंड डेयरी
- मैनचेस्टर सिटी ग्रेट ब्रिटेन सूती वस्त्र
- एम्सटर्डम नीदरलैंड हीरा पॉलिश
- तूरीन (इटली का डेट्रायट) इटली मोटरकार
- शिकागो यूएसए लोहा इस्पात एवं माँस
- डेट्रायट यूएसए मोटरकार
- चेलियाबिंस्क रूस लोहा इस्पात
- लेनिनग्राद रूस जलयान निर्माण
- टूला रूस लोहा इस्पात
- ड्रेस्डन जर्मनी ऑप्टिकल्स फोटो
- म्यूनिख जर्मनी लेन्स निर्माण
- डॉर्टमंड जर्मनी लोहा-इस्पात, रसायन
- ह्यूस्टन यूएसए तेल व प्राकृतिक गैस
- सिएटल यूएसए वायुयान
- लॉस एन्जिल्स यूएसए फिल्म एवं तेल शोधक
- कन्सास यूएसए डिब्बा बंद माँस
- फिलाडेल्फिया यूएसए लोकोमोटिव
- वेनिस इटली काँच
- साओपोलो ब्राजील कॉफी
- मुल्तान पाकिस्तान मिट्टी के बर्तन
- क्यूबेक कनाडा जलपोत निर्माण
- टुलुज़ फ्रांस लड़ाकू विमान
- लियॉन फ्रांस रेशमी वस्त्र
- हेमिल्टन कनाडा लौह इस्पात
- बर्मिंघम ग्रेट ब्रिटेन लोहा-इस्पात
- शेफील्ड ब्रिटेन कटलरी
- पिट्सबर्ग यूएसए लोहा-इस्पात
- सेंटियागो चिली शराब उद्योग
- एन्टवर्प बेल्जियम हीरा उद्योग
- स्टॉकहोम स्वीडन जलपोत निर्माण
स्थल अवरुद्ध देश
स्थल अवरुद्ध देश वे देश होते हैं, जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय सीमाएं समुद्र से नहीं मिलती हैं। इस प्रकार वर्तमान में कुल 44 स्थल अवरुद्ध देश हैं :
महादेश देश
- एशिया लाओस, नेपाल, कजाकिस्तान, भूटान, अफगानिस्तान, अजरबैजान, उजबेकिस्तान, किर्गिस्तान, मंगोलिया, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, वेस्ट बैंक।
- यूरोप हंगरी, वेटिकन सिटी, बेलारूस, मैसीडोनिया, सर्बिया, माल्दोवा, आस्ट्रिया, आर्मेनिया, चेक गणराज्य, अंडोरा, लिचेंस्टीन, स्विट्जरलैंड, लक्जेमबर्ग, स्लोवाकिया।
- अफ्रीका स्वाजीलैंड, जाम्बिया (उ. रोडेशिया), बुरकिना फासो, (अपर बोल्टा) रवांडा, बुरुण्डी, माली, मलावी, बोत्सवाना, लेसोथो, युगांडा, नाइजर, जिम्बाब्वे (द. रोडेशिया), चाड, केन्द्रीय अफ्रीकी गणराज्य, इथियोपिया।
- द- अमेरिका पराग्वे, बोलीविया।
विश्व में परिवहन
प्रमुख सड़क मार्ग
सड़कमार्ग जुड़ने वाले स्थान
- ट्रांस कनाडियन सेंट जान नगर एवं वेंकूवर
- अलास्का महामार्ग एडमान्टन एवं ऐंकरेज नगर (अलास्का)
- स्टुअर्ट महामार्ग बिरडुम एवं उड्नादत्त ट्रैक
- अल्जियर्स कोनाक्री महामार्ग अल्जियर्स एवं कोनाक्री (गिनी)
- अन्तर्महाद्वीपीय महामार्ग काहिरा एवं केपटाउन
प्रमुख रेलमार्ग
रेलमार्ग जुड़ने वाले स्टेशन
- कनाडियन पैसिफिक हैलीफैक्स एवं वैंकूवर
- ट्रांस आस्ट्रेलियन सिडनी एवं पर्थ
- केप काहिरा काहिरा एवं केपटाउन
- ट्रांस साइबेरियन सेंट पीर्ट्सबर्ग एवं ब्लाडीवोस्टक
- यूरोपीय ट्रांस कांटिनेंटल पेरिस एवं वारसा
- ओरिएंट एक्सप्रेस पेरिस एवं कुस्तुनतुनिया
- कनाडियन नेशनल हैलिफैक्स एवं प्रिंस रोपार्ट
- बीजिंग केण्टन बीजिंग एवं केण्टन
- उत्तरी ट्रांस महाद्वीपीय सिएटल एवं न्यूयार्क
- मध्य ट्रांस महाद्वीपीय सेन फ्रांसिस्को एवं न्यूयार्क
- दक्षिणी ट्रांस महाद्वीपीय लास एजिल्स एवं न्यूयार्क
- ट्रांस एंडीयन वालपरेजो एवं ब्यूनस आयर्स
विश्व के प्रमुख मरुस्थल
नाम क्षेत्र वर्ग किमी स्थिति
- सहारा मरुस्थल 84,00,000 अल्जीरिया, चाड, लीबिया, माली, मारितानिया, नाइजर, सूडान, ट्यूनीशिया, मिड्ड, मोरक्को (अफ्रीका)। यह लीबिया मरुस्थल (11,00,000 वर्ग किमी) तथा नूबियन मरुस्थल (2,60,000 वर्ग किमी) को स्पर्श करता है।
- ऑस्ट्रेलिया 15,50,000 ऑस्ट्रेलिया यह वारबर्टन अथवा महान रेतीले मरुस्थल मरुस्थल (4,20,000 वर्ग किमी), ग्रेट विक्टोरिया (3,25,000) वर्ग किमी), आरूण्ट या सिम्पसन (3,10,000 वर्ग किमी), गिब्सन (2,20,000 किमी) एवं स्टुअर्ट मरुस्थल से संलग्न है।
- अरब मरुभूमि 13,00,000 दक्षिणी अरब, सउदीअरब, यमन (अरब प्रायद्वीप)। इसमें अरब-अल खाली (6,47,500 वर्ग किमी) सीरिया मरुभूमि (3,25,000 वर्ग किमी) तथा नाफूद (1,29,500 वर्ग किमी) सम्मिलित हैं।
- गोबी 10,40,000 मंगोलिया एवं आन्तरिक मंगोलिया (चीन)।
- कालाहारी 5,20,000 बोत्सवाना (अफ्रीका मध्य)।
- तकलामकान 3,20,000 सिकियांग प्रान्त (चीन)।
- सोनोरान मरुस्थल 3,10,000 एरीजोना एवं कैलीफोर्निया (सं. रा. अमेरिका तथा मैक्सिको)।
- नामिब मरुस्थल 3,10,000 नामीबिया (दक्षिणी-पश्चिमी अफ्रीका)
- काराकुम 2,70,000 तुर्कमेनिया
- थार मरुभूमि 2,60,000 उत्तर-पश्चिमी भारत एवं पाकिस्तान।
- सोमाली मरुस्थल 2,60,000 सोमालिया (अफ्रीका)
- अटाकामा मरुस्थल 1,80,000 उत्तरी चिली (दक्षिणी अमेरिका)।
- काइजिल कुम 1,80,000 उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान (स्वतंत्र राज्यों का राष्ट्रकुल)।
- दस्त-ए-लुत 52,000 पू. ईरान (पहले ईरान का मरुस्थल कहलाता था)।
- मोजेव मरुस्थल 35,000 दक्षिणी कैलीफोर्निया (यूएसए)।
विश्व की प्रमुख नदियाँ
नाम लम्बाई उद्गम स्थल गिरने का स्थान (Km)
- नील 6,690 विक्टोरिया झील (बुरूंडी) भूमध्य सागर
- अमेजन 6,296 लैगो विलफेरो (पेरू) अटलांटिक महासागर
- मिसीसिपी मिसौरी 6,240 रेड रॉक स्रोत (अमेरिका) मैक्सिको की खाड़ी
- यांगसी 5,797 तिब्बत का पठार चीन सागर
- ओबे-इर्टिस 5,567 अल्टाई पर्वत ओब की खाड़ी
- ह्नांगहो 4,667 क्युनलुन पर्वत चिहिल की खाड़ी
- येनीसी 4,506 रान्नु-ओला पर्वत आर्कटिक महासागर
- कांगो (जायरे) 4,371 लूआलया, लआपूला नदी अटलांटिक महासागर
- आमूर (आर्गून) 4,352 रूस आर्गून के संगम टार्टर स्ट्रेट
- मैकेंजी (पीस) 4,241 फिनले नदी के मुहाने से ब्यूफोर्ट सागर
- नाइजर (तेल नदी) 4,184 गिनी (अफ्रीका) गिनी की खाड़ी
- मीकांग 4,023 तिब्बत का पठार दक्षिणी चीन सागर
- वोल्गा 3,687 ब्लडाई पठार (रूस) कैस्पियन सागर
- सेनफ्रांसिस्को 3,198 द. मिनास गिटेस (ब्राजील) अन्ध महासागर
- सेंट लारेंस 3,058 ओंटोरियो झील सेंट लारेंस की खाड़ी
- ब्रह्मपुत्र 2,990 चेमाचुंग दुंग बांग्लादेश
- सिन्धु 2,880 मानसरोवर झील के पास अरब सागर
- डेन्यूब 2,842 ब्लैक फॉरेस्ट (जर्मनी) काला सागर
- फरात 2,799 कारासुन व मूरत नेहरी शत-अल-अरब नदी के संगम से (टर्की)
- मर्रे-डार्लिंग 2,750 आस्ट्रेलियन आल्पस से हिन्द महासागर
- नेलसन 2,575 बो नदी का ऊपरी भाग हडसन की खाड़ी
- पैराग्वे 2,549 माटोग्रोसो (ब्राजील) पेराना नदी
- यूराल 2,533 द. यूराल पर्वत (रूस) कैस्पियन सागर
- गंगा 2,480 गौमुख (गंगोत्री) बांग्लादेश
- आमू-दरिया 2,414 निकोलस श्रेणी (पामीर) अरल सागर
- सालवीन 2,414 क्युलुनपर्वत के दक्षिण में मर्तावान की खाड़ी
- अरकन्सास 2,348 मध्य कोलोरेडो मिसीसिपी नदी
- कोलोरेडो 2,333 ग्रैंडकण्ट्री कैलीफोर्निया की खाड़ी
- नीपर 2,284 ब्लडाई पर्वत (रूस) काला सागर
- ओहियो 2,102 पोटरकन्ट्री (पेंसिलवानिया) मिसीसिपी नदी
- इरावदी (म्यांमार) 2,092 माली-नामी नदी संगम बंगाल की खाड़ी
- ओरेंज 2,092 लिसोथो अटलांटिक महासागर
- ओरीनीको 2,062 सिएरा परिमा पर्वत अटलांटिक महासागर
- कोलम्बिया 1,983 कोलंबिया झील (कनाडा) प्रशान्त महासागर
- टिगरिस 1,899 टॉरस पर्वत (टर्की) शत-अल-अरब
विश्व की प्रमुख जलसन्धियाँ
जलसन्धि का नाम जोड़ती है भौगोलिक दृश्य
- मलक्का जलसन्धि अंडमान सागर एवं दक्षिणी चीन सागर इंडोनेशिया-मलेशिया
- मैक्ल्यूर ब्यूफोर्ट सागर कनाडा
- नेमुरो जलसन्धि प्रशांत महासागर जापान
- पाक जलसन्धि मन्नार एवं बंगाल की खाड़ी भारत-श्रीलंका
- सुण्डा जलसन्धि जावा सागर एवं हिन्द महासागर इंडोनेशिया
- टोकरा जलसन्धि पूर्वी चीन सागर एवं प्रशांत महासागर जापान
- सुगारू जलसन्धि जापान सागर एवं प्रशांत महासागर जापान
- सुसीमा जलसन्धि जापान सागर एवं पूर्वी चीन महासागर जापान
- यूकाटन जलसन्धि मैक्सिको की खाड़ी एवं कैरेबियन सागर मैक्सिको-क्यूबा
- मेसिना जलसन्धि भूमध्य सागर इटली-सिसली
- ओरंटो जलसन्धि एडियाटिक सागर एवं एजियन सागर इटली-अल्बानिया
- बाव-एल मंडव जलसन्धि लालसागर-अरब सागर यमन-जिबूती
- कुक जलसन्धि दक्षिण प्रशांत महासागर न्यूजीलैंड
- लुजोन जलसन्धि दक्षिण चीन एवं फिलीपींस सागर ताइवान
- क्वीन शार्लेंट जलसन्धि प्रशांत महासागर कनाडा प्लावन-बोर्नियो
- शेली कॉफ जलसन्धि अलास्का की खाड़ी अलास्का-कोडिया द्वीप
- नार्थ चैनल आयरिश सागर एवं अटलांटिक सागर आयरलैंड-इंग्लैंड
- हुण्डास जलसन्धि वानडीमन खाड़ी मेल्विन द्वीप-ऑस्ट्रेलिया
- बॉस जलसन्धि तस्मान सागर एवं दक्षिण सागर ऑस्ट्रेलिया
- बेलेद्वीप जलसन्धि सेंटलारेंस खाड़ी, अटलांटिक महासागर कनाडा
- बेरिंग जलसन्धि बेरिंग सागर एवं चुकसी सागर अलास्का-रूस
- वासपोरस जलसन्धि काला सागर एवं मारमरा सागर तुर्की
- डैम्पियर जलसन्धि बिस्मार्क सागर पपुआ न्यूगिनी
- डार्डेनलीज जलसन्धि मारमरा सागर एवं एजियन सागर तुर्की
- डेविस जलसन्धि बेफिन खाड़ी, अटलांटिक महासागर ग्रीनलैंड-कनाडा
- डेनमार्क जलसन्धि उ. अटलांटिक, आर्कटिक महासागर इंग्लैंड-फ्रांस
- डोवर जलसन्धि इंग्लिश चैनल एवं उत्तरी सागर इंग्लैंड-फ्रांस
- फ्रलोरिडा जलसन्धि मैक्सिको की खाड़ी, अटलांटिक अमेरिका-क्यूबा
- फोवेक्स जलसन्धि तस्मान सागर एवं दक्षिणी सागर न्यूजीलैंड
- हार्मुज जलसन्धि फारस की खाड़ी, ओमान की खाड़ी ओमान-ईरान
- हडसन जलसन्धि हडसन की खाड़ी, अटलांटिक कनाडा
- जिब्राल्टर जलसन्धि भूमध्य सागर एवं अटलांटिक महासागर स्पेन-मोरक्को
- जापान जलसन्धि प्रशांत महासागर इंडोनेशिया
- कारीमाटा जलसन्धि दक्षिणी चीन सागर एवं जावा सागर इंडोनेशिया
- कोरिया जलसन्धि जापान सागर एवं पूर्वी चीन सागर जापान-कोरिया
- मैगेलन जलसन्धि प्रशांत एवं दक्षिण अटलांटिक महासागर चिली
- मकास्सार जलसन्धि जावा सागर एवं सेलीबोज सागर इंडोनेशिया
विश्व की प्रमुख खानाबदोश (जनजातियाँ)
जनजाति देश/क्षेत्र जनजाति देश/क्षेत्र
एस्कीमो कनाडा व ग्रीनलैंड के टुंड्रा प्रदेश एबोर्जिन्स ऑस्ट्रेलिया (मूल)
लैप यूरोप के टुंड्रा प्रदेश नीग्रो मध्य अफ्रीका
तातार साइबेरिया बोरो ब्राजील
जुलु नेटाल प्रांत (द. अफ्रीका) बोअर द. अफ्रीका
रेडइंडियन उत्तरी अमेरिका माया मैक्सिको
पिग्मी जायरे (कांगो) बेसिन कज्जार मध्य एशिया
माओरी न्यूजीलैंड कालमुख मध्य एशिया
मसाई कीनिया (पू. अफ्रीका) अफरीदी पाकिस्तान
पपुआन्स न्यू गिनी औका इक्वेडोर
सेमाँग मलेशिया बद्दू अरब
बुशमैन कालाहारी मरुस्थल वेद्दास श्रीलंका
यूकाधिर साइबेरिया हैदा सं. रा. अमेरिका
आइनू जापान याकू टुन्ड्रा प्रदेश
हाटेन्टाट कालाहारी (बोत्सवाना) पूनॉन ब्रोनियो
एटा फिलीपीन्स
कृषि के विशिष्ट प्रकार
- विटीकल्चर : अंगूरों का व्यापारिक स्तर पर उत्पादन विटीकल्चर कहलाता है।
- पीसीकल्चर : व्यापारिक स्तर पर मछली का उत्पादन पीसीकल्चर कहलाता है।
- सेरीकल्चर : रेशम के उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों का पाला जाना सेरीकल्चर कहलाता है।
- हार्टीकल्चर : फलों, फूलों एवं सब्जियों की कृषि को हार्टी कल्चर कहा जाता है।
- एपीकल्चर : व्यापारिक स्तर पर शहद के उत्पादन हेतु मधुमक्खी पालन की क्रिया को एपीकल्चर कहा जाता है।
- सिल्वीकल्चर : यह वानिकी की एक शाखा है, जिसमें वनों के संरक्षण एवं संवर्धन की क्रिया शामिल है।
- फ्रलोरीकल्चर : व्यापारिक स्तर पर फूलों की कृषि को फ्लोरीकल्चर कहा जाता है।
- अर्बरीकल्चर : वृक्षों तथा झाडि़यों की कृषि।
- मैरीकल्चर : समुद्री जीवों का उत्पादन।
- ऑलेरीकल्चर : भूमि पर फैलने वाली सब्जियों की कृषि।
- ओलिवीकल्चर : जैतून की कृषि।
- एरोपोनिक : पौधों को हवा में उगाना।
- वर्मीकल्चर : केंचुआ पालन।
- मोरीकल्चर : रेशम कीट हेतु शहतूत उगाना।
विश्व कृषि में नागरिकों की भागीदारी
देश प्रतिशत देश प्रतिशत
गिनी 95% तंजानिया 85%
इथोपिया 80% कीनिया 80%
बांग्लादेश 75% चीन 74%
भारत 55% फ्रांस 20%
जापान 15% कनाडा 9%
ऑस्ट्रेलिया 6% ब्रिटेन 5%
सं.रा. अमेरिका 4%
विभिन्न देशों में कृषि का नाम
नाम देश नाम देश
लदांग मलेशिया रॉका ब्राजील
मिल्पा मध्य अमेरिका, मैक्सिको कोनुको वेनेजुएला
झूम उत्तर-पूर्वी भारत टावी मेडागास्कर
केंगिन फिलीपींस मसोल जायरे एवं मध्य अफ्रीका
हुमा जावा एवं इंडोनेशिया तुंग्या म्यांमार
चेन्ना श्रीलंका लोगन पश्चिमी अफ्रीका
विश्व में कृषि योग्य भूमि
देश कुल भूमि का प्रतिशत
- बांग्लादेश 68%
- भारत 57%
- फ्रांस 34%
- जर्मनी 31%
- ब्रिटेन 29%
- पाकिस्तान 26%
- नीदरलैंड 25%
- सं. रा. अमेरिका 21%
- अर्जेन्टीना, इथियोपिया, जापान एवं मलेशिया 13%
- चीन एवं इंडोनेशिया 11%
- स्विट्जरलैण्ड 10%
- ब्राजील 9%
- स्वीडन 7%
- ऑस्ट्रेलिया 6%
- कनाडा 5%
- जायरे 3%
- न्यूजीलैण्ड एवं मिस्र 2%
घास के मैदान
क्र. क्षेत्र मैदान क्र. क्षेत्र मैदान
1. ऑस्ट्रेलिया डाउन्स 2. ब्राजील कैम्पॉस
3. गुयाना लैनॉस 4. अफ्रीका व ऑस्ट्रेलिया सवाना
5. अर्जेंटीना पम्पास 6. दक्षिण अफ्रीका वेल्ड्स
7. उत्तरी अमेरिका प्रेयरी 8. यूरेशिया स्टैपी
9. दक्षिण अफ्रीका पार्कलैंड
नदियों के किनारे बसे विश्व के प्रमुख नगर
नगर नदी नगर नदी
रोम (इटली) टाईबर लन्दन (इंग्लैंड) टेम्स
पेरिस (फ्रांस) सीन मास्को (रूस) मोस्कावा
प्राग (स्लोवाकिया) विंताना बोन (जर्मनी) राइन
माण्ट्रियल (कनाडा) सेंट लारेंस सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) डार्लिंग
कीव (रूस) नीपर मौलमीन (म्यांमार) सालवीन
कैन्टन (चीन) सीक्यांग वियना (आस्ट्रिया) डेन्यूब
टोकियो (जापान) अराकाब शंघाई (चीन) यांगटिसीक्यांग
बगदाद (इराक) टिग्रिस बर्लिन (पू. जर्मनी) स्प्री
पर्थ (ऑस्ट्रेलिया) स्वान वारसा (पैलैण्ड) विस्चुला
अस्वान (मिड्ड) नील सेंट लुईस (यूएसए) मिसिसिपी
हैम्बर्ग (जर्मनी) एल्वे शिकागो (यूएसए) शिकागो
ब्रिस्टल (इंग्लैंड) एवन् खारतूम (सूडान) नील
हाको (चीन) यांगटीसिक्यांग काहिरा (मिड्ड) नील
ब्यूनस-आयर्स (अर्जेंटीना) लाप्लाटा अंकारा (टर्की) किजिल
डुंडी (स्कॉटलैण्ड) टे लीवरपुल (इंग्लैंड) मर्सी
कोलोन (जर्मनी) राइन रंगून (म्यांमार) इरावदी
ओटावा (कनाडा) सेंट लॉरेंस न्यूयार्क हडसन
मेड्रिड (स्पेन) मैजेनसेस लिस्बन (पुर्तगाल) टेगस
लाहौर (पाकिस्तान) रावी कराची (पाकिस्तान) सिन्धु
डबलिन (आयरलैंड) लीफे दिल्ली (भारत) यमुना
चटगाँव (बांग्लादेश) मैयाणी लेनिनग्राद (रूस) नेवा
स्टालिनग्राद (रूस) वोल्गा अकयाव (म्यांमार) इरावदी
डेजिंग (जर्मनी) विस्टुला बेलग्रेड (यूगोस्लाविया) डेन्यूब