जब तक देश में मनुस्मृति लागू थी तब तक देश में सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विषमता कायम थी….
सामाजिक विषमता से तात्पर्य -भारतीय समाज हजारों जातियों में बंटा हुआ था,और इन जातियों में क्रमिक असमानता व्याप्त थी। ऊंच नीच का भेदभाव था, और जातियों में विद्वेष और घृणा थी। समाज मैं गैर बराबरी व्याप्त थी।
आर्थिक विषमता से तात्पर्य- देश की अर्थव्यवस्था ब्राह्मण क्षत्रिय और बनियों के हाथों में थी उन्हें ही धन संपत्ति रखने की आजादी थी वही लोग अमीर थे कुल मिलाकर देश और समाज अमीर और गरीब दो वर्गों में बांटा हुआ था। समाज में आर्थिक विषमता कायम थी।
शैक्षणिक विषमता – से तात्पर्य ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य को ही शिक्षा का अधिकार था शूद्र शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते थे, उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते थे। शैक्षणिक रूप से भी समाज में समानता नहीं थी।
जब भारत का संविधान सभा का गठन हुआ तो संविधान सभा में बहुमत पूंजीवादी, सामंतवादी और ब्राह्मणवादी लोगों का था क्योंकि संविधान सभा का चुनाव सीमित मताधिकार के आधार पर हुआ था। जिसमें वोट डालने का अधिकार केवल उन्हीं लोगों को था~
~जो सरकार को टैक्स देते हैं।
~ जो अचल संपत्ति के मालिक हो।
~ जो कम से कम दसवीं तक पढ़े हो।
सीमित मताधिकार के चलते देश के लगभग 90 फ़ीसदी लोगों को वोट डालने का अधिकार ही नहीं था इसको दूसरे शब्दों में इस तरह से समझा जा सकता है कि देश के 90 फ़ीसदी लोगों को जब वोट डालने का अधिकार नहीं था तो इस वजह से संविधान सभा में उनका प्रतिनिधित्व करने वाले भी लोग नहीं थे।
इन्हीं पूंजीवादी, सामंतवादी लोगों ने संविधान बनते समय देश की संपत्ति सभी नागरिकों में समान रूप से नहीं बंटने दी और न ही इसके संबंध में कोई ठोस प्रावधान होने दिए थे और इन्हीं लोगों ने भारत के संविधान में जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए कोई भी कानूनी प्रावधान नहीं होने दिए थे इसके विपरीत जाति के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था रख दी, इस वजह से भारतीय समाज हजारों जातियों में कानूनी रूप से बंटा हुआ है।
जब भारत का संविधान बनकर लगभग तैयार हो गया था तब बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में भाषण देते हुए कहा था कि हम 26 जनवरी 1950 को विरोधाभास की जीवन में प्रवेश करेंगे जहां राजनीतिक तौर पर तो समानता होगी एक आदमी का एक और एक वोट की कीमत होगी लेकिन हम सामाजिक और आर्थिक तौर पर विषमता का जीवन जीना स्वीकार करेंगे, यदि इस विषमता को अति शीघ्र नष्ट नहीं किया गया तो वे लोग जो सामाजिक और आर्थिक विषमता के शिकार होंगे आने वाले समय में लोकतंत्र की इस रचना का जो संविधान सभा ने बनाई है उसका विध्वंस कर देंगे।
बाबा साहब डॉ अंबेडकर कह रहे हैं कि 26 जनवरी 1950 को दो चीजें लागू होगी एक भारत का संविधान लागू होगा और दूसरी ओर संविधान के द्वारा सामाजिक और आर्थिक विषमता भी लागू होगी क्योंकि संविधान के द्वारा सामाजिक और आर्थिक विषमता को दूर नहीं किया गया था।
संविधान के द्वारा जब सामाजिक और आर्थिक विषमता को दूर नहीं किया गया था, इसी वजह से आज भी देश में सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक विषमता बदस्तूर जारी है।
बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने 18 मार्च 1956 को आगरा के ऐतिहासिक भाषण में जन समूह को संबोधित करते हुए कहा था कि तुम्हें एकजुट होकर निरंतर संघर्ष करना है और तुम्हें सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक गैर बराबरी को मिटाने के लिए हर प्रकार की कुर्बानी देने के लिए यहां तक कि खून बहने के लिए भी तैयार रहना है।
बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर की शख्त हिदायत थी कि तुम्हें जो कुछ भी करना है, वह सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक गैर बराबरी को मिटाने के लिए ही करना है और इस गैर बराबरी को मिटाने के लिए तो मैं हर प्रकार की कुर्बानी देने के लिए तैयार रहना है यहां तक कि खून बहाने के लिए भी ।
लेकिन विडंबना यह है कि हम बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के मिशन को समझ ही नहीं पाए उस पर चलना तो दूर की बात है।
बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने सबसे पहले नारा दिया था कि हम जाति विहीन और वर्ग विहीन समाज का निर्माण करेंगे। अर्थात सामाजिक और आर्थिक समानता देश में स्थापित करेंगे। अगर हम सच्चे अंबेडकरवादी है तो हमें चाहिए कि हम देश में सामाजिक,आर्थिक और शैक्षणिक गैर बराबरी को मिटाने के लिए अभियान चलाएं…
देश में सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक गैर बराबरी क्यों है इसके मूल कारणों को देश के लोगों को समझाएं। सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक गैर बराबरी को मिटाने के लिए दिन-रात एक कर दें, तभी बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर का मिशन पूरा हो सकता है।
तभी बिगड़ी बात बन सकती है,अन्यथा नहीं !!!
आइए हम इस मुहिम को मिलजुलकर आगे बढ़ाएं…
बाबा साहेब, सतगुरु कबीर साहेब, रविदास साहेब, और सतगुरु नानक साहेब जी, के सपनों का भारत बनाएं….. देश में समानता, भाईचारे और मानवता का राज स्थापित करें।
सरदार दिनेश सिंघ (एलएल.एम.)
नई दिल्ली