द्वारा : आदित्य कमल
हैं बेचैन किसान – सड़क पर उतरे हैं
परेशान , हलकान – सड़क पर उतरे हैं ।
अंधो , लंगड़ों और बहरे शासन वालो
सुन लो खोल के कान- सड़क पर उतरे हैं ।
बहुत हो चुका , भूखे पेट को आश्वासन
बंद करो दूकान – सड़क पर उतरे हैं ।
मेरी मेहनत के कौड़ी के भाव मिले
क्या मडुआ,क्या धान;सड़क पर उतरे हैं ।
सर पर कर्जा , और काँधे पे बदहाली
घर का बिका सामान ,सड़क पर उतरे हैं ।
है विडम्बना , अन्न उगाने वालों की
भूख से जाती जान ,सड़क पर उतरे हैं ।
हालत पशुओं से भी बदतर है अब तो
अरे हम भी हैं इंसान-सड़क पर उतरे हैं ।
धरती परती ,छाती फटती ,और दुनिया
लगती है वीरान – सड़क पर उतरे हैं ।
सहने की सीमा भी होती है भाई
घर जब बना मसान – सड़क पर उतरे हैं ।
बहलाना , सहलाना , फिर टरका देना
नहीं है अब आसान – सड़क पर उतरे हैं ।
इधर मज़ूरों में भी हलचल तेज़ हुई
थामेंगे वो कमान – सड़क पर उतरे हैं ।
ना ,ख़ुदकुशी तो हरगिज़ नहीं करेंगे अब
यूँ ना देंगे जान – सड़क पर उतरे हैं ।
हक़ लेंगे , हक़ छीनेंगे , हक़ जीतेंगे
तू बंदूकें तान – हम ,सड़क पर उतरे हैं !
लूट के सारे अड्डे घेरे जाएँगे
लेकर लाल निशान – सड़क पर उतरे हैं ।