लड़का मीलों दौड़कर अपने घर जा रहा है और कार में बैठे फ़िल्म निर्देशक की लिफ़्ट लेने से इनकार कर देता है क्योंकि वह आर्मी में जाने के लिए प्रैक्टिस में नागा नहीं करना चाहता।
भावुक जनता इसे प्रेरणादायी वीडियो बता रही है और कुछ लोग तो इसे अपने घर के बच्चों को दिखाने की भी सलाह दे रहे हैं।
सवाल तो ग़ायब ही कर दिए गए हैं। जैसे, कोई यह नहीं पूछ रहा है कि 19 साल के इस लड़के को सुबह उठकर काम पर जाने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है?
भाई को ख़र्च चलाने के लिए नाइट शिफ़्ट में काम क्यों करना पड़ रहा है? क्या वह दिन में भी काम करता है?
19 साल की उम्र चीज़ों को ठहरकर देखने-समझने की होती है। कमाई की चिंता में डूबा युवक ज़िंदगी के सबसे ख़ूबसूरत पलों से हाथ धो बैठता है। ये बातें लोगों के दिमाग में क्यों नहीं आ रहीं?
पढ़ाई का बजट लगातार कम किया गया है। 19 साल के लड़के को निश्चिंत होकर पढ़ने की सहूलियत देने की ज़िम्मेदारी किसकी है? ज़ाहिर है, समाज और सरकार की। लेकिन दोनों अभी पड़ोसी देश को सबक सिखाने और अंदरूनी दुश्मनों से निपटने के शोर में सब कुछ भूल गए हैं।
भारत में भुखमरी बढ़ती जा रही है। 2014 में भुखमरी वाली सूची में हम 55वें स्थान पर थे और आज 101वें पर हैं।
काश सैल्यूटवादियों को भुखमरी, बेरोज़गारी और अशिक्षा जैसे मसलों पर सोचने का वक़्त मिलता!