हाल ही में यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट ने तेलंगाना के “काकतीय रुद्रेश्वर मंदिर” विश्व धरोहर के तौर पर शामिल किया है। 800 साल पुराने इस मंदिर को रामप्पा मंदिर (Ramappa Temple) के नाम से भी जाना जाता है। तेलंगाना के वारंगल में स्थित यह शिव मंदिर इकलौता ऐसा मंदिर है, जिसका नाम इसके शिल्पकार रामप्पा के नाम पर रखा गया है इतिहास के अनुसार काकतीय वंश के राजा ने इस मंदिर का निर्माण 13वीं सदी में करवाया था।
अद्भुत वास्तु शिल्प का नमूना
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में मुख्य रूप से रामलिंगेश्वर स्वामी की पूजा होती है। मंदिर को शिल्पकार रामप्पा का नाम दिया गया, जिसने 40 वर्षों के अथक प्रयास के बाद इसका निर्माण किया था। छ: फीट ऊंचे सितारे जैसे प्लेटफार्म पर निर्मित यह मंदिर वास्तु शिल्प का अद्भुत नमूना है। इस मंदिर में शिव, श्रीहरि और सूर्य देवता की प्रतिमाएं स्थापित हैं। यह हजार खंभों पर बना प्राचीन वास्तु शिल्प का बेजोड़ नमूना है। इसका विशाल प्रवेश द्वार काफी आकर्षक है। मंदिर पर बनी मनमोहक नक्काशियां बरबस ही लोगों का ध्यान खींच लेती हैं। ऐसे में जब इस दौर के बने कई मंदिर खंडहर में तब्दील हो गए हैं, तब कई प्राकृतिक आपदाओं के बाद भी इस मंदिर को कोई बड़ा नुकसान नहीं पहुंचा है।
यह मंदिर शिव, श्रीहरि और सूर्य देवता को समर्पित है
वारंगल का यह रुद्रेश्वर मंदिर, एकमात्र ऐसा मंदिर है, जो एक तारे के आकार का बना है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां एक ही छत के नीचे तीन देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, जिसमें शिव और विष्णु के साथ सूर्य देवता शामिल है। इसलिए इसे ‘त्रिकुटल्यम’ भी कहते हैं। आमतौर पर देखा जाय तो महादेव और श्रीहरि के साथ ब्रह्मा की ही पूजा होती है; लेकिन यह ऐसा इकलौता मंदिर हैं, जहां ब्रह्मा की जगह सूर्य देवता विराजमान हैं।
रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर पर एक संक्षिप्त इतिहास
रुद्रेश्वर मंदिर का निर्माण 1213 ई. में काकतीय साम्राज्य के शासनकाल में काकतीय राजा गणपति देव के एक सेनापति रेचारला रुद्र ने कराया था। यहां के स्थापित देवता रामलिंगेश्वर स्वामी हैं। 40 वर्षों तक मंदिर निर्माण करने वाले एक मूर्तिकार के नाम पर इसे रामप्पा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। काकतीयों के मंदिर परिसरों की विशिष्ट शैली, तकनीक और सजावट काकतीय मूर्तिकला के प्रभाव को प्रदर्शित करती हैं। रामप्पा मंदिर इसकी अभिव्यक्ति है और बार-बार काकतीयों की रचनात्मक प्रतिभा का प्रमाण प्रस्तुत करती है।
मंदिर छ: फुट ऊंचे तारे जैसे मंच पर खड़ा है, जिसमें दीवारों, स्तंभों और छतों पर जटिल नक्काशी से सजावट की गई है, जो काकतीय मूर्तिकारों के अद्वितीय कौशल को प्रमाणित करती है। समयानुरूप विशिष्ट मूर्तिकला व सजावट और काकतीय साम्राज्य का एक उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य है। मंदिर परिसरों से लेकर प्रवेश द्वारों तक काकतीयों की विशिष्ट शैली, जो इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय है। दक्षिण भारत में मंदिर और शहर के प्रवेश द्वारों में सौंदर्यशास्त्र के अत्यधिक विकसित स्वरूप की पुष्टि करती है। यूरोपीय व्यापारी और यात्री मंदिर की सुंदरता से मंत्रमुग्ध थे और ऐसे ही एक यात्री मार्को पोलो ने उल्लेख किया था कि “मंदिर दक्कन के मध्ययुगीन मंदिरों की आकाशगंगा में सबसे चमकीला तारा” है।
UNESCO
United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization; यानी UNESCO की स्थापना 16 नवंबर,1945 को हुई थी। इसका स्थायी मुख्यालय फ्रांस के पैरिस में है। यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र संघ की एक इकाई है। इसकी स्थापना का उद्देश्य शिक्षा, संस्कृति और विज्ञान के प्रचार-प्रसार के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय शांति, विकास और संबंधों को बढ़ावा देना है। यूनेस्को दुनिया भर के अलग-अलग देशों के धरोहरों को विश्व धरोहर में शामिल करता है। यूनेस्को का पहला विश्व धरोहर स्थल इक्वाडोर का Galapagos Island है। वहीं, भारत में अब तक 39 जगहों को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया जा चुका है।