8 मार्च अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस: अतीत और वर्तमान

दैनिक समाचार

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास उन मेहनतकश औरतों को समर्पित है जिन्होंने बहुत संघर्ष करके औरतों के लिए वे सारे अधिकार हासिल किये थे जिनके दम पर औरतें आज आज़ादी की चन्द सांसें ले रही हैं. यह भी सच है कि दुनिया की अधिकांश औरतें आज भी मेहनत कर रही हैं. यह भी सच है कि तमाम प्रतिक्रियावादी ताकतें आज फिर से औरतों को इतिहास के उसी अन्धेरे कोने में ढकेल देना चाहती हैं जिससे निकलने के लिए हमारी पुरखिन पूर्वजों ने अथक परिश्रम किया था.
आज से ठीक 112 साल पहले सन 1910 में पहली बार अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी. जर्मनी की विख्यात समाजवादी नेत्री क्लारा जेटकिन ने डेनमार्क के कोपेनहेगन में आयोजित मेहनतकश औरतों के अन्तरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में यह प्रस्ताव रखा कि औरतों के अधिकारों के सम्मान और औरतों के लिए सार्वजनिन मताधिकार सुनिश्चित करने के लिए एक दिन मनाया जाए. 17 देशों से आई लगभग 100 प्रतिनिधियों ने ध्वनिमत से इस प्रस्ताव को पारित कर दिया. उस वक्त इसके लिए कोई एक निश्चित तिथि निर्धारित नहीं की गई.
लिये गए निर्णय के मुताबिक 19 मार्च 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैण्ड में पहली बार अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया. तकरीबन 10 लाख लोगों ने विभिन्न रैलियों और प्रदर्शन में हिस्सेदारी की. वोट देने के अधिकार के अलावा प्रदर्शनकारियों की मांगें थीं कि उन्हें काम करने का अधिकार दिया जाए, व्यवसायिक प्रशिक्षण दिया जाए तथा नौकरियों में औरतों और पुरुषों में व्याप्त गै़रबराबरी ख़त्म की जाए. 19 मार्च का दिन इसलिए तय किया गया क्योंकि इसी दिन 1848 में प्रशा के राजा ने एक सशस्त्र बग़ावत के बाद कई सुधारों का वादा किया गया जिसमें एक था औरतों के लिए वोट देने का अधिकार, जिसे अभी तक पूरा नहीं किया गया था.
1913 में इस तिथि को बदल कर 8 मार्च कर दिया गया. ऐसा इस दिन मेहनतकश वर्ग के इतिहास के दो महत्वपूर्ण दिन की याद में किया गया. 8 मार्च 1857 में अमेरिका के न्यूयार्क शहर की कपड़ा फैक्ट्रियों और टेक्सटाइल फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिला मजदूरों ने पहली बार एक प्रतिरोध प्रदर्शन किया था. यह प्रतिरोध महिला मजदूरों की अमानवीय कार्य दशा के विरोध में था. ये औरतें अत्यन्त अमानवीय दशा में 16-16 घण्टे बहुत कम वेतन पर काम करतीं. इनके बच्चे कई-कई दिन अपनी मांओं की शक्ल नहीं देख पाते थे. सुबह जब वे काम पर जा रहीं होतीं उस समय वे सोते रहते और जब वे रात में वापस काम पर आतीं तो बच्चे फिर से सो जाते. इन महिला मजदूरों ने अपनी ख़राब दशा के खिलाफ़ पहली बार प्रतिरोध किया. उस वक्त भी प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने हमला किया और प्रदर्शनकारियों को तितरबितर कर दिया. इसके दो साल बाद पहली बार मार्च में ही महिला मजदूरों ने अपना पहला यूनियन बनाया.
पुनः 8 मार्च 1908 को न्यूयार्क शहर में 15000 औरतों ने मार्च निकाला. उनकी मांग थी कि काम के घण्टे कम किये जाएं, बेहतर वेतन दिया जाए, औरतों को भी वोट देने का अधिकार दिया जाए तथा बाल मजदूरी का खात्मा किया जाए. इस बार उनका नारा था ‘रोटी और गुलाब’. इसमें रोटी प्रतीक थी आर्थिक सुरक्षा की तथा गुलाब प्रतीक था बेहतर जीवन स्थितियों का. इसी साल अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने हर साल फरवरी के अन्तिम रविवार को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का फैसला किया गया.
28 फरवरी 1909 को समूचे अमेरिका में पहली बार अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया. जल्दी ही यूरोप में भी फरवरी के अन्तिम रविवार को महिला दिवस मनाया जाने लगा. इसी पृष्ठभूमि में क्लारा जेटकिन ने 1910 में अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा.
इसी दौरान 25 मार्च 1911 में अमेरिका में एक त्रासदी हुई. ट्रायंगल अग्निकांड में 140 मजदूर लड़कियों की मौत हो गयी. इस घटना का अमेरिका में मजदूर कानूनों पर दूरगामी प्रभाव पड़ा. इससे अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस को और भी प्रेरित किया.
1913 में प्रथम विश्वयुद्ध की पूर्वसंध्या में रूसी औरतों ने अपना पहला अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया. समूचे यूरोप में 8 मार्च और इसके आसपास अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा. इन सबमें सबसे प्रसिद्ध हुई सेंट पीटर्सबर्ग में 8 मार्च 1917 (रूसी कैलेण्डर के हिसाब से 24 फरवरी 1917) को रूसी औरतों के नेतृत्व में आयोजित ‘रोटी और षान्ति’ के लिये की गई स्ट्राइक. इसमें मेहनतकश वर्ग की दो प्रसिद्ध नेत्री क्लारा जेटकिन और एलेक्ज़ान्द्रा कोलोन्ताई ने हिस्सेदारी की. अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में आयोजित यह स्ट्राइक 8-12 मार्च के बीच पूरे शहर में फैल गई. बाद में यह प्रसिद्ध फरवरी क्रान्ति में तब्दील हो गया जिसने ज़ार के शासन को उखाड़ फंेका और पूरी दुनिया को झकझोर दिया.
समाजवादी रूस में 8 मार्च को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में घोषित किया गया. और तबसे 8 मार्च मजदूर औरतोें के संघर्ष का शानदार प्रतीक बन गया. समाजवादी रूस आगे चलकर औरतों के अधिकारों के लिए एक शानदार मिसाल बन गया और पूरी दुनिया में महिला आन्दोलन को प्रभावित किया. आगे चलकर 1949 में चीनी क्रान्ति ने औरतों की शानदार उपलब्धि पर मुहर लगाई. चीनी क्रान्ति ने स्थापित किया कि कैसे एक घोर सामन्ती, पिछड़े हुए और पितृसत्तात्मक समाज में भी औरतों के अधिकारों की जीत को स्थापित किया जा सकता है. महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति ने औरतों की मुक्ति की लड़ाई को एक और मुकम्मल मुकाम प्रदान किया.
1960 और 1970 के दशक में पूंजीवादी देशों में एक सशक्त जनवादी आन्दोलन छिड़ गया. वहीं तीसरी दुनिया के देशों में राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलनों ने ज़ोर पकड़ लिया. साथ ही एक सशक्त नारी मुक्ति आन्दोलन भी सतह पर उभर कर आ गया. इन आन्दोलनों से साम्राज्यवादी सत्ताएं डोलने लगीं.
इसके परिणामस्वरूप साम्राज्यवाद ने तमाम सारे मुक्ति आन्दोलनों को कुचलने के कई सारे हथकण्डे अपनाने शुरू किये. इनमें से एक था इन आन्दोलनों को और इनके प्रतीकों को स्वयं में मिला लेने का. बड़ी मात्रा में आर्थिक अनुदान देकर कोरपोरेट और राज्य प्रायोजित एनजीओ के माध्यम से समाजवाद पर हमले शुरू किये गए. भ्रमित करने के लिए बूर्जुआ नारीवाद का एक विकल्प परोसा गया. समावेशीकरण के इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र संघ ने साल 1975 को अन्तरराष्ट्रीय महिला वर्ष के रूप मनाने की घोषणा की और इसी साल 8 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा भी की गई.
धीरे-धीरे मेहनतकश औरतों के शानदार संघर्ष के प्रतीक 8 मार्च के इस दिन को तमाम सारी प्रतिगामी शक्तियां भी मनाने लगीं. आज इस दिन पर बाज़ार का कब्ज़ा हो गया है. यह दिन कभी लक्मे महिला दिवस तो कभी पॉन्ड्स महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.
समाजवाद व कम्युनिस्ट आन्दोलन की तात्कालिक पराजय के कारण दुनिया भर में औरतों के संघर्षों को धक्का पहुंचा है. वैश्वीकरण की साम्राज्यवादी आंधी में औरतों को एक बार फिर शिकस्त देने की तैयारी चल रही है. कामगार लोगों के काम के घण्टों को बढ़ाया जा रहा है. औरतों को वापस किचेन में ढकेलने की कवायद चल रही है.
परन्तु तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि आज भी पूरी दुनिया में औरतें अपनी मुक्ति के लिए अलग-अलग तरीके से संघर्ष कर रही हैं. तो ज़रूरी है कि हम प्रतिक्रियावादी ताकतों के हाथों से अपने संघर्षों के प्रतीक इस दिन को छुड़ा लें और अपनी मेहनतकश औरतों के प्रतीक इस यादगार दिन को अपनी विरासत के रूप में घोषित करें. 8 मार्च, अन्तरराष्ट्रीय दिवस मेहनत करने वाली औरतों का एक प्रतीक यादगार दिन है और यही हमारी ताकत है और यह हमारी पहचान का दिन है!

अमिता शीरी
मुक्ति अंक 4 से….

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