द्वारा : सुब्रतो
अब बड़े बड़े राजनीतिक विश्लेषक और डेटा विशेषज्ञ आएँगे और भाजपा की यूपी चुनाव में जीत के कारणों पर अपना बहुमूल्य ज्ञान सोशल मीडिया , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया पर देंगे । किसका वोट किधर गया और क्यों इस पर बहस होगी । प्रकारांतर में ये सारे लोग भाजपा के एजेंट के रूप में ही अपने को स्थापित करेंगे, क्यों कि मूल प्रश्न के उत्तर से सारे मुँह चुराएँगे ।
२०१७ के यूपी चुनाव के समय भी मैंने लिखा था कि यह इवीएम की जीत है । लोगों ने मज़ाक़ उड़ाया । २०१९ की लोकसभा की जीत भी इवीएम की जीत थी । लोगों को ग़लत लगा ।
इस बीच बंगाल , छत्तीसगढ़ जैसे एकाध राज्यों में भाजपा हारी तो लोग मुझ पर टूट पड़े कि वहाँ इवीएम का खेल क्यों नहीं हुआ ।
दरअसल भारत के लोगों के लिए फासीवाद एक नया अनुभव है । फ़ासिस्ट बहुत शातिर अपराधी होते हैं और लोकतंत्र का वहम बना कर अपना एजेंडा चलाते हैं । एकाध जगह जान बूझकर हारते हैं ताकि दूसरे जगहों पर की गई चोरी पकड़ी न जाए ।
भारत में घोषित आपातकाल का विरोध किस प्रकार हुआ था यह इतिहास है, इसलिए नोटबंदी, लॉकडाउन इत्यादि के ज़रिए अघोषित आपातकाल फ़ासिस्ट लोगों के द्वारा लगाया गया । ठीक इसी तरह भारत में घोषित अधिनायकवाद नहीं चलेगा, इसलिए मोदी अघोषित अधिनायकवाद चला रहे हैं ।
Rigged elections फासीवाद का आज़माया हुआ नुस्ख़ा है, जो कि नाज़ी जर्मनी ने दुनिया को सीखा दिया था । संघी बहुत मन से साज़िश को अंजाम देने में माहिर हैं । पहले १९ लाख इवीएम चुनाव आयोग की कस्टडी से चोरी हो जाती है और उसके बाद भाजपा कोई चुनाव नहीं हारती । एक अनपढ़ तड़ीपार चुनाव के पहले घोषणा कर देता है कि भाजपा को ३०० सीटें आएँगी और उसके बाद चुनाव आयोग और मीडिया की ज़िम्मेदारी बन जाती है कि कैसे भाजपा को ३०० लोकसभा सीटें दिलवाई जाएँ ।
मैं जानता हूँ कि मेरे इस पोस्ट पर भी बहुत सारे प्रकांड विद्वान और प्रचंड बुद्धि जीवी आ कर मुझे कोसेंगे, लेकिन उनके पास एक साधारण से प्रश्न का उत्तर नहीं होगा और वह है कि जिस लखीमपुर खीरी में क्रिमिनल टेनी पुत्र ने ८ किसानों को रौंद डाला वहाँ पर आठों सीट भाजपा कैसे जीत गई ?
अब मुझे सोशल इंजीनियरिंग पर ज्ञान मत दिजिएगा । ज़्यादा तर फ़ेसबुक बुद्धिजीवी लोगों से ज्ञान लेने के दुर्दिन अभी तक मेरे नहीं आए हैं ।