अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास सौ साल से भी पुराना है। यह अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस कितना महत्वपूर्ण है कि आज अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाने वाले दिवस की शुरुआत मजदूर परिवारों की महिलाओं ने ही किया था और इसकी महत्ता स्थापित करने में भी महिलाओं की ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, चीन, नेपाल…. सहित कई देशों में महिला श्रमिकों ने बहादुरी और झुझारूपन की मिसाल कायम की और अपने पुरुष साथियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर मालिकों और सरकारों के दमन शोषण के खिलाफ खड़ी हुईं। आज महिलाओं की बड़ी आबादी के लिए सामान्य हो गए मौलिक अधिकार जैसे पढ़ना, पुरुषों के समान वेतन पाना और वोट देना इत्यादि भी महिलाओं के अथक संघर्ष के परिणाम हैं और ये अधिकार संघर्षों के बाद ही मिला है। आज विश्व में सबसे विकसित कहलाने वाले अमरीका और ब्रिटेन जैसे देशों में सैकड़ों महिलाएं इन अधिकारों को पाने के लिए जेल गईं और यहाँ तक की कई शहीद भी हो गईं। रूसी क्रांति का पहला कदम अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन रोटी के बढ़ते दाम के खिलाफ जुलूस प्रदर्शन करने वाली महिलाओं ने ही किया था, जिसके बाद ही अन्य मजदूर भी आन्दोलन में शामिल हुए और इतिहास में पहला मजदूर राज कायम हुवा।
आज के समाज में महिलाएं विभिन्न प्रकार के शोषणों का मार झेल रही हैं। मेहनतकश जनता पर बढ़ते दमन और शोषण से आज मजदूर परिवारों की महिलाओं पर दुगना बोझ है जहाँ वह महिला होने के नाते भी उत्पीडित है और मजदूर होने के नाते भी। जहाँ गरीबी और भुखमरी का निवास होता है वहाँ सबसे पहले महिलाओं के मुंह से निवाला और हाँथ से किताब छूट जाते है। मजदूरी के समय में भी माँ खुद कुपोषित रह कर अपने बच्चों को खाना खिलाती है। बढ़ती गरीबी की सबसे कठोर मार महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा पर ही पड़ती है। बढ़ती बेरोज़गारी के कारण अनेकों महिलाओं को बहुत कम पैसों के लिए बुरे से बुरे परिवेश में नौकरी करनी पड़ती है।
जब वह मेहनत करके अपना और अपने परिवार का पेट पालने-पोसने की कोशिश भी करती हैं तो उन्हें एक पुरुष प्रधान समाज में असमान वेतन, यौन उत्पीडन और दुर्व्यवहार जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। समाज में हमेशा खुद को असुरक्षित और कमज़ोर महसूस करती महिलाओं के लिए अपनी पूरी क्षमता तक विकसित हो पाना असंभव मालूम पड़ता है और यह सब पूरे समाज के प्रगतिशील विकास को भी सीमित करता है। इन अनेकों कठिनाईयों में जीती महिलाओं के एक बड़े हिस्से को आज अपनी ही पूरी क्षमता और ताकत का एहसास नहीं है। इसलिए वह अक्सर घर से बहार निकलकर अपने अधिकारों के इए आन्दोलनों में जुड़ने से हिचकिचाती है। समाज में बढ़ने के लिए ज्यादा अवसर पाने वाली महिलाओं के बीच भी एक शक्तिशाली व्यक्तिवाद हावी है, जहाँ वे अक्सर पूरी महिला आबादी या पूरे समाज के हित में न सोच कर अपने हितों के दायरे में ही बंधी रह जाती हैं।
आज जब देश में जनता विभिन्न मुद्दों से जूझ रही है और और संघर्ष के नए मिसाल कायम कर रही है तब मेहनतकश महिलाओं के लिए भी अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने की नई ज़मीन तैयार हो रही है। सही मायने में एक शोषण मुक्त और सुन्दर समाज बनाने के लिए महिलाओं और पुरुष को कंधे से कन्धा मिला कर लड़ना होगा। परन्तु ऐसी शक्तिशाली एकता का रास्ता महिलाओं के अधिकारों के संघर्ष से गुज़रे बिना नहीं निकल सकता। आइए इस प्रितात्मक सामाज के पुरुष भी इस संघर्ष को अपनी महिला साथी के साथ आगे बढ़ाने की सौगंध खाएं और अन्तराष्ट्रीय श्रमजीवी महिला दिवस के संघर्षशील विरासत को कायम रखें। सभी महिला साथी को प्यार और उन पुरुष साथियों को भी प्यार जो इस समानता के अधिकार के साथ हैं…. बाकी संघर्ष जारी हैं और हनेशा रहेगा जब तक शोषण खत्म नहीं हो जाता…. यूँ ही अनवरत….
डिम्पल चौधरी
जनवादी महिला सभा