कारण ? अमेरीका इंग्लैंड, फ्रांस , रुस जैसे विकसित देश है व कहलाते हैं । वहां की अधिकांश जनसंख्या शिक्षित व प्रशिक्षित है । जैसे जिस व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने का लक्ष्य भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में रखा गया है इसकी दर विकसित साम्राज्यवादी देशों के लोगों में बहुत अधिक है । जैसे , अमरीका में 52 प्रतिशत व जर्मनी में 75 प्रतिशत तक है । जबकि भारत में 12 वीं पंचवर्षीय योजना के अनुसार 19-24 आयुवर्ग के भारतीयों में 5 प्रतिशत से भी कम है । ( रा.शि नीति , पृष्ठ -70 ) इसका मतलब यह है कि यू . एन.ओ. का सतत विकास लक्ष्य -4 भारत जैसे पिछड़े देशों के लिये है न कि विकसित देशों के लिए है । बल्कि वास्तविकता यह है कि यह लक्ष्य अमरीका , इंग्लैण्ड , फ्रांस , रूस जैसे विकसित देशों , वास्तव में साम्राज्यवादी देशों द्वारा अपनी जरूरतोंनुसार भारत जैसे देशों को भेजा गया है । इससे आप यह अर्थ न लगायें कि ये जरूरतें साम्राज्यवादी देशों के मजदूरों – किसानों जैसे जनसाधारण की है । बल्कि ये जरूरतें इन देशों के वित्त सम्राटों की है जो उद्योग , बैंक , व्यापार के मालिक हैं । जिनका कारोबार भारत जैसे देशों समेत पूरी दुनिया में फैला हुआ है । जिनका लक्ष्य वैज्ञानिक व तकनीकी विकास करके दुनिया भर के संसाधनों ( कच्चे माल और शारीरिक व मानसिक श्रम ) को नियंत्रण में लेकर उत्पादन करवाकर उसे दुनियाभर में बेचकर अधिकाधिक लाभ – मुनाफा कमाना है । अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए ये साम्राज्यवादी देश व वहां के वित्तीय सम्राट अपने यहां विज्ञान व तकनीकी का बुनियादी विकास अपने बूते पर कर लिये हैं । इस मामले में वे दुनिया के अन्य देशों से बहुत आगे हैं । विकसित हैं । अपने यहां उन्होंने व्यवसायिक शिक्षा देकर अपने बैंकों , उद्योगों , व्यापार , दूर संचार , यातायात व सेवा क्षेत्र आदि के लिए बहुत पहले ही कुशल कामगार तैयार कर लिये हैं । पर उनकी वेतन , मजदूरी भारत जैसे देशों की तुलना में बहुत अधिक है । अब चूंकि उनके बैंकों , उद्योगों , दूर संचार , यातायात का जाल भारत समेत पूरी दुनिया में फैला हुआ है । जिसके लिए उन्हें भारत जैसे देशों में अधिकाधिक कुशल व सस्ते कामगारों की जरूरत है और भारत में चूंकि श्रम सस्ता तो है , पर कुशल कम है और जो है , उसकी गुणवत्ता में भी कमी है । इसलिए सस्ता श्रम और बेहतर ढंग तभी इस्तेमाल हो सकता है जब वह कुशल और गुणवत्तायुक्त भी हो । उसे ही कुशल बनाने के लिये यहां नई शिक्षा नीति यू.एन.ओ. के द्वारा भेजी गई है । वैसे भारतीय सरकारें यहां के सस्ते श्रम का हवाला देकर उन्हें हर क्षेत्र में निवेश करने के लिए आमंत्रित करती आ रही हैं । उन्हीं की जरूरतों अनुसार देश का बुनियादी ढांचागत विकास कर रही हैं । कर टैक्स आदि में छूटें मुहैया करा रही हैं । भूमिसुधार , कृषिसुधार , श्रम नियमों में सुधार जैसे कानून लागू कर रही हैं । अर्थात् अमरीका , इंग्लैण्ड , फ्रास , जर्मनी , जापान व रूस आदि विकसित व साम्राज्यवादी देशों के वित्तीय सत्राटों के दुनियाभर में फैले , वैसे ही भारत में फैले उद्योगों , बैंक , व्यापार , दूर संचार , यातायात आदि क्षेत्रों को संचालित करने वाली कंपनियों को अधिकाधिक लाभ मुनाफा कमाने हेतु सस्ते व कुशल कामगारों की जरूरतों को पूरा करने के लक्ष्य से ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारत जैसे देशों को भेजी गयी है । जिसे भारत सरकार लागू भी कर रही है । उसे अपने देश की जरूरतोंनुसार बनायी गयी शिक्षा नीति कह रही है । यही कहकर अपना रही है । इस पर यह प्रश्न खड़ा होता है कि जब यह शिक्षा नीति विकसित देशों के वित्तीय सम्राटों की जरूरतों को पूरा करने के लिये भेजी गयी है । तो क्या भारत सरकार मात्र उन्हीं के दबाव में इसे लागू कर रही है ? नहीं । इसमें भारत का भी एक वर्ग है , जिसकी भी वैसी ही जरूरतें हैं , उस वर्ग का भी इसे लागू करने में समर्थन है । यह वर्ग है – यहा का पूंजीपति , व्यापारी वर्ग । जो पिछले सौ सालों से पहले ब्रिटिश , अब अमरीका आदि देशों के वित्तीय सम्राटों के साथ उत्तरोत्तर अधिकाधिक वित्तीय व तकनीकी साठ – गांठ करता आ रहा है । उनके साथ उद्योगों , बैंकों , व्यापार , दूर संचार , यातायात आदि क्षेत्रों में साझेदार है । मालिक है । दोनों के हित एक है । इसका लक्ष्य भी लाभ मुनाफा कमाना है । इसीलिए यहां का पूंजीपति वर्ग भी उन वित्तीय सम्राटों के साथ तालमेल में है । अपने स्वार्थानुसार इस नीति का पक्षधर है । भारत सरकार इन्हीं देशी व विदेशी पूंजीवान वर्गों की प्रतिनिधि बनकर उनके हित में इसे लागू कर रही है , ताकि उन्हें यहां सस्ते व कुशल श्रमिक मिलें । साथ ही उनकी दूसरी जरूरत यह है कि पूंजीवाद की लूट की प्रणालियों अनुसार यहां के लोगों की मानसिकता बदली जाये , उसी अनुसार इतिहास , समाज विज्ञान व अर्थशास्त्र , राजनीति विज्ञान , शिक्षाशास्त्र आदि आदि विषयों के पाठ्यक्रमों में बदलाय किये जायें , जो साम्राज्यवाद , पूंजीवाद के लूट खसोट व उनकी संस्कृति को जिसे उपभोक्ता संस्कृति ‘ कहा जाता है . उसे जनसाधारण समेत पूरे देश के लिये जायज व आवश्यक बताये ।
इस बात की पुष्टि भारत सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के परिचय में ही लिखे इस बात से भी होती है । जो इस प्रकार है- ” ज्ञान के परिदृश्य में पूरा विश्व तेजी से परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है । बिग डेटा मशीन , लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में हो रहे बहुत से वैज्ञानिक व तकनीकी विकास के चलते एक ओर विश्वभर में अकुशल कामगारों की जगह मशीने काम करने लगेंगी और दूसरी ओर डेटा साइन्स, कम्प्यूटर साइन्स और गणित के क्षेत्रों में ऐसे कुशल कामगारों की जरूरत व मांग बढ़ेगी जो विज्ञान , समाज विज्ञान और मानविकी के विविध क्षेत्रों में योग्यता रखते हों । जलवायु परिवर्तन , बढ़ते प्रदूषण और सस्ते प्राकृतिक संसाधनों की वजह से हमें ऊर्जा , भोजन , पानी , स्वच्छता आदि की आवश्यकताओं आदि को पूरा करने के नये रास्ते खोजने होंगे । और इस कारण भी जीव विज्ञान , रसायन शास्त्र , भौतिक विज्ञान कृषि जलवायु विज्ञान और समाज विज्ञान के क्षेत्रों में नये कुशल कामगारों जरूरत होगी । ” ( रा.शि. नीति , पृष्ठ -3 )
उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुये कांग्रेस और वामपंषियों जैसे सोच वाले विद्वानों को लिया जाय जो यह कहते हैं कि यह शिक्षा नीति बकवास है एवं यह शिक्षा नीति भाजपा / आर.एस.एस . का एजेण्डा है । जिसे मोदी सरकार लागू कर रही है । उनका यह विरोध मात्र भाजपा व आरएस.एस. तथा मोदी विरोध तक ही सीमित है । जो भ्रामक है और गलत भी है । क्योंकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 स्वयं कहती है कि यह शिक्षा नीति यू.एन.ओ. के सतत् विकास एजेण्डे के अनुसार है , जिसे पूरी दुनिया में भारत जैसे देशों को 2030 तक लागू करना है । और इसी से यह स्पष्ट है कि भाजपा / आर.एस.एस . का एजेण्डा पूरी दुनियां का एजेण्डा नहीं हो सकता । तब प्रश्न है कि कांग्रेसी और खासकर वामपंथी ऐसा क्यों कह रहे हैं ? और इनके इस आधे – अधूरे व नितान्त छिछले विरोध का कारण क्या है ? यह प्रश्न इसलिए खड़ा होता है कि इनके ऐसे विरोध से पूंजीवाद साम्राज्यवाद व उसकी जरूरतें तथा उसकी जरूरतोंनुसार मोदी सरकार द्वारा लायी गई शिक्षा नीति पर पूरा पर्दा डालता है । इससे पूंजीवाद – साम्राज्यवाद की भूमिका छिप जाती है । वह इसलिए कि व्यक्ति विशेष व दल विशेष को दोषी ठहराकर पूंजीवाद साम्राज्यवाद के हित स्वार्थ को छिपा दिया जाता है । यह बात तो ज्ञात है कि कांग्रेसी तो पूंजीवादी हैं इनकी बात छोड़ दें । लेकिन वामपंथी जो अपने को मजदूरों किसानों का प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं । स्वयं को पूंजीवाद विरोधी बताते हैं । यह ऐसा क्यों कह रहे हैं ? स्पष्टतः ये अपना वर्गीय दृष्टिकोण छोड़ चुके हैं। , पूजीवादी हो गये हैं । पूंजीवादी ससंद भवनों में उन्हें जगह मिलती है । इसीलिए पूंजीवाद – साम्राज्यवाद इन्हें पूरी सुविधायें देता है । देश – विदेश में हवाई यात्राओं से लेकर अनेक प्रकार के वेतन – भत्ते देता है । इसीलिए मजदूरों किसानों को इनके दोरंगे चरित्र से सावधान रहने की जरूरत है ।
अब इस शिक्षा नीति के परिणामों को लिया जाय । चूंकि यह शिक्षा नीति पूंजीशाही साम्राज्यशाही की जरूरतोंनुसार बनी है तो भविष्य में उनके घोषित लक्ष्य व जरूरतें तो अवश्य पूरे होंगे । जैसे- कुशल व सस्ते अभिक का उन्हें मिलना । लेकिन मजदूरों – किसानों समेत आम जनता पर इसका क्या असर पडेगा ? इस पर सबको अवश्य ध्यान देना चाहिये । इस शिक्षा नीति से जहां साक्षरता बढ़ेगी । व्यवसायिक शिक्षा की दर बढ़ेगी । व्यवसायिक शिक्षा लिये हुये नौजवानों की संख्या बढ़ेगी । मतलब , कुशल कामगारों की संख्या बढ़ जायेगी । लेकिन इस बढ़ती हुई संख्या के अनुसार काम नहीं मिलेगा । बेरोजगारी बढ़ेगी । कारण , अकुशल कामगारों की जगह कुशल कामगारों से चलने वाली मशीने काम करने लगेंगी तो अकुशल श्रम की जरूरत ही नहीं रहेगी । परिणामतः अकुशल कामगारों की छंटनियां होंगी । नित नये मशीनीकरण होने से और पूंजीवानों के लाभ – दर – लाभ कमाने – बढाने के लक्ष्य के कारण कुशल कामगारों की भी जरूरत कम होगी । अपेक्षाकृत उनकी मजदूरी भी कम होगी और इनमें भी बेकारी बढ़ेगी । जैसेकि अभी ही भारत में व्यवसायिक शिक्षा का दर 5 प्रतिशत से भी कम है तो भी यहां के शिक्षित प्रशिक्षित अधिकाश नौजवानों को नौकरियां नहीं मिल रही है । ये दर – दर भटक रहे हैं । एक छोटे हिस्से को छोड़ दिया जाय जो अच्छी वेतन मजदूरी कमाता है तो प्रशिक्षित नौजवानों का बड़ा हिस्सा बहुत ही कम वेतन पर काम करता है । उस पर भी ये नौकरियों के अस्थाई होने , भविष्य की सुरक्षा की गारण्टी न होने , छंटनियां होने आदि से त्रस्त हैं । अभावग्रस्त हैं । आगे यह स्थिति और भयावह होगी ।
दूसरे , इससे देश का विकास होता तो दिखेगा, किन्तु यह विकास और उस विकास का बहुत बड़ा फायदा देशी – विदेशी पूंजीपतियों को होगा । उनका लाभ मुनाफा फलतः पूंंजी तेजी से बढ़ेगी । जैसाकि अब तक हुये विकार से बढ़ती आ रही है । विदेशी पूजीवानों की सम्पत्तियों के बढ़ने से पूंजी का प्रवाह विकसित साम्राज्यवादी देशों की और तेज होगा । जिसका परिणाम यह निकलेगा कि यहा ( भारत में ) पूंंजी का अभाव बढ़ता रहेगा व बना रहेगा । जैसाकि तमाम विकास के बावजूद आज भी पूंजी का अभाव है । बात की पुष्टि हमारे प्रधानमंत्री के द्वारा गांव – शहर का विकास कराने के लिए विदेशी पूंजी का भारत में निवेश कराने व बढाने के प्रयासों से भी होती है । अब अन्त में इस शिक्षा नीति का परिणाम ये होगा कि वर्गीय और क्षेत्रीय असमानताएं बढ़ेगी । साथ ही लोगों के बीच शैक्षिक असमानता भी बढ़ेगी । जिससे आम मजदूरों किसानों की जरूरतें नहीं बल्कि देशी – विदेशी अमीर वर्गा की जरूरतें ही पूरी होगी।
धन्यवाद
गाजीपुर ( वरुण दुबे )