mRNA वैक्सीन : कोरोना के बाद कैंसर के इलाज में भी कारगर

चिकित्सा

      कोरोना महामारी से लड़ने के लिए कोरोना वैक्सीन काफी कारगर साबित हो रही है। वैक्सीन बनाने की पारंपरिक विधि के विपरीत mRNA तकनीक ने इस मामले में अपनी उपयोगिता साबित की है। अमेरिकी कंपनी फाइजर और मॉर्डना की वैक्सीन भी इसी तकनीक से तैयार किया गया है। वहीं, कैंसर की बात की जाय तो अब यह एक लाइलाज बीमारी नहीं है, लेकिन यह अभी भी हानिकारक और भयानक बनी हुई है। हालांकि, mRNA टीकों का प्रोटीन-फैक्ट्री दृष्टिकोण अंततः इसे हराने के काबिल हो सकता है।

                हाल ही में नेशनल ज्योग्राफिक आर्टिकल में, मेलेनोमा (non-small cell for lung cancer), गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, ओवेरियन के कैंसर और पैंक्रिएटिक कैंसर, अन्य से जुड़े कुछ एमआरएनए वैक्सीन के बारे में लिखा गया है। ये वैक्सीन अब क्लिनिकल ट्रायल के लिए तैयार हैं।

mRNA टेक्नोलॉजी

                mRNA (Messenger Ribonucleic Acid) जेनेटिक कोड का एक छोटा सा हिस्सा है, जो हमारी कोशिकाओं में प्रोटीन बनाती है। जब हमारे शरीर पर कोई वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है, तो mRNA टेक्नोलॉजी हमारी सेल्स को उस वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने के लिए प्रोटीन बनाने का मैसेज भेजती है। इससे हमारे इम्यून सिस्टम को जो जरूरी प्रोटीन चाहिए, वह मिल जाता है और हमारे शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे कन्वेंशनल वैक्सीन के मुकाबले ज्यादा तेजी वैक्सीन बन सकती है। इसके साथ ही इससे शरीर की इम्युनिटी भी मजबूत होती है। यह पहली बार है, जब mRNA टेक्नोलॉजी पर बेस्ड वैक्सीन दुनिया में बन रही है।

                mRNA टेक्नोलॉजी बनाने वाली कैटलिन कारिको का जन्म 17 अक्टूबर, 1955 को हंगरी में हुआ। कारिको ने कई सालों तक हंगरी की सेज्ड यूनिवर्सिटी में RNA पर काम किया। 1985 में वह अमेरिका आ गई। यहां आकर उन्होंने पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में mRNA टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया।

                mRNA की खोज तो 1961 में हो गई थी; लेकिन अब भी वैज्ञानिक इसके जरिए यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि इससे शरीर में प्रोटीन कैसे बन सकता है? कारिको इसी पर काम करना चाहती थीं; लेकिन उनके पास फंडिंग की कमी थी। 1990 में पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में कारिको के बॉस ने उनसे कहा कि आप या तो जॉब छोड़ दें या फिर डिमोट हो जाएं। कारिको का डिमोशन कर दिया गया।

                कारिको पुरानी बीमारियों की वैक्सीन और ड्रग्स बनाना चाहती थीं। उसी समय दुनियाभर में भी इस बात की रिसर्च चल रही थी कि क्या mRNA का इस्तेमाल वायरल से लड़ने के लिए खास एंटीबॉडी बनाने के लिए किया जा सकता है? 1997 में पेन्सेल्वेनिया यूनिवर्सिटी में ड्रू विसमैन आए। ड्रू मशहूर इम्युनोलॉजिस्ट थे। ड्रू ने कारिको को फंडिंग की। बाद में दोनों ने पार्टनरशिप करके इस टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया।

                2005 में ड्रू और कारिको ने एक रिसर्च पेपर छापा, जिसमें दावा किया कि मॉडिफाइड mRNA के जरिए इम्युनिटी बढ़ाई जा सकती है, जिससे कई बीमारियों की दवा और वैक्सीन भी बन सकती है। हालांकि, उनकी इस रिसर्च पर कई सालों तक किसी ने ध्यान नहीं दिया। 2010 में अमेरिकी वैज्ञानिक डैरिक रोसी ने मॉडिफाइड mRNA से वैक्सीन बनाने के लिए बायोटेक कंपनी मॉडर्ना खोली। 2013 में कारिको को जर्मन कंपनी बायोएनटेक में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट अपॉइंट किया गया। इस टेक्नोलॉजी के लिए डैरिक रोसी ने कैटलिन कारिको और ड्रू विसमैन को नोबेल प्राइज देने की मांग भी की है।

बायोएनटेक कंपनी      

तुर्की के रहने वाले उर साहिन और उनकी पत्नी ओजलोम टुरैसी पहले वैज्ञानिक एंटरप्रेन्योर हैं। उर साहिन और ओजलोम टुरैसी ने 2008 में जर्मनी में बायोएनटेक कंपनी की शुरुआत की। उर कंपनी के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर हैं और उनकी पत्नी चीफ मेडिकल ऑफिसर। शुरुआत में उर और उनकी पत्नी कैंसर के इलाज के लिए मोनोकोलेन एंटीबॉडी पर रिसर्च कर रहे थे। बाद में उन्होंने mRNA टेक्नोलॉजी पर रिसर्च शुरू की।

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