भारतीय मीडिया क्यूँ है दलाल मीडिया

दैनिक समाचार

भारतीय मीडिया रूस-यूक्रेन के युद्ध के दौरान यूक्रेन का ही पक्ष लेकर चल रहा है, वजह क्या है? आखिर रूस के खिलाफ और यूक्रेन के पक्ष में ही क्यूँ गाती जा रही है? एक ही पक्ष क्यूँ? सिक्के का दूसरा पहलू रूस, उसके पक्ष में एक बात भी नहीं क्यूँ?

वास्तव में भारतीय मीडिया भारत के बाहर अपनी खुद के पत्रकारिता की कोई पहुँच नहीं है। ये सभी अमेरिका परस्त ‘अंतर्राष्टीय न्यूज एजेंसी’ पर पूर्णतः डिपेंड हैं, विशेषकर वेस्टर्न मीडिया यानी पश्चिमी मीडिया पर जिसमें ब्रिटेन की न्यूज एजंसी रॉयटर्स, बीबीसी न्यूज, स्काई न्यूज़ अमेरिका की एसोसियेटेड प्रेस (ए पी), फाक्स न्यूज, एन बी सी फ्रांस की यूरो न्यूज, फ्रांस प्रेस (ए एफ पी) प्रमुख रूप से है। भारत की न्यूज एजेंसी ANI ए एन आई (एशियन न्यूज इंटरनेशनल) ब्रिटेन की न्यूज एजंसी रॉयटर्स की ही फ्रेंचाईजी है। भारतीय मीडिया और न्यूज एजंसियां इन्हीं पश्चिमी मीडिया के चैनल और न्यूज एजंसियों से खबर और फुटेज परचेज करती हैं और इन पश्चिमी मीडिया पर अमेरिकी साम्राज्यवाद का दबदबा है। ये चैनल कभी भी न्यूट्रल होकर समाचार कतई नहीं बांचते हैं। पश्चिमी देशों के हितों और अमेरिका के हितों को ध्यान रखकर समाचार बनाये जाते हैं और पूरी दुनिया में प्रसारित किया जाता है।

अब जो देश इन पश्चिमी देशों और अमेरिकी साम्राज्यवाद के इशारे पर नहीं चलता है उनके खिलाफ साल के 365 दिन अपनी स्टूडियो में फर्जी फुटेज तैयार कर प्रोपेगंडा चलाकर दुनियाभर के मेहनतकश जनता के मन में जहर भर दिया जाता है। इनको तो बस ऐसे मौकों की तलाश होती है जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध। फिर देर किस बात की अपनी स्टूडियो में फर्जी फुटेज, इमेज और समाचार तैयार कर पूरे विश्व में भगवान के प्रसाद की तरह पैसा लेकर बांट दिया जाता है। फिर क्या ये अमेरिकी परस्त दलाल मीडिया (दलाल मीडिया इसलिए क्योंकि इन फुटेज, इमेज और जो समाचार दिया जाता है उस पर कोई सवाल नहीं! बिना दिमाग लगाये जो इनके सरगना अमेरिकी साम्राज्यवाद के चैनल और न्यूज एजंसियां थमा देते हैं, प्रसारित कर देते हैं।) उसमें नमक-तेल लगाकर और चटपटा बना देते हैं। इस दलाल मीडिया को अपने हित के अलावा और कोई हित दिखाई नहीं देता। इनकी कितनी भी बेइज्जतीश कर लीजिये कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि दलाल अपनी इज्जत की एहमियत नहीं देते हैं।

अभी चार-पांच दिन पहले इन दलाल मीडिया के कुछ चैनल ने एक खबर चलाई कि टाईम मैगजीन में पुतिन की तुलना हिटलर से की गयी है जो कि पूरी तरह से फर्जी है और इस फर्जी खबर को उसको सोशल मीडिया के जरिये वायरल करा दिया। ये फर्जी खबर आर एस एस के स्टूडियो में बनाकर उनकी आईटी सेल द्वारा फैलाया गया फोटोशाप प्रोपेगंडा है।

कुछ चैनल ने विडियो गेम की तस्वीर लेकर बताया कि देखो रूस ने यूक्रेन के मासूम नागरिकों पर बमबारी करना शुरू कर दिया अपने मिसाईल दागे और कल तक रूस यूक्रेन पर कब्जा कर लेगा।

इसी तरह एक झूठी खबर और चलाई कि ‘भारत के प्रधानमंत्री मोदी के कहने पर रूस ने 6 घंटे युद्ध रोक दिया’ और इस खबर को इन दलाल चैनलों ने मोदी का महिमामंडन करते हुए ऐसे चलाया जैसे रूस ने मोदी के कहने पर हकीकत में युद्ध रोक दिया है। ये पूर्णतः फर्जी खबर है जिसको भारतीय विदेश मंत्रालय ने ही खारिज कर दिया कि ये झूठी खबर है।

2015 में, भारत के अंग्रेजी समाचार चैनल टाइम्स नाउ के पूर्व प्रधान संपादक और वर्तमान में रिपब्लिक टी वी के एडिटर अर्नब गोस्वामी ने पश्चिमी मीडिया के आधिपत्य की आलोचना करते हुए कहा था कि अमेरिका और ब्रिटेन मिलकर वैश्विक समाचार के स्रोत में 74% योगदान करते हैं, जबकि पूरे एशिया का योगदान केवल 3% है। अब आप इसी बात से अंदाजा लगा लीजिये कि भारतीय मडिया पर अमेरिकी साम्राज्यवाद परस्त पश्चिमी मीडिया का कितना दबदबा है।

अब आप स्वंय सोचें कि क्या अमेरिकी साम्राज्यवाद परस्त पश्चिमी मीडिया अमेरिका के विरुद्ध ख़बरें चलायेगा? जैसी खबरें जो अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरुद्ध हों उसको ये दलाल मीडिया क्यूँ दिखाएगा। आप अपना दिमाग ना लगायें तो इस युद्ध में रूस का पक्ष कभी नहीं जान पाएंगे। सोशल मीडिया के माध्यम से कोई खबर भूल से आप तक पहुँच भी जाएगी तो आप यकीन नहीं करेंगे क्योंकि अमेरिकी साम्राज्यवाद ने इस दलाल मीडिया के माध्यम से हमारे-आपके दिलो-दिमाग में पहले से ही अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरोधी देशों के बारे में जहर भर दिया है। जब हम वर्गीय समाज में जीते हैं तो हमें भी अपना एक पक्ष चुनना होता है और अमेरिकी साम्राज्यवाद के आधीन इस दलाल मीडिया ने हमारे मन में अमेरिका का पक्ष तय कर दिया है। इसलिए अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरोधी दुश्मन देश हमारे भी दुश्मन बन जाते हैं बगैर दूसरा पक्ष जाने।

पश्चिमी मीडिया की कुछ करतूत देखें-
जब नाटो ने मुअम्मर अल-गद्दाफी (1969 में लीबिया के शासक बने, इन्हें ‘कर्नल गद्दाफ़ी’ के नाम से जाना जाता है) की हत्या की, तो पश्चिमी मीडिया ने इसे “सैन्य हस्तक्षेप” कहा। नाटो का पक्ष रखा और ‘कर्नल गद्दाफ़ी’ का पक्ष गायब ही कर दीया और वे अब यह रिपोर्ट करने की जहमत भी नहीं उठाते कि ओबामा के नेतृत्व में क्रूर और अमानवीय सैन्य कार्रवाई से लीबिया की क्या स्थिति है और इसका कौन जिम्मेदार है?

इसी तरह इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन का पक्ष छुपाकर झूठ ही पेश किया दुनियाँ के सामने कि सद्दाम हुसैन के पास इराक पर आक्रमण करने के लिए सामूहिक विनाश का हथियार है। जब अमेरिका ने इराक को नष्ट कर दिया और सद्दाम हुसैन को पकड़कर सद्दाम हुसैन को मार दिया और उसके बाद जार्ज बुश अपनी बात से पलटते हुवे कहा कि “हम नहीं जानते कि (इराक) के पास परमाणु हथियार हैं या नहीं।” 250,000 से अधिक लोगों की जान लेने वाली त्रासदी को अंजाम देने वाले अमेरिका परस्त नाटो सेना को युद्ध अपराधों के लिए कोई जवाब भी नहीं देना पड़ा। पश्चिमी मीडिया ने अमेरिकी साम्राज्यवाद का पक्ष रख अमेरिका को हीरो ही साबित किया और सद्दाम हुसैन को विलेन।

इसी तरह पश्चिमी मीडिया ने अर्जेण्टीना 1890; चिली 1891; हैती 1891; हवाई 1893; ब्लूफील्ड, निकारागुआ 1894 और 1899; चीन 1894-95; कोरिया 1894-96; कोरिण्टो, निकारागुआ 1896; चीन 1898-1900; उ 1901-14; पनामा कनाल ज़ोन 1914; होण्डुरास 1903; डोमिनिकन रिपब्लिक 1903-04; कोरिया 1904-05; क्यूबा 1906-09; निकारागुआ 1907; होण्डुरास 1907; पनामा 1908; निकारागुआ 1910; क्यूबा 1912; पनामा 1912; होण्डुरास 1912; निकारागुआ 1912; वे मेक्सिको (हेराक्रूज़) 1914; डोमिनिकन रिपब्लिक 1914; मेक्सिको1914-18; हैती 1914-34; डोमिनिकन रिपब्लिक 1916-24; क्यूबा 1917; सोवियत संघ 1918; पनामा 1918; होण्डुरास 1919; ग्वाटेमाला 1920; तुर्की 1922; चीन 1922; होण्डुरास 1924; पनामा 1925; अल सल्वाडोर 1932; कोरिया 1950-53; प्यूर्टो रिको 1950; ग्वाटेमाला 1954; मिस्र 1956; लेबनान 1958; पनामा 1958; क्यूबा 1962; डोमिनिकन रिपब्लिक 1965; वियतनाम 1965-75; ग्वाटेमाला 1967; ओमान 1970; अल सल्वाडोर 1981; निकारागुआ 1981; ग्रेनाडा; 1982; लेबनान 1982; होण्डुरास 1983; बोलीविया 1986; पनामा 1989; इराक़ 1991; युगोस्लाविया 1992; सोमालिया 1993; हैती 1994; लाइबेरिया 1996; सूडान 1998; अफगानिस्तान 1998 से अब तक; इराक़ 2003 से अब तक; सीरिया 2013 से अब तक… जो अमेरिका ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से युद्ध छेड़े उस पर पश्चिमी मीडिया पूरी तरह से अमेरिकी साम्राज्यवाद को हीरो बनाकर ही रिपोर्टिंग करती रही।

यूक्रेन का सच क्या है जिसे अमेरिकापरस्त मीडिया आपको यह नहीं बताएगा कि यूक्रेन का शासक जनमत संग्रह के माध्यम से स्वतंत्र होने के लिए चुनने वाले अधिकांश लोगों के बावजूद “रिपब्लिक आफ लुहान्स्क” और “रिपब्लिक आफ डोनेट्स्क” क्षेत्रों को यूक्रेन का हिस्सा बनने के लिए मजबूर कर रहा है। अमेरिका चाहता है कि आप विश्वास करें कि व्लादिमीर पुतिन ही दोषी हैं और अपने साम्राज्यवाद को बढ़ाने और अपनी तानाशाही करने के लिये यूक्रेन पर युद्ध थोप रहें हैं तथा यूक्रेन का राष्ट्रपति (जो कि अमेरिका द्वारा बनाया गया कठपुतली है) निर्दोष है। पश्चिमी मीडिया आपको यह नहीं बताएगा कि यूक्रेन पर अमेरिका ने कैसे अपनी कठपुतली सरकार बनाई है। बल्कि यह बतायेगा कि जेलेंस्की से पहले जो सरकार थी वो रूस की कठपुतली सरकार थी….

यदि रूस का मुख्य उद्देश्य यूक्रेन पर कब्जा करना होता तो रूस अपनी 2 लाख सेना नहीं कम से कम 10 लाख सैनिक भेजकर 2 दिन में ही सम्पूर्ण यूक्रेन पर कब्जा कर लेता। वास्तव में रूस के सैनिक यूक्रेन के बार्डर पर जमें हैं ताकि नाटो सेना या अमेरिकी सेना यूक्रेन के अन्दर दाखिल ना होने पाये। यहां रूस के सौनिक प्रत्यक्ष तौर पर युद्ध में शामिल ही नहीं हैं, बल्कि जिनको रूस ने स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया है, “रिपब्लिक आफ लुहान्स्क” और “रिपब्लिक आफ डोनेट्स्क” नाम की दो क्रान्तिकारी सरकार की सेनाएं मिलकर दो छोर से यूक्रेन की प्रतिक्रियावादी/प्रतिक्रान्तिकारी सेना से लड़ाई लड़ रही हैं। कंही-कंही इनके सैनिक अड्डों पर ही रूस की सेना इन दोनों रिपब्लिक क्षेत्रों के सहयोग में बम्बार्टमेन्ट कर रही है पर अमेरिकी साम्राज्यवाद परस्त पश्चिमी मीडिया और उनके दलाल भारतीय मीडिया इसको नहीं दिखायेंगे। बस जब से युद्ध शुरू हुआ है तबसे अपनी स्टूडियो में बनाया हुआ फर्जी विडियो और फर्जी समाचार चला रूस को बदनाम करने की कोशिश जारी है। पहले ही दिन से रूस आज की रात यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा कर लेगा…. रूस की सेना यूक्रेन में 65 किलोमीटर घुस गयी है…. रूस ने आज की रात कीव, खरकीव…. पर की भारी बमबारी….

दलाल मीडिया द्वारा डेली नया प्रोपेगंडा चलाकर रूस को विलेन बनाया जा रहा है। यदि वाकई रूस ही विलेन है और उसने यूक्रेन पर कब्जा करने की नीयत से युद्ध थोपा है तो इतने छोटे से देश पर जैसा ये दलाल मीडिया भी लगातार बता रही है ‘आज की रात भारी बमबारी रूस कर लेगा कब्जा….” ऐसा ही है तो क्यूँ नहीं रूस अपनी ज्यादा से ज्यादा सेना उतार यूक्रेन पर कब्जा कर लेता है? क्यूँ युद्ध को लंबा खींच रहा है? इस पर कोई चर्चा नहीं और ना ही ये बताएगा कि अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो के अतिक्रमण के खिलाफ रूस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। ये लड़ाई कंही से रूस और यूक्रेन के बीच नहीं बल्कि रूस और अमेरिका के बीच है।

दलाल मीडिया ये भी नहीं बताता कि अमेरिका अपने सैन्यगठबन्धन नाटो में पूर्वी यूरोपीय देश बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया के बाद यूक्रेन को नाटो में शामिल कर रूस को घेरने और चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना को रोकने की तैयारी कर रहा है। चीन की इस बड़ी और महत्वपूर्ण परियोजना तक का कंही जिक्र भी नहीं। यदि पश्चिमी मीडिया और भारतीय दलाल मीडिया इसका जिक्र करते तो अमेरिका की कलई खुल जाती इसीलिए पूरी तरह से गलत लाइन लेकर बस रूस को बिलेन बनाया जा रहा है।

रूस और चीन के दूसरे देश में कितने सैनिक अड्डे हैं? जवाब है एक भी नहीं। पर अमेरिका के 110 देशों में 150 से ज्यादा सैनिक अड्डे हैं, ये पश्चिमी मीडिया तो बताएगा नहीं पर भारतीय मीडिया तो बता ही सकती थी पर बताये भी तो कैसे? उसे तो अमेरिकी साम्राज्यवाद की दलाली जो करनी है।

पश्चिमी मीडिया और उसकी दलाल भारतीय मीडिया चाहता है कि आप यह विश्वास करें कि पश्चिमी देश और उनका आका अमेरिका हमेशा सही होता है। जो देश अमेरिकी साम्राज्यवाद की चापलूसी करें वहां असली लोकतंत्र है और जो देश अमेरिकी साम्राज्यवाद की गुलामी नहीं करना चाहते, वो देश बुरे हैं! वो तानाशाह हैं! वहां लोकतंत्र नहीं है… ऐसे ही अनाप-शनाप फर्जी प्रोपोगंडा फैलाते रहते हैं। यही है भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ जो नीचे से ऊपर तक अमेरिकी साम्राज्यवाद की दलाली के दल-दल धंसा हुआ है और देश की मेहनतकश जनता के दिमाग में ऐसे देशों के खिलाफ प्रोपगंडा फैलाकर नफरत भरता जा रहा है।

अजय असुर
राष्ट्रीय जनवादी मोर्चा

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