माननीय लालू यादव की चारा घोटाले में कोई भूमिका थी या नहीं, इस संदर्भ में मैं कुछ नहीं कह सकता, लेकिन यदि लालू यादव ने चारा घोटला से कई गुणा बड़ा घोटला पक्के तौर किया होता, लेकिन उन्होंने राजनीतिक तौर पर हिंदुत्व की राजनीति (आरएसएस) और अपरकॉस्ट राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती नहीं दिया होता और उनसे मेल-मिलाप करके रहते और सांस्कृतिक तौर पर अपरकॉस्ट को चुभने वाली भाषा न बोलते, तो उन्हें सजा नहीं होती। वे आराम से अपनी जिंदगी गुजार रहे होते।
इस देश का शासक वर्ग आजादी के बाद ही अपरकॉस्ट-अपरक्लास हिंदू मर्द रहे हैं, जगदेव प्रसाद के शब्दों में अपरकॉस्ट-अपरक्लास हिंदू मर्द चाहते हैं कि पिछड़े-दलित राजनीति करें, लेकिन जैसे उनकी हलवाही करते थे, वैसे करें यानि उनके राजनीतिक हलवाहा बन जाए या कांशीराम के शब्दों में उनके चमचे बन जाए।
लेकिन यदि पिछड़े-दलित निर्णायक तरीके से अपरकॉस्ट वर्चस्व को चुनौती देते हैं, तो उन्हें उसका परिणाम भुगतना होगा,जब भी शासक वर्ग मौका पाएगा, छोडे़गा नहीं।
कर्पूरी ठाकुर को गालियां सुनकर, बाबू जगदेव प्रसाद को अपनी जान देकर और लालू यादव को जेल की सजा काटकर इसकी कीमत चुकानी पड़ी।
देश की पुलिस, सीबीआई, अन्य जांच एजेंसियों और न्यायपालिका में आज भी अपरकॉस्ट का पूरा वर्चस्व और नियंत्रण है, उन्होंने अवसर पाते ही लालू यादव से बदला लिया।
दरअसल इस देश के शासक वर्ग अपरकॉस्ट-अपरक्लास हिंदू मर्दों को नरेंद्र मोदी और रामकोविंद जैसा पूरी तरह से वफादार राजनीतिक चमचे या राजनीतिक हलवाहे चाहिए।