संसद के मानसून सत्र के दौरान सांसदों को कोरोना से बचाने के लिए अल्ट्रावॉयलेट डिसइंफेक्टेंट सिस्टम का प्रयोग किया जाएगा; जिससे सांसदों को कोरोना से बचाया जा सकेगा। इस सिस्टम को सेंट्रल साइंटिफिक इंस्ट्रुमेंट्स ऑर्गेनाइजेशन (CSIO) ने बनाया है। इस टेक्नोलॉजी को ‘अल्ट्रावॉयलेट डिसइंफेक्शन या UV डिसइंफेक्ट सिस्टम’ कहा जाता है।
अल्ट्रावॉयलेट डिसइंफेक्शन सिस्टम क्या है?
इस UV सिस्टम के माध्यम से अल्ट्रावॉयलेट लाइट के जरिए हवा में मौजूद वायरस को खत्म करने के लिए बनाया गया है। इस सिस्टम को ऑडिटोरियम, कॉन्फ्रेंस रूम, क्लासरूम, AC बस और मॉल जैसी जगहों पर आसानी से फिट किया जा सकता है। इस सिस्टम को बनाने वाले CSIO का कहना है कि ये हवा में मौजूद वायरस, बैक्टीरिया, फंगस और बायो-एयरोसोल को मार कर उनके फैलने के खतरे को कम करता है तथा कोरोना को हवा में फैलने से रोकेगा।
UV सिस्टम कैसे काम करता है?
सूर्य की किरणों में मौजूद 100 से 400 नैनोमीटर वेवलेंथ की किरणों को अल्ट्रावॉयलेट किरणों के नाम से जाना जाता है। इन अल्ट्रा वॉयलेट किरणों को वेवलेंथ के आधार पर तीन कैटेगरी में बांटा गया है; यथा UV-C (100-280 नैनोमीटर), UV-B (280-315 नैनोमीटर) और UV-A (315-400 नैनोमीटर)। इन तीनों में से सबसे ज्यादा एनर्जी UV-C लाइट में पाई जाती है, जिसे ओजोन लेयर द्वारा पृथ्वी तक पहुंचने से पहले ही रोक दिया जाता है। यही UV-C लाइट वायरस, बैक्टीरिया के न्यूक्लिक एसिड और स्पाइक प्रोटीन को क्षति पहुंचता है। इस वजह से वायरस जिंदा नहीं रह पाता है। CSIO द्वारा बनाए गए सिस्टम में इसी UV-C लाइट को प्रोड्यूस किया जाता है। इस पूरे सिस्टम को AC डक्ट में फिट कर दिया जाता है। इसके बाद AC से होकर गुजरने वाली हवा में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं।
UV-C कोरोना वायरस को खत्म में क्या कारगर है?
जर्नल साइंस डायरेक्ट में पब्लिश एक रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस UV रेडिएशन के प्रति बेहद सेंसिटिव है और वायरस के हाई वायरल लोड को 9 मिनट के भीतर ही UV रेडिएशन के जरिए खत्म किया जा सकता है। वहीं जून 2020 में पब्लिश इसी तरह की एक और साइंटिफिक रिपोर्ट में भी वैज्ञानिकों ने पता लगाया था कि UV-C रेडिएशन कोरोना के अल्फा और बीटा वैरिएंट की प्रोटीन कोटिंग को नष्ट कर देता है।
सितंबर 2020 में अमेरिकन जर्नल ऑफ इंफेक्शन कंट्रोल में छपी एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक, 222 नैनोमीटर की UV किरणों को 0.1 मिलीवॉट/स्क्वैयर सेंटीमीटर की इंटेसिटी से 30 सेकेंड तक अगर किसी बंद जगह में छोड़ा जाता है तो ये 99.7% कोरोना वायरस को खत्म कर देती है। इसके अलावा अलग-अलग स्टडी में भी ये दावा किया गया है कि अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन कोरोना वायरस के रेप्लिकेशन को रोकने में कारगर है। रेप्लिकेशन, यानी वायरस की फोटोकॉपी।
UV किरणों का प्रयोग
UV किरणों का प्रयोग अस्पतालों, लैबोरेटरीज, पानी को शुद्ध करने, डीएनए सिक्वेंसिंग में, फोटोथेरेपी में, फ़ूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज आदि के लिए पहले से ही होता आ रहा है।
UV रेडिएशन हमारे लिए कितना खतरनाक?
अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन का नुकसान दो बातों पर निर्भर करता है। पहला इंटेंसिटी और दूसरा ड्यूरेशन। यानी कितनी इंटेंसिटी की UV लाइट में आप कितनी देर तक रहें। अगर ज्यादा इंटेंसिटी की लाइट में आप ज्यादा देर तक एक्सपोज हो गए तो ये आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है; जबकि इस टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल हो रही 254 नैनोमीटर वाली UV-C लाइट को इंसानों पर कम खतरनाक माना जाता है। वहीं, UV-C लाइट का ही एक और प्रकार होता है, जिसे Far UV-C (207-222 नैनोमीटर) कहा जाता है। ये वायरस और बैक्टीरिया के लिए घातक होती है, लेकिन इंसानों पर इसका ज्यादा असर नहीं होता। ज्यादातर डिसइंफेक्टेंट सिस्टम में इसी लाइट का इस्तेमाल होता है।
अल्ट्रावॉयलेट किरणों के प्रयोग की पृष्ठभूमि
साल 1801 में अल्ट्रावॉयलेट लाइट की खोज के बाद से ही इसका इस्तेमाल अलग-अलग कामों के लिए होता आ रहा है :
- वर्ष 1877 में पहली बार सरफेस को डिसइंफेक्ट करने के लिए अल्ट्रावॉयलेट किरणों का प्रयोग किया गया था।
- साल 1903 में UV फोटोथेरेपी के लिए नील्स फिन्सन को नोबेल पुरस्कार मिला।
- 1910 में पहली बार UV किरणों के द्वारा पानी को शुद्ध किया गया।
- 1930 में पहला कॉमर्शियल UV-C लैंप बाज़ार में आया।
- 1935 में हवा शुद्ध करने के लिए UV किरणों का प्रयोग किया गया।
- 1950 के करीब कई देशों ने टीबी के वायरस को फैलने से रोकने के लिए भी इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया था।
- 2010 आते-आते अस्पतालों में डिसइंफेक्ट के लिए अलग-अलग UV उत्पाद बाजार में आ गए।
CSIO
केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (CSIO), वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक घटक इकाई है, जो वैज्ञानिक और औद्योगिक उपकरणों के अनुसंधान, डिजाइन और विकास के लिए समर्पित एक प्रमुख राष्ट्रीय प्रयोगशाला है: जबकि CSIR, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित यह सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय के रूप में पंजीकृत है। यह भारत का सबसे बड़ा अनुसंधान एवं विकास संगठन है। CSIR एक अखिल भारतीय संस्थान है, जिसमें 38 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, 39 दूरस्थ केंद्रों, 3 नवोन्मेषी परिसरों और 5 इकाइयों का एक सक्रिय नेटवर्क शामिल है। इसकी स्थापना सितंबर 1942 में की गईं थी।